रोम असिस्टेंट को देखकर प्रश्न करता है, “Can you speak Hindi?”
असिस्टेंट रिंगणी कलर की शर्ट का बटन बंद करते हुए बोला, “हाँ, मैं जानता हूँ।”
“कितने वक्त से तुम यहाँ पे काम कर रहे हो?” रोम इन्वेस्टिगेशन कर रहा था। साथ-साथ पहले रोमियों की छेड़छाड़ भी। जब वह जवाब देना शुरू करता तब रोम उसकी गोल-गोल फिरती और उसकी तरफ़ देखकर धीरे-धीरे मुस्कुराता।
अचानक ही उसकी नज़र जिद पर पड़ी। उसने रोमियों को थोड़ी देर बाद मिलने कहा। रोम सीधा चौथे फ्लोर पर गया और वहाँ खड़े विनय से बात की। विनय वहाँ के सिक्योरिटी से स्नेहा की जानकारी ले रहा था। (हाँ, ये वही स्नेहा है। जो जिद से पहले उसकी जगह काम कर रही थी। जिसने काम छोड़े जाने के लगभग एक महीने बाद अपने पति के साथ एक सुनसान रोड पर मर्डर हो गया था।)
रोम विनय के पास पहुँचे, उससे पहले ही श्रुति मैम रोम को रोकते हुए, “क्या हुआ रोम, तुम्हें कुछ पता चला?”
रोम के मुँह से अचानक एक शब्द निकल पड़ा, “जिद...”
विनय का ध्यान सिक्योरिटी से हटकर रोम की तरफ़ गया।
श्रुति आश्चर्य से, “जिद कहाँ?”
रोम ने विनय की तरफ़ देखा और अपनी आँखें झपकाते हुए, “जी दरअसल मैम, मैंने सुना है कि स्नेहा अकाउंट ऑफिस में काम करती थी।”
“हाँ तो।”
“तो मैम मेरे ख्याल से उसके कंप्यूटर से कुछ मिल सकता है। जिससे हमें कुछ क्लू भी मिल जाए शायद।”
श्रुति सोचकर, “हाँ, ये आइडिया अच्छा है। तुम उसे चेक कर लो। उसमें मेरी इजाजत की क्या ज़रूरत।”
“नहीं मैम, मैंने आपकी इजाजत तो... कभी...” और रोम हँसने लगा।
“हाँ, मैं समझ गई कि लेते नहीं। इसी लिए तुम पर मुझे भरोसा नहीं था। फिर भी तुम्हारे इस पार्टनर की वजह से मेरे साथ हो।”
श्रुति गुस्से में थी। तभी विनय वहाँ उनके पास आकर,
“मैम, मैं चला जाता हूँ।”
विनय तीसरे फ्लोर में आता है। उसने आज भी ब्लैक शर्ट पहनी है। नीचे सफेद पैंट, सादी घड़ी, बूट और सबसे विशेष, उसने आज भी वही सेंट लगाया था, जो उसने जिद से पहली बार मिलने पर लगाया था।
जैसे ही वह अपनी शर्ट के दाहिने हाथ की बाँह चढ़ाते अकाउंट ऑफिस में पहुँचा, उसका हाथ काँपने लगा।
ऑफिस में जगह बहुत कम थी और वर्कर्स ज्यादा। उसे नज़र फेरनी ज़रूरी न पड़ी क्योंकि दरवाज़े के पास ही जिद का कंप्यूटर था।
विनय गहरी साँस लेकर, जिद के बाजू में बैठी सायना से प्रश्न करता है,
“मैम, यहाँ स्नेहा का कंप्यूटर कौन सा है?”
