Rishte Ka Bandh -Last Part in Hindi Love Stories by sonal johari books and stories PDF | रिश्ते का बांध - (अंतिम भाग)

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रिश्ते का बांध - (अंतिम भाग)

रमा को बन्द आंखों के सामने माधव का चेहरा नजर आने लगा। और उसकी कही हुई बातें गूँजनी लगी

#मेरे रहते तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं......"
# तू जो कोई भी हो तेरी हिम्मत कैसे हुई रमा का हाथ पकड़ने की"
#"मार डालूँगा तुम्हें... अगर अर्थशास्त्र नहीं लिखा तो"
#तुमने तो मुश्किल कर दी रमा ..ना मिली कभी तुम्हारे हाथों की चाय तो मुश्किल ही होगी ना"
#आज जब तुम्हें भजन गाते सुना तो खुद व खुद बाँसुरी बजाने लगा...बहुत अच्छा गाती हो तुम"

# और जब दुकानदार ने पूँछा कैसे रंग की चूड़ी तो माधव कितने मन से बोला "हरे रंग की" उस वक़्त जो माधव के चेहरे की चमक थी ....
"आह " बोलकर रमा ने एक गहरी सांस खींची
"मुझे इस लायक भी समझोगे तुम...कि मुझसे प्रेम कर सको...आह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था...नहीं सोचा था...मैंने" बोलती हुयी रमा रोने लगी
"भईया बहुत प्रेम करते हैं आपसे...इतना कि इस दुनिया में कोई भी किसी से ना करता होगा...." अब तक चुपचाप खड़ा वंशी बोल उठा...तो रमा ने अपनी आँसुओं से डूबी आँखों से उसकी ओर देखा...वंशी आगे बोला
"विद्यालय से आने में जरा भी देर होती आपको ..भईया चिंता में डूब जाते...यहीं (छत की ओर इशारा करते हुए) इसी छत से आपके आने की राह तकते...जब तक आप ना आ जाती थीं ...वो खाना नहीं खाते थे...." ये सुन कर रमा उठी और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी और बाहर की ओर देखने लगी ..
"जानती हो बीबी जी...इसी खिड़की से रोज आपको जल चढ़ाते देखते हैं...
"क्या...".रमा ने अपनी साड़ी का छोर कस कर पकड़ लिया
"हम्म ..कहते हैं...उगता सूरज आपके आने से पहले इतना सुंदर उन्हें कभी नहीं लगा..."
ये सुन कर रमा ने अपनी आँखें फिर बन्द कर ली...और आँखों से आँसू बहकर गर्दन तक जा पहुंचे
"ज्यादा ऊपर भी देखे तो सिर घूमता है उनका......लेकिन जिंदगी में पहली बार ...सबसे ऊंचे झूले पर जा बैठे...सो भी आपका तनिक देर साथ पाने के लिए और आप को झूला झूलना पसंद है इसलिए" वंशी ये कहकर चुप हो गया।

#रमा को याद आया...जब झूले पर बैठा माधव मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था.." रमा ने फिर एक तेज़ सिसकी ली....और चुपचाप शून्य में देखती रही।

"र....मा...नीचे ...आ....."सुशीला की आवाज से रमा चौंक गयी
"तो ...तो फिर...उन्होंने किसी को रिश्ते के लिए क्यों बुलाया है?" रमा को सुशीला के आवाज देने से याद आया कि उसे कोई देखने आने वाला है
"आपकी खुशी की खातिर..." वंशी बहुत धीरे से बोला
"क्या ..मेरी खुशी?" रमा ने आश्चर्य से पूँछा
"हाँ बीबी जी...किसी और को नहीं बल्कि गौतम भैया को ही बुलाया है उन्होनें "
"गौ...त...म....को" रमा ने दोहराया
"हम्म...जब से भईया को पता चला है कि आप गौतम को पसंद करती हैं ...
"क्या....उनसे किसने कहा कि मैं...." रमा इतना ही बोल पायी कि वंशी बोल पड़ा
"जिस दिन से उन्हें पता लगा..उसी दिन से अंदर ही अंदर घुटे जाते हैं बेचारे ...उस पर आपकी बुआ...
"बुआ?"
"बुआ ने तो अती ही कर दी...वो चाहती हैं...कि भईया आपकी शादी करके जल्दी से आपको इस घर से विदा कर दे.."
"क्या? बुआ चाहती हैं..."
"हाँ...जिस दिन बुआ ने उनसे आपकी शादी की बात कही...उसी दिन उनकी तबियत खराब हो गयी...अगर समय रहते मैं ना देख पाता तो......."(भावुकता में वंशी का गला रुँध गया...कुछ देर रुककर आगे बोला) जिस दिन बुआ गाँव से आयीं थी उसी दिन माधव भईया ने कह जो दिया था...कि वो अपने पिता के सारे कर्त्तव्य निभायेंगे...बुआ आपकी शादी माधव भईया के हांथों करवाकर उनसे कर्तव्य निभवाना चाहती हैं...तब से भईया कितने बेचैन हैं.. क्या बताऊँ...रात -रात भर सोते नहीं हैं...कहते हैं बिना रमा को देखे जिऊँगा कैसे..."

