Rishte Ka Bandh - Part -9 in Hindi Love Stories by sonal johari books and stories PDF | रिश्ते का बांध - भाग 9

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रिश्ते का बांध - भाग 9

"ऐसे क्या देख रहे हो...अगर भाईसाब होते तो..बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी सहमति जताते..भूल गए तुमने क्या वादा किया था? तुमने तो कसम तक ली थी उनकी...और फ़र्ज़ निभाने का वादा किया था" सुशीला चिढ़ कर बोली
"...मुझे सब याद है..(धीरे से ) लेकिन मैंने ये नहीं सोचा था...कि रमा की शादी मुझे करनी होगी" माधव डरते हुए बोला
"तो और कौन करेगा भला...और है ही कौन मेरा ...होता तो बात ही क्या थी...मैं जानती हूँ...शादी व्याह में पैसे ज्यादा खर्च होते हैं...और फिर ये बुढ़िया तो तुम्हें पैसे चुका तक ना पाएगी"
"नहीं बुआ जी...कैसी बात कर दी आपने...इतना छोटा तो मैं सोच भी नहीं सकता...."
"तो फिर देर मत करो बेटा...जितना जल्दी हो सके उसके लिए एक लड़का ढूंढो...पहले ही बहुत देर हो चुकी है, रमा की नौकरी करने की इच्छा थी सो भी पूरी हुई..इतनी सयानी लड़की घर में बैठी अच्छी नहीं लगती..." सुशीला बेड से उठीं और सिर का पल्ला संभालती बाहर निकल गयीं।
उनके जाते ही माधव को अपने पैर काँपते महसूस हुए और वो अपने बेड पर जड़हीन पेड़ की तरह गिर गया। और आँखे बंद कर लीं...रमा का मुस्कुराता चेहरा सामने आ गया...और उसे वो चेहरा खुद से दूर जाता महसूस हुआ...
'रमा....रमा ...र...मा...अहह....अहह कैसे जिऊँगा बिना देखे तुम्हें..." वो रोते हुए बुदबुदाया..".हे भगवान ...ये मेरे कौन से पाप कर्म की सज़ा है...जिसके प्रेम से हरवक्त मैं खुद को सींचता रहा हूँ... जिसके बारे में हरवक्त सोचता रहा हूँ..उसे ही किसी और को सौंपना पड़ेगा (फिर दोंनो हाथों की हथेलियां देखते हुए) सो भी अपने इन्हीं हाथों से..."
उसने अपने सीने पर हाथ रखा " आह ! मेरा दम घुटा जा रहा है...साँस ...आहह साँस ...सांस नहीं आ रही मुझे...(बैठते हुए पूरी ताकत से चीखा) ...वंशी...वं...शी...(लेकिन आवाज घुट कर रह गयी) और वो बेड से नीचे गिर गया।
**
रमा बड़ी खुशी से गुनगुनाते हुए रसोईं में कचौड़ियां सेंक रही थी..."कचौड़ियां... किस खुशी में बीबी जी..." रमा को कचौड़ियां सेंकते देख वंशी ने पूँछा
"उम्म ...कोई खास वजह तो नहीं..." उसने मुस्कुराते हुए कहा
"मैं नहीं मानता...कोई बात तो है...आप खुश दिख रहीं हैं बताइये तो " वंशी पास बैठ गया
"अरे वजह क्या होगी..आज रविवार है..."
"हुम्म"
"और बहुत दिनों बाद कल इन्हें खुश देखा तो सोचा उनकी पसन्द का कुछ बना दूँ"
"किसे?"
"अरे और किसे" रमा जहां तक संभव होता माधव का नाम लिए बिना ही उसके बारे में बात करती...
"भईया को...?"
"हम्म..."
"ओह्ह ... तो ये बात है" वंशी मुस्कुराया और थाली उठाकर माधव के कमरे की ओर दौड़ा
"ये लो...देखो तो क्या बनाया है बीबी जी ने आज तुम्हारे लिए"
वंशी ने हँसते हुए कहा और मेज पर प्लेट रख दी......फिर उसकी नजर जमीन पर लेटे माधव पर गई
"जमीन पर क्यों लेटे हो..भईया" माधव को हिलाते हुए उसने माधव का चेहरा अपनी ओर किया। माधव के चेहरे पर आँसू सुख गए थे...और आँखे बंद थीं...
