Rooh - 4 in Hindi Drama by Komal Talati books and stories PDF | रुह... - भाग 4

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रुह... - भाग 4

४.






पायल और अमिता किसी छोटी-सी बात पर बहस कर ही रही थीं कि तभी पलक झुंझलाते हुए बीच में टोक देती है,

"अरे तुम दोनों फालतू की बातें कब बंद करोगी? अभी हमें कॉलेज जाना है एडमिशन के लिए!" पलक के गुस्से वाले तेवर देख पायल और अमिता ने एक-दूसरे को देखा, फिर खिलखिलाकर हंस पड़ीं। माहौल अचानक हल्का-फुल्का हो गया। बिना कुछ कहे ही तीनों ने एक-दूसरे को समझा और हंसते हुए कॉलेज के लिए निकल पड़ीं।

उधर अबीर के दोस्तों की टोली उसके मज़े ले रही थी।
"यार अबीर," आदित्य ने उसके मजे लेते हुए कहा कि, "तेरी किस्मत में तो बस सबकी डांट खाना ही लिखा है लगता है!"

यह सुनकर अबीर ने चौंकते हुए पूछा, "क्यों, क्या मतलब?"

राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा, "सोच खुद... सबसे ज्यादा डांट किससे खाते हो?"

अबीर ने बिना ज़्यादा सोचे जवाब दिया, "पापा से।"

यह सुनते ही सभी दोस्त हंस दिए। विकी ने आंखें मटकाते हुए कहा, "और अभी-अभी जो मैडोना जी मिली थीं... उनकी डांट भी याद है न?"

अबीर ने हंसी रोकते हुए बिना उनकी तरफ देखे ही जवाब दिया, "हां, वही जिसकी गलती थी, फिर भी मुझे ही खूब सुना कर गई।"

आदित्य ने विकी को देखते हुए शरारती अंदाज़ में कहा, "मुझे तो वही मोल वाली लड़की लग रही है!"

यह सुनकर समृद्धि और राहुल ने भी हामी भर दी।
अबीर भी चाहकर भी मुस्कान दबा न सका, पर फिर अचानक गंभीर होते हुए बोला, "लेकिन तुम लोगों को कैसे पता चला कि वही है जिसे मैं ढूंढ रहा हूं?"

आदित्य ने अबीर के कंधे पर हाथ रखते हुए मुस्कुराकर कहा, "साले, तेरा चेहरा खुद गवाही दे रहा है!"

अबीर अपने दोस्तों की बातों से हल्का सा परेशान हुआ। दिल में कहीं न कहीं वही सवाल घूम रहा था। जिसे वह ढूंढ रहा था, वह आखिर थी कौन? क्यों उसे देखकर दिल के तार यूं बजने लगे थे? शायद पहली नज़र वाला प्यार था... शायद कुछ और...

इन्हीं उलझे से खयालों के साथ अबीर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया, और उसके पीछे-पीछे उसके तीनों दोस्त उसे चिढ़ाते हुए चल दिए।

अबीर अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठते ही गाड़ी स्टार्ट कर देता है। जैसे ही वह थोड़ा आगे बढ़ता है, सामने कुछ हलचल देखकर झटके से ब्रेक लगा देता है। अचानक लगी ब्रेक से गाड़ी में बैठे चारों दोस्त झटके से आगे की ओर लुढ़क जाते हैं।

"अबे धीरे चला!" विकी ने हंसते हुए कहा, लेकिन तभी उनकी नजर सामने गई और सब एक साथ चुप हो गए। सामने से स्कूटी पर सवार तीन लड़कियां  पायल, पलक और अमिता हंसती-खिलखिलाती हुई उनकी गाड़ी के सामने से गुजर रही थीं।

पायल ने जाते-जाते अबीर को एक शरारती मुस्कान दी, जैसे उसे चिढ़ाना चाहती हो, और फिर स्कूटी पर बैठी तीनों लड़कियां मस्ती से हंसते हुए आगे बढ़ गईं। यह नजारा देखकर अबीर के तीनों दोस्त ठहाका मारकर हंस पड़े।

