Pida me Aanand - 11 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पीड़ा में आनंद - भाग 11 - जीवनधारा

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पीड़ा में आनंद - भाग 11 - जीवनधारा


 जीवनधारा


जब सुभाष ने कैफे में प्रवेश किया तब शम्स और मयंक का ठहाका उनके कानों में पड़ा। उन्हें देखकर शम्स बोले,

"आओ भाई सुभाष आज देर कर दी।" 

सुभाष ने बैठते हुए पूछा,

"अभी तक रघु नहीं आया, वो तो हमेशा सबसे पहले आ जाता है।"

"हाँ हर बार सबसे पहले आता है और हमें देर से आने के लिए आँखें दिखाता है, आज आने दो उसे, सब मिलकर उसकी क्लास लेंगे।" 

मयंक की इस बात पर एक और संयुक्त ठहाका कैफे में गूंज उठा।

तीनों मित्र रघु मेहता का इंतज़ार कर रहे थे। रघु ही थे जिन्होंने चारों मित्रों को फिर से एकजुट किया था। चारों कॉलेज के ज़माने के अच्छे मित्र थे। कॉलेज में उनका ग्रुप मशहूर था। किंतु वक़्त के बहाव ने उन्हें अलग कर दिया। रिटायरमेंट के बाद रघु ने खोज बीन कर बाकी तीनों को इक्कठा किया। इत्तेफाक से सभी मित्र एक ही शहर में थे। उन लोगों ने आपस में मिलने के लिए एक मीटिंग रखी। सभी पहली बार इसी कैफे में मिले थे। उसके बाद तय हुआ कि वह चारों महीने में एक बार इसी तरह मिलेंगे। यह कैफे ही उनका अड्डा बन गया। हर माह की बीस तारीख को सभी यहीं मिलते। आपस में हंसी मजाक करते। कुछ पुरानी यादें ताज़ा करते। शम्स की शायरी और मयंक के चुटकुले इन महफिलों को चार चाँद लगाते थे। इस तरह वक़्त कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता था।

शम्स ने अपनी घड़ी पर नज़र डालते हुए कहा,

"यार आज तो बहुत देर हो गयी, रघु अभी तक नहीं आया।" 

मयंक ने भी चिंता जताते हुए कहा,

"हाँ यार शम्स ठीक कह रहा है।"

शम्स ने कहा, 

"भाई मयंक ज़रा फ़ोन तो लगाओ उसे।" 

मयंक ने अपना फोन निकाल कर कॉल किया। लेकिन फोन स्विचऑफ बता रहा था। सुभाष ने कहा,

"वैसे तो रघु अपना फोन रात में स्विचऑफ रखता है। पर इस समय स्विचऑफ है तो ज़रूर कोई खास बात होगी। रघु अपने नियम का पक्का है। सब सही होता तो वह आता ज़रूर। उसके घर चलकर ही देखते हैं।" 

शम्स ने भी उनकी बात का समर्थन किया। तीनों मित्र रघु के घर चले गए।

मयंक ने काल बेल दबाई। रघु की बहू ने दरवाज़ा खोला। तीनों अंदर जाकर बैठ गए। रघु की बहू ने बताया की पंद्रह तारीख को अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा। अस्पताल पहुँच कर उन्होंने दम तोड़ दिया। घर में सब लोग उनके जाने से दुखी हैं। किसी को इस बात का ध्यान नहीं रहा कि आप लोगों को भी खबर दे दी जाए। अपने मित्र की अकस्मात् मृत्यु की खबर सुनकर तीनों मित्र स्तब्ध रह गए। कुछ देर ठहराने के बाद वो सभी अपने अपने घर वापस चले गए। कैफे में वापस चले गए।

तीनों दोस्तों पर रघु की मौत का गहरा असर हुआ था। तीनों ही उम्र के अंतिम पड़ाव पर थे। खासकर सुभाष और मयंक दोनों ही बहुत उदास हो गए थे। अपनी दिनचर्या पर भी अब ध्यान नहीं दे पा रहे थे। शम्स उन दोनों को समझाते थे कि इस तरह मरने से पहले जीना छोड़ देना ठीक नहीं है। पर सुभाष और मयंक पर अधिक असर नहीं हो रहा था।

