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"और तब अपने हाथों से बनाये हुए कागज़ों को मल्लिका ने कालिदास को सौंपते हुए पूँछा..
"क्या तुम मेरे इन बनाये हुए कागज़ों पर अपने जीवन का सबसे उत्कृष्ट ग्रंथ लिखोगे..कालिदास?कालिदास हरेक कागज़ को पलट-पलट कर देखने लगे..उनकी आँखो में आँसू भर आये..और भावुक होते हुए उन्होंने मल्लिका को उत्तर दिया
" मल्लिका, तुम कहती हो कि मैं इन कागजों पर सबसे उत्कृष्ट ग्रंथ लिखूं...देखो.. हर कागज़ पर तुम्हारे नाखून खुरचने के और आंसुओ के सूख चुके निशान हैं..जो निश्चित ही बहुत याद आने पर भी मुझे ना देख पाने की तुम्हारी बेबसी को बयान करते हैं.....इन कागज़ों पर तो पहले ही तुम्हारे द्वारा सबसे महान ग्रंथ लिखा जा चुका है ...अरे मैं तो क्या ...दुनिया का कितना भी बड़ा लेखक अब इन पर इससे बड़ा ग्रंथ नहीं लिख सकता"
गौतम ने ये बोलकर अपनी आँखें बंद कर ली...सारे विद्यार्थी एक दम चुप हो गए.. लगभग सारे ही बच्चे गौतम से प्रभावित दिख रहे थे..तभी गौतम की क्लास के दरवाजे पर खड़े माधव ने तालियाँ बजाना शुरू कर दिया और फिर बच्चों ने भी उसका खुलकर साथ दिया तालियां बजाने में ....गौतम ने चौंककर आँखे खोल दी।
"अरे...माधव जी.?"वाह ! गौतम मान गया भई ...बहुत बढ़िया...आज पहली बार मुझे अफसोस हुआ खुद पर..." माधव प्रभावित होकर बोला
"अफसोस?" अपनी किताब उठाये गौतम उसकी ओर चला आया
"हाँ भाई...मुश्किल से दो मिनट सुना तुम्हें ..उसी में लगा ..कि विषय के रूप में हिंदी को चुनना चाहिए था ना कि इकोनॉमिक्स को " माधव ने हंस कर कहा तो गौतम भी हँस दिया...
"अरे ये तो बच्चों की रुचि और बढ़ाने के लिए आज एक बहुत प्रसिद्ध नाटक सुना रहा था उन्हें....खैर छोड़ो इसे...ये बताओ अब तबियत कैसी है ...?"
"तबियत ...बढ़िया..तुम्हें कैसे पता लगा?" माधव ने पूँछा फिर खुद ही ये सोचते हुए..कि रमा ने बताया होगा वो सिर हिलाते हुए बोला
" अच्छा ...अच्छा...हाँ...अब ठीक हूँ..शरीर से भी ...और सोच से भी"
"समझा नहीं...?" गौतम बोला
"अरे बस्स यूँ ही..बाहर आओ जरा, बहुत जरूरी बात करनी है तुमसे"
"ठीक है..(फिर बच्चों से) सुनो..मेघा तुम लड़कियों को और बबलू तुम लड़को को..सम्भालना जरा ..देखो कोई भी शोर मुझे सुनाई ना पड़े....मैं बस्स अभी आया" गौतम ने बच्चों को हिदायत दी और दोनों कॉलेज की लाइब्रेरी में आकर बैठ गए
"कहिए.."
"अss..हम्म ...वो .." माधव को समझ नहीं आ रहा था कैसे और कहाँ से शुरू करे
"क्या हुआ माधव जी ?"
"नहीं कुछ नहीं..(माधव को लगा वो कह नहीं पायेगा तो उसने सहारे के लिए एक सिगरेट जला ली)
"माधव जी ...मैंने आज से पहले आपको सिगरेट पीते हुए कभी नहीं देखा" गौतम आश्चर्य से बोला
"..हम्म..ऐसी ही कभी -काभी खैर ! छोड़ो इसे... ये बताओ ...तुम रमा को पसंद करते हो ना? माधव के ये कहते ही गौतम कुर्सी से उठ गया
"आपको किसने बताया...?" गौतम ने आश्चर्य से पूँछा
"किसने बताया वो छोड़ो...बस ये बताओ कि पसन्द करते हो ना उसे..?"
