Rishte Ka Bandh -part -5 in Hindi Love Stories by sonal johari books and stories PDF | रिश्ते का बांध - भाग 5

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रिश्ते का बांध - भाग 5

"तेरी इतनी हिम्मत...जानता है तू कौन हूँ मैं " थप्पड़ पड़ने से जमीन पर गिरा, भूरे चीखा
"तू जो कोई भी हो...रमा का हाथ पकड़ने की हिम्मत कैसे हुई तेरी" माधव ने भी तेज आवाज में कहा, इतने में भूरे के साथ आये दोनों आदमी माधव की ओर लपके, तो भूरे ने उन्हें हाथ के इशारे से रोक दिया...और अपने कपड़े झाड़ते हुए उठ गया।
"मेरी छोड़...पहले तू बता ...तू कौन है इसका?" भूरे ने उँगली को माधव की ओर करते हुए पूँछा, तो माधव ने रमा की ओर देखा जो अपनी साड़ी का पल्लू पकड़कर सिर झुकाए रोये जा रही थी...और उसे रोते देख माधव का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया।
"बोल ना...मेरी तो होने वाली बीबी है ये ...मेरा व्याह तय है इसके साथ" जब भूरे ने ये कहा तो माधव सुनकर सन्न रह गया। और उसे फौरन बुआ की बात याद आ गयी.. इतने में भूरे फिर रमा की ओर बढ़ा तो
माधव को कोई प्रतिक्रिया ना करते देख वंशी ने भूरे को पीछे से पकड़ लिया, "बीबी जी अकेली नहीं है.....मैं भी देखता हूँ ...कि कौन डरा धमका कर जबर्दस्ती उनसे शादी कर लेगा... व्याह करेगा बीबी जी से सो भी तू...ये ले.." कहते -कहते वंशी ने भूरे को पटकनी दे दी। भूरे के साथ आये दोनों आदमियों ने आगे बढ़कर वंशी को पकड़ लिया। और भूरे ने उठकर एक घूँसा भूरे के पेट में दे मारा।
"वं..शी भ...ईया" चीखती हुई रमा वंशी के पास जाने के लिए दौड़ी...और अब तक अवचेतन अवस्था में खड़ा माधव जैसे होश में आया। रमा ने वंशी को पकड़ लिया था लेकिन सम्भाल नहीं पा रही थी...माधव ने दौड़ कर उसे सहारा दिया लेकिन वंशी दर्द से कराहता जमीन पर लुढ़क गया...रमा रोती हुई "वंशी भईया ..वंशी भईया" कहती उस पर अपनी साड़ी के पल्ले से हवा करने लगी...वंशी की ऐसी हालत देख माधव की आँखों में सारा गुस्सा उतर आया
"च...ल " बोलते हुए भूरे फिर रमा की ओर लपका..और अगले ही पल "आहह..." की आवाज करता जमीन पर लुढ़क गया माधव ने उसके पेट पर एक ज़ोरदार लात मारी थी
उसे जमीन पर लुढ़कते देख फिर दोंनो आदमी गुस्से में माधव की ओर लपके तो माधव जल्दी से बोला" सोच लो...मैं तो लड़ लूँगा तुम दोंनो से ...(भूरे की ओर इशारा करके) लेकिन अगर इसे कुछ हो गया तो अपने मालिक को क्या जवाब दोगे" माधव के इतना बोलते ही दोनों की नजर भूरे पर गयी जो आँखे बंद किये बेहोश पड़ा था..दोंनो ने एकदूसरे को आँखों ही आँखो में इशारा किया और भूरे को उठा कर ले गए।
उनके जाते ही माधव ने वंशी को उठाया और डॉ के पास ले गया। रमा उसके पीछे-पीछे चल दी।
***
"अब ठीक तो हो?" माधव ने वंशी के आँखे खोलते ही पूँछा, जो काफी देर से दवा के असर से सो रहा था...और माधव, रमा उसके आसपास बैठे थे...
