रिया तुरंत बोल पड़ी, "याद आया! जैसे जब कैंटीन में सिर्फ एक ही दुकान वाला बर्गर बेचता है, तो हमें उसी से खरीदना पड़ता है!"
"बिल्कुल!" दिव्या मुस्कुराई, "यही तो मोनॉपॉली है!"
इस मज़ेदार अंदाज में पढ़ाई करना सच में असरदार साबित हो रहा था।
बोरियत से बचने का नया तरीका
करीब एक घंटे तक सबने अपने-अपने टॉपिक तैयार किए। धीरे-धीरे थकान भी महसूस होने लगी। रिया ने सिर पकड़ लिया, "यार, मुझे पढ़ाई से ब्रेक चाहिए, वरना दिमाग फट जाएगा!"
समीरा को एक आइडिया आया। उसने कहा, "चलो, एक क्विज खेलते हैं! मैं एक टॉपिक से सवाल पूछूँगी और जो गलत जवाब देगा, उसे अगले पाँच मिनट तक बाकी सबके लिए नोट्स लिखने होंगे!"
"इंट्रेस्टिंग!" दिव्या ने कहा, "चलो, देखते हैं कौन सबसे ज्यादा जानकार है!"
समीरा ने पहला सवाल पूछा, "इनफ्लेशन और डिफ्लेशन में क्या अंतर है?"
रिया ने जल्दी से कहा, "इनफ्लेशन तब होता है जब दाम बढ़ते हैं और डिफ्लेशन तब जब दाम घटते हैं!"
"बिल्कुल सही!" समीरा ने सर हिलाया।
फिर दिव्या ने पूछा, "फ्री मार्केट इकॉनमी का मतलब क्या है?"
समीरा ने जवाब दिया, "जहाँ सरकार का हस्तक्षेप कम से कम होता है और बाजार की ताकतें खुद चीज़ों को नियंत्रित करती हैं!"
सबने उसे सराहा। धीरे-धीरे सबका ध्यान टेस्ट की ओर केंद्रित होने लगा और पढ़ाई अब उबाऊ नहीं लग रही थी।
लाइब्रेरी में अचानक हलचल
जब सब पढ़ाई में डूबे थे, तभी लाइब्रेरी के कोने में अचानक कुर्सी गिरने की आवाज़ आई। सबने चौंककर देखा तो पाया कि एक लड़का हड़बड़ी में नोट्स उठाने की कोशिश कर रहा था, जो ज़मीन पर बिखर गए थे।
रिया ने फुसफुसाते हुए कहा, "लगता है भाईसाहब को भी टेस्ट की टेंशन है!"
सब हल्का-सा मुस्कुराईं और फिर पढ़ाई में लग गईं।
समय की दौड़ और आखिरी मिनट की तैयारी
घंटे बीतते गए और अब टेस्ट का समय करीब आता जा रहा था। समीरा ने घड़ी देखी और कहा, "हमें अब बस आधे घंटे में खत्म करना होगा।"
सबने रिवीजन तेज़ कर दी और नोट्स को अंतिम बार पढ़ने लगीं। रिया, जो शुरू में सबसे ज्यादा परेशान थी, अब आत्मविश्वास से भरी हुई थी। उसने कहा, "यार, अब लग रहा है कि हम कुछ अच्छे नंबर तो ला ही लेंगे!"
समीरा ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, "हाँ! सही टेक्नीक से पढ़ाई की जाए तो मुश्किल चीज़ें भी आसान लगने लगती हैं।"
टेस्ट से पहले उनकी मेहनत का नतीजा क्या होगा, यह तो परीक्षा के बाद ही पता चलता, लेकिन एक बात तय थी—वे अब पहले से ज्यादा आत्मविश्वास महसूस कर रही थीं!
रुकी हुई ज़िंदगी और आगे बढ़ते ख्याल
घंटों की मेहनत और पढ़ाई के बाद, कल टेस्टके बाद, अब बस नतीजों का इंतजार था। लाइब्रेरी से बाहर निकलते हुए सब लड़कियाँ हल्के-फुल्के मूड में बातें कर रही थीं। रिया ने मज़ाक में कहा, "अगर अच्छे नंबर आए, तो पार्टी मेरी तरफ से!"
दिव्या ने ठहाका लगाया, "और अगर नहीं आए तो?"
समीरा मुस्कुराई, "तो पार्टी फिर भी रिया ही देगी, ताकि अगली बार हम और मेहनत करें!"
