लिफ्ट में फंसे दानिश और समीरा – एक रोमांटिक मोड़
समीरा ने ख़ुद को दानिश से दूर कर लिया, दानिश ने भी उसे ऐसा करने से नहीं रोका,समीरा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसकी आँखें बड़ी हो गईं, लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाई। लिफ्ट की हल्की रोशनी में दानिश की आँखों में एक शरारती चमक थी, जो उसे और भी असहज कर रही थी।
"क्या?" समीरा ने फिर से पूछा, उसकी आवाज़ धीमी थी।
दानिश ने हल्के से सिर हिलाया और एक लंबी सांस ली। "कुछ नहीं," उसने मुस्कुराते हुए कहा, "बस यह लिफ्ट का माहौल ही ऐसा है कि कुछ न कुछ कहने का मन कर रहा है।"
समीरा ने हल्की भौंहें चढ़ाई। "तुम्हें लगता है कि यह माहौल रोमांटिक है?"
"तुम्हें नहीं लगता?" दानिश ने हल्के से उसकी तरफ झुकते हुए कहा। "धीमी रोशनी, बस हम दोनों, और एक-दूसरे से बचने की कोई जगह नहीं…"
समीरा ने झट से उसकी तरफ देखते हुए सिर झटका। "तुम्हारा मतलब है कि मैं तुमसे बचना चाहती हूँ?"
"हूँ…" दानिश ने हल्के से मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा। "शायद?"
समीरा ने अपनी बाहें मोड़ लीं और दीवार से टिक गई। "वैसे भी, मुझे तुम्हारी ये फ्लर्टिंग टेक्नीक कामयाब होती नहीं दिख रही।"
"ओह?" दानिश ने नकली हैरानी से कहा। "तो तुम कह रही हो कि मैं कोशिश कर रहा हूँ?"
"तुम क्या कर रहे हो, वो तो मुझे समझ ही नहीं आ रहा।" समीरा ने पलटकर जवाब दिया।
दानिश हल्का सा हँसा। "तो समझने की कोशिश करो।"
उसके शब्दों में कुछ ऐसा था कि समीरा ने अनजाने में एक लंबी सांस ली। वह उसे देख रही थी, लेकिन शब्द नहीं खोज पा रही थी।
तभी—
'बिप! बिप!'
इंटरकॉम से एक आवाज़ आई, और दोनों चौकन्ने हो गए। "हैलो, क्या आप लोग अंदर फंसे हैं?"
समीरा ने झट से आगे बढ़कर जवाब दिया, "हाँ! प्लीज, जल्दी कुछ कीजिए। मैं बहुत परेशान हो रही हूँ!"
"मैम, प्लीज रिलैक्स। मेंटेनेंस टीम आ रही है, लेकिन इसमें 15-20 मिनट लग सकते हैं।"
"20 मिनट?" समीरा ने निराशा से कहा।
"हम कोशिश कर रहे हैं, मैम। आप चिंता न करें," आवाज़ आई और फिर इंटरकॉम बंद हो गया।
समीरा ने एक लंबी सांस ली और दीवार से टिक गई। "बीस मिनट… उफ्फ, यह किसी बुरे सपने जैसा लग रहा है।"
दानिश ने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा। "तुम हमेशा चीजों को इतना ड्रामेटिक क्यों बना देती हो?"
"ड्रामेटिक?" समीरा ने गुस्से से उसकी तरफ देखा। "मुझे क्लॉस्ट्रोफोबिया है, और तुम्हें यह ड्रामेटिक लग रहा है?"
"ठीक है, ठीक है," दानिश ने हाथ उठाते हुए कहा, "माफ़ करना। बस, कुछ और सोचो, जिससे तुम्हारा ध्यान बंटे।"
समीरा ने गहरी सांस ली और धीरे से बोली, "ठीक है, कुछ बात करते हैं।"
"ओह?" दानिश ने दिलचस्पी से कहा। "किस बारे में?"
समीरा ने कुछ सोचते हुए कहा, "कुछ भी… शायद तुम्हारे बारे में?"
दानिश ने हल्का सिर झुकाया। "मेरे बारे में? मैं तो बहुत बोरिंग इंसान हूँ।"
"बिलकुल नहीं," समीरा ने तुरंत कहा, और फिर खुद ही चौंक गई कि उसने यह क्या कह दिया।
दानिश की भौहें हल्की ऊपर उठ गईं। "ओह? तो तुमने मेरे बारे में सोचा है?"