"भाई, ये तो खुल्लमखुल्ला ताना मार गईं!" राहुल ने मज़ाक में कहा।

अबीर भी अनायास मुस्कुरा उठा। उसकी नजर अनजाने में उस जाती हुई स्कूटी पर टिक गई थी, जिस पर बैठी एक लड़की  पायल उसके दिल के तार कहीं गहरे छेड़ गई थी।
गाड़ी के भीतर हल्की-सी खिलखिलाहट गूंज रही थी, और गाड़ी के बाहर, उस जाती स्कूटी के पीछे अबीर का दिल भी अनजाने में खिंचता चला गया था।


****

तीनों लड़कियां कॉलेज पहुंचीं तो ठंडी हवा का हल्का झोंका उनके चेहरों से टकराता है। पायल ने स्कूटी पार्क की और तीनों ने बैग संभालते हुए इन्क्वायरी ऑफिस की ओर कदम बढ़ा दिए।

कॉलेज का माहौल गुलजार था। हर तरफ नए चेहरों की हलचल, कहीं हंसी-ठिठोली, कहीं एडमिशन की दौड़-भाग।

इन्क्वायरी ऑफिस पहुंचकर उन्होंने फॉर्मेलिटीज पूरी करनी शुरू कर दीं, फॉर्म भरना, डाक्यूमेंट्स सबमिट करना, फी का भुगतान करना... इन सब में समय कैसे बीत गया, उन्हें खुद पता नहीं चला।

शाम तक वे थक कर चूर हो चुकी थीं, लेकिन एक अजीब-सी संतुष्टि उनके चेहरों पर थी। नई शुरुआत का उत्साह और पूरे दिन की छोटी-छोटी प्यारी यादों का बोझ हल्के-हल्के दिल पर पसरा हुआ था।

स्कूटी पर लौटते समय भी वे तीनों खिलखिला रही थीं। दिनभर की मस्ती और एक-दूसरे के साथ बिताए लम्हों को दोहराते हुए।
अच्छी बात यह थी कि तीनों का घर एक ही कॉलोनी में था। बचपन से ही साथ खेलते-कूदते बड़े हुए थे, इसलिए उनकी दोस्ती में एक अलग ही गहराई थी, एक ऐसा बंधन जो वक्त के साथ और भी मजबूत हो गया था।

थकी हुई लेकिन दिल से खुश, तीनों अपने-अपने घर की ओर बढ़ गईं, इस उम्मीद के साथ कि कॉलेज का यह नया सफर भी उनकी दोस्ती को और हसीन बना देगा।

घर पहुंचते ही पायल ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, सन्नाटा उसे अपनी बांहों में भरने लगा था। पूरे दिन की भागदौड़ और शरारती मस्ती के बाद अब वह थकान से चूर थी।
उसने बैग एक तरफ रखा और सोफे पर आकर थक कर बैठ गई।

पीठ को टिका कर उसने पलकों को ढीला छोड़ दिया।
आंखें बंद होते ही एक चेहरा उभर आया, अबीर का चेहरा।
वही प्यारी मुस्कान, वही गहरी नज़रें... मानो उसे ही एकटक देख रही हों।

पायल ने झट से अपनी आंखें खोल दीं, जैसे खुद से भी अपनी सोच पर शर्मिंदा हो गई हो।
तभी उसने देखा सुनीति जी, उसकी मां-समान ममता की मूरत, हाथ में पानी का ग्लास थामे बड़ी ही स्नेह भरी मुस्कान के साथ उसके सिर को सहला रही थीं।

पायल के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने धीरे से सुनीति जी का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने पास बिठा लिया।
फिर बच्चे सी मासूमियत से उनके आंचल में सिर रख दिया, जैसे सारी थकान उनके प्यार में घुलकर कहीं उड़ जाना चाहती हो।

सुनीति जी ने प्यार से उसके माथे पर हाथ फेरा, जैसे कह रही हों, "थक गई न मेरी बच्ची?"

