Tere ishq mi ho jau fana - 28 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 28

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 28

कॉलेज के रास्ते की उलझनें

बैग को कंधे पर टांगते हुए वह दरवाजे की ओर बढ़ी और तभी उसने देखा कि उसकी स्कुटी कि चाबी अपनी जगह पर थी वो खुश हो गई |

अरे मेरी स्कुटी ठीक हो गई, " समीरा ने बेहद खुश होते हुए कहा |

 अपनी स्कूटी की चाबी उठाई। बाहर हल्की ठंडी हवा बह रही थी। जैसे ही उसने स्कूटी स्टार्ट की, उसे फिर से वही अहसास हुआ—रात की सड़क, हवा की ठंडक, और दानिश का साथ।

"नहीं! अब इसे सोचने का कोई फायदा नहीं।"

उसने खुद को झिड़कते हुए स्कूटी आगे बढ़ाई।

रास्ते में उसकी नजर उस जगह पड़ी जहाँ कल रात वह दानिश के साथ रुकी थी। कुछ पल के लिए उसका दिल तेज़ धड़कने लगा।

"क्या दानिश भी यही सोच रहा होगा?"

लेकिन उसने खुद को तुरंत संभाल लिया और स्पीड बढ़ा दी।

कॉलेज का माहौल और दोस्तों की बातचीत

कॉलेज पहुँचे ही वह पार्किंग में अपनी स्कूटी लगाकर तेज़ी से क्लासरूम की ओर बढ़ी। अंदर घुसते ही उसकी दोस्त रिया ने उसे देख लिया।

"ओहो! मैडम आज बड़ी रौशनी में लग रही हैं! क्या बात है?"

समीरा हँस पड़ी। "कुछ नहीं, बस अच्छी नींद आई।"

"अच्छा! और वो जो कल तुम किसी के साथ थी, उसकी भी वजह से?" रिया ने शरारत से आँख मारी।

समीरा चौंक गई, "क्या? तुम्हें कैसे पता?"

"अरे भई, मैंने देखा था तुम्हें बाइक पर!"

समीरा ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन फिर चुप रह गई।

"हम्म… तो कहानी में ट्विस्ट है?" रिया ने और छेड़ा।

"नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है!" समीरा ने मुँह बनाते हुए कहा, लेकिन उसके चेहरे की हल्की गुलाबी रंगत ने उसे झूठा साबित कर दिया।

शुरुआत या सिर्फ एक याद?

क्लास शुरू होने के बाद भी समीरा का मन पढ़ाई में पूरी तरह नहीं लगा। हर बार जब वह नोट्स लिखने के लिए पेन उठाती, उसे वही लाइन याद आ जाती—

"अगर कभी ये रात याद आए, तो जान लेना कि कुछ एहसास वक्त से परे होते हैं।"

उसने खुद को फिर समझाया—"यह बस एक खूबसूरत याद थी… इससे ज़्यादा कुछ नहीं।"

लेकिन उसके दिल ने धीरे से फुसफुसाया—"शायद हाँ, शायद नहीं…"

टेस्ट की टेंशन

कॉलेज का कैंटीन हमेशा की तरह चहल-पहल से भरा हुआ था। कोने की एक टेबल पर समीरा, रिया, दिव्या और बाकी उनकी सहेलियाँ अपने-अपने लंच बॉक्स खोलकर बैठी थीं, लेकिन उनके चेहरे पर किसी भी तरह की खुशी या मस्ती के भाव नहीं थे। आमतौर पर लंच टाइम उनके लिए सबसे मज़ेदार वक्त होता था, जब वे अपनी पढ़ाई और बाकी परेशानियों को कुछ देर के लिए भूलकर हंसी-मज़ाक में खो जाती थीं। लेकिन आज का माहौल कुछ अलग था।

"यार, कल का टेस्ट बहुत मुश्किल है! मुझे तो कुछ भी याद नहीं है।" समीरा ने निराशा से कहा और अपने लंच बॉक्स में रखे पराठे को घूरने लगी।

"सिर्फ तुझे ही नहीं, मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा। कल रात देर तक पढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन दिमाग में कुछ भी नहीं घुस रहा था।" रिया ने उसकी बात का समर्थन किया और थके हुए अंदाज में अपनी किताबों के ढेर की तरफ इशारा किया, जो उसने लंच टेबल पर रखे थे।

दिव्या, जो हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहती थी, थोड़ा चिंता में थी लेकिन बाकी लड़कियों की तुलना में वह शांत दिख रही थी। "देखो, घबराने से कुछ नहीं होगा। हमें अभी भी थोड़ा समय है। अगर हम मिलकर पढ़ें, तो शायद कुछ चीजें अच्छे से समझ आ जाएं।"

रिया ने गहरी सांस ली और बोली, "हाँ, लेकिन दिक्कत यह है कि मन ही नहीं लग रहा। जैसे ही किताब खोलती हूँ, ऐसा लगता है कि नींद आने लगेगी या फिर दिमाग कहीं और चला जाता है।"

