Pida me Aanand - 7 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पीड़ा में आनंद - भाग 7 - शैली

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पीड़ा में आनंद - भाग 7 - शैली


  शैली


आज वेलेंटाइन डे था। सब किसी न किसी के साथ प्यार के इस दिन को सेलिब्रेट कर रहे थे। अमन के साथ इस दिन को मनाने वाला कोई नहीं था। कुछ देर पहले ही वह ऑफिस से लौटकर आया था। फ्रेश होकर वह अपने सरकारी बंगले के गार्डन में जाकर बैठ गया। उसके डोमेस्टिक हेल्प ने चाय की ट्रे लाकर उसके सामने रख दी। चाय बनाकर कप उसकी तरफ बढ़ा दिया। 

चाय पीते हुए वह अपने फोन पर फेसबुक देखने लगा। नोटीफिकेशंस में उसे एक ग्रुप में डाली गई एक पोस्ट के बारे में पता चला। वह उस पोस्ट पर गया और पढ़ने लगा।

यह एक कविता थी। कविता में पहले प्यार को बयां किया गया था। कमसिन उम्र के प्यार को कवियत्री ने बड़े रूमानी अंदाज़ में पेश किया था। अमन ने कविता को लाइक किया। उसके बाद फेसबुक पर बाकी की चीज़ें देखने लगा। कुछ देर सोशल मीडिया पर गुज़ारने के बाद वह अंदर आया। उसके एक कुलीग ने अपने घर बुलाया था। उसने एक छोटी सी पार्टी रखी थी। वह सोच रहा था कि क्या करे ? पार्टी में जाना उसे बहुत पसंद नहीं था। अपने काम के अलावा उसे अकेले रहना पसंद था। उसने सोचा कुछ देर आराम कर लेता है उसके बाद देखेगा।

वह अपने बेडरूम में आकर बिस्तर पर लेट गया। बिस्तर पर लेटे हुए उसके दिमाग में वेलेंटाइन डे घूमने लगा। आज दिनभर किसी न किसी रूप में प्यार और रोमांस की चर्चा सुनने को मिली थी। उसे चाय पीते हुए फेसबुक पर पढ़ी कविता की याद आई। उसमें भी प्यार का वैसा ही वर्णन था। वह अपने पहले प्यार के बारे में सोचने लगा। लेकिन कविता की तरह न तो तब उसके दिल में घंटियां बजी थीं। न ही वह खुद को हवा में उड़ता हुआ महसूस करता था। पहला प्यार तो बस चुपचाप दबे कदमों से ना जाने कब आकर उसके दिल में समा गया।

कॉलेज के दिनों में अमन ने आई.ए.एस बनने का सपना देखा था। सोचा था ग्रैजुएशन पूरा कर मन लगाकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करेगा। लेकिन कॉलेज पूरा होने पर सपनों के हवाई जहाज को सच्चाई के पथरीले रास्ते पर इमरजेंसी लैंडिग करानी पड़ी। पिता अचानक गुज़र गए। घर की ज़िम्मेदारी उसके ऊपर आ गई। माँ और छोटे भाई की उम्मीदों का वह ही एक सूरज था। उसने एक व्यापारी के दफ्तर में क्लर्क की नौकरी कर ली।

वहीं उसकी मुलाकात उससे हुई थी। उसे काम शुरू किए कोई दस दिन ही हुए थे। एक दिन जब वह ऑफिस पहुँचा तो देखा कि एक लड़की सबकी डेस्क पर चाय दे रही थी। उसने पहली बार किसी लड़की को पिअन का काम करते देखा था। इसलिए वह बड़े ध्यान से उसे चाय बांटते देख रहा था। जब वह उसकी डेस्क पर आई तो उसने पूछा,

"नई आई हो.."

"आज पहला दिन है।"

कहकर वह उसकी चाय डेस्क पर रख कर आगे बढ़ गई। दो एक दिन बाद उसे पता चला कि उसका नाम शैली है। शैली एक मेहनती लड़की थी। अपना काम मन लगा कर करती थी। जब वह काम करती थी तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान होती थी। अमन ने भी उससे दो एक बार फाइल मंगाई थी। पर इससे अधिक उससे बात नहीं हुई।

करीब चार महीने बीत गए थे। एक दिन अमन को कुछ ज़रूरी काम के लिए देर तक ऑफिस में रुकना था। बॉस ने उसे हिदायत दी थी कि कुछ भी करो। कल जब मैं आऊँ तो फाइल मेरी टेबल पर मिलनी चाहिए। साथ ही आदेश दिया कि काम पूरा होने के बाद अपने सामने शैली से दफ्तर अच्छी तरह बंद करवा कर ही जाना।

वह जल्दी जल्दी अपना काम कर रहा था। उसे अपने रुकने से परेशानी नहीं थी। पर यह खयाल की शैली को भी उसकी वजह से रुकना पड़ेगा उसे परेशान कर रहा था। वह फाइल में सर झुकाए था तभी शैली ने चाय लाकर रख दी। शैली जाने लगी तो उसने कहा,

"मेरी वजह से तुम्हें भी रुकना पड़ रहा है।"

"कोई बात नहीं..."

