Chandrvanshi - 1 - ank 1.2 in Hindi Women Focused by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - 1 - अंक - 1.2

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चंद्रवंशी - 1 - अंक - 1.2

माही ने अपने मन में उठे पहले सवाल को पूछा:   
“तुम्हारी मम्मी ने अचानक ही तुम्हें कोलकाता आने की इजाज़त क्यों दे दी? मैंने और मेरे मम्मी-पापा ने तुम्हें वहाँ जॉब मिली, तब उन्हें मनाने के लिए कितनी रिक्वेस्ट की थी, लेकिन तब तो तुम्हारी मम्मी टस से मस नहीं हुई थीं और अब ऐसे अचानक ही तुम्हें कोलकाता जाने को कह दिया?”  
तब जीद हिचकिचाते हुए कहती है: “वो तो... क... क... शायद उन्हें तुम्हारे मम्मी-पापा की बात असर कर गई होगी!”  
“हाँ! जैसे पहले असर नहीं करती थी, है न?” हँसते हुए माही बोली।  
“चलो जाने दो वो बात, लेकिन कल रात जब रास्ते पर मैंने तुम्हारे सामने गाड़ी रोकी थी, तब तुम क्यों डर गई थी?” माही ने जीद के सामने दूसरा सवाल खड़ा कर दिया।  
अब जीद तुरंत जवाब देती है: “रात को रूही की शादी से निकलने के बाद मैं तुम्हारे कहे अनुसार तुम्हारी आंटी के घर ही जा रही थी, लेकिन उनके घर पहुँचने से पहले ही मेरे पीछे कुछ लफंगे पड़ गए। उस समय सात-आठ बज रहे होंगे और साथ ही ऐसी गर्मी में भी घना अंधेरा हो गया था। मैं जहाँ से निकल रही थी, वहाँ रास्ता बिल्कुल सुनसान था और वहाँ कोई रिक्शावाला भी नहीं था। इसलिए मैं तेजी से चलने लगी तो वे लफंगे भी मेरे पीछे-पीछे चलने लगे और उनसे डरकर मैं भागने लगी और रास्ता भूल गई। फिर एक-दो सोसायटी से निकलने के बाद एक रास्ता दिखा और मैं उस रास्ते पर आ गई। जहाँ डरते-डरते चल रही थी, वहीं अचानक तुम्हारी गाड़ी आ गई। अंधेरे में मेरी आँखों के सामने तुम्हारी गाड़ी की लाइट आते ही मुझे कुछ भी नहीं दिखा। इसलिए मुझे लगा कि वे लफंगे ही आ गए हैं।”  
“हम्म, इसलिए ही तुम घबरा गई थी। मुझे लगा कि तुम किसी परेशानी में हो, नहीं तो तुम्हें इतना डरी हुई मैंने कभी नहीं देखा।” कहकर माही चुप हो जाती है।  
थोड़ी देर माही उस पुस्तक की ओर तिरछी नजर से देखती रहती है। फिर एक और सवाल पूछ लेती है: “इस पुस्तक में ऐसा क्या है कि तुम इसे इतनी संभाल कर रखती हो?”  
“मुझे नहीं पता। यह तो मम्मी ने रूही की शादी में आने से पहले ही मुझे दी थी और मुझे इस पुस्तक को कोलकाता में स्थित चंद्रतला मंदिर के दर्शन करने के बाद ही खोलने की शपथ दिलाई है। इससे पहले मैंने कभी इस पुस्तक को नहीं देखा।” इतना कहकर जीद वॉशरूम जाने के लिए सीट से उठती है और पुस्तक को बगल के पर्स में रख देती है।  

जिद वॉशरूम से बाहर आते ही एक काले शर्ट वाले लड़के से टकरा जाती है और उसका पैर फिसल जाता है। जिद को वह अचानक से पकड़ लेता है। अचानक ही दोनों की नजरें मिल जाती हैं और दोनों सब कुछ भूलकर बस एक-दूसरे को ही देख रहे थे। जिद के गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ उसके सामने थे। पहली बार जिद आज होश भूलकर किसी लड़के को देख रही थी। उस लड़के के परफ्यूम की खुशबू जिद को जैसे कोई नशा करवा रही थी। तभी एक एयर होस्टेस आ गई और थोड़ी शर्माते हुए बोली :
“मैम, आर यू फाइन?”
जिद और वह अनजान लड़का चौंककर तुरंत सीधे हो गए। वह लड़का अपने बाल ठीक करके जिद की ओर देखकर बोला :
“सॉरी... मैं तो यहाँ से निकल रहा था और आप आ गईं। आई एम सो... सॉरी... सि...र्फ... मैं... तू।”
जिद की आँखों में देखकर वह लड़खड़ाने लगा। जैसे उसकी ज़ुबान कुछ और कहना चाहती हो।
उसी समय एक दूसरा लड़का वहाँ आकर बोला :
“हा..! वाह मेरा भाई प्लेन में चालू हो गया और हमने जो अगर हमारे लिए करें तो... तो... (थोड़ा रुकते हुए) अच्छा आप करें तो लीला और हम करें तो ढीला! तू खड़ा रह, मैं श्रुति मैम को कॉल करूँ कि तू यहाँ क्या कर रहा है।”
तभी काले शर्ट वाले लड़के ने दूसरे लड़के को कोहनी मारकर रोकते हुए चुप करवाया :
“सी...च रोम, चुप हो जा।”
“अरे, उसे कहाँ गुजराती आती है? टेंशन नॉट यार।” हँसते हुए रोम बोला।
“लेकिन तू समझ में आए तो कहीं भी कुछ भी कह देता है।” विनय बोला।
रोम की नज़र एयर होस्टेस पर ही थी और जैसे उसे जलन हो रही हो ऐसे ऊँची आवाज में बोला :
“ओह अच्छा तो तू इस एयर होस्टेस को लाइन मार रहा है। हूँ भी सोच रहा था कि तुझे गुजरात की याद क्यों आ रही है और तू हमेशा प्लेन में ही क्यों आता है। पिछली बार मैं और तू साथ आए थे, तब भी यही एयर... होस्टेस थी न! तेरी मम्मी से मिलने का तो एक बहाना ही है।”