"ज जी ..." गौतम ने हकला सा मुसकुराते हुए कहा तो माधव के लिए उसे देखना दूभर हो गया उसने जल्दी से अपनी नजरें दूसरी तरफ करते हुए कहा,
"हम्म..ठीक है...तुम तो पसंद करते ही हो लेकिन तुम्हारे माता-पिता ने तो रमा को देखा नहीं है..एक औपचारिकता तो पूरी करनी ही होगी...एक काम करो कल अपने माता-पिता के साथ घर आ जाओ..सब ठीक रहा तो वहीं सगाई कर देंगे.." माधव जबर्दस्ती मुस्कुराते हुए बोला
"क्या? लेकिन माधव जी...वो रमा..."
"रमा क्या...?"
"वो ...क्या आपने उनसे बात की इस बारे में?"
"रमा ...वो भला क्या एतराज करेगी जब पसन्द करती है तुम्हें"
"...लेकि" गौतम ने कुछ कहना चाहां
"अब कोई लेकिन -वेकिन नहीं...बस अब जो बात होगी ...कल घर पर ही होगी..ठीक है" माधव ने गौतम के कंधे पर हाथ रखा और कॉलेज से निकल आया।
***
"सुन वंशी...मैं क्या कहती हूँ...पकौड़ी भी तल लेना...और उनके सामने तू मत बोलना..इतनी बड़-बड़ करता है ना जाने क्या कह दे" सुशीला ने जब वंशी को हिदायत दी तो उसने बदले में उन्हें घूरकर देखा और पूरी तरह अनसुना अर दिया!
सुशीला आसमान की ओर देखते हुए बोलीं " ना जाने कहाँ रह गयी..सूरज बिल्कुल ठीक इसी जगह होता है जब लौटती है... वंशी जरा घड़ी देखकर बता तो कितने बजे हैं"
..वंशी ने कोई जवाब नहीं दिया..और कपड़े धोता रहा..फिर बाहर निकल कर कपड़े सूखने डालने लगा!
"कितनी बार बता चुकी हूँ तुझे...कि कपड़ों के मुँह धूप की तरफ रखा कर...लेकिन नहीं...और ये कपड़े यहाँ क्यों डाल रहा है" वो खीजते हुए बोलीं
"क्योंकि कपड़े गीले है बुsss...आ.. जी" वंशी ने भी खीजते हुए जवाब दिया!
"अरे कमअक्ल....मुझे भी दिखता हैं कि गीले हैं ...तुझे नहीं पता कि रमा को लड़केवाले देखने आ रहे हैं...यहीं आंगन में बैठेंगें..और तू है कि..."
"हाँ..हॉं...मत चिल्लाईये ...लिए जाता हूँ ऊपर.."बुआ बात पूरी करतीं उससे पहले ही वंशी ने उन्हें टोका और कपड़ें समेटने लगा
"मैं चिल्लाती हूँ तुझ पर...हें? बड़े बूढ़ों से बात करने की तमीज़ नहीं है तुझे"
"ऐसे होते हैं बढ़े -बूढ़े?"
