मासी ने मुस्कुराते हुए पूछा, "अच्छा? क्या?"
अवनी ने चहकते हुए कहा, "हमारी एक नई दोस्त बनी—नेहा!"
"ओह! कौन है ये नेहा?" मासी ने दिलचस्पी से पूछा।
मिताली ने जवाब दिया, "नेहा हमारी क्लासमेट है। जब हम रैगिंग से बचकर क्लास में पहुंचे, तो उसने हमसे बात की। बहुत प्यारी और समझदार लड़की है। उसने हमें कॉलेज के बारे में बहुत कुछ बताया और हमें हिम्मत भी दी।"
लवली ने जोड़ते हुए कहा, "और सबसे मजेदार बात, नेहा भी अजय और उसके दोस्तों से बिल्कुल नहीं डरती! उसने हमें कहा कि अगर हम सब साथ रहें, तो कोई हमें परेशान नहीं कर सकता।"
मासी ने संतोष की सांस ली, "अच्छा है। दोस्ती हमेशा ताकत देती है। लेकिन तुम्हें सतर्क भी रहना होगा।"
तीनों ने सिर हिलाया। अब तक उनकी प्लेटें खाली हो चुकी थीं और भूख भी मिट चुकी थी।
मिताली ने पानी का गिलास उठाते हुए कहा, "मासी, सच कहूँ तो, आज सुबह जब कॉलेज गए थे, तो हम बहुत डरे हुए थे। लेकिन अब लग रहा है कि शायद हम वहाँ खुद को संभाल लेंगे।"
मासी ने प्यार से उनका सिर सहलाया। "बस हिम्मत बनाए रखना और गलत चीजों के खिलाफ आवाज़ उठाने से पीछे मत हटना।"
तीनों सहेलियाँ मुस्कुरा उठीं।
रात अब और ज्यादा गहरा चुकी थी। सबने मिलकर टेबल साफ की और फिर अपने-अपने कमरों में जाने लगीं।
बिस्तर पर लेटते ही लवली ने धीरे से कहा, "कल क्या होगा?"
अवनी ने करवट बदलते हुए जवाब दिया, "जो भी होगा, अब हम अकेले नहीं हैं। हम साथ हैं!"
मिताली ने मुस्कुराकर कहा, "और अब हमें डरकर नहीं, डटकर कॉलेज जाना है!"
इस विश्वास के साथ, वे गहरी नींद में सो गईं, क्योंकि अगला दिन और भी दिलचस्प होने वाला था। और फिर वही अगले दिन,
शहर में बढ़ता अपराध और हर्षवर्धन की वापसी
शहर में अपराध की घटनाएँ लगातार बढ़ रही थीं। कानून का कोई डर नहीं रह गया था, और हर जगह लूट-पाट, चोरी-डकैती आम हो चुकी थी। बदमाशों का आतंक इतना बढ़ चुका था कि कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा था। पुलिस प्रशासन पर सवाल उठने लगे थे, लेकिन हालात पर काबू पाने वाला कोई नहीं था।
इसी बीच शहर के सबसे बड़े बैंकों में से एक में कुछ हथियारबंद बदमाश लूटपाट करने घुस आए। उनके चेहरे नकाब से ढके हुए थे और सभी के हाथों में बंदूकें थीं। उन्होंने बैंक में घुसते ही हंगामा मचा दिया। कोई भी उनकी मंशा समझने से पहले ही उन्होंने हवा में गोलियाँ चला दीं, जिससे पूरे बैंक में अफरातफरी मच गई। वहाँ मौजूद बैंक कर्मचारी और आम लोग डर से सहम गए। बदमाशों ने सभी को एक कोने में खड़ा कर दिया और कैशियर से तिजोरी की चाबी मांगी।
बैंक में मौजूद लोगों की चीख-पुकार सुनकर सुरक्षा गार्ड ने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन बदमाशों ने उसे बंदूक की बट से मारकर नीचे गिरा दिया। उन्होंने साफ चेतावनी दी कि अगर किसी ने भी हीरो बनने की कोशिश की तो उसका अंजाम बहुत बुरा होगा।
हर्षवर्धन की वापसी
इसी बीच, बैंक के दरवाजे पर एक शख्स खड़ा था—लंबे कद का, रौबदार चेहरे वाला, आँखों में गुस्सा और इरादों में सख्ती। ये कोई और नहीं बल्कि डीपी हर्षवर्धन था। वह लंबे समय बाद अपनी ड्यूटी पर लौटा था, और उसे देखकर वहाँ मौजूद कुछ लोग हैरान रह गए। इतने दिनों तक वह कहाँ था? किसी को नहीं पता था। लेकिन अब वह सामने था—बिलकुल तैयार, दुश्मनों से भिड़ने के लिए।
बदमाशों में से एक ने हर्षवर्धन की तरफ बंदूक तानते हुए कहा, "रुक जाओ! वरना गोली मार दूँगा!"
क्या हर्षवर्धन उन बदमाशों को रोक सकेगा या फिर नहीं आखिर आगे क्या होने वाला था बैंक में खड़े सभी लोग यही सोच रहे थे |