Chandrvanshi - 3 - 3.1 in Hindi Mythological Stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 3 - अंक 3.1

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चंद्रवंशी - अध्याय 3 - अंक 3.1

“लगभग दस बजे हैं। मैं तुझसे कह रही थी न कि पाडुआ भले ही पास में हो, लेकिन हावड़ा ब्रिज के बीच से यहाँ आने में हमें दो घंटे लग ही जाएंगे।” माही बोली।  
पाडुआ एक छोटा सा गाँव है। वहाँ लगभग सौ से दो सौ घर बसे हुए थे। गाँव से थोड़ी दूरी पर चंद्रताला मंदिर स्थित है। उस मंदिर का एकमात्र पुजारी पाडुआ गाँव में रहता है। उसका नाम शुद्धिनाथन था। जिद की मम्मी के अनुसार, उस पुजारी के पूर्वज वर्षों से चंद्रताला मंदिर के ही पुजारी रहे हैं। इसलिए माही और जिद सबसे पहले पाडुआ गाँव के अंदर जाती हैं। वे दोनों पुजारी के घर जाने के लिए आगे बढ़ती हैं।  
गाँव के अंदर जाते ही सबसे पहले एक बड़ा वटवृक्ष था। उसके चारों तरफ एक गोल चबूतरा था लेकिन वहाँ कोई बैठा नहीं था। उसकी दाईं ओर एक छोटी सी दुकान थी। माही और जिद उस दुकान की ओर चलती हैं। जिद के पास पर्स था और उसमें विशेष रूप से वह पुस्तक ही थी। उसका पर्स कत्थई रंग का प्योर लेदर का था। उसने उस पर्स का बेल्ट अपने बाएं कंधे पर रखा था। अपना दायाँ हाथ उसने पर्स पर ही रखा था।  
वे दोनों दुकान के पास पहुँचे। दुकान एकदम साधारण और नई ही खुली हुई थी। दुकान की छत टिन की थी। दुकान में एक टिन की कुर्सी पर एक छोटा बच्चा बैठा था। जिसकी उम्र लगभग पाँच से सात साल की होगी। उसने कपड़ों के नाम पर एक लंगोट पहना हुआ था। उसे देखकर माही बंगाली भाषा में बोली, “बेटा यहाँ पुजारी का घर कहाँ है?”  
बच्चा एक शब्द भी नहीं बोलता। यह देखकर माही अपनी जेब से पैसे निकालती है और उस बच्चे को चॉकलेट देने को कहती है। बच्चा अब भी कुछ नहीं बोलता। लेकिन कुर्सी से उतरकर वह दुकान के पीछे वाले दरवाजे को खोलकर घर के अंदर चला जाता है। माही जिद की ओर देखती है और कहती है, “लगता है इस सुनसान गाँव में अब हमें ही पुजारी को ढूँढना पड़ेगा।”  
जिद बिना बोले अपना सिर ‘हाँ’ में हिलाती है। माही और जिद अभी वहाँ से निकल ही रहे थे कि दुकान के अंदर से एक स्त्री की आवाज आई। “क्या चाहिए तुम्हें?”  
जिद और माही दोनों एकसाथ दुकान की ओर देखते हैं। दुकान के अंदर वह लंगोट पहने खड़े बच्चे के पास उसकी माँ खड़ी थी। उसने बंगाली साड़ी पहनी हुई थी। वह थोड़ी माही के पास आई। पहले उसने अपने बेटे की ओर देखा फिर चश्मा लगाए माही की ओर इशारा किया और उसके बाद टेबल पर रखे चॉकलेट के डब्बे की ओर। उसकी माँ ने बंगाली में ही कहा, “क्या तुम्हें चॉकलेट चाहिए?”  
माही ने हाँ कहा और अपने हाथ में रखे पैसे उसे दे दिए। माही और जिद उस बच्चे की ओर आश्चर्य से देख रही थीं। तभी उसकी माँ कहती है, “यह मेरा बेटा है। वह न बोल सकता है, न सुन सकता है। केवल इशारों की भाषा ही समझता है।”  
