रुशाली अब अस्पताल से घर लौट आई थी। जिस तरह से ज़िन्दगी ने उसे झकझोरा था, उसके बाद अब वो थोड़ा संभलने की कोशिश कर रही थी। मगर अब सिर्फ अपने बारे में सोचना उसके लिए मुमकिन नहीं था। घर की जिम्मेदारियां भी थी, और उस पर अपने दिल के जज़्बात भी।
कभी-कभी वो खिड़की से बाहर आसमान को ताकते हुए सोचती —
"क्या मैं दोबारा मयूर सर को देख पाऊंगी? क्या किस्मत दोबारा ऐसा मौका देगी?"
इन्हीं ख्यालों के बीच रुशाली ने नौकरी ढूंढनी शुरू की। अख़बार में विज्ञापन पढ़ना, मोबाइल में जॉब ऐप्स खंगालना — बस अब तो यही दिनचर्या बन गई थी। कुछ ही दिनों में एक डिस्ट्रीब्यूटर कंपनी में उसे काम मिल गया।
काम तो ठीक था, मगर दिल हर वक्त बेचैन रहता।
"कहीं कोई ऐसा मौका मिले जहां मैं फिर मयूर सर के करीब जा सकूं…"
ये ख्वाहिश कहीं अंदर ही अंदर धड़कती रहती।
फिर एक दिन ऑफिस में उसकी दोस्त प्रिया ने कहा —
"अरे रुशाली, एक हॉस्पिटल में भर्ती निकली है। ऑनलाइन फॉर्म है, काम वही सिखा देंगे। तू तो हॉस्पिटल वाली जॉब ही चाहती थी ना?"
रुशाली के चेहरे पर चमक आ गई।
"सच में? चल, फॉर्म भर देते हैं। किस्मत कब पलट जाए, कौन जाने!"
दोनों ने मिलकर फॉर्म भरा और फिर दिन गुजर गए।
करीब एक महीना बीतने के बाद, रुशाली के हाथ में एक लेटर आया। इंटरव्यू कॉल लेटर। और जैसे ही उसने हॉस्पिटल का नाम पढ़ा, उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं।
"वही हॉस्पिटल… मयूर सर वाला…!"
उसकी आंखें खुशी से भर आईं। मगर हॉस्पिटल बहुत बड़ा था। सैकड़ों डॉक्टर, सैकड़ों वॉर्ड। कहीं न कहीं ये डर भी था कि इतनी भीड़ में क्या वो मयूर सर को देख पाएगी?
"चलो, देखेंगे। बस इसी बहाने उस जगह तो जाऊंगी जहाँ वो हैं।"
वो दिन आया। इंटरव्यू अच्छा हुआ। और एक हफ्ते बाद जॉइनिंग का फोन आ गया।
काम था — मरीजों के ब्लड सैंपल लेना और लैब तक पहुंचाना। आगे चलकर अगर काम अच्छा रहा, तो डॉक्टर के साथ असिस्ट करने का भी मौका मिल सकता था।
रुशाली ने खुद से कहा —
"कोई बात नहीं… जब तक है, तब तक इसी में खुश रहूंगी। क्या पता रोज़ उन्हीं गलियारों से गुजरूं, जहाँ मयूर सर का भी आना-जाना होता हो।"
और फिर उसने पूरे मन से अपनी ड्यूटी शुरू कर दी।
मगर दिनभर हॉस्पिटल के वॉर्ड में काम करते हुए, उसकी आंखें हर वॉर्ड, हर कॉरिडोर में उन्हें ढूंढती रहतीं।
"कहीं दिख जाएं… कहीं कोई झलक मिल जाए…"
हर शाम वो घर लौटते हुए सोचती —
"क्या इतने बड़े हॉस्पिटल में भी कभी सामना होगा?"
और फिर एक दिन… वो घड़ी आ ही गई।
उसे एक वॉर्ड में पेशेंट का ब्लड सैंपल लेने भेजा गया। जब वो कॉरिडोर से गुज़र रही थी, दूर किसी डॉक्टर की आवाज़ सुनाई दी। उसने सिर उठाकर देखा।
सफेद कोट, गले में स्टेथेस्कोप, हाथ में फाइल और साथ में दो जूनियर डॉक्टर। वो मयूर सर ही थे।
रुशाली का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वो वहीं रुक गई। चाह कर भी एक कदम आगे नहीं बढ़ा पा रही थी।
"हे भगवान… ये तो मयूर सर हैं…!"
