आवाज से चौंक कर माधव ने पीछे घूम कर देखा तो वंशी मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था।
"क्या चल रहा है ...कुछ तो नहीं" माधव नजर चुराते हुए बोला
"अच्छा...सच में कुछ नहीं"...वंशी फिर हँस कर बोला
"तो और क्या...क्या चलेगा भला" तनिक झुंझला कर बोला माधव
"कल से देख रहा हूँ, ना कुछ खाते हो ना ही पीते हो...बस्स बेचैन दिखते हो ...जैसे अभी दिख रहे हो"
"अभी तो इसलिए कि रमा नहीं आई अभी तक..." माधव आवेग में बोल गया...फिर जब एहसास हुआ नहीं बोलना था तो एकदम चुप हो गया,
"ओह्ह तो ये बात है" वंशी हँसते हुए बोला
"...इसमें इतने हँसने जैसा क्या है? " माधव चिढ़ कर बोला
"देख रहा हूँ चिंता कुछ ज्यादा ही हो रही है..बीबी जी की" वंशी की मुस्कान और फैल गयी थी
"उसके लिए ये जगह नई है...कुछ जिम्मेदारी है मेरी... कि नहीं.."
"हाँ ...सो तो है" वंशी अब भी हँस कर ही बोला
"हाँ तो फिर.?...तुम्हें तो कोई चिंता है नहीं...रमा अब तक आई नहीं सोचता हूँ देख आऊँ...कहीं रास्ता ना भटक गई हो"
माधव ने एक कदम बढ़ाया ही होगा कि वंशी ने उसकी बाँह पकड़ ली और बोला
"कल भी तो बीबी जी अकेली ही आयीं थी...रास्ता उन्हें अच्छे से पता है"
"देख नहीं रहे हो कितनी देर हो गयी है"
"कहाँ ...घड़ी तो देखो दो बजे ही कहाँ हैं अभी" वंशी फिर मुस्काया, माधव ने दीवारघड़ी पर नजर डाली तो कुछ कहते ना बना अब भी दस मिनट कम थे दो बजने में
"ये ठीक चल रही है ना?" माधव बुदबुदाया
"वैसे तो ये घड़ी ठीक चलती है ...लेकिन बस्स 1 बजे से 2 बजे के बीच बहुत धीमी चलती है.." वंशी बड़ी संजीदगी से पूरी बात बोल गया फिर हँसा
"कुछ ज्यादा ही दाँत ही दिखा रहे हो आज, बात क्या है ...इतने खुश क्यों हो?" माधव झुंझला गया था
"जरा नीचे देखिए पता चल जाएगा" वंशी ने कहा तो माधव नीचे की ओर झांका, रमा सधे कदमों से घर की ओर मुस्कुराती चली आ रही थी...माधव के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी और वो मुस्कुराने लगा
"वाह। मैं कब से हँसाने की कोशिश कर रहा था लेकिन हुज़ूर हँसे तो छोटी मालकिन को देखकर"
"क क्या कहा तुमने..." माधव एकदम संजीदा होकर बोला
"वही जो तुमने सुना...भई छोटी मालकिन सुंदर होने के साथ-साथ व्यवहार की भी बहुत अच्छी हैं क्यों ठीक कहा ना" वंशी जोर से हँसते हुए बोला