"हे...महादेव...ये क्या...भईया....भईया...आँखे खोलो" वंशी ने माधव का चेहरा थपथपाया...लेकिन जब कोई असर नहीं हुआ पानी की छीटें मुंह पर मारी
"अरे । क्यों डरा रहे हो मुझे...आँखे खोलो भईया..."वंशी ने कहने के साथ ही माधव को गोद में उठाया और नीचे दौड़ा
"बी....बी.... जी...बुआ... जी..."वो सीढियां उतरते हुए चीखा
"क्या हुआ ...वंशी भैया" रमा सामने आई "क्या हुआ इन्हें "
उसने घबराते हुए पूँछा
"क्या हुआ " कहते हुए बुआ ने अपने माथे पर हाथ रख लिया।
"ना जाने कब से कमरे में बेहोश पड़े थे..मोड़ वाले डॉ के पास लिए जाता हूँ" वंशी तेज़ी से घर से निकल गया और पीछे -पीछे रमा दौड़ गयी।
***
"एंजायटी की वजह से हार्ट पर असर हुआ है..इसलिए बेहोश हो गए हैं..लेकिन अब फिलहाल चिंता की कोई बात नही...जल्दी ही होश आ जाएगा" डॉक्टर ने आई सी यू के बाहर इंतज़ार कर रहे वंशी...से कहा तो रमा सिसकने लगी और सुशीला उसे इशारे से पूँछने लगीं "क्या कह रहे हैं डॉक्टर साहब"
"डॉक्टर साहब वो जरा ...वो ...क्या हुआ हम समझ नहीं पाए..क्या है ना कि हम थोड़े कम पढ़े...." बात पूरी करता वंशी इससे पहले ही डॉ ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा
"गहरे तनाव के कारण दिल पर असर हुआ है...इसलिए बेहोश हो गए ...अब बहुत ध्यान रखना...ऐसी कोई बात मत करना जो उनका दिल दुखाये...समझे"
"मैं मंदिर हो आती हूं..." डॉ के हटते ही सुशीला बोलीं
"मैं भी चलती हूँ " कहते हुए रमा उनके साथ चल दी ।
और थोड़ी देर बाद ही
"पेशेंट को होश आ गया है...आप चाहें तो मिल सकते हैं" जैसे ही नर्स ने कहा वंशी भीतर की ओर भागा और माधव का हाथ पकड़ कर बैठ गया।
" वंशी..मैं जानता था...तुम बचा लोगे मुझे यार" माधव धीरे से बोला और उसके आँखो के किनारे आँसुओं से भीग गए।
"इसमें बचाने की बात कहाँ से आ गयी भईया..डॉ ने कहा..कमजोरी के कारण तुम बेहोश हो गए थे..बस्स..इसमें इतना दुखी होने की क्या बात है" वंशी सहज होने का नाटक करता हुआ बोला।
"दुखी ...हुम्...अच्छा होता अगर मर जाता"
"पागल हुए हो क्या भईया..कैसी बातें करते हों..मौत को तुम तक पहुंचने के लिए मुझसे होकर गुजरना पड़ेगा" वंशी की बात सुनकर माधव ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया और बोला
"जो करना पड़ेगा ..उससे मौत कहीं ज्यादा आसान है....
"ऐसा क्या हो गया...क्या करना पड़ेगा..भईया तुम्हे मेरी कसम मुझसे कुछ मत छिपाओ..बताओ मुझे" वंशी स्टूल से उठकर माधव के बेड पर बैठ गया।
"सब बताता हूँ तुम्हें..पहले ये बताओ रमा और बुआ जी कहाँ हैं...?"
"यहीं थी... जब डॉ ने कहा तुम ठीक हो तो मंदिर में माथा टेकने चली गयीं...तुम बेझिझक कहो ना"
"आज बुआ जी मेरे पास आयीं और बोलीं कि रमा की शादी करनी है तुम्हे माधव, सो भी जितना जल्दी हो सके...