"बिल्कुल! मैं भी यही महसूस कर रही हूँ।" समीरा ने तुरंत रिया की बात का समर्थन किया।

सभी सहेलियाँ धीरे-धीरे टेस्ट की चिंता में डूबने लगीं। वे चाहकर भी अपने मन को पढ़ाई में नहीं लगा पा रही थीं, जबकि उन्हें पता था कि परीक्षा के नंबर उनके पूरे सेमेस्टर के रिजल्ट को प्रभावित कर सकते हैं।

"एक काम करते हैं, क्यों न हम लंच खत्म करने के बाद ग्रुप स्टडी करें?" दिव्या ने सुझाव दिया।

रिया ने उसे घूरते हुए कहा, "ग्रुप स्टडी के नाम पर तो हम और ज्यादा गप्पें मारते हैं!"

समीरा हंसने लगी, "सच कह रही है, ग्रुप स्टडी में पढ़ाई कम, गॉसिप ज्यादा होती है।"

इस पर दिव्या ने गंभीरता से कहा, "अगर हम मन लगाकर पढ़ेंगे, तो टेस्ट से पहले कुछ तो समझ आ ही जाएगा। वरना हम सबको पछताना पड़ेगा।"

"लेकिन पढ़ाई करने का मन कैसे लगाया जाए?" रिया ने धीरे से कहा, जैसे वह खुद से ही सवाल पूछ रही हो।

इस पर समीरा ने सोचा और बोली, "शायद हमें इसे एक गेम की तरह लेना चाहिए। हम में से हर कोई एक-एक टॉपिक चुने और फिर बाकी लोगों को समझाने की कोशिश करे। इससे हम सबका रिवीजन भी हो जाएगा और पढ़ाई बोरिंग भी नहीं लगेगी।"

दिव्या ने तुरंत हामी भर दी, "ये बढ़िया आइडिया है! टीचिंग मेथड से पढ़ाई जल्दी समझ में आती है।"

रिया को यह विचार पसंद आया और उसने कहा, "ठीक है, तो लंच के बाद हम लाइब्रेरी चलते हैं और वहीं बैठकर पढ़ाई करते हैं।"

लंच खत्म करने के बाद सभी सहेलियाँ कैंटीन से उठीं और लाइब्रेरी की ओर चल पड़ीं। अब वे थोड़ा कम चिंतित थीं क्योंकि उनके पास एक योजना थी।

लाइब्रेरी की शांति और तैयारी की हलचल

लाइब्रेरी में घुसते ही एक सुकून भरा माहौल था। हल्की-हल्की फुसफुसाहट, पन्नों की सरसराहट और कभी-कभार पेन गिरने की आवाज़ ही वहां की शांति को तोड़ रही थी। समीरा और उसकी सहेलियाँ धीरे-धीरे चलते हुए एक कोने की टेबल तक पहुँचीं, जहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी। उन्होंने अपनी किताबें और नोट्स निकाल लिए और पढ़ाई की तैयारी में जुट गईं।

रिया ने चारों ओर देखा और हल्के से फुसफुसाई, "यार, ये जगह कितनी शांत है! इतनी शांति में मुझे और ज्यादा नींद आने लगती है!"

दिव्या ने उसे हल्की चपत लगाई, "नींद को छोड़ और पढ़ाई पर ध्यान दे।"

पढ़ाई का खेल

सबसे पहले, समीरा ने 'इकोनॉमिक्स' का एक महत्वपूर्ण टॉपिक चुना—डिमांड और सप्लाई का कॉन्सेप्ट। उसने सफाई से समझाना शुरू किया, "देखो, जब किसी चीज़ की डिमांड बढ़ती है और सप्लाई कम होती है, तो कीमतें बढ़ जाती हैं..."

रिया बीच में ही बोल पड़ी, "अच्छा! मतलब जब कैंटीन में समोसे कम बचते हैं, तो भैया उसकी कीमत बढ़ा देते हैं!"

सब हँस पड़ीं, लेकिन दिव्या ने सिर हिलाया, "रिया, फोकस! लेकिन हाँ, तुम्हारा उदाहरण सही है।"

समीरा ने थोड़ी राहत महसूस की कि वे समझ रहे थे। फिर दिव्या ने एक और टॉपिक चुना—मार्केट स्ट्रक्चर—और उसने इसे आसान शब्दों में समझाना शुरू किया।

उसने कहा, "मान लो, मोनॉपॉली का मतलब है कि सिर्फ एक ही कंपनी पूरी मार्केट पर कब्जा जमाए हुए है, जैसे...?"

रिया तुरंत बोल पड़ी, "याद आया! जैसे जब कैंटीन में सिर्फ एक ही दुकान वाला बर्गर बेचता है, तो हमें उसी से खरीदना पड़ता है!"