"रुक ...अभी बताता हूँ तुझे..."माधव मुस्कुराते हुए उसकी ओर लपका तो वंशी भागने लगा...और माधव उसे पकड़ने उसके पीछे दौड़ा... जैसे ही वंशी सीढ़ियों तक पहुंचा...सुशीला को देखकर ठिठक गया।
"इस उम्र में ऐसी उछलकूद अच्छी लगती है क्या" सुशीला ने कातर निग़ाहों से वंशी को देखते हुए कहा, तो माधव मुंह पर हाथ रखकर हँसने लगा
"नीचे कोई पंडित जी आये हैं " सुशीला बोलीं
"मैं देखता हूँ" कहते हुए वंशी सीढियां उतर गया।
"पंडित जी क्यों आये हैं माधव " सुशीला ने माधव से पूँछा
"कल पिताजी की वर्षी है, समय तय करने और पूजा की सामिग्री बताने आये होंगें...आइए बुआ जी, नीचे चलते हैं"
कहते हुए माधव भी नीचे उतर गया। ये सुनकर सुशीला जी ने अपने सिर पर रखा पल्लू ऐसे सही किया जैसे माधव के पिताजी सामने ही खड़े हों और वो भी सीढियां उतर गयीं
"माधव, सुबह नौ बजे का समय शुभ है, और ये रही सामिग्री की लिस्ट... याद से आज ही मंगवा लेना" पंडित जी ने कहा
"पंडित जी, क्या सेवा की जाए?" सुशीला ने पूँछा
पंडित ने माधव की ओर इशारा करके पूँछा "कौन हैं ये कभी देखा नहीं पहले"
"मेरी बुआ जी हैं" माधव ने मुस्कुराते हुए जबाव दिया तो पंडित जी खुद के खुले पेट पर हाथ फिराते हुए बोले
"अगर दही हो तो ...लस्सी और ना हो तो एक गिलास दूध भी उपयुक्त होगा"
पंडित जी की बात सुनकर जैसे ही वंशी उठा सुशीला ने उसे हाथ का इशारा करके रोक दिया "रमा बना देगी.." रमा सुनते ही रसोई में चली गयी और जल्दी ही सबके लिए लस्सी बना लायी "भाई साक्षात अन्नपूर्णा की झलक है बिटिया में" पंडित जी थाली से गिलास उठाते हुए बोले, तो माधव ने वंशी की ओर देखा जो पहले से ही मुस्कुरा रहा था...रमा बारी -बारी सुशीला और बंटी के पास से जाते हुए माधव के पास पहुँची तो बंटी बोल पड़ा " अरे। माधव भईया लस्सी नहीं ssई ई "तब तक माधव ने उसे आँख से चुप रहने का इशारा कर दिया,
"क्या हुआ " बहुत धीमी आवाज में रमा ने पूँछा
"कुछ नहीं ...मेरे कहने का मतलब था..माधव भईया को लस्सी बहुत पसंद है...बहुत ही " वंशी ने बात बदल दी तो माधव मुस्कुरा दिया
"ओह ऐसी बात है....फिर तो और लस्सी रखी है रसोई में" रमा ने जब मुस्कुराते हुए कहा तो वंशी फौरन बोला " बहुत बढ़िया, भईया जल्दी से गिलास खाली करो..सुना... और भी रखी है"
माधव गंभीर हो गया, तो वंशी ने फिर चुटकी ली
"पसंद है ना लस्सी .."