विनय तीखी नज़र से जिद को देख रहा था।
जिद का मन भी उसकी तरफ़ खींच रहा था और बार-बार उसकी ओर देख ही लेती थी।
मनोमन् एक खुशी के एहसास का अनुभव जिद को हो रहा था।
अचानक उसने अपने मन को काबू में किया।
सायना ने जिद के कंप्यूटर की तरफ़ उंगली दिखाते हुए विनय को उत्तर दिया, “जी, ये मेरे पास वाले कंप्यूटर पर ही बैठती थी।”
विनय सिर हिलाता है।
जिद समझ जाती है, इसलिए वह अपनी कुर्सी से उठ जाती है।
विनय उसे बोलता है, “कोई बात नहीं, आप अपनी चेयर पर बैठिए, मैं तो खड़े-खड़े ही चेक करना चाहूँगा।”
जिद और विनय दोनों में से कोई भी कुर्सी पर नहीं बैठा।
विनय कंप्यूटर चेक करते-करते जिद से पूछता है, “आप कितने वक्त से यहाँ पे काम कर रही हैं?”
“जी, मैं तीन दिन से।” जिद बोली।
विनय कंप्यूटर से ध्यान हटाकर उसकी तरफ़ देखता है। फिर एक सवाल करता है,
“तो आप यहीं कोलकत्ता की हैं?”
इस सवाल और इन्वेस्टिगेशन का कोई लेना-देना नहीं था।
जिद थोड़ा झूठ बोलती, “हाँ, मैं यहीं की हूँ।”
“लेकिन, आपको कभी देखा नहीं।”
विनय इस वाक्य के साथ फिर टेबल के खाने को चेक करने लगा। जिससे जिद को लगे कि वह अपनी रिसर्च का हिस्सा है।
लेकिन जिद की आँखें उसका यह बनावटी इन्वेस्टिगेशन समझ चुकी थी।
क्योंकि, विनय की नज़र और हाथ दोनों विपरीत दिशा में काम कर रहे थे।
थोड़ी ही देर में श्रुति नीचे आ पहुँची और विनय से अपने साथ चलने को कहती है।
“लेकिन, मैम मैंने अभी पूरा चेक नहीं किया है।”
विनय को अभी थोड़ी देर जिद से बातें करनी थी।
रोम श्रुति के पास आकर छाती फुलाकर, मर्द जैसा रौब जमाते,
“मैम, वहाँ ये क्या करेगा। मैं हूँ न, संभाल लूँगा।”
“हाँ, तुम्हें संभालने के लिए ही उसे ले जा रही हूँ।”
श्रुति बोली।
“आपने तो इज्जत का फालूदा कर दिया मैम।”
रोम शर्मिंदा हो गया।
विनय को श्रुति ने बाद में कभी आने को कहा ताकि वह चेक कर सके।
उस समय फड़फड़ाया रोम बोला, “मैम, हम फिर कब यहाँ आएँगे।”
“हम नहीं, सिर्फ विनय।”
रोम धीरे से गुनगुनाया, (हाँ मैम, उसे ही तो यहाँ आना है। मुझे तो एयर होस्टेस के पास जाना है।)
“क्या गुनगुना रहे हो?”
“कुछ नहीं मैम, बस सोचते-सोचते मुँह से निकल गया।”
“ठीक है, अभी यहाँ से चलो। विनय तुम भी, ज़रूरी काम है।”
“जी मैम।”
कहकर विनय बाहर निकलने लगा। जाते-जाते वह जिद की तरफ़ नज़र करता गया।
जिद भी उसे एकटक होकर देखती रही।
उसी समय सायना ने अपना हाथ जिद की खुली आँखों के सामने रखकर ऊपर नीचे किया।
“क्या खो गई हाँ? दिल की धड़कन की आवाज़ मुझे भी सुनाई दे रही है। कुछ कनेक्शन तो है हाँ।”
सायना हँसते हुए बोल रही थी।
अचानक वहाँ श्रेया आ पहुँची और सायना को जिद से बातें करते देखकर गुस्से में हो गई।
वह अकाउंट ऑफिस के पहले कंप्यूटर के पास आकर रुक गई।
अपने हाथ में रखी फाइल वहाँ टेबल पर रखी। वह जिद की फाइल थी और उस पर से नज़र हटाकर श्रेया ने सायना को आँखें फाड़कर गुस्से से देखा और बोली,
“वो तो यहाँ पर नई है, लेकिन तुम नहीं जानती यहाँ का रूल क्या है! और हाँ,” जिद की ओर देखकर,
“तुम भी जान लो, यहाँ आपको एक-दूसरे की जान पहचान के पैसे नहीं दिए जाते। आपको बिना बात किए सिर्फ़ अपना काम करना है।”
कहकर श्रेया वहाँ से चलती बनी।
जिद और सायना अपने काम में लग गए।
जिद के मन में कई सारे सवाल उठे।
(ये कौन है? मुझसे पहले यहाँ बैठने वाली स्नेहा को ये क्यों ढूँढ रहे हैं? उसने ऐसा क्या किया कि श्रेया ने उसे नौकरी से निकाल दिया..!)