मयंक और सुभाष दोनों को ही शम्स ने फोन करके उसी कैफे में बुलाया था जहाँ वो लोग मिलते थे। शम्स ने ज़ोर देकर कहा था कि उन दोनों का आना ज़रूरी है। दोनों चाहते तो नहीं थे पर शम्स के इसरार को नज़रंदाज़ नहीं कर पाए। बताए गए समय पर दोनों कैफे में पहुँच गए‌‌। 

शम्स पहले से ही उन दोनों का इंतज़ार कर रहे थे। सुभाष और मयंक जाकर टेबल पर बैठ गए। कुछ देर शांति छाई रही। मौन को तोड़ते हुए मयंक बोले 

"अब बताओ शम्स इतना ज़ोर देकर क्यों बुलाया था ?" 

सुभाष ने भी उत्सुकता से शम्स की तरफ देखा। शम्स ने बारी बारी से उन दोनों के चेहरे देखने के बाद कहा,

"तुम दोनों इस कदर ज़िंदगी से मायूस हो गए हो कि कुछ ध्यान ही नहीं है। पता है आज कौन सी तारीख है ?"

सुभाष ने झुंझलाकर कहा,

"क्या फर्क पड़ता है। एक दिन रघु की तरह मौत हमें भी आकर दबोच ले जाएगी।"

मयंक ने कुछ कहा नहीं। पर सुभाष की तरफ इस तरह देखा जैसे अपना समर्थन दे रहे हों। शम्स कुछ देर खामोश रहे। कुछ देर बाद बोले,

"हमारा दोस्त चला गया इसका मतलब हम भी अब बस मौत का इंतज़ार करें।"

"जब पता है कि अब दुनिया से रुखसत होने का वक्त आ गया है तो खुद को झूठा दिलासा देने का क्या मतलब है।"

यह बात शम्स को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने कहा,

"यह बात वह मयंक कर रहा है जो अपने चुटकुले सुनाकर माहौल को खुशनुमा बना देता था।"

उन्होंने मयंक को घूरकर देखा‌। उसके बाद बोले,

"मौत क्या उम्र देखकर आती है। ऐसा होता तो मेरा बेटा जावेद भरी जवानी में क्यों चला जाता। मैंने तो उसके मरने पर जीना नहीं छोड़ा। सुभाष की पत्नी की भी मरने की तो उम्र नहीं थी। पर वो भी तो इसे छोड़कर चली गई। तब इसने भी ज़िंदगी से मुंह नहीं मोड़ा।"

शम्स की इस बात का उन दोनों पर कुछ असर हुआ। शम्स ने आगे कहा,

"मिलना और बिछड़ना तो जीवन का हिस्सा है। किंतु जीवन तो बहती धारा है। जब तक सांस है जीवन चलता है। जब तक हम जिएं हमें जीवन से हताश नहीं होना चाहिए। सोचो तो रघु ने कितनी मेहनत की थी हमें एक साथ लाने के लिए।"

सुभाष और मयंक रघु के उस प्रयास को याद करने लगे। रघु ने दौड़ धूप करके पहले उन लोगों से संपर्क किया उसके बाद उन लोगों को एकसाथ लेकर आए। महीने में एकबार उनके इस कैफे में मिलने की व्यवस्था की। सभी दोस्त इस मीटिंग का बेसब्री से इंतज़ार करते थे। जब सब एकत्र होते थे तो माहौल में एक अलग ही रौनक आ जाती थी‌। शम्स अपने दोस्तों के दिल का हाल समझ रहे थे। उन्होंने कहा,

"पता नहीं अगली बारी हम में से किसकी हो किंतु जब तक हैं हम यूँ ही एक दूसरे का सुख दुःख बाटेंगे। पहले की तरह ही हम यहाँ मिलेंगे। हंसी मज़ाक करेंगे। हमारे मित्र को हमारी यही सच्ची श्रद्धांजली होगी।" 

यह कह कर उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। सुभाष और मयंक ने भी उनका हाथ थाम लिया। तीनों मित्रों ने एक दूसरे का हाथ थाम कर अहद किया कि वो एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे। जब तक जीवित हैं और इस हालत में हैं कि हंसी खुशी रह सकें जीना नहीं छोड़ेंगे।"

तीनों ने एक दूसरे के साथ अच्छा समय बिताया। अगली बीस तारिख को मिलानेका वादा कर तीनों अपने अपने घर चले गए।