उस गोद की ऊष्मा में पायल को वही सुकून मिला, जिसकी उसे सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। कुछ देर के लिए वह सारी दुनियादारी, सारी उलझनों को भूलकर बस मां के प्यार में सिमट गई।

"क्या बात हे बेटा आज मां पर बडा ही प्यार आ रहा हे?"

"क्यू! सिर्फ आप ही हम सबको प्यार कर सकती है, हम नही कर सकते क्या?"

सुनीति जी ने मुस्कुराते हुए उसके माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन दिया और हल्के से बोलीं, "अब मैं तुम्हें प्यार नहीं करूंगी तो किसे करूंगी, मेरे बच्ची? तुम्हारे सिवा मेरा है ही कौन इस दुनिया में?"

पायल उनकी बात सुनकर मुस्कुराई जरूर, लेकिन उस मुस्कान में कहीं एक हल्की सी उदासी भी झलक गई। चुपचाप सुनीति जी के गोदी में सिर रखे वह कुछ पल चुप रही, फिर धीमे से पूछ बैठी, "मां... आपको पापा की याद नहीं आती?"

यह सवाल सुनते ही सुनीति जी की मुस्कान पल भर में मुरझा गई। उनकी आंखों में अचानक से एक गहरी उदासी तैर गई, जिसे वे छिपाने की नाकाम कोशिश कर रही थीं।
पायल ने उनकी आंखों में वह दर्द पढ़ लिया।
उसे एक झटका सा लगा, उसे लगा जैसे न चाहते हुए भी उसने मां के पुराने घावों को कुरेद दिया हो।
पायल ने हड़बड़ाते हुए मां का हाथ थामा और फुसफुसाई,
"सॉरी मां... मुझे ये बात नहीं पूछनी चाहिए थी।"

लेकिन सुनीति जी ने धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरा, जैसे उसे दिलासा दे रही हों। उनकी आवाज़ कांप रही थी, फिर भी बहुत नरम थी, "नहीं बेटा, तुमने कुछ गलत नहीं पूछा। अपनों को याद करना कोई ग़लत बात नहीं होती। तुम्हारे पापा तो आज भी हमारे साथ हैं... हमारे दिल में, हमारी हर याद में।
बस फर्क इतना है कि अब उन्हें देखने के लिए हमें आंखें बंद करनी पड़ती हैं।"

पायल की आंखें भी भीगने लगीं। मां - बेटी दोनों कुछ देर यूं ही खामोश बैठी रहीं, एक-दूसरे का हाथ थामे, दिल से दिल की बात किए बिना ही सब कुछ समझते हुए।

सुनीति जी ने बड़े प्यार से पायल के बालों को सहलाते हुए धीमे  स्वर में कहा, "वो तो कभी मुझसे दूर गए ही नहीं, बेटा... जो उन्हें याद करना पड़े। जब किसी को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं न, तो उसे याद नहीं किया जाता,  वो तो हर वक्त हमारे साथ रहता है... हमारी सांसों में, हमारे ख्यालों में, हमारी हर बातों में। जिसे दिल से चाहो, उसका तो नाम भी बिना सोचे जुबां पर आ जाता है। खुशी हो या दुःख,  सबसे पहले उसी से बातें करने का दिल चाहता है, चाहे वो सामने हो या न हो।"

फिर एक पल ठहरकर सुनीति जी ने मुस्कुराते हुए पायल के माथे पर हाथ रखा और बड़ी नर्मी से कहा, "जब तुम्हें भी कभी सच्चा प्यार होगा न, तब तुम खुद महसूस करोगी... कि प्यार करने के लिए और उसे महसूस करने के लिए कभी किसी बहाने या किसी मौके की जरूरत नहीं पड़ती।"

पायल उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी।
उसके दिल में हलचल सी मच गई थी। न जाने क्यों, मां की बातें सुनते ही अबीर का मुस्कुराता चेहरा उसकी आंखों के सामने फिर से उभर आया। वह चुपचाप आंखें बंद किए मां की गोदी में और गहरी समा गई थी,  जैसे खुद को उस अनकहे एहसास से बचाना चाह रही हो, जिसका नाम भी उसने अभी तक खुद से नहीं लिया था...

क्रमशः