रमा की आँखो में थोड़ी देर से रुके हुए आँसू फिर से बहने लगे
वंशी ने कहना जारी रखा
"ना ठीक से खाते हैं ना पीते हैं...सहज बने रहने का नाटक करते हैं...और अंदर ही अंदर घुट रहे हैं..और तो और ...आजकल सहारे के लिए सिगरेट और पीने लगे हैं...
"क्या...?"
"हां बीबी जी..मुझसे तो उनका दुख देखा नहीं जाता.
..इसीलिए आज उनकी दी हुई कसम तोड़ दी...और सब बता दिया आपको ....भईया होते हैं नाराज... तो हो जाये..."
अब रमा को अपने पैर काँपते महसूस हुये खड़े रहना मुश्किल हो गया.. तो माधव के बेड से टेक लगाकर बैठ गयी
"माधव ...मुझसे प्रेम करते हैं...मुझसे ..." वो आँखे बंद कर के
धीरे से बोली ...
"गौतम से मना कर दीजिए बीबी जी...मना कर दीजिए ...भईया जी नहीं पाएंगे आपके बिना" वंशी ने गले में पड़े गमछे से अपने आँसू पोंछते हुए कहा
"तुमसे किसने कहा वंशी भैया... कि मैं गौतम से प्रेम करती हूँ ?"
"और कौन कहेगा...भईया ने कहा"
"और उनसे किसने कहा?"रमा ने पूँछा
"वो..वो..आ ..."
"कहिए भी..."
"उनसे कहा किसी ने नहीं..वो तो.उन्होंने खुद ही किबाड़ की दरार से झाँक कर देख लिया था...'
वंशी ने कहा तो रमा फ़िर खड़ी हो गयी और एक हाथ खुद के माथे पर हाथ रखते हुए आँखे बंद कर बुदबुदाई "हे भगवान ...हे भगवान..."
"भईया में ये तांका-झांकी की बुरी आदतें नहीं हैं बीबी जी...वो तो ना जाने कैसे उस दिन उन्होनें झाँक ही लिया...उसी दिन तो उनके हाथ में चोट लगी थी...या कहो गुस्से में जानबूझकर वो खुद चोटिल हो गए...." वंशी कह ही रहा था...कि किसी ने बाहर का दरवाजा खटखटाया और रमा पूरी ताकत से दौड़ती हुई नीचे पहुंच गई।
और दरवाजा खोल दिया ।
"गौतम..जी ...आप?" गौतम को देखते ही उसके मुँह से निकला
"जी...रमा...वो कल माधव जी ने मुझसे कहा कि अपने माता-पिता के साथ आऊँ....(नजरें झुका कर) वो शादी के लिए...तो मुझे लगा एकबार तुमसे पूँछ लूँ..इसलिये अकेला चला आया.... तुम्हारा फैसला बदल गया है क्या?"
"नहीं...मेरा फैसला वही है गौतम जी...
"तो....फिर?" गौतम ने आश्चर्य से पूँछा
"माधव को कोई गलतफहमी हो गयी थी...मुझे भी अभी-अभी पता लगा..
"ओहह."
".आपको मेरे कारण बेकार में ही कष्ट हुआ...मैं उनकी ओर से माफी मांगती हूँ "
"अरे...माफी की कोई जरूरत नहीं...तो फिर चलूँ?"
रमा ने सिर झुकाकर हाथ जोड़ दिये
"रमा"
"जी ...कहिए"
"रमा...जीवन में तुम्हें कभी लगे कि मैं मदद कर सकता हूँ..तो खुद को मदद लेने से रोकना मत "
"नहीं रोकूँगी"..इस बार रमा मुस्कुराती हुई बोली...और बदले में गौतम भी मुस्कुराया और चला गया।
उसके जाते ही रमा ने सड़क पर पहले दायीं फिर बायीं ओर देखा "ओह कहा रह गए.." वो बुदबुदायी
"कहाँ हैं गौतम..." सुशीला ने पूँछा, वो हाथ में एक थाली पकड़े थीं जिसमें एक दीपक जल रहा था...पांच वर्फ़ी के पीस रखे थे.. थोड़े से रोली, चावल और जल का लोटा रखा था।
रमा बिना कुछ बोले वहाँ से हट कर आँगन में एक ओर बैठ गयी।
"ये क्या तरीका हुआ...जवाब क्यों नहीं देतीं...मैंने गौतम की आवाज सुनी थी कहाँ चले गए आकर और गौतम के माता-पिता नहीं आये..."
"आपने कभी मेरे मन की आवाज सुनी ...बुआ?" वो कहीं खोयी सी धीमी आवाज में बोली। सुशीला ने उसे ऐसे देखा जैसे रमा ने कोई अबूझ पहेली पूँछ ली हो
"कब नहीं सुनी...तेरी ही तो सुन रही हूँ....ये सब और कर किसके लिए रही हूँ"
"क्या कर रही हो ..वही तो पूँछ रही हो..."
"तेरे मन की ही तो कर रही हूँ..."
"नहीं मेरे मन की नहीं...अपने मन की कर रही हो बुआ...एक तरफ कहती हो ...माधव ने कितना किया है हमारे लिए...और दूसरी ओर उस भले इंसान को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मजबूर करती हो"
सुशीला कुछ नहीं बोलीं तो रमा बिल्कुल उनके सामने जाकर खड़ी हो गयी और बोली
"कैसा मन हैं तुम्हारा बुआ..जो माधव के मन को दुखाते हुए जरा भी नहीं पसीजा...तुम्हें पता है माधव को दिल का दौरा पड़ते-पड़ते बचा है...तुम्हारे कारण...बुआ...क्यों करती रही तुम उन्हें मजबूर अपनी बातें मनबाने को"
"तो और क्या करती बोल...अपने अनुभव से मैं जान गई कि उसकी नजर थी तुझ पर...अगर डपट कर सुधार दिया..तो क्या बुरा किया...क्या तुझे सौंप देती उसको..?