शैली ने मुस्कुरा कर कहा। फिर कुछ रुककर बोली,

"मैं कोई मदद करूँ।"

अमन ने कुछ आश्चर्य से उसे देखा फिर कहा,

"नहीं मैं कर लूँगा।"

उसने भी मुस्कुरा कर कहा,

"वैसे मैं एम कॉम हूँ। मुझे पता है कि आप क्या कर रहे हैं।"

इस बार अमन को और अधिक आश्चर्य हुआ। उसने सिर्फ बी कॉम किया था। अच्छा रिज़ल्ट होने के कारण उसे वह जॉब मिल गया था। लेकिन वह उससे अधिक पढ़ी थी। फिर भी पिअन का काम कर रही थी। उसकी दुविधा को भांप कर वह बोली,

"दरअसल मुझे काम की सख्त ज़रूरत थी। क्लर्क की वैकेंसी भर चुकी थी। मैंने पिअन के लिए अर्ज़ी डाल दी।"

अमन ने कहा,

"तो मैं आपका गुनहगार हूँ।"

वह मुस्कुरा दी। उसने फिर से मदद की पेशकश की। अमन ने स्वीकार कर लिया। उसकी सहायता से काम जल्दी हो गया। उसने उसके सामने दफ्तर को अच्छी तरह बंद किया। वह और शैली टहलते हुए बस स्टैंड की तरफ चल दिए। उन दोनों के बीच बातचीत होने लगी। शैली ने बताया कि पिता की बीमारी के कारण परिवार चलाने की ज़िम्मेदारी उस पर आ गई। उसने यह नौकरी कर ली। अमन ने भी उसे अपने बारे में बताया। उन दोनों को एक ही बस पकड़नी थी। वह उससे दो स्टॉप पीछे उतर गई।

उसके बाद उन दोनों में दोस्ती हो गई। दफ्तर के अलावा दोनों अक्सर ऑफिस से कुछ दूर एक पार्क में बैठ कर बातें करते थे। जीवन को लेकर उसके रवैये से अमन बहुत प्रभावित था। एक बार वह उसके घर गया था। उसने देखा था कि किन हालातों में वह एक छोटे से किराए के मकान में रहती है। उससे अधिक पढ़ी होने के बाद भी पिअन का काम करती थी। पर उसने उसे कभी भी शिकायत करते नहीं सुना था। एक दिन पार्क में बैठे हुए अमन ने उससे यही सवाल पूछ लिया,

"शैली इतनी तकलीफें हैं जीवन में पर तुम्हें ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं है ?"

उसने कुछ क्षण मेरी तरफ देखा। फिर बोली,

"अमन मेरे आसपास जितने भी लोग हैं सब तकलीफों से घिरे हैं। मैंने अक्सर उन्हें शिकायत करते देखा है। भगवान से, समाज से, एक दूसरे से। यहाँ तक की खुद से भी। पर मैंने कभी भी शिकायत की सुनवाई होते नहीं देखा। कभी तकलीफों को कम होते नहीं देखा। इसलिए मैं खुद किसी से शिकायत नहीं करती। भगवान से भी नहीं।"

"तो तुम भगवान में विश्वास नहीं करती हो ?"

"तो क्या शिकायत करना ही भगवान को मानना है ?"

उसके इस सवाल ने अमन को निरुत्तर कर दिया।

अमन ने भी अब शिकायतें करना बंद कर दिया था। उसकी तरह उसने भी तकलीफों के साथ खुश रहने की आदत डाल ली थी। शैली के आने के बाद से उसका जीवन बहुत बदल गया था। वह अब उसकी तरफ खिंचाव महसूस करने लगा था। पर वह किसी जल्दबाज़ी में नहीं पड़ना चाहता था। वह कुछ और समय चाह रहा था। ताकि वह अपने मन को पक्का कर उससे बात कर सके। 

वह अपने और शैली के रिश्ते को और अधिक परखने की कोशिश कर रहा था। इस बीच उसका जन्मदिन पड़ा। उसके जीवन में एक वही थी जिसके साथ वह अच्छा महसूस करता था। उसने शैली से कहा कि कल उसका जन्मदिन है। वह उसके साथ जन्मदिन मनाना चाहता है। कल लंच के बाद वह आधे दिन की छुट्टी ले रहा है। क्या वह भी छुट्टी लेकर उसके साथ चलेगी ? शैली ने कहा कि अगर छुट्टी मिल गई तो खुशी से चलेगी। उन दोनों ने अलग अलग कारण बता कर लंच के बाद छुट्टी मांगी। इत्तेफाक से मिल भी गई।

