Vakil ka Showroom - 17 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 17

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वकील का शोरूम - भाग 17

"मासिक बजट क्या बनाया है बैरिस्टर विनोद ने इन सब के लिए?"

"मेरे ख्याल से पांच लाख से कम तो क्या होगा?"

"इतने रुपए कहां से आएंगे विनोद के पास ?"

"जहां तक मैं जानती हूं, उसके पास रुपयों की कोई कमी नहीं है।"

"लेकिन इतना रुपया आया कहां से उसके पास?"

"मैं नहीं जानती।"

"शायद तुमने जानने की कोशिश ही नहीं की। कोशिश की होती तो जरूर जान जाती।"

"क्या मतलब?"

"औरत अगर किसी मर्द के साथ जिस्मानी तौर पर जुड़ जाती है तो उसके बारे में सबकुछ जान लेना उसके लिए मुश्किल नहीं होता।"

"बशर्ते कि वह जानना चाहती हो।"

"हां।"

"मगर मैं उसके बारे में क्यों जानना चाहूंगी?"

"मेरे लिए।"

"ओह!" अंजुमन बड़बड़ाई।
"अंजुमन मैं उस शख्स के बारे में हर छोटी-से-छोटी बात भी जानना चाहता हूं। अगर तुम मेरे लिए यह जानकारी जुटा सको तो मैं जिंदगी भर तुम्हारा अहसानमंद रहूंगा।"

"लेकिन तुम यह सब क्यों जानना चाहते हो?"

“क्योंकि मेरी जिंदगी का अब शायद मकसद ही यही रह

गया है।"

"क...क... क्या?"

"अगर मैं उसके बारे में सबकुछ जान गया तो शायद मुझे यूं घुट घुटकर नहीं जीना पड़ेगा। हर रात खुद को इस सुनसान बंगले में दफन नहीं करना पड़ेगा। फिर सबकुछ बदल सकता है। सबकुछ ।"

तुम सच कह रहे हो?"
हाँ 
"फिर तो मैं उसके अंतर तक घुस जाऊंगी और इतना तक जान लूंगी कि उसने अब तक कितनी सांसें लीं और आगे कितनी लेगा।”
“मैं तुम्हारा यह अहसान हर जन्म में याद रखूंगा।" "हर जन्म किसने देखा है।"

"मैं जानता हूं कि में तुम्हें यूज कर रहा हूं। तुम्हारी भावनाओं का सौदा कर रहा हूं। तुम्हारी जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा हूं। मगर क्या करूं। । मेरे पास और कोई चारा भी तो नहीं रहा है।"

“ऐसा क्यों कहते हो?" अंजुमन तड़पकर बोली- "मेरी भावनाएं, मेरी जिंदगी या मेरा शरीर क्या तुमसे बढ़कर है।" "अंजुमन तुम मेरे लिए...."

"बस ।” अंजुमन उसके मुंह पर हाथ रखकर बोली- "अब इससे ज्यादा कुछ मत कहना । तुम्हारी एक खुशी के लिए, तुम्हारे सुख की एक सांस के लिए मैं अपनी जान तक दे सकती हूं।"

और फिर । दोनों हाथों में मुंह छिपाकर फूट-फूटकर रोने लगा वह नौजवान ।
रात के लगभग 9 बजे ।

अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे जस्टिस राजेंद्र दीवान । उनके हाथों में उस दिन का एक हिंदी दैनिक समाचार-पत्र था। वे एक लेखक का विशेष कॉलम पढ़ रहे थे।

तभी पास रखे मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी। स्क्रीन पर जो नम्बर स्पार्क कर रहा था, उसे वे बखूबी पहचानते थे। उन्होंने अखबार एक ओर को उछाल दिया तथा सीधे होकर बैठ गए। फिर मोबाइल ऑन करके कान से सटा लिया

"पाय लागू मां सा ।” इसके बाद वे बोले

"जुग जुग जीओ।" दूसरी ओर से एक महिला का ममता भरा स्वर उभरा कैसा है मेरा बेटा ?" "बिल्कुल वैसा, जैसा कोई जज होता है। न कि वैसा, जैसा

कि एक बेटा होता है। आपकी चरण रज मिले अर्सा हो गया, इसलिए ज्यादा बढ़िया महसूस नही हो रहा।” तो मिलने चले आओ।

"चला तो आऊं। फिर लौटने का मन ना करेगा मां सा । दिल बड़ा दुख पाएगा लौटते वक्त । हमेशा की तरह यही इच्छा हो जाएगी कि नौकरी छोड़कर अपनी मां सा के चरणों में बस जाओ।"

कैसी बातां कर रहा है तू छोरे?" दूसरी ओर से एक मीठी सी झिड़की सुनाई दी - "भला मां सा के पास रहकर तेरे को क्या मिलेगा? तू जज है। इंसाफ की कुर्सी पर बैठा है। लोगों का भला कर । कुछ गरीबों की सून निर्दोषों को बचा अगर तेरे जैसे जज नां होंगे तो काले कोट वाले लूट लूकर खा जाएंगे गरीबों को।"

“यही बात थम पहले भी कई बार समझा चुके हो मेरे को । लेकिन मां सा। मेरो मन नहीं लग रहो यहां ।"

“मैं सब समझ री हूं। ईब तूं ब्याह करवा ले।"

“आप मजाक कर रह हैं मां सा?"
"बिल्कुल नां । या मजाक की बात नी है। बीनणी आएगी तो सब ठीक हो जाएगो ।"

"ईब कोई बीनणी नां आएगी मां सा ।” दीवान का स्वर इस बार तनिक विरोधी हो गया भूल जाओ इस बात को कोई और बात करो।"

“और के बात करूं?"

“धारी सेहतं कैसी है?" "बढ़िया। अच्छी है।"

“यहां आ जाओ। यहीं रह जाओ।” दीवान बोले- “यहां बहोत बड़ो घर है। अकेलो । वीरान ।”

“मैं नां आ सकूं।” दूसरी ओर से आवाज आई कारण तने बेरो है।"

"उस कारण को भूल जाओ मां सा।"

ना भूल सकूँ। तू नां भूल सकता, तो मैं कैसे भूल जाऊं?" दूसरी ओर से सपाट-सा स्वर उभरा तू भूल जा। मैं बी भूल जाऊंगी।"

“ठीक है। मैं कोशिश करूंगा।"

दूसरी ओर से संबंध विच्छेद हो गया।

नहीं भूल सकते।" दीवान एकाएक जबड़े भींचकर गुर्राए हम कुछ नहीं भूल सकते। कुछ भी तो नहीं भूल सकते ।”
बैरिस्टर विनोद की बांहों में किसी मछली की तरह तड़प रही थी अंजुमन । उसके शरीर पर कपड़े के नाम पर एक रेशा तक न था और ठीक यही हाल था विनोद का।

रात के लगभग 12 बज चुके थे। जिस बंगले में विनोद ने शोरूम खोल रखा था ,उसी के ही एक भाग में उसने अपना निवास बना रखा था। अंजुमन की यह तड़प पिछले आधे घंटे से जारी थी।

"प्लीज सर।" एकाएक अंजुमन तड़पकर बोली- रुकिए मत । मेरी मंजिल अभी दूर है।"