"तो इसमें घबराने की क्या बात थी...ये तो अच्छा मौका था तुम्हारे पास..अपने बारे में कह देते..कहते कि देखो मुझसे अच्छा दामाद कहीं नहीं मिलेगा तुम्हें ..." वंशी हँसते हुए बोला
"हुम्म ..मुझे तो बोलता तक देख लें रमा से ...तो खून जल जाता है उनका...
"ये किसने कहा तुमसे"
"उन्होंने ही कहा...तुम नहीं जानते ...बहुत पहले भी वो मुझसे बात कर चुकीं है तब उन्होंने कहा था...कि इस घर को वो अपने भाई का घर समंझ कर आई थीं ...लेकिन मेरे कारण ये घर उन्हें रमा के लिए असुरक्षित जान पड़ता है..."
"क्या असुरक्षित..सो भी तुम्हारे कारण..तुम जो पूरा घर उन्हें सौंप कर, किरायेदार की तरह एक कमरे में सिमट गए...और वो पूरे घर में महारानी की तरह विचरती हैं...हें ..ये तो तुम पर गाली समान है भईया ..." वंशी ग़ुस्से में बोला
"मेरा रमा के प्रति आकर्षण वो समझ गयी थी ...लेकिन किसी और ही दृष्टिकोण में ...
"क्या कहा वो जानती हैं....कैसा दृष्टिकोण भईया..?".
"उन्होंने मुझसे कहा कि तुम डोरे डालते हो रमा पर...
"छी: ...ये बुढ़िया पागल हो गयी है क्या..धूप में ही बाल सफेद कर लिए हैं क्या...तुम्हारा पूजा सा प्रेम ...डोरे डालना लगा
...हद है भईया.." वंशी गुस्से में दाँत पीसता उठ कर खड़ा हो गया था
"शांत हो जाओ वंशी... ...उनके लिए ऐसे शब्द इस्तेमाल मत करो"
"बुजुर्ग नहीं खूसट है ये बुढ़िया भईया ..और पागल भी है "
"तभी तो नहीं बताता था तुम्हें ..." माधव जब ये बोला तो वंशी को लगा कि माधव कहीं पूरी बात बताये ही ना इसलिए सहज होकर बोला " ठीक है भईया अब कुछ नहीं कहूँगा ...ये बताओ फिर क्या हुआ...क्या कहा तुमने?"
"उन्होंने कहा कि मै अपने पिता के फ़र्ज़ को निभाने में नाकाम रहा हूँ...मैंने अपनी बात कहनी चांही लेकिन वो कुछ सुनने को तैयार ही ना थी...तो जैसे -तैसे माफी मांगकर मैंने उन्हें रोका"
"माफी...किस बात की माफी भईया...तुम्हें माफी मांगने की क्या जरूरत थी "
"माफी ना मांगता.. तो वो रमा को ले जातीं.....तुम तो जानते हो दुनियां में ना जाने कैसे कैसे लोग मौजूद हैं..रमा किसी मुसीबत में फंस जाती तो?..
वंशी चुपचाप प्रभावित होकर देखने लगा माधव को
"सबसे बड़ी बात...मैं उसे देखे बिना कैसे जीवित रहता? ...इसीलिए माफी मांगी और यही सोचकर रोक लिया..कि कम से कम आँखों के सामने तो रहेगी रमा..."
"क्या कहूँ ...इतनी गुस्सा आ रही है कि ....अच्छा फिर तुमने माफी मांगी और वो रुक गयीं?"
"नहीं...सिर्फ माफी से नहीं...मैंने वादा किया..कि जो अपेक्षा उनकी मेरे पिता से थी उसे मैं पूरा करूँगा...इसी क्रम में पहले उनकी इच्छा थी कि मैं रमा से दूर रहूं...
"भईया..पत्थर दिल है वो...और तुम पर क्या बीतेगी ये नहीं सोचा....."