"हम्म भईया...बस्स कमजोरी महसूस हो रही है" वंशी कराहते हुए बोला
"कितना कहता हूँ..अपना ख्याल रखा करो..देखो उसके एक घूँसे से क्या हालत हो गयी तुम्हारी..." माधव ने वंशी का मन हल्का करने को जब मुस्कुराते हुए कहा तो वंशी बोला "वो तो बस्स...बस्स ठीक से दाव पड़ नहीं पाया..भईया ..अब मिल जाये तो बच्चू का कचूमर निकाल दूँ" वंशी अपनी उंगलियां मोड़कर मुट्ठी बनाता हुआ जोश में बोला... वंशी को जोश में आते देख माधव को खुशी हुई, फिर उसकी नजर जब रमा पर पड़ी तो वो माधव को उदास और कहीं खोयी हुई नजर आयी।
" रमा...क्या हुआ .." माधव ने पूँछा तो रमा ने चौंकते हुए "ना" में गर्दन हिला दी
"तुम चिंता मत करो ...और ना ही घबराओ ..उस भूरे के लिए तो मेरा वंशी ही बहुत है..
माधव बात पूरी कर पाता इससे पहले ही रमा बोल पड़ी
"मातादीन ने जबर्दस्ती शादी की तारीख़ तय कर दी थी...और दो दिन बाद ही दीवाली है" इतना बोलते ही उसके आँखो से आँसू निकलने लगे।
"मेरे रहते तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं......मैं भी देखता हूँ...ये मातादीन आखिर है कौन..." माधव गुस्से में बोला, फिर वंशी को सहारा देते हुए उठाया और अस्पताल से निकलने लगा...रमा उसके पीछे-पीछे चल दी।
**
"ओह आ गए तुम लोग..बड़ी घबराहट लगी थी..कहाँ रह गयी थी रमा..और ये दोंनो भी अचानक से भागते चले गए" सुशीला तीनों को घर में आते देखकर बोलीं
"अररर वंशी को क्या हुआ..." वंशी को धीरे धीरे चलते हुए देखकर सुशीला ने चिंता से पूँछा, तो रमा उनके गले लग गयी और रोते हुए बोली " बुआ, भूरे आया था..
"हाय राम" सुशीला मुँह पर हाथ रखते हुए बोलीं
"वो तो मेरे गिरधर की कृपा हुई कि ये दोंनो आ पहुँचे..."
ये सुनते ही माधव ने वंशी की ओर देखा और दोंनो आश्चर्य से एक साथ बोले "गिरधर की कृ...पा"
"हाँ..." रमा अपनी साड़ी के छोर से ऑंसू पोंछते हुए बोली
"सुना...गिरधर की कृपा से.....भई बहुत बढ़िया" माधव ने मुस्कुराते हुए वंशी के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा तो वंशी भी मुस्कुराए बिना नहीं रह पाया
"भूरे तेरे विद्यालय तक पहुंच गया...ये तो गजब हो गया...वो मातादीन को बताएगा...और मातादीन किसी भी वखत यहाँ अपने आदमियों को लेकर पहुंच सकता है....सुनो माधव...बेटा...चलो ...जल्दी चलो" सुशीला घबरातीं सी बोली
"कहाँ बुआ .." उन्हें घबराया देख माधव भी परेशान हो गया
"कहीं भी....चलो जल्दी से भाग चलते हैं...जल्दी चलो बेटा...रमा ...रमा वंशी की तबियत ठीक नहीं...तू जल्दी से रिक्शा ले आ...तब तक मैं सबके कपड़े रख लेती हूँ " कहते कहते ही बुआ ने खुद के और रमा के कपडों के साथ साथ तार पर सूख रहे वंशी और माधव के कपड़े भी एक जगह रख कर पोटली बना ली
"बुआ...मेरी बात सुनिए...सुनिए तो " माधव ने विन्रमता से सुशीला के दोंनो कंधे पकड़कर उन्हें रोका और बोला
"हम कहीं नहीं जाएंगे...ना आप, ना रमा ना ही मैं और वंशी"
"हें..." सुशीला ने आश्चर्य से प्रतिउत्तर दिया।
