Vakil ka Showroom - 1 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 1

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वकील का शोरूम - भाग 1

न्यायालय परिसर का हॉल खचाखच भरा था।

वहां वकीलों के अलावा उनके मुंशी, क्लाइंट्स व अन्य कामों से आने-जाने वाले लोग मौजूद थे और वहीं एक अलग कोने में बैठा था एक नौजवान वकील ।

बदन पर सफेद पेंट व कमीज तथा ऊपर काली जैकेट शरीर किसी फिल्मी अभिनेता जैसा खूबसूरत । बड़ी-बड़ी आँखें व क्लीन शेव्ड चमकता दमकता हुआ चेहरा ।

वह क चुपचाप बैठा था।

न तो उसके पास कोई मुंशी बैठा था और न ही कोई क्लाइंट । वह होंठों पर मुस्कराहट बिखेरे हर आने-जाने वाले व्यक्ति को ध्यानपूर्वक देख रहा था।

तभी वहां किसी गेंद की तरह लुढ़कता हु एक सरदार आ पहुंचा। उसकी उम्र 40 वर्ष से कुछ अधिक थी। सिर पर ढीली-ढाली पगड़ी थी तथा तोंद बहुत ज्यादा बाहर निकली हुई थी।

दाढ़ी मूंछें अस्त-व्यस्त होने के कारण वह किसी फकीर जैसा लग रहा था।

"ओए सत श्री अकाल नए वकील ।” वह उस युवक के पास रखी कुर्सी पर ढेर होते हुए बोला- "सुणा क्या हाल

"आपकी तारीफ ?" युवक ने पूछा।

सुनकर सरदार यूं चि का जैसे किसी ततैये ने काट खाया हो। वह आंखें फाड फाडकर युवक की ओर देखने लगा।

"ओए!" फिर वह बोला- तू सरदार टुच्चा सिंह को नई

जाणतां । हद हो गई ये तो नाक कट गई मेरी।" "ओह! तो आपका नाम टुच्चा सिंह है। खैर, आप करते क्या है?"

करता क्या हैं? ओए इस कचहरी में क्या कोई आलू प्याज बचणे आता है? छोले-भठूरे का खोमचा लगाणे आता है? गोलगप्पे या दही-बड़ों की रेहडी लगाणे आता है?"

"आप इन्हीं में से कोई काम करते हैं?"

ऐसे काम मेरी सात पृश्तों में किसी ने नई किए नए वकील ! सब बड़डी-बड्डी पोस्टों पर अफसर बणे बैठे हैं। मैं उनसे भी आगे हूँ। वकील हूं। बहुत बड्डा वकील तीन सौ दो, तीन सौ सात, तीन सौ चार बी. एक सौ अठानवे ए, तीन सौ छियत्तर, सब केस लड़ता हूं, बड़े तगड़े तगड़े क्लाइंट हैं मेरे ।"

“अच्छा ?"

क्या अच्छा?" सरदार आंखें निकालकर बोला- सरदार दुच्चा सिंह की यहां बड़ी इज्जत है। यहां के सब वकील, यहां तक कि जज, मजिस्ट्रेट भी मेरी बड़ी इज्जत करते हैं।"

"बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर ।”

“ठीक है। ठीक है।” सरदार बुरा सा मुंह बनाकर

बोला- ये बता, यहां आए तुझे कितने दिन हो गए?"

यही कोई तेरह चौदह ।”

कोई केस फंसा ?”

"अभी तक तो नहीं।"

कैसे फंसेगा ? सरदार टूच्चा सिंह से ही जब तेरी जान-पहचान नहीं है तो कहाँ से आएंगे केस?"

"अब तो जान पहचान हो ही गई है।”

हां । अब तो हो गई है। अब तेरे मैं फिक्र करणे की जरूरत भी क्या है। बड़े केस आते हैं मेरे पास । अब इतना टाइम कहां

होता है मेरे पास । कुछ केस मैं तेरे पास भेज दिया करूंगा।" ये तो बड़ी मेहरबानी है आपकी ।"
"मेहरबानी किस बात की। ये धंधा है भई नए वकील इस हाथ दे, उस हाथ ले वाली बात है।" क्या मतलब?"