"क्या हुआ ..." रमा ने इशारे से पूँछा
"कुछ नहीं कभी -कभी इसे हँसी के दौरे पड़ते हैं" माधव ने ये बोलते हुए वंशी को कोहनी मार कर चुप कराया।
***
"भईया, मालिक की तस्वीर कहाँ रखूँ " बंटी ने पूँछा
"ओहहो ये भी कोई पूँछने की बात है...भाँ उस ... पर रखो क्या बोलते हैं उसे" सुशीला बोलीं
"मेज पर ?" वंशी ने सुशीला की बात को सुधारा
"हॉं ...और किया"
"नहीं बुआ जी, मेज पर नहीं.. पिता जी की इच्छा शीशम के बेड की थी, तो बंशी, पिताजी की तस्वीर बेड पर ही रखी जाएगी" माधव ने बेड को बरांडे में खींचते हुए कहा
"और पंडित जी क्या कहेंगे?" वंशी ने आंशका जताई
"कुछ नहीं कहेंगे पंडित जी...मेरे पिताजी..मैं जहाँ चाहूं पूजा कराऊँ" माधव ने बेड लगा कर उस पर अपने पिता जी की तस्वीर रख दी थी
रविवार की छुट्टी होने की वजह से रमा भी घर पर ही थी..लाल रंग की साड़ी पहने वो पंडित जी को उनके बताए अनुसार सामान देती जा रही थी। वंशी भी उसकी मदद कर रहा था। वैसे भी खाने से लेकर घर की जिम्मेदारी रमा ने वंशी के साथ बराबर बाँट ली थी। और काम करने में उसका पलड़ा वंशी से बीस का ही रहता। माधव यूँ तो ऊपर से सहज बना रहता लेकिन उसे रमा का आसपास रहना बहुत सुखद एहसास देता।
वंशी पास पड़ोस के पन्द्रह बीस लोगों को पूजा में शामिल होने के लिए बोल आया था। उन लोगों में से कुछ लोग धीरे-धीरे आ रहे थे, पंडित जी ने आकर पूजा शुरू कर दी थी।
"अच्छा तो अब यजमान माधव जी, आप यहाँ मेरे पास आकर बैठिए और जो बताऊँ उसका अनुसरण कीजिये"
पंडित जी के कहते ही माधव आगे आया और वंशी ने रमा के पास की जगह पर इशारा करते हुए सहज भाव से कहा " "माधव भईया यहाँ बैठ जाइये..पंडित जी के पास " जैसे ही माधव बैठा वंशी उसके कान में फुसफुसाया "पूजा का कार्य होने वाले पति-पत्नी को साथ बैठकर करना चाहिए.." सुनकर माधव के चेहरा शर्म से लाल हो गया।
थोड़ी देर में सुशीला को ये असहज लगा तो उन्होंने रमा को उठाते हुए कहा " रमा, जा देख रसोई में सब तैयार है ना" और रमा के उठते ही सुशीला उसकी जगह पर बैठ गईं, सुशीला के ऐसे करने से माधव का मन उखड़ गया, जो अदभुद सुख उसे रमा के पास बैठे होने भर से मिल रहा था ..जाता रहा।
"क्यों भईया पूजा में अब मन नहीं लग रहा होगा.. है ना" वंशी माधव को झेड़ते हुए धीरे से बोला
"पूजा तो आज तुम्हारी करूँगा बेटा, बस्स ये पूजा खत्म होने दो..बहुत मस्ती सूझ रही है ना" माधव ने ऊपरी गुस्सा से कहा तो वंशी मुस्कुराते हुए चुप हो गया।
पण्डित के जाते ही माधव, वंशी का हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले गया।
"अरे..सीधे बोलोगे तब भी चल लूँगा भईया" वंशी अपनी बाँह छुटाता हुआ बोला
"भईया के बच्चे ये बता...कि कल से क्या कहे क्या रहा है"
माधव ने धीरे से पूँछा
"बताओ ना भईया, गलत कह रहा हूँ क्या" बंशी ने पूँछा तो माधव मुस्कुरा दिया।
"मुझे खुद नहीं पता...रमा इतने कम समय में ही इतना क्यों भाने लगी है मुझे...मैंने तो महसूस नहीं किया...कि कब और कैसे..तुम्हे कैसे पता लगा"
"उस दिन जब वो स्कूल जा रहीं थी...और आप उन्हें अपलक निहार रहे थे...तभी यकीन हो गया था"
वंशी की बात सुनकर माधव मुस्कुराने लगा
"आप को खुश देखकर बहुत अच्छा लग रहा है भईया"
"वंशी ..रमा अच्छी है ना"