"...और...अब बुआ जी की इच्छा रमा की शादी कराने की है...सो भी मेरे हाथों"
"वाह। मानना पड़ेगा बुढ़िया को...खुद गलत है और उल्टी धौंस तुम पर दिखा रही है" वंशी गुस्से में बोला

"वंsssशी...क्यों ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हो.."

"माफ करना भईया..तुम्हारे जितना महान नहीं हूँ मैं जो इतना सब होने के बाद भी उनकी इज़्ज़त करूँ...अब समझा क्यों तुम घर से बाहर रहते थे..और बीबी जी से बात नही करते थे
तुम बुआ जी कहते नहीं थकते...और वो बुढ़िया..."

"सोचता हूँ...उनका ये व्यवहार इसलिए हैं कि वो बाल विधवा हैं...कभी सुख नहीं देखा उनने शायद इसीलिए..."

"तो क्या तुम्हारा सुख छीन लेंगी ?...जब देखो मुझे हटकती रहती हैं..जैसे चाबलों से कंकड़ चुनते हैं ना ठीक वैसे ही.. सारे दिन वो मेरे काम में कमियां निकालती रहती हैं ...यही सोच कर सब सुन लेता हूँ..कि तुम बीबी जी से इतना प्रेम करते हो..लेकिन...सुनो भईया, एक काम क्यों नहीं करते...बीबी जी को अपने मन की बात क्यों नहीं बता देते...यही सबसे सही होगा"
"हुम्म..." माधव एक खिसियानी हँसी हंसा
"क्या हुआ भईया ...?"
"आज तुमसे कुछ नहीं छिपाऊँगा वंशी...तुम्हारी बीबी जी उस ...उस गौतम से प्रेम करती हैं"
"क्या..?" वंशी आश्चर्य से आँखे खोले माधव को देखने लगा
"हम्म..."
"मैं नहीं मानता...किसने कहा आपसे..."
"कौन कहेगा...मैंने खुद देखा "
"देखा मतलब...क्या बीबी जी को कहते हुए देखा कि वो ....ऐं...?"
"मैं कॉलेज से घर आया था..तब गौतम की आवाज सुनकर ना जाने क्या सूझी...कि किवाड़ की दरार से झाँक कर देख लिया ..वो रमा को फूल दे रहा था"...
"घर में? ...कब की बात है ये...मैं तो घर में ही रहता हूँ..."
"किसी काम में लगे होंगे तुम...और उसने मौका देखकर रमा से अपने प्रेम का इजहार कर दिया"
"(बहुत देर चुप रहने के बाद ) .वैसे उसका कोई दोष भी नहीं है भईया..."
"अच्छा ...कैसे भला?"
"बीबी जी हैं ही इतनी अच्छी ...अगर कोई सामने से प्रेम का इजहार करे तो उसमें उनका क्या दोष भला"?
"स्वीकार कर लें तब तो है..?."
"मतलब ...क्या उन्होंने स्वीकार कर लिया? "
"कुछ बोला तो नहीं ...लेकिन फूल ले लिया...”
"वही तो कहता हूँ क्यों मन छोटा करते हो...फूल स्वीकार किया है...प्रेम तो नहीं ...एक बार उनसे अपने प्रेम का इज़हार कर दो"
"कैसे पागल हो वंशी...गौतम ने फूल प्रेम का इज़हार करते हुए दिया था...और उसे स्वीकार करना ...प्रेम स्वीकार करना ही है"
"तुम कुछ भी कहो..मेरा दिल नहीं मानता...मैंने उनकी आँखो में आपके लिए प्रेम देखा है"
"इज़्ज़त करती है मेरी ...प्रेम नहीं ...तुमने उसकी आँखों में मेरे लिये इज़्ज़त देखी होगी..." माधव की बात ने वंशी को चुप कर दिया। कुछ देर बाद वो बोला
"...अब समझा... उसी दिन में हाथ मे चोट लगी थी तुम्हारे .और इसलिए तुम गुस्से में थे....हैं ना"
"हम्म.."