उसने खुद को संभाला और धीरे से वॉर्ड के अंदर चली गई। वहां मरीज का सैंपल लिया। मगर दिल बाहर भागने को बेचैन था।
जैसे ही वो बाहर आई… सामने से मयूर सर आ रहे थे।
उनकी आंखें मिलीं। रुशाली ने हल्की सी मुस्कान दी। और मयूर सर ने भी मुस्कुराकर सिर हिलाया।
बस… उस एक मुस्कान ने उसकी पूरी दुनिया रोशन कर दी।
"मेरी दुआ कबूल हो गई…"
उसके बाद के दिन जैसे सपनों में कटने लगे। जब भी किसी वॉर्ड में जाती, हर कोई मयूर सर की तारीफ करता।
कोई कहता —
"बहुत अच्छे डॉक्टर हैं।"
कोई कहता —
"कभी घमंड नहीं किया।"
तो कोई —
"हर किसी से हंसकर बात करते हैं।"
रुशाली का दिल मानो फूल सा खिलने लगता।
एक दिन जब वो सर्जरी वॉर्ड में सैंपल लेने गई, तो एक पेशेंट की मां से बातचीत हो रही थी। तभी उस महिला का बेटा कहने लगा —
"आप जानती हैं, मयूर सर तो हमारे लिए भगवान जैसे हैं। जब वो यहां नए-नए आए थे, हम सबके साथ चाय-नाश्ता करने बैठते थे।"
रुशाली मुस्कुरा कर बोली —
"सच में? ऐसे लोग आजकल कहां मिलते हैं।"
उस दिन के बाद से रुशाली का दिल और भी ज्यादा मयूर सर के ख्यालों में डूब गया।
रात को सबके सोने के बाद, वो अपना मोबाइल लेकर बैठ जाती।
एक रात उसने सोचा —
"क्यों ना मयूर सर का नाम गूगल पर देखूं…"
उसने सर्च किया। जो जानकारी मिली, उसने तो जैसे दिल ही जीत लिया।
मयूर सर ने डॉक्टर की एंट्रेंस परीक्षा में ऑल इंडिया में शानदार रैंक हासिल की थी। एक साधारण किसान परिवार के बेटे थे, मगर अपनी मेहनत और लगन से इतना बड़ा मुकाम बनाया था।
अब भी पढ़ाई कर रहे थे।
रुशाली की आंखें भीग गईं।
"हे भगवान… इन्हें कभी कोई दुख मत देना।"
फिर एक दिन हॉस्पिटल में एक खबर आई —
एक रेज़िडेंट डॉक्टर ने स्टडी के प्रेशर में सुसाइड कर लिया था।
सुनते ही रुशाली का दिल कांप गया।
"कहीं… मयूर सर को भी कभी कोई ऐसा ख्याल न आ जाए…"
उस दिन से उसने रोज़ प्रार्थना करनी शुरू कर दी।
"हे भगवान… मयूर सर को हिम्मत देना। उन्हें हमेशा सलामत रखना। और उन्हें इतना मजबूत बनाना कि वो कभी हार न मानें। वो एक दिन बहुत बड़े डॉक्टर बनें।"
अब हर दिन रुशाली के लिए सिर्फ ड्यूटी नहीं, एक दुआ, एक इंतज़ार और एक ख्वाब बन गया था।
उसके दिल में एक सवाल हर वक्त दस्तक देता —
"क्या कभी मैं मयूर सर के साथ काम कर पाऊंगी?"
क्या किस्मत उनकी राहें कभी मिलाएगी?
या फिर ये जज़्बात… बस उसके दिल के किसी कोने में दबे रह जाएंगे?
…और रुशाली का दिल हर रोज़ बस यही कहता रहा…
"कुछ फासले ऐसे भी होते हैं ज़िन्दगी में,
जो न चाहकर भी कम नहीं होते…
कुछ लोग दिल में यूँ बस जाते हैं,
जिन्हें देखे बिन भी सुकून नहीं होता…"
इश्क़ था, इबादत थी या बस एक ख्वाब,
रुशाली को अब खुद भी ये समझ नहीं आता था…
जानने के लिए पढ़ते रहिए — 'दिल ने जिसे चाहा' का अगला भाग।
…जारी है…