"बहुत ही अच्छी हैं भईया...सूरत से भी और व्यवहार से भी...मेरा तक तो मान करतीं हैं, जब से आईं हैं ये घर ...घर जैसा लग रहा है..रसोई का भी लगभग सारा काम उन्हीं ने संभाल लिया है..मुझे करने ही नहीं देतीं" वंशी बहुत प्रभावित दिख रहा था"
"अच्छा ...लेकिन सुनो वंशी...रमा को पढ़ायी और नौकरी दोनों करने हैं...तुम्हें ध्यान रखना होगा...रमा को बहुत काम ना करना पड़े" माधव कहीं खोया हुआ सा बोला
"मैं ध्यान रखूँगा भईया......अच्छा मैं तो कहता हूँ बता दो उन्हें अपने मन की बात" वंशी उत्साहित होकर बोला
"नहीं...अभी नहीं...उचित समय आने पर...अभी तो ये भी नहीं मालुम उनके मन में क्या है मेरे लिए..." माधव शरमाते हुए बोला
"ओहहो उनके? ....हा हा हा" वंशी ने हँसते हुए कहा तो माधव ने पास ही रखी किताब हल्के से वंशी की पीठ पर मारते हुए कहा
"बहुत बातें बनाने लगे हो आजकल तुम" और दोंनो हँसने लगे।
***
"हे गिरधर ....हे गिरधर ...मेरे कृष्ण मुरारी..." भजन की आवाज माधव के कानों में गयी...मुस्कुराते हुए उठा और बाँसुरी उठा ली...तभी नजर सामने पड़ी ...सुशीला हाथ में सब्जी की टोकरी पकड़े खड़ी थी...ठीक उसके पास आकर बैठ गयी "अररररे यारररर ..." सुशीला को देख बुदबुदाता माधव मन ही मन खीजा और बाँसुरी बापस रख कर, कपड़े उठाए कमरे से बाहर निकल ही रहा था कि नजर सामने रमा पर चली गयी, रमा एक हाथ में चाय का कप और दूसरे में जल का लोटा उठाये उसी की ओर चली आ रही थी ...माधव के चेहरे पर मुस्कान आ गयी...उसने पास आकर माधव को चाय का कप पकड़ाया...'सम्मान तो देखो...सूर्य देवता पर जल का लोटा तो तुम्हें चाय का लोटा ...एक साथ" उसके मन ने उससे कहा
'लोटा?" मन ही मन उसने हँसते हुए कहा
"अरे मतलब चाय का कप"
'हम्म कितना सम्मान देती है मुझे'
'बेशक..लेकिन तुम बुआ जी को भूल रहे हो...नजरें कातर हैं उनकी और महानुभाव तुम पर ही हैं"
'अरे यार ...तो क्या करूँ..जल चढ़ाने का ये खूबसूरत नजारा छोड़ दूँ"
"क्यों मुसीबत में सिर मार रहे हो...जाकर भीतर बैठ जाओ, आज थोड़ा ही देख लो खिड़की से...बुआ को तो जानते ही हो"
खुद से बात करते करते माधव की नजर सुशीला पर गयी तो वो सही निकला...वो उसे ही देख रहीं थीं...वो तेज़ी से कदम बढ़ाता अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया।
"आलू की सब्जी बना रही हो आज बुआ जी" माधव ने यूँ ही आलू छील रही सुशीला से पूँछा और एक नजर खिड़की से बाहर रमा को जल चढ़ाते हुए देखा
"अरे मैं क्या...या तो रमा या वंशी ही बनाएगा खाना..खाली थे तो सोचा मदद कर दें" सुशीला ने खीजते हुए जवाब दिया
"अगर आपके पास थोड़ा समय है तो क्या फॉर्म भरने में मदद कर देंगे..." रमा ने कमरे के बाहर से ही पूँछा
'मुझसे पूंछ रहीं हैं कि मेरे पास इनके लिए समय है...समय ?पास बैठने के लिए ये नौकरी तक छोड़ दूँ..मगर कहे तो ...सच एक पल के लिए ना सोचूँ" माधव मन ही मन खुद से बोला तो उसे चुप देखकर रमा फिर बोली
"कोई बात नहीं अभी देर हो रही होगी आपको..शाम को पूंछ लूँगी" कहकर रमा मुड़ी ही थी कि माधव बोला
"अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं..बल्कि आज तो बहुत समय है... आज थोड़ी देर से जाना है...बताओ क्या समंझ नहीं आ रहा"
रमा को जाते देख माधव ने झूठ बोल दिया
"बस्स अभी फॉर्म लेकर आई"
मुश्किल से दो मिनट बाद ही फॉर्म हाथ में पकड़े बापस आ गयी "विषय समझ नहीं आ रहे..कौन से लूँ"
"अच्छा मैं मदद करता हूँ...बारहवीं में कौन से थे?"
