Bazaar - 5 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | बाजार - 5

Featured Books
Categories
Share

बाजार - 5

पाँचवा धारावायक ( बाजार)

सौदा काफायती हो या ना हो, इसका कभी कभी मूल्य अधिक चुकाना पड़ जाये तो एक दिन तुम ये सोचते हो, कि तुम बोझ से जयादा कुछ नहीं हो। पर ऐसा तुम सोचते हो, मन मे, जहन मे... आत्मिक फैसला कया हैं, गुज़र कर देखो कभी लोगों की पहचान मे। कभी कभी बहुत गलत फैसले हम खुद ही ले लेते हैं... ऐसा नहीं भी होता..

देव ने पढ़ा था, " दिल की गहरायी से बोलना हैं तो सिर्फ बोलो नशा पी कर, जो भी बोलोगे... होश मे, वो इतहास बन जायेगा।

इस लिए उसने खलनायक के रोल मे दो रिटेक मे जान ऐसी फुकी। कि सब देखते ही रह गए। कयो, नशे मे जो वो बोल गया था... अब नहीं था.. सुभाष एक दम से हसा और इतनी जोर से ताड़ी लगा के, माया का बहुत धन्यवाद किया था उसने। "फ़िल्म तो उसके खून मे वसी हुई हैं " माया जी फ़िल्म के हर रोल मे जो खलनायक का था, जान डाल दी " देव ने " अगली फ़िल्म भी उसकी ही होंगी। " ये माया को अटपटा लगा। " वो ऐसा नहीं चाहती थी।

फ़िल्म कि खलनायक का एक एक डायलॉग लोगों की जुबा पे था... फ़िल्म चल निकली... अच्छी पेमंट माया को उसने दी थी। वो तो खुश था... माया भी और लिली भी... " उसने कहा --- तुमने इतना धाकड़ रोल कैसे किया। " देव हस पड़ा बस।

एक टेलीफोन और निर्देशक का आया।

" उसने कहा, माया से बात करे प्ल्ज़। "

तभी उसने जानी देव ने गुलाब के फूलो का गुलदस्ता जिसे बुगा कहते हैं, लिली को दिया... वो विलचेयर पर थी। माया को फोन आया " हेलो माया जी, मेरी दो फिल्मो के साइनमेंट आप के हाथ मे हैं ---" माया थोड़ी मुस्करा कर बोली... " बर्मन साहब, मुझे पूछने का मौका तो दीजिये उससे। " तभी झला उठे वो ---" वो कहता हैं आपसे बात करू.. और आप कहती हैं उनसे... लम्बी रेस का घोड़ा बनाना चाहती हैं अस्पताल उसे। " माया ने " हाँ " कहा.... " तो घोड़े फिर सास नहीं लेते.. माया जी। " माया ने तभी कहा... "--ओके, कल वो आपकी पार्टी मे आएगा, और वही जो फीस उसकी दें देना। "

"ओके थन्कु " माया ने फोन रखते ही पीछे मूड कर देखा, वो झूला दें रहा था लिली को।

माया की ये देख आँख भर आयी। असी बीस लाख की फडी माया ने बैंक मे जमा करा दी थी, जो हाथ मे था तीस लाख, किचन की दराज मे रख दिया था।

साये काल खाना खाते सब चुप थे, पता नहीं कयो --?

 फिर देव ने चुपी तोड़ी... " माया जी आप मेरी नजरो से बच नहीं सकती... आप के मन मे ऐसा कौन सा पथर हैं, जो आपको बोलने नहीं देता  --!"

" माया ने चमच चावल और राजमाह का मुँह मे लेते कहा... " नहीं ऐसी कोई बात नहीं हैं " फिर वो झूठ बोल गयी थी।

देव ने कहा ---" मेरी शपथ खाओ... अभी दूध का दूध.. कहा ही था... वो बेवाक् हो कर इतना रोयी, जैसे बाध टूट गया होता हैं  डेम का.... नदिया वेह निकली हो....

(फिर चलदा ) ----------------- नीरज शर्मा 

                        पिन कोड---:144702