मतलब फिफ्टी-फिफ्टी। आधा तेरा और आधा मेरा मुगी मैं तेरे को दूंगा। उसको हलाल तू करेगा। गोश्त जितना भी निकलेगा, आधा-आधा कर लेंगे। "ओह तो ये बात है।" युवक के होठों पर मुस्कराहट गहरी

हो गई। कौण सी गलत बात है नए वकील दुनिया समझौतों से चलती है वीर मेरे । कुछ पाणे के लिए कुछ खोणा भी पड़ता है।"

"लेकिन मैंने आज तक कभी किसी मामले में समझौता नहीं किया।" युवक अपनी नजरें सरदार के चेहरे पर गडाकर बोला- "अपनी बाजी खुद खेलता आया हूं। जो कुछ भी किया है, अपने दम पर किया है।"

ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करने वाले यहां बहुत आए।" सरदार अकड़कर बोला- “मगर दो दिन में ही उनकी अक्कड छु-मंतर हो गई। मेरे कदमों पर गिरकर नाक रगड़नी पड़ी बेचारों को। तब कहीं जाकर कुछ केस मिले।"

वे सब नालायक रहे होंगे

"और तू लायक है?"

"इसका पता आने वाले दिनों में सबको लग जाएगा।" युवक

बदस्तूर मुस्कराते हुए बोला- "आप परेशान न हों।" "ओए। मेरे को क्या जरूरत है परेशान होणे की। तू अभी

बच्चा है। अक्ल का कच्चा है। यहां का हिसाब-किताब नहीं जाणता कोई बात नहीं। अगर परेशानी महसूस करे, तो बेहिचक चले आणा । टूच्चा सिंह के दरवाजे हर वक्त खुले मिलेंगे।"

"मेरा आज तक का रिकॉर्ड यह कहता है कि मैं कभी किसी के दरवाजे पर चलकर नहीं गया। हमेशा दूसरे चलकर ही मेरे दरवाजे पर आए हैं।"

सरदार बुरा सा मुंह बनाकर उठ खड़ा हुआ, फिर बोला- चलता हूं नए वकील इतणी बेजती आज तक किसी ने नई की। जिसके पास भी गया हूं, बिना चा लस्सी के नहीं आया। तू पहला बंदा है, जिसने मेरे को पाणी तक नहीं पूछा।

“मैं यहां किसी की मेहमाननवाजी के लिए नहीं बैठा।" सरदार फिर कुछ न सुन सका। वह तेजी से पलटा तथा

किसी गेंद की तरह लुढ़कता हुआ वहां से विदा हो गया।

उसके जाने के बाद युवक ने जेब से अपना मोबाइल निकाला तथा एक नम्बर मिलाकर अपने कान से सटा लिया। बैरिस्टर विनोद बोल रहा हूं।” फिर सम्पर्क स्थापित होते

ही वह बोला- "मेरे लिए किसी चेम्बर का बंदोबस्त हुआ?" सॉरी सर ।" दूसरी ओर से आवाज आईकोर्ट कॉम्प्लेक्स के सभी चैम्बर फुल हैं। मैंने कई वकीलों से बात की है, मगर कोई भी किसी भी कीमत पर अपना चैम्बर देने को तैयार नहीं ।”

कोई बात नहीं। आप यूं कीजिए कोर्ट रोड पर मेरे लिए कोई बिल्डिंग देखिए। पैसों की परवाह मत कीजिए ।” युवक बोला । "इस रोड पर सभी लैंड लॉर्ड रहते हैं सर कोई अपनी बिल्डिंग या उसका कोई हिस्सा किराए पर नहीं देगा।"

"मैं किराए पर कोई बिल्डिंग लेना भी नहीं चाहता। आप बिल्डिंग को खरीदने की बात कीजिए। किराए की बिल्डिंग में मेरा काम भी नहीं चलने वाला।"

“लेकिन सर... "

देखिए मिस्टर शर्मा । मैंने आपसे पहले ही कहा है कि पैसों की परवाह बिल्कुल नहीं करनी । जो भी बिल्डिंग का मार्केट भाव हो, उससे दुगनी तिगुनी कीमत देने के लिए भी मैं तैयार हूं।" लेकिन सर। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आप आखिर करना क्या चाहते हैं? भला किसलिए आप छोटा-मोटा ऑफिस न लेकर एक बहुत बड़ी बिल्डिंग खरीदना चाहते हैं। इस बात को अच्छी तरह जानते हुए कि इतने दिग्गज वकीलों के इस शहर में होते हुए आप पैर नहीं जमा पाएंगे।"

मैं आपकी बात का खंडन करता हूं मिस्टर शर्मा । मैं अपने आपको शहर के दिग्गज वकीलों का बाप समझता हूं।"