"कब से मन पर इतना बोझ झेल रहे हो...कह देते तो कम से कम मन तो हल्का होता...और तुम यूँ इस अस्पताल में ना होते...क्या मेरी ओर तुम्हारा कोई दायित्व नहीं"

"सही कहते हो...कभी कुछ नहीं छिपाता तुमसे...ना जाने क्या सोच कर ये बात छुपा बैठा...माफ कर दो वंशी"

"एक शर्त पर करूँगा भईया...खाओ कसम ...कभी कुछ छिपाओगे नहीं.....
".ये गलती अब कभी नहीं करूँगा वंशी..कभी कुछ नहीं छुपाउँगा तुमसे...तुम भी एक वादा करो कभी भी रमा या बुआ जी से इस बारे में कोई बात नहीं करोगे" माधव के ये कहते ही वंशी ने माधव का हाथ कसकर पकड़ लिया।

और थोड़ी देर में ही रमा और सुशीला आ गयीं..
"अब कैसे हो ...बेटा.."पूंछते हुए सुशीला बैठ गईं, रमा भी माधव को होश में देखकर खुश थी..लेकिन वंशी दोंनो को गुस्से में देख रहा था...माधव ने उसे इशारे से शांत रहने को कहा। और वंशी झल्लाते हुए बाहर निकल गया।
***
2 से 3 दिन माधव अस्पताल में ही रहा..रमा खाना लेकर अस्पताल जाती...और हालचाल पूँछ कर लौट आती..क्योंकि ना माधव और ना ही वंशी उससे ज्यादा बात करते..वंशी लगातार अस्पताल में ही बना रहा...चौथे दिन माधव घर आ गया...उसी रात
"ये लो खाना खा लो...भईया..और फिर सो जाओ..बहुत रात हो गयी है." वंशी ने खाने की थाली रखते हुए कहा
लेकिन माधव ने कोई जवाब नहीं दिया...
"कुछ बोलते क्यों नहीं...और ये अंधेरा क्यों कर रखा है..."वंशी लाइट जलाते हुए बोला।
"हे महादेव ...खुद की आँखों पर यकीन नहीं होता...तुम और सिगरेट ...और ये क्या आँसुओं से रो रहे हो ..."
"वंशी मैं उसकी शादी नहीं करा पाऊँगा...मुझसे नहीं होगा" माधव खुद के आँसू पोछते हुए बोला
"भईया...तुम कहो तो मैं बीबी जी से बात करूं...."
"अब क्या फायदा बात करने का...बुआ ने सही कहा था...पसन्द वो होती है जो इंसान खुद चुने...अच्छा रहा जो मैंने उसे अपने मन की बात नहीं बतायी...और देखो उसने गौतम को चुना"
वंशी को समंझ नहीं आ रहा था क्या कहे बहुत देर चुप रहा फिर बोला "एक काम करो सो जाओ ...कल भी नही सोए थे... दिन में बात करेंगे" और माधव का बिस्तर ठीक करने लगा
"कल रात ही क्या..परसों की रात भी नहीं सोया हूँ ...सारी जिंदगी चैन से नहीं सो पाऊँगा" माधव ने सिगरेट का एक गहरा कश भरा
"पहले तो ये सिगरेट फेंको भईया...अरे जहर है ये..तुम्हें मेरी कसम ..?"
"अपनी कसम मत दो वंशी...जहर तो अब जिंदगी है मेरी"
माधव ने जब ये कहा तो वंशी आगे बढ़कर उसके हाथों से सिगरेट छीनने लगा..माधव छिटककर दूर खड़ा हो गया ...
"हाथ जोड़ता हूँ तुम्हारे वंशी...पीने दो मुझे...तुम क्या जानो जब पूरी रात बेचैनी और घबराहट में नींद नहीं आती...तब क्या महसूस होता है"
माधव आँखे बंद कर बोला तो उसकी आँखो से आँसूं बह गए...और वो अपना सिर दवाने लगा
"सिर दर्द कर रहा है क्या..." वंशी को माधव की ये हालत देख तरस आ गया .
"हम्म फटा जा रहा है"
"सोए जो नहीं हो ...यहाँ आओ..."वंशी ने कहा तो माधव उसकी गोद में सिर रखकर लेट गया..और वंशी उसका सिर दवाने लगा
"वंशी"
"हम्म"
" उसने मेरे पैर छुए... सो भी दो बार"
"किसने भईया..."