दोनों यूं ही पैदल सड़कें नापते रहे। एक ठेले पर पाव भाजी खाई। फिर काला खट्टा खरीद कर चूसने लगे। पर उस दिन अपने जन्मदिन पर अमन सबसे अधिक खुश था। घूमते घूमते जब दोनों थक गए तो जाकर समंदर के किनारे बैठ गए। ढलते सूरज की रौशनी शैली के चेहरे पर पड़ रही थी। ठीक उसी समय अमन को एहसास हुआ कि वह सचमुच उसे बहुत चाहता है। तभी उसने अपना बैग खोला। उसमें से गणपति की एक छोटी सी मूर्ती निकाल कर अमन की हथेली पर रख दी।

"इसे हमेशा अपने साथ रखना। तुम्हें मेरी याद दिलाते रहेंगे बप्पा।"

अमन ने बप्पा की मूर्ती को माथे से लगा लिया।

"अमन तुमने मुझे बताया था कि तुम आई.ए.एस बनना चाहते हो। तो क्या तैयारी कर रहे हो ?"

यह सवाल अमन के लिए अप्रत्याशित था। उसने ढलते सूरज की ओर देखते हुए कहा,

"घर की ज़रूरतों ने मुझे नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। अब तो सपने इस सूरज की तरह ढल रहे हैं।"

"क्यों ? कितने लोग हैं जो नौकरी करने के साथ आई.ए.एस की तैयारी करते हैं तुम भी करो।"

उसकी बात सुन कर अमन सोच में पड़ गया। दूर क्षितिज में ऊँची इमारतें दिखाई पड़ रही थीं। अमन ने शैली से कहा,

"वो दूर जो इमारतें देख रही हो। उनमें सब रईस लोग रहते हैं। जीवन में कोई कमी नहीं। क्या यह आभाव कभी हमारे जीवन से जाएगा ?"

"तुम कैसे कह सकते हो कि उनके जीवन में कोई आभाव नहीं है ?"

अमन ने कहा,

"पैसे वालों के पास किस चीज़ का आभाव ?"

फिर जवाब के लिए उसकी तरफ देखने लगा। शैली ने जवाब दिया,

"आभाव का क्या एक ही रूप होता है ?"

अमन उसकी बात का आशय नहीं समझ पाया। उसने कहा,

"क्या मतलब ?"

"देखो तुमने मेरा घर देखा है। छोटी सी जगह पर पाँच लोग रहते हैं। हमारे घर में लोग ज्यादा हैं पर जगह कम है। उन ऊँची इमारतों में बड़े बड़े फ्लैट्स हैं। जगह की कमी नहीं है। पर उनमें से कई घरों में लोग अकेलेपन से जूझ रहे होंगे। कोई साथ रहने वाला नहीं होगा। उनका अपना आभाव है।"

शैली का तर्क सुन कर अमन बहुत प्रभावित हुआ। उसने कहा,

"तुम ऐसे कैसे सोच लेती हो ? सचमुच तुम विचित्र हो।"

वह हल्के से मुस्कुरा दी। फिर अमन को देखकर बोली,

"तुमने कहा कि तुम्हारे सपने सूरज की तरह ढल रहे हैं। पर अमन सूरज तो डूब कर फिर निकल आता है।"

"हाँ ये तो सही है।"

"तो फिर गणपति बप्पा का नाम लेकर आज से ही तैयारी शुरू कर दो।"

क्षितिज में सूरज डूब रहा था। पर अमन के मन में एक नई उम्मीद जाग रही थी।

उस दिन से ही अमन ने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। कुछ किताबें खरीदीं। उन दोस्तों से जो तैयारी के लिए कोचिंग कर रहे थे मदद मांगी। रोज़ ऑफिस से घर पहुँचने के बाद वह अपनी किताबें लेकर बैठ जाता था। अब उसके जीवन का एक ही लक्ष्य था। सिविल सेवा परीक्षा पास करना। उसका उत्साह देख कर शैली उसका हौसला बढ़ाने लगी।