"हिन्दी, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और इतिहास"
"वाह। तुम तो शास्त्रों की ज्ञाता निकलीं" माधव कहकर हँसा तो रमा भी हँस दी
"कोई सलाह देने वाला तो था नहीं...जो इस दिमाग में आया ले लिया" रमा थोड़ी उदास होकर बोली
"अरे मैंने तो मजाक में कहा ...विषय सच में अच्छे लिए हैं तुमने ...तो अब बस्स चार ही तो चुनने हैं..जो इनमें से सबसे नापसन्द हो उसे छोड़ कर बाकी के चार ले लो" माधव ने सलाह दी
"अर्थशास्त्र ...यही सबसे कठिन लगता है मुझे.." रमा ने जब ये कहा तो मन ही मन माधव ने अपना सिर दीवार पर दे मारा
कठिन भी लगा तो अर्थशास्त्र...इतने में सुशीला उठी और नीचे चली गयीं
"शुक्र है ' माधव उन्हें जाते देख बुदबुदाया और बोला
"रमा जानती हो..ये मेरा विषय है रोज मैं यही विषय पढ़ाता हूँ..इस विषय की वजह से तुम्हें अच्छी नौकरी मिल सकती है.....मैं मदद कर दूंगा तुम्हारी...इसे ले लो...तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी"
"लेकिन मुझे बिल्कुल समंझ नहीं आता"
"मैं बहुत आसानी से समझा दूँगा तुम्हें...कोई और विषय छोड़ दो"
"आप समझ नहीं रहे हैं...मुझे डर लगता है अर्थशास्त्र से"
माधव मन ही मन खुद से बोला 'आखिर समझ क्यों नहीं आता इसे ...अगर अर्थशास्त्र लेगी तो समझने के लिए मेरे पास बैठेगी ...एक मैं हूँ जो ...इसके आस पास रहने को इतना व्याकुल रहता हूँ ...और ये है कि..
"अच्छा छोड़िए इसे...ये बताइए यहाँ अभिवावक वाली जगह में क्या भरूँ...पिताजी तो रहे नहीं...तो...क्या उनका नाम ही लिखूँ..."
"सरंक्षक वाले इस खाने में अपनी बुआ का नाम लिख दो"
"ठीक है तो " कहते हुए रमा उठ बैठी
"क्या ठीक है...विषय तो भरे नहीं तुमने अभी तक" माधव ने उसे उठते देखकर कहा
"भर लूँगी"
"नहीं ...अभी भरो...बैठो और लिखो "माधव ने थोड़ी सख्त आवाज में कहा तो रमा बैठ गयी। और लिखने लगी
"लिखो ....साहित्यिक हिन्दी"
"हम्म"
"सामान्य अंग्रेजी"
"हम्म"
"इतिहास"
"हम्म"
"और अर्थशास्त्र"
अर्थशास्त्र का नाम सुन कर रमा चुप हो गयी
"क्या हुआ लिखो ना"
"वो मैंने आपको कहा ना..