"अरे...तो और कैसे होते हैं?" वो कमर पर एक हाथ रखे बिल्कुल वंशी के पास जाकर खड़ी हो गयीं
"बढ़े -बूढ़े वो होते हैं जो अपनी खुशियाँ तक बच्चों पर न्यौछावर कर दें...ये नहीं कि बच्चों की खुशियां ही निगलने पर उतारू हो जाएं"
वंशी ने कपड़ों से भरी बाल्टी उठायी और सीढ़ियां चढ़ते हुए ग़ुस्से में बोला, सुशीला की सच्चाई जानने के बाद वो उनसे झुंझलाया हुआ था ...वंशी से ये बात सुनकर सुशीला का पारा चढ़ गया..सीढ़ियों के पास आकर वो गुस्से में चीखते हुए बोलीं"अरे ऐसी कौन सी खुशी निगल ली मैंने तेरी....देखो तो कितना बदतमीज़ है...आने दे आज माधव को..ना तेरे हाथ- पैर तुड़वाये तो कहना"
"हुम्म" सिर झटकता हुआ वंशी छत पर आ गया"नहीं डालूँगा कोई भी कपड़ा धूप की ओर मुंह करके मेरी मर्ज़ी..." कपड़े डालते हुए वंशी बुदबुदाया और गुस्से में हाफ़तीं सुशीला भुनभनाई "आने ही दो आज माधव को" और अपने सिर पर हाथ रखकर आँगन में बैठ गयी।
थोड़ी देर बाददरवाजे पर खटक होते ही सुशीला लगभग दौड़ती सी दरवाजे की ओर लपकीं
"अरे माधव...आ गए..."
"हाँ बुआ जी...मिठाई की दुकान बंद थी ..बाजार जाना पड़ा सारी तैयारी हो चुकी ना...कुछ लाना तो नहीं ना...वंशी कहाँ है" माधव सुशीला जी को मिठाई का डब्बा पकड़ाता हुआ बोला
"वंशी ने आज तो सारी हदें ही पार कर दीं बेटा" सुशीला गुस्से में बोली
"क्या...क्या किया वंशी ने?"
"मुझसे...बदजुबानी करता है..मजाल है कोई बात मान ले...कुछ भी कहते रहो कोई फर्क नहीं पड़ता इस लड़के पर" सुशीला नाराजगी में अपनी चारपाई पर बैठ गईं।
और वंशी ने जब माधव को देखा तो रसोई में आकर उसके लिए चाय बनाने लगा
"क्या काम है ..मुझे बताइये मैं करता हूँ" माधव बोला
"देख ..सीख कुछ..कितने सालों से साथ रहता है फिर भी कुछ नहीं सीखा...माधव.मालिक होकर भी कितना झुका हुआ है...और एक तू है नौकर होकर भी..." सुशीला वंशी की ओर देखती हुई बोलीं
"बु...आ जी...ऐसा मत कहिए! वंशी नौकर नहीं है...बल्कि प्राणदाता है मेरा..." सुशीला को टोकता हुआ माधव बोला
"हें..बेटा तभी तो इसका दिमाग इतना खराब है ...तुमने जो सिर पर चढ़ा रखा है इसे"
"बुआ..मेरा जीवन वंशी ने दो बार बचाया है..मेरी कहाँ इतनी कुव्वत जो इसे रख सकूँ...बल्कि मैं तो शुक्र गुजार हूँ कि ये मेरे पास है!..मेरे लिए बंशी मेरा पूरा परिवार है बुआ जी!जब वंशी से जब कोई ऊँची आवाज में बात करता है तो मैं अपमानित मैं महसूस करता हूँ ...इसलिए बिनती है आपसे मेरी..जो काम वंशी ना करे मुझसे कहिये.. मैं करूँगा...लेकिन इससे कुछ मत कहिए.." माधव ने हाथ जोड़ कर कहा तो
"अरे बेटा..." सुशीला अचकचा कर चारपायी से उठ कर खड़ी हो गईं...उन्हें समझ ना आए कि क्या कहें, सामने रसोई में बैठे वंशी के चेहरे पर एक खुशी और गर्व मिश्रित मुस्कान फैल गयी।
"भईया ...आपकी चाय ऊपर आपके कमरे में लिए जाता हूँ...(फिर बुदबुदा कर) मेरी शिकायत करेंगी सो भी भईया से...हुम्म"
"बुआ जी ...आपने रमा को बता दिया ना"? माधव ने पूँछा
"नहीं...आ जायेगी तब बता दूँगी"
"क्या...आज लड़के वाले आ रहे हैं..आपने अब तक बताया नहीं" माधव ने चौंकते हुए कहा
"गौतम कौन सा अनजान है उसके लिए...पहले से बता देती तो दुनियाभर की बातें बनाती" सुशीला मुस्कुरा कर बोलीं तो माधव ने कहा" जैसा आप ठीक समझें"
वो अपने कमरे में चला गया.."अब वो तुम्हें कभी नहीं डाटेंगी.." माधव ने वंशी को देखते ही कहा...जवाब में वंशी बस मुस्कुरा गया।
"सोचता हूँ कॉलेज ना जाकर गलती कर दी ...खैर चाय पी कर चला जाऊंगा कहीं...ये सब नहीं देख पाऊँगा मैं.." माधव ने चाय का घूट भरते हुए कहा...वंशी चुपचाप खड़ा रहा और चाय पीकर माधव बाहर चला गया।
उसके कुछ देर बाद ही रमा घर आ गयी।
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"जल्दी से तैयार हो जा" सुशीला, रमा से बोलीं
"क्यों ..कहीं जाना है क्या "..रमा हसँकर बोलीं
"जाना तो है...लेकिन उसमें थोड़ा समय है....आज तो बस तुझे देखने आ रहे हैं"
"क्या..कौन देखने आ रहा है मुझे...और किसलिए?" रमा आश्चर्य से बोली...