"..."
"क्या बीबी जी ने?"
"हाँ..."
"अच्छा..." कहते हुए वंशी ने एक गहरी साँस छोड़ दी
"जानते हो ...दोनों बार मैंने पूरे दिन पैरों पर पानी नहीं पड़ने दिया..उसका स्पर्श कैसे खत्म होने देता"
"तुम्हारा ये हाल मुझसे नहीं देखा जाता...मन तो करता है जाकर अभी साफ -साफ बात करूं बुआ से"
"नहीं वंशी...बात पिताजी के विश्वास की भी तो है...तुम्हें मेरी कसम जो तुमने कोई बात की रमा या बुआ से ....बड़ी...बेचैनी हो रही है वंशी...."
वंशी धीरे-धीरे उसका सिर दवाने लगा थोड़ी देर में माधव को नींद आ गयी...माधव को सोता देख थोड़ी देर में वंशी भी वही अधलेटा ही सो गया....
**
कमरे में धुँधली सी रोशनी बिखरी थी...और माधव मेज पर सिर टिकाए सो रहा था। उसके हाथ में पेन था..वंशी हड़बड़ा कर उठा...मेज के पास आया और धीरे से खिड़की खोल दी
"अरे सुबह होने को है...लगता है रात में भी नींद नहीं आई भईया को..वो धीरे से किवाड़ बन्द कर नीचे आ गया।
**
"आप चाय क्यों बना रहे हैं..वंशी भईया" रमा नहा कर सीधे रसोईघर में आती चाय बनने रख देती तब जाकर पूजा करती...और चाय का कप लिए छत पर जल चढ़ाने चली जाती।
"वो ..बस्स ऐसे ही बीबी जी..मैं नहीं चाहता कि भईया मेरे हाथों की चाय ही भूल जाएं" वंशी ने कप में चाय छानते हुए बोला
"क्या नाराज हो मुझसे..कुछ दिनों से ठीक से बात ही नही करते"
"मैं नाराज होने वाला कौन होता हूँ.." वंशी ने जवाब दिया और चला गया
"क्या गलती कर दी मैंने..मुझे तो समझ नहीं आ रहा" रमा धीमे से बुदबुदाई
कमरे में*
"अरे...तुम चाय लाये हो वंशी..." माधव ने मेज पर झुके-झुके कुछ लिखते हुए कहा
"हम्म....अब बुरी है तो ...अच्छी है तो ...इसी की आदत डाल लो भईया"
तभी रमा के गाने की आवाज आई
"हे गिरधर....हे त्रिपुरारी...भोले भाले मन के मुरारी"
"वंशी, जरा वो मेरी बाँसुरी तो उठाना..." माधव खुश होकर बोला...वंशी ने बांसुरी उठा दी...और माधव उसे अपने होंठों पर रखकर बिना आवाज किये बड़ी तल्लीनता से बजाने लगा।
"ये क्या बिना आवाज क्यों बजा रहे हो" वंशी ने आश्चर्य से पूँछा
"क्या तुम बुआ जी को नहीं जानते...? "माधव ने हँसते हुए जवाब दिया
"बीबी जी भी कौन कम हैं" वंशी ने चिढ़ते हुए अपनी गर्दन झटकी ।
'माधव उसे चुपचाप देखता रहा फिर बोला "जानता था..तुम् अपनी बीबी जी से नाराज हो जाओगे" लेकिन वंशी ने कोई जवाब नहीं दिया तभी रमा छत पर आ गयी
"इधर आओ..देखो जरा " माधव ने कहा तो वंशी खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया..रमा कुछ बुदबुदाते हुए जल चढ़ा रही थी।
"वो देखो...जब रमा आयी तभी पता लगा कि उगते सूर्य पर जल चढ़ाना इतना मनभावन होता है..खिड़की बन्द कर ली थी कि उसे देखूंगा नहीं..लेकिन प्रेम...बहती नदी की तरह होता है..कौनसा बाँध रोक सका है उसे...बुआ जी से किया वादा भी निभाऊँगा...और अपने मन को रमा से प्रेम करने से भी नहीं रोकूंगा...बहुत सोचा..लेकिन ये सोचकर ही तसल्ली मिली...यही इलाज है मेरा....इज़हार ना होने से प्रेम खत्म तो नहीं हो जाता...जानते हो वंशी, प्रेम को बंदिश पसन्द ही नहीं..
