Pida me Aanand - 4 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पीड़ा में आनंद - भाग 4 - तुम्हारी मुस्कान

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पीड़ा में आनंद - भाग 4 - तुम्हारी मुस्कान


 तुम्हारी मुस्कान


अचला लगभग दौड़ती हुई लिफ्ट में दाखिल हुई। आज उसे देर हो गई थी। छुट्टी से कुछ देर पहले ही बॉस ने एक ज़रूरी काम पकड़ा दिया। रोज़ के समय से एक घंटे बाद ऑफिस से निकल पाई। लोकल के लिए दस मिनट इंतज़ार करना पड़ा। वह डर रही थी कि उसके घर पहुँचने से पहले वह निकल ना जाए।

लेकिन जिसका डर था वही हुआ। घर पहुँची तो सास ने बताया कि मनीष बस कुछ देर पहले ही निकल गया। अचला को अफसोस हुआ। उसने बैग सोफे पर डाला और खुद भी बैठ गई।

कितना चाह रही थी वह कि आज समय पर लौट सके। कुछ देर मनीष के साथ बैठ सके। ज़्यादा नहीं बस पाँच दस मिनट ही सही। उसके साथ एक प्याला चाय को आधा आधा बांट कर पी लेती। लेकिन जैसे समय उन दोनों के लिए विलेन नंबर वन बनने को बेकरार था। अपना काम निपटा कर वह निकल ही रही थी कि बॉस ने केबिन में बुला लिया।

"अचला तुम तो जानती हो कि मेरी सेक्रेटरी सारा छुट्टी पर है। एक बहुत ज़रूरी काम है। ऑफिस में तुम्हारे अलावा किसी पर भरोसा नहीं कर सकता।"

अचला के होठ ना के लिए बस खुलने ही वाले थे कि बॉस ने कहा,

"मैं तुम्हारे प्रमोशन के लिए ऊपर कोशिश कर रहा हूँ। बहुत तारीफ की है मैंने तुम्हारी।"

वैसे तो अचला जानती थी कि यह अपना काम निकलवाने के लिए फेंका गया दाना है। पर फिर भी एक हल्की सी उम्मीद की किरण उसके दिल में जागी। वह मना नहीं कर पाई। काम के चक्कर में देर हो गई। बॉस ने चलते समय सूखा सा थैंक्यू तक नहीं बोला।

'मम्मी' चिल्लाते हुए चार साल की रीमा दौड़ कर उसकी गोद में बैठ गई। अचला ने उसके दोनों गालों पर चुंबन दिया।

रीमा ने तोतली आवाज़ में टोंका,

"दो दो चुम्मी क्यों ली ?"

अचला ने आह भर कर कहा,

"दूसरी पापा की है।" 

"तो पापा को देना..."

अचला कुछ जवाब देती तभी उसकी सास चाय लेकर आई। अचला ने रीमा को गोद से उतारा। उठ कर अपनी सास के पैर छुए।

"आई....सुबह जल्दी में आशीर्वाद भी नहीं ले सकी।"

सास ने प्यार से सर पर हाथ फेर कर कहा,

"ईश्वर तुम दोनों की जोड़ी बनाए रखे। खूब सुख मिले। कभी एक दूसरे से अलग ना हो। आज पाँच साल हो गए तुझे मेरी बहू बने।"

सास ने उसे सोफे पर बैठा दिया।

"अब चाय पी ले। फिर कुछ देर में खाना लगाती हूँ।"

सास रीमा को अपने साथ ले गई। अचला ने चाय पीने के लिए प्याला उठाया। फिर उसे वापस रख कर रसोई से एक और प्याला ले आई। आधी चाय उसमें डाल दी। उसके बाद दोनों से बारी बारी एक एक घूंट पीने लगी।

कभी वो और मनीष ऐसे ही चाय को आधी आधी बांट कर पीते थे। चाय पीते हुए अपने भविष्य के सुनहरे सपने सजाते थे।

दोनों कप से चाय पीते हुए अचानक अचला की आँखें नम हो गईं। मन में हूक सी उठी।

'कहाँ चले गए वो दिन ?'

अब तो बस ज़िंदगी एक बेवजह की भाग दौड़ में उलझ गई है।

वक्त अचानक करवट बदलता है और सब कुछ बदल जाता है।

शादी करके जब अचला इस घर में आई थी तब उसके ससुर प्राइवेट बैंक की अपनी नौकरी से रिटायर हुए थे। वो लोग किराए के थोड़े बड़े मकान में रहते थे। तब मनीष की भी नई नई जॉब लगी थी।

तब कोई ज़िम्मेदारी नहीं थी। अचला शादी के पहले नौकरी करती थी। पर शादी के बाद शुरू नहीं की। वह कुछ दिन सुकून से अपनी गृहस्ती को देना चाहती थी। वह दिन में सास के साथ घर के काम करती। कभी ससुर के पास बैठ कर उनके पुराने किस्से सुनती थी। पर निगाहें घड़ी की तरफ रहती थीं। शाम होने के बाद हर आहट उसे मनीष के घर लौट कर आने की सूचना देती। पर अक्सर दरवाज़े पर किसी और को देख कर मन बुझ जाता।