"शादी के लिए...और किसलिए..." सुशीला मुस्कुराते हुए बोलीं
"क्या...मेरी शादी..ऐसे अचानक से..मुझे बताया तक नहीं.. " रमा चौंकते हुए बोली
"सब माधव ने तय किया है...लड़का जब सामने आएगा तो चौंक जाएगी तू"
"क्या...अरे बुआ बन्द करो पहेलियां बुझाना...और सब साफ -साफ बताओ"
"देख लड़का माधव के साथ ही है कॉलेज में...अच्छा भला सा..फिर माधव का देखा भाला है...समय रहते शादी हो जाये..तो मेरी भी चिंता खत्म हो.."
"लेकिन अचानक से ..."
"अरे क्या अचानक...पहले ही बहुत देर हो गयी है..फिर माधव ही चाहता है जल्दी से तेरी शादी हो ...और उसकी जिम्मेदारी खत्म हो...बेचारा बड़ा भला है उसी ने सब तय किया है."
"क्या...सब माधव ने तय किया है" रमा डूबे स्वर में बोली, उसे यकीन नहीं हो रहा था, तो क्या अक्सर उसका मन जो उससे कहता था कि वो और बुया एक वजन हं माधब के लिए वो आशंका सही ही थी, लेकिन उसका क्या जो उसके मन ने महसूस किया था? क्या महज भ्रम था उसका? ऐसा कैसे हो सकता है ?
"अब भला ही तो सोचता है वो.... जब तक तू इस घर मे है...भला माधव कैसे शादी कर सकता है...तेरी शादी हो जाये ...तब तो माधव अपनी शादी के बारे में सोचे"
सुशीला उसे चुप देखकर बोलीं
"क्या ...ऐसा कहा क्या उन्होंने ?"
"तो और मैं क्या झूठ बोलती हूँ ? ..पहले ही वो इतना कर रहा है हमारे लिए...बेचारा...क्या उसकी बात टालनी चाहिए हमें...बोल मुझमें तो नहीं है इतनी हिम्मत"
"नहीं...नहीं...उनकी बात टालने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती...लेकिन बुआ...वो" रमा के आँखों से आँसू निकलने लगे
"बस्स..बस्स ..ये ऑंसू विदाई के लिए बचा कर रख...जा तैयार हो जा" सुशीला ने उसके आँसू पोछते हुए कहा
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वंशी माधव के कमरे में बैठा था ...'क्या करुं कसम नहीं तोड़ सकता...कुछ बता नहीं सकता ...(फिर अचानक खुश होकर). ..बोल नहीं सकता ...लेकिन जता तो सकता हूँ ..दिखा तो सकता हूँ...