सोचते-सोचते उसके हाथ में एक अलग फाइल आई।
वह फाइल जिद ने खोली और उसमें से उसे आधे सवालों के जवाब मिल गए।
फिर उसने उस फाइल में से एक पेज निकालकर टेबल पर पड़ी अपनी फाइल में रख दिया।
शाम को सब लोग छुट्टी हो गए।
जिद और माही भी निकल गए।
आज तीन दिन बाद भी काले बादल गए नहीं थे।
‘लगभग तूफ़ानी पवन होगा या फिर वावाझोड़ा (तूफ़ान) आएगा।’
लोग ऐसी बातें कर रहे थे।
जिद भी माही को बता रही थी कि आज उसके साथ क्या-क्या हुआ था।
परंतु, उसने माही को वह फाइल की बात नहीं बताई।
जिद माही से ऑफिस के बाहर के रास्ते के पास चंद्रतला मंदिर जाने की बात करती है।
दोनों को कल छुट्टी है इसलिए वहाँ जाने का पक्का करती है।
तभी अचानक जिद की नज़र रास्ते के सामने खड़े विनय पर पड़ती है।
विनय जिद को ही देख रहा था।
हालाँकि, जिद की नज़र अभी-अभी पड़ी।
अब वह माही को बताती है,
“देख वो आदमी नहीं! ऑफिसर मतलब... पता नहीं, लेकिन कोई सरकारी ऑफिसर। थोड़ा ज्यादा ही आगे बढ़ गया है।”
जिद कतराकर बोलती है।
माही थोड़ी रोमांटिक होकर मस्ती में बोलती है,
“हाँ, वो तो तेरी खूबसूरती का दीवाना हो गया लगता है।”
“हाँ, तुझे तो मौका मिल गया मुझे हैरान करने का।” जिद बोली।
“मैं तुझे हैरान करती हूँ? ऐसा है तो उसे अब कुछ ऐसा फिर इस गली में दिखे नहीं। जो भा गई तो...” माही रुक गई।
“भा गई तो क्या? वो तो अभी भी जांच के लिए आने वाला है, हमारी ऑफिस में।”
जिद फिर से माही को चिढ़ाने लगी और दोनों के बीच एक मीठा झगड़ा शुरू हुआ।
जब तक वो दोनों झगड़ रहे थे, विनय वहाँ से चला गया था।
माही भी हँसते हुए बोल पड़ी,
“देखा, हमारे झगड़े को देखकर वो डर के भाग गया।
क्योंकि मेरे साथ झगड़ते तेरा चुड़ैल स्वरूप बाहर आ गया।”
“नहीं, वो मेरे चुड़ैल रूप को देखकर नहीं, बल्कि मुझे चुड़ैल से झगड़ते देखकर समझ गया होगा कि मैं कितनी खूँखार हूँ।”
“हाँ.. हाँ.. मुझे खूब हँसी आई।”
माही चिढ़कर बोली।
फिर दोनों माही के घर जाते हैं।
रात को जिद की नींद उड़ गई थी।
उसे विनय का ही विचार आता रहता था।
उसके बोले शब्दों की गूंज थोड़ी-थोड़ी देर में पड़ती थी।
उसकी वह रात बहुत लंबी रही।
जिसमें सिर्फ विनय के ही विचार चलते रहे।
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