"मार डालूँगा तुम्हें... अगर अर्थशास्त्र नहीं लिखा तो" पूरे हक से झूठी गुस्सा दिखा गया माधव, और उसे फौरन एहसास हुआ आवेश में ये क्या कह गया......इस एक बात में माधव का प्रेम और हक दोनो महसूस हुआ रमा को ...झंकृत हो गया उसका मन .....और शायद पहली बार दोंनो एकदूसरे को बिना पलक झपकाए कुछ देर देखते रहे।
"रमाआ ...विधालय नहीं जाएगी?" सुशीला की आवाज आई तो रमा उठी और रमा के उठते ही माधव ने उसका फॉर्म पकड़ लिया " नहीं लिखोगी?...यकीन करो...तुम्हारे भले के लिए कह रहा हूँ?"
माधव के ऐसे व्यवहार से झेंपी रमा ने बिना नजर उठाये जल्दी से चौथे विषय में "अर्थशास्त्र' लिखा और नीचे जाने के लिए सीढियां उतर गई। ये सोचकर कि अब अर्थशास्त्र (इकोनॉमिक्स) सीखने रमा उसके पास बैठेगी...माधव मुस्कुराया और बिस्तर पर रखा तकिया उठा कर खुद के मुंह पर रख लिया।
***
कई बार माधव छत से झाँक कर सड़क और गली में देख चुका था..."ये एक से दो बजे का समय सच में बहुत धीमा चलता है...चलो तब तक कविता ही लिखने की कोशिश करता हूँ " खुद से बात करते -करते माधव अपने कमरे में बैठ कविता लिखने की कोशिश करने लगा ...पेन से कुछ लिखता ...फिर बुदबुदाता ...नहीं..नहीं ये पंक्ति मेल नहीं खाती ....फिर खुश होकर कुछ और लिखता..
" एक शाम तेरे साथ गुजरे ऐसी हसरत पाल बैठा हूँ।
...एक शाम तेरे साथ गुजरे ऐसी हसरत पाल बैठा हूँ...
आँखे बंद किये माधव कुछ कविता की लाइन बनाने की कोशिश कर ही रहा था, तभी
"माधव भईया..." वंशी ने उसके कमरे के बाहर आकर उसे पुकारा
"वंशी, अभी खाना नहीं खाऊँगा...जाओ" आँखे बंद किये ही माधव ने उसे जवाब दिया
"वो बीबी जी ..."
"हाँ वंशी...रमा आ जायेगी तभी खाऊँगा" वंशी की पूरी बात सुने बिना माधव ने अपनी धुन में रमें ही जवाब दिया।
"अरे भईया आँखें खोलो और घड़ी देखो जरा"
"क्या वंशी...क्या है" माधव ने झुंझलाकर आँखे खोल दी, वंशी ने दीवार पर लगी घड़ी की ओर इशारा किया, तो चौंक गया माधव
"अरे । ढ़ाई बज गया...रमा नहीं आई क्या?"
"वही तो कह रहा था भईया...अभी तक नहीं आईं बीबी जी" वंशी की आवाज में चिंता घुली हुयी थी...
"अरे...तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया.." माधव सीढ़ियों की ओर दौड़ा और उसके पीछे-पीछे वंशी...दोंनो, रमा के विद्यालय पहुँचे...देखकर चौंक गए
"भईया ...वो देखो ...वो बीबी जी का हाथ पकड़ रहा है" वंशी चिल्लाते हुए भागा...माधव ने देखा रमा रो रही है...और अपना हाथ छुटाने की कोशिश कर रही है...वहीं एक
लड़का उसे अपनी ओर खींच रहा है। साथ ही दो और आदमी थोड़ी दूरी पर खड़े मुस्कुरा रहे हैं...
गुस्से में माधव के पूरे शरीर का खून जैसे चेहरे पर उतर आया हो..वो पूरी ताकत से दौड़ा और उसने जोरदार झापड़ उस लड़के के मुँह पर जमा दिया।
.................................क्रमशः.....................