सब हँस पड़ीं। धीरे-धीरे हर कोई अपने-अपने रास्ते निकल गया। समीरा ने अपने बैग की चेन चेक की, स्कूटी की चाबी निकाली और पार्किंग की तरफ बढ़ गई। हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और आसमान में नारंगी-गुलाबी रंग बिखरे थे। कॉलेज के गेट से बाहर निकलते हुए उसने एक गहरी सांस ली—जैसे अब थोड़ी राहत मिल रही हो।
सड़क पर ठहराव का एक पल
समीरा अपनी स्कूटी पर सवार होकर घर की ओर चल पड़ी। शहर की शाम की हलचल शुरू हो चुकी थी। सड़क पर वाहनों की भीड़, हॉर्न की आवाज़ें, पैदल चलने वालों की हलचल—सब कुछ रोज़ की तरह था।
एक ट्रैफिक सिग्नल पर उसकी स्कूटी लाल बत्ती पर रुकी। समीरा ने घड़ी देखी—शाम के सात बजने वाले थे। उसने अपने बैग से फोन निकाला और एक मैसेज चेक करने लगी, तभी उसकी नज़र सामने फुटपाथ पर पड़ी।
एक बूढ़ी औरत, मैले-कुचैले कपड़े पहने, ठंड से सिकुड़ती हुई वहाँ बैठी थी। उसके बाल बिखरे थे, चेहरा झुर्रियों से भरा था, और हाथ में एक कटोरा था। वह हर गाड़ी की तरफ उम्मीद से देखती, लेकिन लोग या तो उसे नज़रअंदाज़ कर देते या खिड़की का शीशा चढ़ा लेते।
एक पल का इंसानियत से सामना
समीरा की आँखें उस औरत पर टिक गईं। कॉलेज के इकोनॉमिक्स क्लास में वो "गरीबी रेखा" और "आर्थिक असमानता" जैसी बातें पढ़ चुकी थी, लेकिन यहाँ, सड़क के इस कोने में, वो असलियत उसके सामने थी—एक कड़वी हकीकत, जो किताबों से कहीं ज़्यादा सजीव थी।
समीरा ने बिना सोचे-समझे अपना पर्स निकाला और कुछ पैसे निकालकर उस औरत की तरफ बढ़ाए। जैसे ही उसने पैसे दिए, बूढ़ी औरत ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में कृतज्ञता के आँसू थे।
"बेटी, भगवान तुझे खुश रखे, तुझे एक अच्छा जीवन साथी दे!" उस औरत की आवाज़ धीमी थी लेकिन उसमें सच्ची दुआ थी।
समीरा थोड़ा चौंक गई। उसने बस मदद करनी चाही थी, लेकिन ये आशीर्वाद उसे अजीब-सा महसूस हुआ। उसने हल्की मुस्कान दी और सिर हिलाकर स्कूटी स्टार्ट करने लगी।
सोच के भंवर में डूबी समीरा
ग्रीन लाइट होते ही उसने स्कूटी आगे बढ़ाई, लेकिन मन कहीं और अटक गया था। "भगवान तुझे अच्छा जीवन साथी दे..." ये शब्द उसके दिमाग में गूंज रहे थे।
क्या उसकी ज़िंदगी में इस वक्त यही सबसे ज़रूरी चीज़ थी?
वह खुद को एक महत्वाकांक्षी लड़की मानती थी। उसकी प्राथमिकताएँ अलग थीं—करियर बनाना, आत्मनिर्भर होना, अपने सपनों को पूरा करना। शादी और जीवनसाथी की बातें उसके लिए अभी दूर की चीज़ें थीं। लेकिन वो औरत, जिसने शायद पूरी ज़िंदगी संघर्ष में गुज़ारी थी, उसके लिए सबसे बड़ी नेमत यही थी कि किसी लड़की को एक अच्छा जीवनसाथी मिल जाए, जो उसका ख्याल रख सके।
समाज की परतें और समीरा के सवाल
उसने सोचा, क्या ये सोच सदियों से हमारे समाज में गहराई से बसी हुई है? लड़कियों के लिए सफलता का पैमाना क्या सिर्फ एक अच्छा जीवनसाथी है? क्या यही अंतिम लक्ष्य होना चाहिए?
उसकी माँ भी अक्सर कहती थीं, "बेटा, पढ़-लिखकर अच्छा करियर बना, लेकिन एक दिन शादी भी ज़रूरी है!"
वह जानती थी कि शादी बुरी चीज़ नहीं है, लेकिन क्या यह सफलता की परिभाषा होनी चाहिए? क्या एक लड़की की खुशियों और सपनों का मूल्य सिर्फ उसके वैवाहिक जीवन पर निर्भर करता है?
समीरा की सोच गहरी होती जा रही थी।
रास्ता जारी है...
स्कूटी अब शहर की जगमगाती गलियों से गुज़र रही थी। उसने ठंडी हवा को महसूस किया और अपनी उलझनों को थोड़ी देर के लिए झटक दिया। उसे एहसास हुआ कि हर इंसान की सोच उसकी ज़िंदगी के अनुभवों पर आधारित होती है।
वो बूढ़ी औरत शायद अपनी ज़िंदगी में संघर्षों से गुज़री होगी, जहाँ एक जीवनसाथी का सहारा ही सबसे बड़ा संबल था। लेकिन समीरा की दुनिया अलग थी—उसके पास सपने थे, अवसर थे, और सबसे अहम बात, अपने रास्ते खुद चुनने की आज़ादी थी।
ट्रैफिक कम हो रहा था। उसका घर अब कुछ ही मिनटों की दूरी पर था। लेकिन उसके मन में एक नया विचार आ चुका था—"क्या मैं भी अपने सपनों को पूरा करने के बाद किसी और जरूरतमंद को ऐसे ही आशीर्वाद दूँगी?" शायद, एक दिन वह भी किसी और की मदद करेगी, लेकिन तब उसका आशीर्वाद कुछ अलग होगा—
"भगवान तुझे अपने पैरों पर खड़े होने की ताकत दे!"
उसने एक लंबी सांस ली, मुस्कुराई, और स्कूटी की रफ्तार बढ़ा दी। उसकी मंज़िल अभी दूर थी, लेकिन वह सही रास्ते पर थी।