"सिर्फ समझने से क्या होता है सर।"
"सोचने-समझने से ही बड़ी-बड़ी मंजिलें पार होती हैं मिस्टर शर्मा। मैं अपने आप को जो समझता हूं, उसे बहुत जल्दी साबित भी करके दिखाऊंगा।"
"लेकिन इतनी बड़ी बिल्डिंग का आप क्या करेंगे?" "उसमें में एक बहुत बड़ा शोरूम खोलूंगा।"
"किस चीज का शोरूम ?"
कानून का।"
"शोरूम में आप बेचेंगे क्या?"
कानून की धाराएं।” युवक सपाट स्वर में बोला- “हर धारा का अलग रेट माल की गारंटी ।”
“मैं कुछ समझा नहीं।"
"मिस्टर शर्मा। मेरी नजर में इस दुनिया की सबसे महंगी चीज कानून है। इसे बेचना बहुत बड़े लाभ का सौदा है। मैं अपने शोरूम में वह हर माल रखूंगा, जिससे स दुनिया के किसी भी व्यक्ति को कानून के शिकंजे में फंसाया जा सके और किसी भी व्यक्ति को इस शिकंजे से निकाला जा सके।"
"मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा सर।" "इसमें न समझने वाली कौन-सी बात है। इस दुनिया में ऐसे
लोगों की न कभी कमी दूसर की गर्दन कानन के वि है और न होगी जो या तो में फंसाना चाहते हैं या फिर अपनी फंसी हुई गर्दन को बाहर निकालना चाहते हैं। मेरी सेवाएं ऐसे ही लोगों के लिए होंगी।"
“मैं समझ गया सर ।" दूसरी ओर से आवाज आई - “मैं जल्द ही आपके लिए बिल्डिंग का बंदोबस्त करता हूं।"
"जल्द नहीं। जल्द से जल्द ।"
"जी बहुत अच्छा ।"
युवक नै मोबाइल ऑफ करके जेब में डाल लिया। फिर वह उठ खड़ा हुआ।
इस बात से कतई अनभिज्ञ कि किसी ने उसके मुंह से निकले हर शब्द को बड़े ध्यान से सुना है।
उसकी अक्ल ही नहीं, फुर्ती भी किसी बंदर जैसी थी। वह एक पिसी हुई जीन व ढीली ढाली टी-शर्ट पहने हुए था। उसके सिर के आगे के सभी बाल उड़ चुके थे, जिससे माथा चौड़ा दिखाई दे रहा था। बंदर की तरह फुदकता हुआ यह पांच फुटा व्यक्ति न्यायालय परिसर से थोडी दूरी पर स्थित एक कॉलौनी में पहुंचा। उसने सतर्क निगाहों से इधर-उधर देखा, फिर आगे बढ़कर एक मकान की कॉलबेल बजा दी।
दरवाजा थोड़ी देर में खुला।
चौखट पर नाइट गाउन में लिपटी एक आकर्षक व
गोरी-चिट्टी युवती प्रकट हुई। उसके चेहरे को देखकर स्पष्ट
लगता था कि वह सोकर उठी थी। अलसाए हुए शरीर से वह कुछ ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसके भरे-भरे बदन से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी।
"नमस्ते मैडम ।” उसे देखते ही बंदर जैसे व्यक्ति ने हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया।
युवती की गर्दन धीरे से स्वीकृति की मुद्रा में हिली। साथ
ही वो धीरे से मुस्कराई।
"कैसे हो हनुमान?" उसने पूछा।
"एकदम फिट।"
"कैसे आना हुआ?"
“यहां बताना ठीक नहीं होगा।” हनुमान धीरे से
बोला- “जमाना बहुत खराब है।"
"अंदर आओ।" कहकर युवती चौखट से परे हट गई।
हुनमान किसी बंदर की तरह फुदकता हुआ अंदर आ गया। कुछ ही क्षणों बाद वह उस घर के ड्राइंग रूम में एक सोफे पर बैठा था। उसके ठीक सामने बैठी थी वही युवती।
"जमाना कुछ ज्यादा ही खराब चल रहा है।" हनुमान अपनी गर्दन को ऊपर नीचे हिलाते हुए बोला- "बहुत जल्द इस शहर में वह होने वाला है, जो न तो आज तक किसी ने सोचा और न ही किसी ने सुना।"
“भला ऐसा भी क्या होने वाला है?"