"हाँ सही सुना आपने ...कोई कहीं नहीं जाएगा...बहुत परेशान कर लिया उसने आपको..आने दो उसे मैं भी तो देखूं आखिर ये मातादीन है क्या बला" सख्त आवाज में बोला माधव तो सुशीला ने जवाब दिया
"बहुत ताकतवर है ...वो...जुल्मी ...मैं जानती हूँ....कस्बा तो छोड़ो बाहरगांव के लोग भी उसके कहे में चलते हैं...अगर वो आ गया तो रमा ...मेरी रमा को उठाकर ले जाएगा...और अपने उस जानवर लड़के भूरे...भूरे से व्याह देगा मेरी रमा को...मैं हाथ जोड़ती हूँ माधव ...चल बेटा यहाँ से..चल बस पर बैठकर कहीं और चले चलेंगे " सुशीला अब रोने लगीं थीं
"बु....आ...(आवेश में आकर तेज़ बोला माधव) ...गलत उसने किया है वो भागेगा...हम नहीं...आप लोग पहले ही बहुत डर चुके हैं....भाग चुके हैं...रही बात रमा की...भरोसा कीजिये मुझ पर...रमा को ले जाना तो दूर की बात है...वो रमा के बारे में सोचने तक से डरेगा ये वादा है मेरा..आने तो दीजिये उसे" माधव दाँत भीचते हुए बोला
"तुम समझ नहीं रहे हो ...तुम अकेले हो वंशी पहले ही बीमार है....और उसके पास तो आदमियों की फौज है." इस पर माधव कुछ नहीं बोला..तो सुशीला रमा के पास जाकर बोलीं
"देख...माधव मेरी बात तो नहीं समझ रहा...तू समझा के देख...या क्या करें...सुन रमा चल हम दोनों भाग चलते हैं"
बुआ के ऐसे बोलते ही रमा अपनी जगह से खड़ी हुई...फिर माधव के पास जाकर बोली "कहाँ जाये बुआ...बताओ...मुझे भरोसा हैं माधव की बात पर...आगे जो मेरी तकदीर में लिखा होगा ...वो ही होगा" रमा फिर रोने लगी थी...उसकी बात सुनकर सुशीला बहुत हताश हो गईं "अह..ना जाने क्या होगा...ना जाने क्या लिखा है तकदीर में...माधव ...कम से कम कुछ आदमियों को ही इकट्टा कर लो ...तुमने देखा नहीं है उसे ...लेकिन मैं जानती हूँ ...मान लो इस बुढ़िया की बात" सुशीला विनती करने के अंदाज में बोलीं तो माधव ने उनके हाथों पर अपना हाथ रखते हुए कहा " ठीक है बुआ जी...मानता हूँ आपकी बात..." सुशीला सुनकर तुरंत चारपाई पर बैठ गयी और माला जपने लगीं...वंशी ने 'अब क्या करोगे' वाले अंदाज में माधव की ओर देखा तो आँखों के इशारे से माधव ने उसे 'सब ठीक कर दूंगा' का आश्वासन दिया
.रमा को रोते देखकर माधव बहुत दुखी हुआ। सब चुप हो गए तो बोझिलता खत्म करने के लिए माधव ने कहा
"अरे वंशी, दो दिन बाद दीवाली है...तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि लाना क्या-क्या है बाजार से..."
"भईया मैं बुआ जी के पास बैठकर उनसे पूँछ कर सामान लिख दूँगा । लेकिन ये तो सोचे बैठा हूँ...कि दियों की लड़ी से पूरा घर भर दूँगा इस बार..और खूब पटाखे चलाऊँगा..साक्षात लक्ष्मी आयीं हैं हमारे घर...स्वागत तो करना बनता है ना..."
वंशी का इशारा समझ कर माधव मुस्कुरा दिया, तभी बुआ बोल पड़ी
"क्या कहा...लक्ष्मी आयीं हैं?"
"अरे बुआ जी, वंशी के कहने का मतलब है कि दीपावाली पर लक्ष्मी जी आतीं हैं.. उनका स्वागत करने की बात कर रहा है"
माधव के इतना कहते ही वंशी एक कागज और पेन लेकर सुशीला के पास बैठ गया..और दीपावाली के लिए सामान लिखने लगा...