"बस्स करो बुआ...किसी काम का नहीं तुम्हारा अनुभव...
(रमा चीख पड़ी) तुमने साबित कर दिया बुआ... कितना भी सम्मान मिले स्वार्थी इंसान को लेकिन उस इंसान की फितरत नहीं बदलती.."
"र....मा...." सुशीला भी चीखीं।
लेकिन रमा पर उनके चीख़ने का जरा भी असर नहीं हुआ...वो जमीन पर निढ़ाल सी बैठ गयी
"प्रेम करते हैं माधव मुझसे ...बुआ ...और फिर भी तुम्हारे कहने से मेरी शादी करने चल दिये...क्या प्रेम की ये सच्चाई नहीं देख पाया तुम्हारा अनुभव और मन?"
उसी वक़्त दरवाजे पर माधव आ गया और उसने ये सुन लिया...ये सुनकर उसके पैर दरवाजे पर ही जम गए, जैसे ही सुशीला की नजर माधव पर पड़ी...सुशीला डपटने के अंदाज में धीरे से बोलीं "रमा..."
"अगर वंशी भैया ना बताते तो मैं कभी ना जान पाती...
रमा के ये बोलते ही सुशीला ने एक सुलगती निगाह वंशी पर डाली...लेकिन वंशी बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ ...लेकिन जैसे ही माधव ने उसकी ओर देखा तो वंशी फौरन रसोई में घुस गया।
"बुआ, तुम तो मेरी मन की आवाज भी नहीं सुन पायी...
नहीं तो मेरी शादी किसी और से करने के बारे में सोचती भी नहीं...किसी और के लिए मेरे मन में जगह है ही क्या..
"र...मा...चुप हो जा...इतनी बेशर्मी अच्छी नहीं" सुशीला ने फिर डपटा
"मैं मन ही मन माधव से प्रेम करती हूँ बुआ..." रोते हुए उसने जमीन पर अपने दोंनो हाथ रखे और अपना चेहरा हाथों पर रख लिया...
ये सुनते ही बुआ के हाथों से पूजा की थाली छूट गयी...जलती हुई बाती दीपक से छिटक कर अलग गिरी लेकिन जलती रही...
वंशी भी रमा की ये बात सुन कर रसोई से निकल कर आ गया ..उसके चेहरे पर खुशी देखते ही बन रही थी...
दरवाजे पर खड़े माधव का मुंह ये सुनते ही खुल गया...वो अतिरिक्त रूप से आँखे खोले रमा की ओर देख रहा था..जो जमीन पर मुँह औंधाये लेटी थी...
रमा मुझसे प्रेम करती है...मुझसे...ओह..' मन ही मन बोलते हुए माधव को ऐसा महसूस हुआ जैसे पूरे शरीर में तितलियां सी उड़ रही हो...और मन के साथ तन भी इतना हल्का लग रहा था...जैसे हवाओं में उड़ा जाता हो..आँखों से खुशी के आँसू झलक आये...और चेहरे पर मुस्कान खिल गयी...दिल की धड़कन ने तेज़ रफ्तार पकड़ ली..जिसे नियंत्रित करने के लिए उसने एक हाथ अपने सीने पर रख लिया...