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"बीबी जी...मेरी मदद कीजिये ...जल्दी ऊपर आइए " वंशी चीख कर बोला
"क्या हुआ भैया..." कहती हुई रमा छत पर दौड़ गयी।
"ये कम्बख्त भी चैन नहीं लेने देता" सुशीला बुदबुदाईजब रमा ऊपर पहुँची तो देखा माधव का पूरा कमरा बिखरा पड़ा था। और वंशी डरा हुआ एक कोने में खड़ा था।
"ये क्या है...किसने किया" रमा घबराई सी बोली
”देखो ना बीबी जी मुझसे कह कर गए हैं..कि कोई चूड़ी रखने का डिब्बा है उसे ढूंढो...अब मैं क्या करूँ..कुछ ढूँढना पड़ेगा तो गंदगी तो होगी ही ना"
"हम्म.."
"क्या हुम्म बीबी जी...मदद करो ना..."
"उस दिन कमरा साफ किया था...देखा ना कितने नाराज हुए थे"
"बस्स इतनी से स्वार्थ की वजह से मेरी मदद नहीं करेंगी आप....चाहें मुझ पर कितनी भी डाँट पड़ जाए" वंशी बनावटी नाराजगी से बोला
"अरे नहीं ...ये क्या कह रहे हैं आप...मैं मदद करती हूँ..बस्स आप ये मत कहना मैंने मदद की "
"ठीक है बीबी जी..." कहते हुए माधव जल्दी-जल्दी सामान रखने लगा..और मौका देखते ही उसने चुपके से चूड़ीकेस रमा के पैर के पास रख दिया।रमा आलमारी में समान रख कर पलटी और पैर चूड़ीकेस पर जा लगा।
"ये देखिए वंशी भैया...ये है क्या....(हाथ मे उठाकर) ओह.ये तो बहुत सुंदर है"
"क्या पता यही ढूंढ़ने को कह गए हैं ...या कोई और"
"अरे यही चुड़िकेस होता है.. किसका है वैसे ये वंशी भैया?"वो बॉक्स पर हाथ फेरते हुए बोली
"क्या पता...जरा खोलकर देखना बीबी जी..पता तो लगे ऎसा भी क्या खज़ाना है इसके अंदर जो ना मिलने पर बौखला गए "
"ऐसे कैसे...किसी की चीज़ नहीं खोलते"
"तो कौन सा ये भईया का है..जरूर किसी रिश्तेदार का होगा..और खाली ही लगता है...खोलिए तो इसे..
"नहीं भैया..ये ठीक नहीं है"
"आपको माधव भईया की कसम ..." रमा को उठते देख वंशी ने उसे कसम दे दी।
"आप भी.." कहते हुए रमा ने चुड़ीबॉक्स खोल दिया.........
."ये....ये तो मेरी चूड़ी है....मेरी चूड़ी...रमा टूटी चूड़ी का टुकड़ा आँखों के सामने लाते हुए बुदबुदाई..उसका चेहरा फक्क हो गया...नहीं...नहीं ये कैसे हो सकता है...फिर उसने साथ ही रखा मुड़ा हुआ कागज़ खोला और पढने लगी...
"तुम्हें चाहना।जैसे ईश्वर की स्तुति करने जैसा है
'जिसे मैं अपने आंतरिक भाव सेमहसूस कर सकता हूं
"प्रदर्शित नही ...
'तुम मेरे लिए ऐसे होजैसे सावन में ठंडी पवन
'जैसे चल रहा हो शिवशक्ति विवाह का हवन
'जैसे फैला पड़ा होदसों दिशाओं में अमन
'तुम रमा(लक्ष्मी) हो मेरी
'मैं तुम्हारा भावन(विष्णु)
'लेकिन तुलसी को शालिग्राम सेविरह के उत्पीड़न का
'जो श्राप है भोगा कान्हा नेओ रमा!!
'अब मैं हूं कान्हा और तुम हो राधा
'पूर्ण होकर भी लगता है जैसे भटक रहा हूं आ..धा ..।।"
पूरी कविता पढ़ कर रमा के हाथ कांपने लगे.... उसने अपने दोनों हाथ रेलगाड़ी सी गति से दौड़ते दिल पर रखे और उसकी डबडबायी आँखे बहने लगीं...वंशी ने ये देखकर मुस्कुराते हुए आसमान की ओर देखा और दोंनो हाथ जोड़ते हुए बुदबुदाया...
"हे महादेव"........
..क्रमशः