दोनों अभी भी अक्सर ऑफिस के पास वाले पार्क में बैठ कर बातें करते थे। शैली के साथ वक्त बिताना अमन को एक नई ऊर्जा देता था। दिन पर दिन उसके लिए अमन का प्रेम गहरा होता जा रहा था। उसने कभी कहा नहीं पर उसके हाव भाव बातचीत से उसे लगता था कि वह भी उसे बहुत प्यार करती है। शैली हमेशा कहती थी कि जिस दिन तुम आई.ए.एस ऑफिसर बन जाओगे उस दिन मैं बहुत खुश होऊँगी। अमन ने तय कर लिया था कि जिस दिन अपना सपना पूरा कर लेगा उससे अपने प्यार का इज़हार करेगा।

उसकी तरह शैली भी जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास कर रही थी। उसने भी मेहनत व लगन से बैंक पीओ की परीक्षा पास कर ली थी। अमन बहुत खुश था। उसकी पोस्टिंग उसी शहर में थी। इसलिए दोनों अब हर रविवार उसी पार्क में मिलते थे। अमन चाहता था कि शीघ्र आई.ए.एस ऑफिसर बन कर शैली से अपने मन की बात कहे।

आखिरकार तीन प्रयासों के बाद अमन ने सिविल सेवा परीक्षा पूरी तरह पास कर ली। यह सुन कर शैली बहुत खुश हुई। उसने उसे शहर के एक अच्छे रेस्त्रां में मिलने के लिए बुलाया। वह उससे पहली बार किसी ऐसी जगह पर मिल रही थी। आसमानी रंग के सादे से सलवार सूट में वह बहुत प्यारी लग रही थी। अमन ने जेब से एक चेन निकाली। उसमें दिल के आकार का एक पेंडेंट था। उसने कहा,

"शैली मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ। तुम मेरे जीवन की प्रेरणा हो। तुम ना होती तो मैं उस ऑफिस में क्लर्क का काम ही करता रहता। क्या तुम मेरी हमसफर बनोगी ?"

शैली की आँखों में आंसू आ गए। अपनी भावनाओं पर काबू कर वह बोली,

"अमन तुम्हारा हमसफर बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी। तुम कहते हो कि मैं तुम्हारी प्रेरणा हूँ। पर मेरे लिए तुम मेरे जीवन का प्रकाश हो। मैं कब से इस दिन की राह देख रही थी। अब यह चेन मुझे पहना दो।"

अमन ने वह चेन उसे पहना दी। उसने पेंडेंट को चूम लिया। दोनों रेस्त्रां में देर तक अपने भावी जीवन की बातें करते रहे। उसने अमन से कहा कि जब तक उसके भाई बहन अपने पैरों पर नहीं खड़े हो जाते हैं तब तक वह परिवार का दायित्व निभाएगी। अमन ने उसे भरोसा दिया कि वह भी इस काम में उसका सहयोग करेगा।

अपने भावी जीवन के बहुत से सपने लेकर दोनों रेस्त्रां के बाहर निकले। उन दोनों को ही ऑटो पकड़ कर घर जाना था। दोनों की दिशाएं विपरीत थीं। दोनों को अलग अलग ऑटो लेने थे। दोनों सड़क पार ऑटो स्टैंड की तरफ बढ़ने लगे। अमन अपने खयालों में खोया हुआ कुछ कदम पीछे रह गया था। तभी ज़ोर से एक आवाज़ आई। एक तेजी से आती कार ने शैली को टक्कर मार दी। वह कुछ फीट हवा में उछल कर ज़मीन पर गिर गई। अमन की आँखों के आगे अंधेरा छा गया।

अपने आप को संभाल कर अमन जमा हो गई भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा। खून से लथपथ शैली की लाश देख कर वह पागलों की तरह रोने लगा।

अमन ने अपने और अपने परिवार की भलाई के लिए आई.ए.एस की परीक्षा पास की थी। लेकिन अब वह शैली के लिए सबसे अच्छा आई.ए.एस ऑफिसर बनना चाहता था। अपने दुख पर काबू कर वह ट्रेनिंग के लिए गया। ऑफिसर बनने के बाद उसने शैली के परिवार का भी दायित्व ले लिया। 

शैली उसका पहला प्यार थी। यह प्यार पहली नज़र का नहीं था। ना ही इसमें वो रूमानियत थी जो पहले प्यार के साथ जोड़ी जाती है। शैली का प्यार किसी उन्माद की तरह उस पर नहीं छाया था। वह तो एक रौशनी की तरह उसके जीवन में आया था जिसने उसे नई राह दिखाई थी। नियति ने उससे शैली को छीन लिया था लेकिन उसका प्यार आज भी उसके दिल में धड़कन की तरह बसता था।

शैली की दी वो गणपति की मूर्ती अभी भी अमन के पास थी। जब भी उसकी याद आती थी तो वह उस मूर्ती को देख लेता था।

अमन अपने बेडरूम में गया। कबर्ड में रखी गणपति की मूर्ति को माथे से लगा लिया।