जैसे रमा ने चुपचाप खड़े माधव की आहट पहचान ली हो...वो उठी.. और माधव को दरवाजे पर खड़े देखकर.. वो दरवाजे की ओर दौड़ी...
"इतना प्रेम करते हैं ...फिर भी गौतम से मेरी शादी करने चल दिये " रमा ने सीधे ये प्रश्न कर दिया माधव से
"तुम्हारी खुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं रमा...ये जानने के बाद कि तुम गौतम से..." माधव बोल ही रहा था
"जिस किवाड़ की दरार से आपने गौतम को मुझे फूल देते हुए देखा था...उसी दरार से मुझे आपके आने का एहसास हो गया था...मैंने भी आपका प्रतिबिंब देख लिया था...मुझे लगा गौतम को अभी समझाना मुमकिन नहीं हो पायेगा....और गौतम फूल मेरे सामने से हटा ही नहीं रहे थे..मुझे उस वक़्त कुछ समझ नहीं आ रहा था इसीलिए मैंने जल्दी से उनसे फूल ले लिया था...
फिर अगले ही दिन... मैंने उन्हें बता दिया था कि मेरे मन में उनके लिए कुछ नहीं...बल्कि मन ही मन किसी से प्रेम करती हूँ." रमा ने एक सांस सब बोल दिया.
"र...मा..." कहते हुए माधव बुदबुदाया 'आहह कितना गलत समझा मैंने'
थोड़ी दूरी पर खड़े वंशी ने ये सुनते ही गुमान में भरते हुए अपने बाल पीछे की ओर झटक दिये।
रमा ने आगे बढ़कर माधव का हाथ पकड़ा और रसोई के पास बने पूजाघर में उसे ले गयी.. ..आलमारी में एक कृष्ण की मूर्ति रखी थी और मूर्ति के पास ही एक छोटा सा खाली फोटो फ्रेम रखा था..
"देखिए...जब मैं इनकी पूजा करती थी...इस खाली फ्रेम में आपका प्रतिबिंब भी महसूस करती थी...आपको मैं इंसान के रुप में अपने गिरधर का प्रतीक रूप मानती हूँ माधव..
.हर दिन इन्हें धन्यवाद देती हूं जो आप जैसे इंसान से मिलने का सौभाग्य दिया इन्होंने मुझे....आपने मेरी सारी मुसीबतें खत्म करते हुए मुझे कितनी खुशियां दीं..आपकी सेवा करके मुझे इतनी खुशी मिलती है क्या कहूं"
"र...मा...." भावुक माधव के मुंह से निकला
"आप इतना गहरा प्रेम कर सकते हैं मुझसे ...मुझे तो अब तक यकीन नहीं हो रहा..." रमा ने ये कहते हुए अपने हाथ में पकड़ा वो कविता वाला कागज़ खोल दिया
"ये तो कुछ भी नहीं रमा...इससे कहीं ज़्यादा...बुआ की कसम में बंधा हुआ था...लेकिन जरा सा अंदाजा भी होता..तो ...
"मैं तो कह भी देती आपसे...लेकिन सोचा किस मुँह से कहूं....बस्स आपके आस पास भी रह पाऊं सो बहुत..
...फिर कहाँ आप(हाथ ऊपर उठकर) कहाँ मैं (जमीन की ओर हाथ करके) "
