Chandrvanshi - 2 - 2.3 in Hindi Women Focused by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 2 - अंक 2.3

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चंद्रवंशी - अध्याय 2 - अंक 2.3

साइना अब उसके सामने खुलकर बात करती है।  
“मेरी कॉलेज में एक नयन नाम का लड़का था। जैसे तू जानती है वैसे, पूरे भारत में सबसे अच्छी कंप्यूटर कॉलेज यही है। शायद वो भी मेरी तरह कंप्यूटर का शौकीन था। अंग्रेजी और गुजराती भाषा के अलावा वह और दो भाषाओं का विशेषज्ञ था – हिंदी और बांग्ला।”  
“मैंने उसे जब पहली बार देखा, तब वो भी मेरी ही तरह प्रिंसिपल की ऑफिस में एक कोने में खड़ा था। लगभग आधा साल पूरा हो चुका था हमारे पढ़ाई का। प्रिंसिपल ने हमसे सवाल किया – कल तुम दोनों मेन कंप्यूटर हॉल में क्या कर रहे थे?”  
“मैं सोच में पड़ गई। (हम दोनों… मैंने तो इसे अभी देखा)। मैं कुछ बोलूं उससे पहले ही प्रिंसिपल बोले – ‘कल चार कंप्यूटर्स पर किसी ने रिसर्च किया है। जब प्रोफेसर को पता चला तो उन्होंने मुझे बताया। मैंने सारी जानकारी हासिल की तो पता चला कि जब छुट्टी होने का टाइम था, तब एक लड़का और एक लड़की यहाँ से बारी-बारी से निकले थे।’”  
“फिर मैंने प्रिंसिपल से बात की – ‘सर, मैं इसे नहीं जानती, लेकिन...’ मैं आगे बोलूं उससे पहले ही उसने मुझे प्रिंसिपल के सामने ही किस कर ली।”  
“और हिंदी में कहा – ‘सर, सॉरी हम दोनों तो अंदर किसी और काम से गए थे। वैसे भी आपको लगता है कि मुझे कंप्यूटर्स के बारे में कुछ आता है?’”  
“प्रिंसिपल ने हमें लवर समझकर कुछ नहीं कहा और जाने के लिए कहा। बाहर निकल कर मैंने उसे हिंदी में पूछा – ‘तूने मुझे किस क्यों किया और प्रिंसिपल से क्यों झूठ बोला? तेरी वजह से मेरी बदनामी हो जाएगी पूरे कॉलेज में।’”  
“उसने मुझसे सॉरी कहा और गुजराती में कुछ बड़बड़ाया। उस वक्त मैं गुजराती नहीं जानती थी। तो मैंने फिर से उससे हिंदी में पूछा, क्योंकि मुझे तो इतना पता था कि ये लड़का बांग्ला तो जानता नहीं। ‘तू है कहाँ का?’ और उसने गुजरात का नाम लिया।”  
“मैंने उसकी तरफ देखा और उसे वहीं से जाने के लिए कहा। उसके बाद कभी-कभार हम दोनों मिलने लगे। समय के साथ मुझे नयन पसंद आने लगा। उसे भी मैं पसंद थी। हम दोनों ने ऐसे ही कॉलेज के दो साल पूरे किए और...”  
**जीद साइना को बीच में रोकते हुए सवाल पूछती है** – “तुम दोनों उस दिन वहाँ कंप्यूटर्स के साथ क्या कर रहे थे?”  
“उस दिन हम दोनों नए कंप्यूटर में लगे (IC) इंटीग्रेटेड सर्किट को चेक करने गए थे। जो हमसे बंद नहीं हुआ, तो दूसरा खोल कर देखकर पहले वाले को बंद करने की ट्राय ही कर रहे थे कि छुट्टी हो गई। हमने तब तो एक-दूसरे को नहीं देखा था, लेकिन किस्मत से फिर भी मिल गए।”  
साइना के चेहरे पर चमक थी।
“तो फिर क्या हुआ कि तुम दोनों नहीं मिल पाए?”  
“पहली बात, मैं बांग्ला थी। मेरे परिवार ने तो उसे अपना लिया था लेकिन उसकी माँ को बांग्ला नहीं बल्कि गुजराती पसंद थी। फिर भी उसने उसे मना लिया और मुझे गुजराती सिखाने लगा। लेकिन मैं थी कि उसे सीरियस ही नहीं लेती थी।”  
“एक दिन अचानक उसकी माँ का एक्सीडेंट हो गया। वह यहाँ से वहाँ गया और लगभग तीस दिन बाद एक खत मिला – हिंदी में लिखा था, ‘मेरी माँ की आखिरी इच्छा थी कि मैं एक गुजराती से शादी करूं।”  
“उससे ज्यादा वह लिख नहीं पाया। मुझे अपनी गलती समझ में आई और मैंने उसकी याद में हमेशा गुजराती किताबें पढ़नी शुरू की।”  
जीद की आँखों में भी आँसू आ गए। उसने लंबी साँस लेकर अपना चेहरा घुमाकर अपनी छोटी अकाउंट ऑफिस के दरवाजे की तरफ फेर लिया।
ऑफिस के दरवाजे के सामने ही रोम खड़ा था।  
ढीली पड़ी जीद का मन अब मोहित से हुए विनय को ढूंढने लगा।  

रोम अकाउंट ऑफिस के बाहर उस रोमियो असिस्टेंट को परेशान कर रहा है।  

***