“कितना क्यूट लड़का है।” जिद इस वक्त बोली, हालांकि उसे दुकानवाली औरत की भाषा समझ नहीं आई थी। लेकिन इतना तो समझ ही गई कि वह बच्चा गूंगा है। इसलिए उसने उस बच्चे को अपने द्वारा ली गई चॉकलेट में से एक दे दी। फिर माही ने विषय बदलते हुए दुकानवाली से पूछा, “यहाँ पुजारी का घर कहाँ है?”  
“गाँव में छह घर हैं पुजारियों के। तुम्हें किस मंदिर के पुजारी के पास जाना है?” दुकानवाली औरत ने भी सवाल पूछ लिया। माही जिद की ओर देखकर बोली, “चंद्रताला मंदिर।”  
“चंद्रताला! यह नाम तो पहली बार सुना।” वह स्त्री बोली। माही ने अपने चश्मे को ऊपर सरकाते हुए जिद की ओर देखा और बोली, “लगता है तेरी मम्मी को गाँव का नाम याद नहीं रहा होगा।”  
“नहीं, वह कभी नहीं भूलती! वह हमारी जैसी नहीं है।” जिद बोली।  
“तो अब क्या करेंगे?”  
“एक काम कर, गाँव के किसी पुजारी से बात करते हैं। कोई तो जानता ही होगा।” जिद अपनी मम्मी द्वारा दी गई वह पुस्तक खोलने के लिए उतावली हो रही थी।  
“तो हम पुजारी के घर के बारे में जान लेते हैं!”  
माही ने जिद से पूछा।  
“हाँ, इनसे ही पूछ लेते हैं।”  
माही दुकान के पास जाकर बंगाली भाषा में बोली, “किसी एक पुजारी का घर दिखा दो।”  
“अरे किसी एक की क्या बात करूँ। पूरी गली ही दिखा देती हूँ।”  
और उसने दुकान के सामने वटवृक्ष की सीध में ही स्थित पहली गली में मुड़ जाने को कहा।  
माही और जिद दोनों वहाँ जाने लगे। लगभग सभी पुजारियों के घर गए और उस मंदिर के पुजारी एवं मंदिर के बारे में पूछा। लेकिन किसी ने भी उसके बारे में कोई जवाब नहीं दिया। निराश होकर माही और जिद लौटने लगीं। लगभग दोपहर का एक बजा था। धूप तो बिल्कुल नहीं थी लेकिन जिस आखिरी पुजारी के घर गए थे वहाँ खाना बन चुका था। उससे उन्हें अंदाज़ हुआ। जिद ने भी साथ में थोड़ा नाश्ता लाया था। इसलिए पहले तो दोनों वटवृक्ष के नीचे बैठकर नाश्ता किया फिर सामने की दुकान पर जाकर पानी पिया। अभी चलने ही वाले थे कि उस छोटे बच्चे के साथ आई उसकी एक बहन बंगाली में बोली।  
“तू कल उस जंगल वाले मंदिर गया था न।”  
माही वहीं रुक गई। जिद को बंगाली भाषा थोड़ी-थोड़ी समझ में आने लगी थी। लेकिन बच्ची ने क्या कहा यह वह नहीं समझ पाई, बस माही की तरफ देखने लगी।  
क्योंकि उस बच्चे को कुछ सुनाई नहीं देता था। इसलिए उस बच्ची ने अपनी स्लेट पर एक आधा चाँद बनाया। फिर उसने हाथ जोड़े, उसके बाद चलने का इशारा किया। बच्चे ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया। तब बच्ची ने चॉकलेट की तरफ अपनी उंगली की। बच्चे ने दोनों कंधे ऊपर करके ‘ना’ किया। यह देखकर बच्ची ने दुकान में पड़ी झाड़ू दिखाई और जैसे साड़ी ठीक कर रही हो वैसा अभिनय किया। मतलब वह बच्चे की माँ से कहने की बात कर रही थी। बच्चे ने अपने हाथ उठाकर इशारा किया कि टेबल बहुत ऊँची है।  
उसी वक्त माही उनके पास गई और बच्ची से बंगाली भाषा में ही कहा, “मैं तुझे दस चॉकलेट दूँगी, तू मुझे वह मंदिर दिखा देगी?”  
पहले तो लड़की कुछ नहीं बोली। थोड़ी देर बाद उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए। उनका काम बन गया। 

***