समीरा ने तेजी से अपनी नज़रें फेर लीं। "मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा!"
दानिश हल्के से मुस्कुराया। "पर तुमने यह भी नहीं कहा कि तुमने नहीं सोचा।"
समीरा ने एक नकली गुस्से वाली नज़र डाली। "तुम बहुत चालाक हो,
"और तुम बहुत क्यूट हो, जब गुस्से में होती हो," दानिश ने धीरे से कहा।
समीरा का दिल फिर से तेज़ धड़कने लगा। उसने दूसरी तरफ देखते हुए खुद को संयमित किया। "मैं… मुझे नहीं पता कि इस बात पर क्या कहूँ।"
दानिश ने हल्की मुस्कान दी। "कुछ मत कहो। बस महसूस करो।"
समीरा ने उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में कुछ था – कुछ ऐसा जिसे वह समझ नहीं पा रही थी।
वह कुछ और कहने वाली थी, लेकिन तभी—
'खटाक!'
लिफ्ट अचानक हिली और फिर रोशनी पूरी तरह जल उठी।
"ओह!" समीरा ने राहत की सांस ली।
"लगता है, हम बच गए," दानिश ने हल्का मुस्कुराते हुए कहा।
लिफ्ट के दरवाजे धीरे-धीरे खुले, और समीरा तुरंत बाहर निकल गई। उसने अपने सीने पर हाथ रखा और गहरी सांस ली।
दानिश भी लिफ्ट से बाहर आया, लेकिन वह बस समीरा को देख रहा था।
"अब ठीक लग रहा है?" उसने पूछा।
समीरा ने सिर हिलाया, "हाँ, बहुत अच्छा लग रहा है।"
"तो… इस लिफ्ट के एक्सपीरियंस को याद रखोगी?" दानिश ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।
समीरा ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "शायद।"
"बस शायद?"
समीरा ने उसकी आँखों में देखा और धीरे से कहा, "हाँ… क्योंकि कुछ यादें ऐसी होती हैं, जो भुलाने के लिए नहीं होतीं।"
दानिश ने हल्का सिर झुकाया, उसकी मुस्कान और भी गहरी हो गई।
"चलो, फिर अगली बार किसी और लिफ्ट में फंसने का इंतज़ार करते हैं।"
समीरा ने आँखें घुमाई। "तुम सच में बहुत अजीब हो,
"और तुम… सच में बहुत खास।"
समीरा का दिल फिर से तेज़ धड़कने लगा, लेकिन इस बार, उसे डर नहीं लग रहा था।
समीरा हड़बड़ाती हुई कॉरिडोर में पहुंची, जहां उसकी सहेलियां पहले से ही बेचैनी से उसका इंतजार कर रही थीं। उसे देखते ही नेहा तेज़ी से उसके पास आई, "यार, तू कहां थी? हम आधे घंटे से तुझे ढूंढ रहे हैं!"
रिया भी चिंतित स्वर में बोली, "फोन भी नहीं उठा रही थी, सब ठीक तो है ना?"
समीरा ने गहरी सांस ली, अब भी उसके अंदर घबराहट की हल्की सी झुनझुनाहट बाकी थी। "तुम यकीन नहीं करोगी, मैं लिफ्ट में फंस गई थी!" उसने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।
"क्या? अकेली?" नेहा ने चौंककर पूछा।
समीरा ने धीमे से सिर हिलाया, फिर थोड़ा ठहरकर बोली, "नहीं... मैं अकेली नहीं थी। वो भी था... वही, उस रात वाला।"
उसके इतना कहते ही तीनों सहेलियां एक-दूसरे को देखने लगीं। एक अनकहा डर उनके चेहरों पर उभर आया।
रिया ने फुसफुसाकर पूछा, "क्या अजीबोगरीब लड़का है ? उसकी आंखों में कुछ अलग सा है..."
समीरा ने सिर हिलाया, जैसे वही बात उसके मन में भी घूम रही हो। "हां, उसकी आंखों में कोई डर नहीं था, कोई घबराहट नहीं। मानो अंधेरे में भी वो सब कुछ देख सकता हो..."
एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। तीनों लड़कियां चुपचाप समीरा को देख रही थीं, और समीरा को ऐसा लग रहा था कि लिफ्ट का वह ठंडा, संकुचित अंधेरा अब भी उसके आसपास मंडरा रहा था।