मनीष जब घर लौट आता तो वह खिल उठती थी। डिनर के बाद जब सास ससुर सो जाते थे तो दोनों बिल्डिंग के टैरेस पर जाकर देर तक बातें किया करते थे।

इस तरह एक साल बीत गया। अपनी शादी की पहली सालगिरह पर अचला और मनीष बाहर घूमने गए थे। उस दिन उन्होंने खूब मज़ा किया था और तय किया था कि हर साल वो लोग शादी की सालगिरह इसी तरह से मनाया करेंगे।

पर उसके बाद समय ने अपना रंग दिखाना शुरू किया। पहले ससुर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। लंबा इलाज चला। बहुत खर्च हुआ। पर वह बच नहीं पाए।

सारी ज़िम्मेदारी अब मनीष पर आ गई। वह भी पीछे नहीं हटा। उन लोगों ने फैसला किया कि किराए के मकान में रहने की जगह अपना एक छोटा सा फ्लैट ले लें। लोन सेकर उन्होंने यह फ्लैट ले लिया।

रीमा का जन्म हो चुका था। अब अचला को लगने लगा था कि मनीष के लिए सब अकेले संभाल पाना कठिन होगा। अतः उसने भी नौकरी शुरू कर दी। रीमा को उसकी सास संभाल लेती थीं। लगा कि चलो गाड़ी पटरी पर आई।

समय जब परीक्षा लेता है तो पूरा प्रश्नपत्र आपके सामने नहीं रखता। एक एक कर प्रश्न सामने आते हैं। अचला और मनीष के सामने अचानक सबसे कठिन प्रश्न आकर खड़ा हो गया।

मनीष जिस कंपनी में काम करता था उसने अचानक अपना कारोबार दूसरी कंपनी को बेंच दिया। नतीजा यह हुआ कि नई कंपनी ने कई मुलाज़िमों को हर्जाना देकर निकाल दिया। प्रश्न खड़ा हो गया कि अब क्या होगा ? 

मनीष अचानक खड़ी हुई इस समस्या से टूट सा गया। यह सोच कर वह हताशा में घिरता जा रहा था कि वह तो बेरोज़गार हो गया है। अब वह अपनी बच्ची को अच्छा भविष्य कैसे दे पाएगा ? धीरे धीरे वह अवसाद की तरफ बढ़ रहा था।

वह वक्त अचला के लिए बहुत कठिन था। अपना काम, अपनी बच्ची और हताशा में डूबते अपने पति को संभालते हुए कई बार वह भी भावनात्मक रूप से टूटने लगती थी।

अचला मनीष को हर संभव प्रोत्साहन देने का प्रयास करती थी। उसे यह यकीन दिलाती थी कि परेशान ना हो। हिम्मत रखो सब ठीक हो जाएगा। उससे मिलने वाली प्रेरणा के कारण मनीष अपनी हताशा से उबर सका।

मनीष ने नए सिरे से काम तलाशना शुरू कर दिया। जब तक उसे कोई जॉब नहीं मिला तब तक उसने एक कोचिंग सेंटर में पढ़ाना शुरू कर दिया। मनीष को जॉब तो मिला। पर यह एक कंपनी में नाइट जॉब था। और सैलरी पहले से कम थी।

मनीष पहले की तरह दोपहर में दो घंटे कोचिंग में पढ़ाता था। वहाँ से वापस आकर कुछ देर आराम करता। उसके बाद नाइट ड्यूटी पर चला जाता।

आमदनी तो होने लगी थी। पर दोनों के पास एक दूसरे के लिए वक्त ही नहीं होता था। सुबह जब मनीष लौट कर आता था तब अचला रीमा को स्कूल भेजने के लिए तैयार कर रही होती थी। उसके बाद वह खुद ऑफिस जाने के लिए तैयार होती थी। ऑफिस के लिए दो घंटे की यात्रा करनी पड़ती थी। शाम को जब वह थकी थकाई आती तो मनीष अपने काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा होता था। उसे भी अपने काम के लिए लंबी यात्रा करनी पड़ती थी। ऐसे में दो घड़ी सुकून से साथ बैठने का मौका कम ही मिलता था। एक संडे की छुट्टी में भी घर और बाहर के बहुत से काम होते थे।

चाय पीने के बाद अचला कुछ देर आराम करने के लिए चली गई थी। पर मन अशांत था। आज उसकी शादी की पाँचवीं सालगिरह थी। वो और मनीष एक दूसरे को विश भी नहीं कर पाए थे। क्योंकि आज मनीष अपनी ड्यूटी से लौटते हुए डॉक्टर से अपनी माँ के लिए एप्वांइटमेंट लेने चला गया था। उसके जाने के बाद ही घर वापस आया होगा। उसने सोचा था कि शाम को समय पर पहुँच कर कुछ देर मनीष के साथ बिताएगी। पर वो भी नहीं हो पाया।

