Kurbaan Hua - Chapter 22 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 22

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Kurbaan Hua - Chapter 22

हर्षवर्धन ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बिना डरे उनकी ओर बढ़ता गया। तभी एक बदमाश ने ट्रिगर दबा दिया। गोली तेजी से आई, लेकिन हर्षवर्धन झुक गया और बच निकला। इससे पहले कि वे दुबारा हमला करते, वह बिजली की तेजी से आगे बढ़ा और सबसे पास खड़े बदमाश के हाथ से बंदूक छीन ली।

एक्शन-पैक्ड लड़ाई

अब तक सभी बैंककर्मी और आम लोग साँस रोककर यह नजारा देख रहे थे। हर्षवर्धन और बदमाशों के बीच खतरनाक हाथापाई शुरू हो गई। उसने पहले बदमाश की बंदूक दूर फेंकी और एक घूंसा उसके जबड़े पर मारा, जिससे वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। दूसरा बदमाश पीछे से हमला करने आया, लेकिन हर्षवर्धन ने उसकी चाल पहले ही भाँप ली। उसने अचानक पीछे मुड़कर उसे अपने मजबूत घुटने से मारा, जिससे वह चीखता हुआ नीचे गिर गया।

अब दो बदमाश बच गए थे, जो घबराए हुए लग रहे थे। उनमें से एक ने एक बंधक को पकड़कर उसकी गर्दन पर बंदूक रख दी। उसने चिल्लाकर कहा, "अगर कोई पास आया तो मैं इसे मार दूँगा!"

हर्षवर्धन रुका नहीं। उसने अपनी जेब से एक छोटी चाकू निकाली और तेजी से बदमाश की तरफ फेंकी। चाकू सीधे उसके हाथ में लगी, और उसने दर्द से चीखते हुए बंदूक गिरा दी। इसी मौके का फायदा उठाकर हर्षवर्धन ने उसे जोरदार मुक्का मारा और नीचे गिरा दिया।

अब सिर्फ आखिरी बदमाश बचा था, जो पूरी तरह डर चुका था। वह तुरंत भागने लगा, लेकिन हर्षवर्धन ने छलांग लगाकर उसे पकड़ लिया और जोर से नीचे पटक दिया। बदमाश बेहोश हो गया।

शहर को मिला नया हीरो

बैंक के लोग जो अब तक डरे हुए थे, धीरे-धीरे समझ गए कि वे सुरक्षित हैं। उन्होंने राहत की साँस ली और हर्षवर्धन की तरफ देखा। कोई भी अपनी खुशी रोक नहीं पा रहा था। बैंक का मैनेजर आगे आया और हाथ जोड़कर कहा, "धन्यवाद, सर! आपने हमारी जान बचा ली!"

बाहर पुलिस भी आ चुकी थी। इंस्पेक्टर ने हर्षवर्धन की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "लंबे समय बाद वापस आए हो, और आते ही शहर को फिर से एक बहादुर पुलिसवाला मिल गया!"

हर्षवर्धन ने हल्की मुस्कान दी और बदमाशों को हथकड़ी लगते हुए देखा। शहर में अपराध बढ़ा जरूर था, लेकिन अब वह वापस आ चुका था। और जब तक डीपी हर्षवर्धन ठकराल था, तब तक कोई भी अपराधी चैन से नहीं रह सकता था।

वैयरहाउस की ठंडी, सीलन भरी हवा संजना की त्वचा को छू रही थी, लेकिन उसके मन में उठते सवालों की तपिश ने उसे जकड़ रखा था। हल्की रोशनी में वह वहीं कोने में बैठी थी, घुटनों को मोड़कर, अपनी बांहों में समेटे। उसकी सांसें धीमी थीं, लेकिन दिमाग तेज़ी से भाग रहा था—एक ही नाम, एक ही चेहरा, एक ही सवाल—हर्षवर्धन।

आखिर हर्षवर्धन क्या है?

वह एक पहेली की तरह है, जिसे संजना अब तक सुलझा नहीं पाई थी। कभी शांत और संयमित, तो कभी जुनूनी और खतरनाक। उसकी आँखों में एक रहस्य झलकता था, एक अजीब सी आग, जिसे समझ पाना आसान नहीं था। जब पहली बार उसने संजना को देखा था, तो उसकी आँखों में जो अजीब सी कशिश थी, वही अब तक संजना को उलझाए हुए थी।

"तुम मेरी कैदी हो, संजना।"

उसका भारी स्वर कानों में गूंज उठा। कितनी बार हर्षवर्धन ने यह बात कही थी! मगर क्यों? आखिर उसकी कैदी क्यों? क्या कोई बदला था, कोई दुश्मनी? या फिर कोई और वजह, जिसे वह समझ नहीं पा रही थी?

दिल की धड़कनें क्यों बढ़ जाती हैं?

हर बार जब हर्षवर्धन उसके करीब आता, संजना का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता। उसके अंदर एक अजीब सा कंपन दौड़ जाता, जैसे कोई अदृश्य ताकत उसे उसकी ओर खींच रही हो। क्या यह डर था? या फिर... कुछ और? वह खुद से ही यह सवाल करने लगी।