"एक शोरूम खोला जा रहा है, जिसमें कानून को बेचा जाएगा। हर धारा का अलग रेट फटटे में टांग फंसाने के अलग और बाहर निकालने के अलग । माल की गारंटी, रेट वाजिब ।”
सुनकर युवती आश्चर्य से उछल पड़ी। उसकी आंखें फैल गई तथा वह भाड़ की तरह मुंह फाड़े हनुमान की ओर देखने लगी।
“ये तू क्या कह रहा है?" फिर वह बोली- "भला ऐसा भी कहीं होता है?"
“होता होगा। तभी तो वह करेगा ऐसा ।”
"कौन करेगा?"
"बैरिस्टर विनोद ।"
"वह कौन हुआ?"
हनुमान ने बताया। साथ ही बताया उस एक-एक शब्द के बारे में, जो उसने बैरिस्टर विनोद के मुंह से मोबाइल पर बातें करते हुए सुना था।
सुनकर स्तब्ध रह गई युवती। उसे अपने कानों पर सहसा यकीन ही नहीं हुआ।
“ऐसा नहीं हो सकता।" फिर वह जोर-जोर से इंकार में गर्दन हिलाती हुई बोली- "ऐसा हो ही नहीं सकता।”
"क्यों नहीं हो सकता?" हनुमान ने पूछा।
"क्योंकि यहां जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में एक ऐसा शख्स रहता है, जिसे कानून के खिलाफ काम करने वालों से सख्त नफरत है।"
“ये आप कौन-सी नई बात कह रही हैं।" हनुमान हंसकर बोला- - "भला कानून के रखवाले, कानून के खिलाफ काम करने वाले से नफरत कैसे नहीं करेंगे।"
"लेकिन जस्टिस राजेंद्र दीवान इस मामले में बहुत सख्त हैं।" "मैडम । सख्त होने का मतलब यह हरगिज नहीं है कि वे कानून को अपने हाथ में लेंगे। उनका काम है सुबूतों और गवाहों की बिनाह पर फैसला करना।
"फिर भी...
"फिर भी ये कि जो आदमी लाखों रुपए खर्च करके कानून का शो-रूम खोल रहा है, वह कोई बेवकूफ तो होगा नहीं। वह जस्टिस दीवान के बारे में सबकुछ जानता होगा और कानून से बचने का उसने पुख्ता प्रबंध कर रखा होगा।"
युवती के चेहरे पर गहरी सोच के भाव उभर आए। खैर जो भी है।" तभी हुनमान एक गहरी सांस लेकर
बोला- हम तो ठहरे खबरची। खबर देनी थी, सो दे दी। अब... " शेष वाक्य अधरा छोड़ उसने युवती के सामने किसी भिखारी की तरह हाथ फैला दिया
युवती की गर्दन धीरे से सहमति में हिली। फिर उसने एक खूंटी पर टंगा अपना पर्स उतारा तथा उसमें से एक सौ का नोट निकालकर हनुमान के हाथ पर रख दिया।
खबर एक्सक्लूसिव रहनी चाहिए।" फिर वह बोली- "किसी और को इस बारे में कुछ न बताना ।”
"एक और ।” हनुमान तपाक से बोला । “क... क्या?"
"सिर्फ एक नोट और खबर को एक्सक्लूसिव रखने के लिए ।”
युवती ने चुपचाप एक और नोट उसकी हथेली पर रख दिया। हनुमान ने दोनों नोट अपनी टी-शर्ट की जेब के हवाले किए, फिर उठ खड़ा हुआ
"इस मामले पर कड़ी नजर रखना।” फिर युवती बोली- फीस की परवाह मत करना।"
"हनुमान ऐसी जगह कभी नहीं जाया करता, जहां फीस की परवाह करनी पड़े और ऐसी जगह भी नहीं जाया करता, जहां फीस का मोल भाव किया जाता हो।"
"मैं जानती हूं।"