ऑफिस पहुँच कर अचला ने मनीष को फोन करने के बारे में सोचा था। पर फिर यह सोचकर रुक गई कि रात भर जागने के बाद वह रोज़ की तरह सोया होगा। उसे परेशान ना करूँ।

हाँ व्हाट्सऐप पर दोनों ने एक दूसरे को मैसेज ज़रूर किया था। पर आमने सामने एक दूसरे को विश करने का मौका नहीं मिला।

सास ने अचला को आवाज़ दी कि वह खाना खा ले। जब अचला खाने के लिए बैठी तो प्लेट में पूरन पोली देख कर बोली,

"पूरन तो मनीष को बहुत पसंद है आई...."

"क्यों तुझे नहीं पसंद ? जब उसे दी थी तब उसने भी कहा था कि अचला को बहुत पसंद है।"

अचला पूरन पोली खाते हुए मनीष को याद करने लगी। वह सोच रही थी कि आई ने उसके टिफिन में रखी होगी। वह जब खाएगा तो उसे याद करेगा।

डिनर के बाद अचला रीमा को लेकर सोने चली गई। कुछ देर तक रीमा ना जाने क्या क्या बताती रही। फिर थक कर सो गई। उसे सुलाने के बाद अचला भी सोने की कोशिश करने लगी। पर नींद नहीं आ रही थी।

अचला को झपकी लगी थी कि उसके फोन की घंटी बजी। उसने उठकर देखा। मनीष की वीडियो कॉल थी। वह फौरन बाहर आ गई। कॉल उठाई तो मनीष दिखाई पड़ा।

"अभी बारह बजने में पंद्रह मिनट हैं। मतलब अभी मैं तुमको विश कर सकता हूँ। शादी की सालगिरह मुबारक हो।"

मनीष को देख कर अचला खिल उठी।

"तुम्हें भी मुबारक हो।"

"अच्छा ज़रा बालकनी में जाओ।"

"क्यों ?"

"अरे जाओ तो।"

अचला बालकनी में गई। उसने मनीष से पूछा

"आ गई....अब क्या ?"

"अब तुम्हारे प्यारे कैक्टस के गमले के पीछे देखो।"

अचला ने गमले के पीछे देखा तो एक डब्बा गिफ्ट रैप किया हुआ था। अचला चहक उठी।

"वाह गिफ्ट है मेरे लिए।"

"हाँ अब अंदर जाकर खोलो।"

अचला कमरे में आई। साइड टेबल पर फोन इस तरह टिका कर रखा कि मनीष को देख सके। उसने गिफ्ट खोला तो झुमके थे।

"सो ब्यूटीफुल मनीष। थैंक्यू...."

"अभी सोने के खरीद कर देने की हैसियत नहीं है। इमीटेशन है।"

अचला ने दोनों झुमके पहने और मनीष से पूछा,

"कैसी लग रही हूँ ?"

"वैसी ही जैसी पाँच साल पहले लग रही थी।"

"अब कहाँ वैसी रह गई ?"

"मेरी नज़रों में तो हो।"

अचला लजा गई।

"सच....."

"तो क्या झूठ बोल रहा हूँ। तुम हमेशा मेरे लिए वैसी ही रहोगी जैसी शादी के समय थीं। फिर भले ही तुम्हारा चेहरा झुर्रियों से क्यों ना भर जाए।"

अचला को मनीष का यह कहना बहुत अच्छा लगा। उसने कहा,

"मेरे लिए भी तुम सदा मेरे हीरो रहोगे। पर मैं तो तुम्हारे लिए कोई गिफ्ट नहीं लाई।"

"तुम्हारे पास मेरे लिए गिफ्ट है ?"

"वो क्या ?"

"तुम्हें पता है ना कि मुझे तुममें सबसे अच्छा क्या लगता है।"

अचला ने कुछ पल सोचा फिर बोली,

"मेरी मुस्कान...."

"हाँ....तो एक बार मुस्कुरा दो। बहुत समय हो गया तुम्हें मुस्कुराते देखे।"

अचला मुस्कुरा दी। पर मुस्कुराते हुए उसकी आँखें नम हो गईं। मनीष की आँखें भी भर आईं।

"मनीष हौंसला रखो....हमारे पुराने दिन फिर आएंगे।"

"तुम्हारे साथ मुझे हौंसले की क्या कमी है। पर अब फोन काट रहा हूँ। तुमसे बात करने ऑफिस की टैरेस पर आ गया था। जाऊँ नहीं तो नीचे हल्ला मचेगा कि डेस्क छोड़ कर कहाँ चला गया। गुड नाइट....जाकर सो जाओ। मेरे और अपने दोनों के लिए सुंदर सपने देखो।"

कॉल कट गई। मनीष की तस्वीर गायब हो गई। उसे अपनी आँखों में बसाए अचला सोने चली गई।