वंशी पूरे मन से माधव को सुन रहा था...
"मैंने सोच लिया है..आज गौतम से रमा के रिश्ते की बात करूँगा..रमा को उसके मन का साथी मिलना चाहिए....तुम्हारी उससे नाराजगी मेरे कारण ही है ना...कोई दोष नहीं उसका...सुनो वंशी, उससे अच्छा व्यवहार करो...ना जाने कब चली जाए.." माधब ने वंशी का कंधा थपथपाया ..
"मैं बिनती करता हूं भईया, एक बार उनसे बात कर लो"
"वंशी, मैं जानता हूँ तुम्हें चिंता है मेरी...लेकिन फिक्र मत करो..मैं सम्भाल लूँगा खुद को ...फिर तुम भी तो हो"
माधव मुस्कुराते हुए बोला और कमरे से चला गया...
"क्या बीबी जी....मैंने तो सुना था ..कि लड़कियाँ आँखे देखकर ही सामने वाले का मन पढ़ लेती हैं..आप भईया का निर्मल मन नहीं पढ़ पायीं " वंशी रमा की ओर देख कर बुदबुदाया।
***
"क्या कहा ..लड़का देखा है...कौन है ...क्या करता है. रमा के लायक है क्या?" सुशीला खुश होकर बोलीं जब माधव ने उनसे कहा कि एक लड़का उसकी नजर में है
"लायक है..बुआ जी ..मेरे ही कॉलेज में हिंदी का शिक्षक है..आप जानती हैं उसे"
"क्या कहा.. जानती हूं मैं उसे" सुशीला ने आश्चर्य से पूँछा
"हम्म...मैं किसी और की नहीं...गौतम की बात कर रहा हूँ बुआ जी.."माधव ने कहा
"गौतम...दिखने में तो अच्छा ही है.बात चलाओ... " बुआ खुश होकर बोलीं
"बात क्या चलाना बुआ जी..वो मुझसे मना नहीं करेगा..आप तो बस्स ये बताइये वो लोग रमा को देखने कब आएं
"शुभ काम मे देरी कैसी...हो सके तो कल ही बुला लो" सुशीला खुशी से चहकती हुई बोली
"एक बार रमा से तो पूँछ लीजिये"
"अरे उससे क्या पूंछना...वो क्या मना करेगी?..."
सही कहा वो मना नहीं करेगी' माधव मन ही मन बोला और उठ कर जाने लगा
"फिर भी ...मैं उसे बता दूँगी" सुशीला मुस्कुराते हुए बोलीं
सुशीला के कमरे के बाहर आंगन में खड़ा वंशी सब चुपचाप सुन रहा था।
***
"हे महादेव...मेरी सहायता करो...भईया की ये हालत नहीं देखी जाती मुझसे...वो नहीं जी पाएंगे बीबी जी के बिना..नहीं जी पाएंगे." माधव के कमरे में बैठा वंशी अपने मुंह पर हाथ रखकर रोने लगा..कि उसकी नजर बेड के नीचे रखे चूड़ीकेस पर चली गयी। क्या मुझे इसे देखना चाहिए..भईया की जो हालत है.. देख ही लेता हूँ..' सोचते हुए उसने चूड़ीकेस खोल दिया.
"ये ये तो रमा बीबी जी की टूटी चूड़ियाँ हैं...और ये ..ओह..." वंशी कविता पढ़ने लगा और कविता पढ़ने के साथ -साथ उसके आँसूं भी निकलने लगे।
उसने पेज को मोड़कर बापस रखा और आँसू पोंछते हुए बोला "मैं भईया को इस हाल में नहीं देख सकता...अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा..."
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