Kurbaan Hua - Chapter 29 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 29

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Kurbaan Hua - Chapter 29

गुज़रे दिनों की परछाईं

कमरे में केवल बिरयानी की खुशबू नहीं थी, बल्कि एक अनकही कहानी की आहट भी थी। संजना चुपचाप हर्षवर्धन को देख रही थी। वह इतने इत्मीनान से खाना बना रहा था, जैसे यह उसके लिए कोई नई बात न हो। लेकिन संजना जानती थी कि यह सामान्य नहीं था।

उसने धीरे से पूछा, "तुमने खाना बनाना कब सीखा?"

हर्षवर्धन ने मटन में दही मिलाया और कुछ देर तक उसे अच्छे से चलाने के बाद जवाब दिया, "बहुत पहले। जब ज़रूरत थी।"

संजना को उसके जवाब अधूरे लग रहे थे। वह जानती थी कि अगर वह ज्यादा ज़ोर डालेगी, तो हर्षवर्धन चुप हो जाएगा। इसलिए उसने तरीका बदलते हुए कहा, "शायद इसीलिए तुम्हारी बिरयानी इतनी अच्छी खुशबू दे रही है।"

हर्षवर्धन हल्का सा मुस्कुराया। "बिरयानी सिर्फ मसालों का खेल नहीं होती, इसमें धैर्य और सही टाइमिंग भी लगती है।"

"सही टाइमिंग, हाँ?" संजना ने संजीदगी से दोहराया।

हर्षवर्धन ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में कुछ ऐसा था, जिससे संजना का दिल थोड़ा तेज़ धड़कने लगा। उसने धीमे से कहा, "हाँ, सही टाइमिंग। कभी-कभी अगर चीज़ें सही समय पर ना हो, तो वे अपना असली स्वाद खो देती हैं।"

कमरे में एक पल के लिए चुप्पी छा गई। संजना ने महसूस किया कि वह सिर्फ बिरयानी की बात नहीं कर रहा था।

रात का स्वाद

बिरयानी अब दम पर थी। हर्षवर्धन ने चूल्हा धीमा कर दिया और ढक्कन लगा दिया। फिर वह संजना की ओर मुड़ा।

"अब इंतज़ार करना होगा।"

संजना ने सिर हिलाया। "तो, अब जब तुम फ्री हो, तो मुझे बता सकते हो कि तुम्हें खाना बनाना कब और क्यों सीखना पड़ा?"

हर्षवर्धन ने गहरी सांस ली। " फालतू सवाल करना बंद करो

संजना यह सुनकर चौंक गई।

हर्षवर्धन की आँखें थोड़ी नम हो गईं। "वह ज्यादा समय तक नहीं रही,

संजना को समझ आ गया कि यह सिर्फ खाना बनाना नहीं था, यह हर्षवर्धन की यादों का हिस्सा था।

एक नई शुरुआत

बिरयानी तैयार हो चुकी थी। हर्षवर्धन ने बड़े एहतियात से उसे प्लेट में परोसा और संजना की तरफ बढ़ाया।

"यह लो, देखो कैसी बनी है।"

संजना ने एक चम्मच लिया और चखी। उसकी आँखें चमक उठीं। "ये तो... कमाल की बनी है! तुमने सच में ये सब खुद सीखा?"

हर्षवर्धन हल्का मुस्कुराया। "हाँ, कुछ चीज़ें खुद ही सीखनी पड़ती हैं।"

संजना ने उसे ध्यान से देखा और महसूस किया कि वह आदमी जिसे उसने हमेशा सख्त और जिद्दी समझा था, उसके भीतर बहुत गहराई थी।

"तुम्हें अपनी कहानियाँ किसी से छुपानी नहीं चाहिए, हर्ष। कभी-कभी, कहानियाँ भी किसी और के लिए दवा बन जाती हैं।"

हर्षवर्धन ने संजना की आँखों में देखा, और फिर धीरे से कहा, "शायद एक दिन। लेकिन फिलहाल, खाओ।"

रात का स्वाद सिर्फ बिरयानी का नहीं था, बल्कि उन अनकही कहानियों का भी था, जो धीरे-धीरे सामने आ रही थीं। संजना हर्षवर्धन को देख ये सोचने लगी कि  हर्षवर्धन का किसी दर्द से गहरा नाता है वो उस दर्द को जान उसे कम करना चाहती थी ना जाने क्यों अपने किडनैप हर्षवर्धन के लिए उसे क्यों उसे एहसास आ रहे थे वो क्यों उसके दर्द से जूडना  चाहा रही थी | वो हर्षवर्धन के चेहरे को एक पल देखती लेकिन जब हर्षवर्धन उसको ऐसा करते देखता तो वो अपनी नजरें चूरा लेती  जैसे कुछ जानती ना हो, तभी संजना ने हर्षवर्धन से नजरे चूराते हुए कहा ",अच्छा वैसे अगर मैं तुम्हें अब से हर्ष कहू तो तुम बूरा तो नहीं मानोगे |हर्षवर्धन ने संजना कि आंखों में आंखे डाल कर कहा ", थोड़ी देर पहले भी तुमने मुझे हर्ष कहा था अगर बूरा मानना होता तो तभी मान लेता |इस कहानी को पढते रहे 💗💗💗💗