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"फिलहाल चोरी चकारी के केसों की बात नहीं कर रहा हूँ...रुस्तम..शहर में छेड़छाड़ वाली गुंडागर्दी नहीं होनी चाहिए। मेरा सपना है कि कोई भी महिला किसी के जुर्मों का शिकार ना बने" पटेल जो थाना इंचार्ज थे..सब इंस्पेक्टर के सामने महीनेभर के एफ आई आर के रजिस्टर को पलटते हुए बोल रहे थे।
"मैं समझ गया सर " रुस्तम ने कुर्सी से उठकर सैल्यूट मारा और बाहर निकल गया
"हम्म कहिए.." पटेल की नजर सामने खड़े माधव पर पड़ी, तो पूंछ बैठे
"ज जी सर...मुझे आपकी मदद चाहिए और जिस तरह से मैंने आपको बात करते अभी सुना..मेरा यकीन पक्का हो गया है कि सिर्फ आप ही मेरी मदद कर सकते हैं" माधव ने कहा तो पटेल खुश हो गए
"ओह्ह, मैं जरूर आपकी मदद करूँगा, बैठिए"
"मामला थोड़ा संजीदा और नाजुक है" माधव ने कहा
"निश्चिन्त होकर कहिए" पटेल के ऐसे कहते ही माधव उनके सामने बैठ गया।
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"ओह्ह...तो ये बात है...हमें तो अब तक यकीन नहीं हो रहा....अचानक से रिश्तेदार टपक कहाँ से पड़े...और क्या कहा तूने भूरे...रमा स्कूल में थी..." मातादीन भौहों में बल डालते हुए बोले
"हाँ पिताजी..." भूरे ने खुद को कुसूरवार महसूस करते हुए नजर नीची करते हुए जवाब दिया
"हा हा हा अहह अहह.....मतलब सात दिन में ही रिश्तेदार भी उग आए..और रमा नौकरी भी करने लगी ...वाह गज़ब ...कुछ सीख भूरे...कुछ सीख...(फिर एकाएक गुस्सा होकर) अरे धिक्कार है..तुझ पर.. किसी काम का नहीं...तीन आदमी मिलकर एक मेमनी सी लड़की को नहीं उठाकर ला पाए"
"पिताजी ...वो..
"चुप्पप्प..." भूरे के कुछ कहने से पहले ही मातादीन ने उसे डपट दिया
"मातादीन जो करना है जल्दी करो...कल की तारीख तय है व्याह की...पूरे गाँव में और बाहरगाँव में भी नाक कट जाएगी"
नटवर मातादीन के मित्र ने सलाह दी
"नटवर, फिकर मत करो...भूरे का व्याह उस लड़की से ही होगा और कल ही होगा...(फिर चीख़कर ) अरे जीप निकालो रे कोई ...भूरे... दुनाली बंदूक निकाल कर ला"
मातादीन के कहते ही भूरे घर के अंदर दौड़ पड़ा।
**
सुबह अब अपने आप नींद खुल जाती थी माधव की...फुर्ती से उठकर उसने खिड़की पर लगा पर्दा खिसकाया तो सामने सुंदरता की प्रतिमा बनी रमा जल चढ़ा रही थी...उसे देखते ही माधव के चेहरे पर मुस्कान आ गयी...जो अगले ही पल गायब हो गयी
रमा जल चढ़ा कर जहाँ खड़ी थी..उसी जगह अपने पैरों पर घूम गयी। और फिसलने की वजह से वो छत की दीवार से जा लगी।
"ओह्ह...सँभलकर "उसे देख माधव के मुँह से धीरे से निकला
"ओहहो..टूट गयी " हाथ से टूट कर गिरी चूड़ी को देखते हुए रमा के मुँह से निकला फिर हाथ पर रह गए एक छोटे से चूड़ी के एक टुकड़े को उसने नीचे फेंका और सीढियां उतर गयीं।
"अरे ...चाय नहीं दी रमा ने मुझे..." रमा को सीढ़ियां उतरते देख बुदबुदाते हुए माधव बोला फिर उसकी नजर मेज पर गयी तो देखा चाय का कप प्लेट से ढँका रखा था।
वो मुस्कुराते हुए बाहर आया...धीरे से टूटी चूड़ी के टुकड़े उठाये
और कमरे में लाकर उन्हें एक कागज पर रख दिया.फिर गौर से देखते हुए "कितनी सुंदर है रमा की ये चूड़ी...(फिर कागज को लपेटते हुए) बस्स...एक या दो दिन इस कागज़ में रह लो प्यारी चूड़ी..जल्दी ही तुम्हें एक सुंदर से चूड़ीकेस में रखूँगा"
और उस कागज को अपनी किताबों के बीच में रख दिया। और खुश होकर चाय पीने लगा।
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