"(जमीन की ओर इशारा करते हुए) वहाँ ना तो तुम थीं..ना मेरे जीते जी एक पल को भी रहोगी...जानती हो कहाँ हो तुम..(रमा का हाथ पकड़कर माधव ने खुद के सीने पर रख दिया) यहां हो...मेरे मन की और जीवन की साम्राज्ञी हो तुम रमा" माधव ने रमा की आंखों में देखकर जब कहा तो रमा ने शर्माते हुए अपना हाथ माधव के सीने से हटा लिया।
फिर माधव बाहर आंगन में आया और मुस्कुराते हुए वंशी को गले से लगा लिया...
"मैं ना कहता था भईया..मैंने बीबी जी की आंखों में आपके लिए प्रेम देखा है" वंशी खुश होकर बोला
"जानता हूँ वंशी..एकबार को मैं खुद के लिए गलत हो सकता हूँ... लेकिन तुम कभी नहीं ....आज तुमने फिर एक बार मेरे जीवन में खुशियां भर दी...जीवन की सबसे बड़ी खुशी दे दी ..." माधव कस कर वंशी को गले से लगाये भावुक होकर बोले जा रहा था..
"आप जानते हैं गिरधर का एक नाम माधव भी है...जैसे उनके जीवन में उनकी मुरली खुशी लाती है ना..ठीक वैसे ही वंशी भैया आपकी मुरली हैं..जो आपके जीवन में हमेशा खुशी लाते हैं..और मेरे जीवन में भी" रमा पास आते हुए बोली
"भईया..क्या मैं बस्स मुरली ही हूँ" वंशी ने मासूमियत से पूँछा तो दोनों हँस पड़े..और साथ ही वंशी भी...
तीनों हँस ही रहे थे...कि 'धड़ाम' की आवाज से चौंक गये...
पीछे मुड़ कर देखा तो बुआ नीचे पड़ी थी ।
***
"ब्लड प्रेशर बढ़ने से अक्सर बेहोशी आ जाती है...वही हुआ "
डॉक्टर ने सुशीला का चेकअप करने के बाद कहा
"कोई चिंता की बात तो नहीं ना डॉक्टर साहब" माधव ने पूँछा
"नहीं ..चिंता की बात तो नहीं...इंजेक्शन लगा दिया है....दवा लिख देता हूँ..दस दिन खाने दीजिये फिर आकर बताइये"
डॉक्टर ने दवा लिखते हुए कहा और पर्चा माधव को पकड़ा दिया...और माधव ने वंशी को...वंशी बिना वक़्त गवाएं पर्चा लेकर दवा लेने चला गया
"डॉक्टर साहब क्या हम उनसे मिल सकते हैं" रमा ने आंसू पोंछते हुए पूँछा
"जी... क्यों नहीं " डॉक्टर के इजाजत देते ही रमा और माधव सुशीला के पास चले गए
" बुआ जी ...अब कैसा लग रहा है" माधव ने उनका हाथ पकड़ते हुए पूँछा
"आह...तुम्हें अब भी फिक्र है मेरी...सब जानते हुए भी ...कितना मानसिक कष्ट दिया मैंने तुम्हें लेकिन तुमने उफ्फ तक नहीं की बेटा...
"बुआ रहने दीजिए ये सब..मत सोचिए." माधव विन्रम होकर बोला
"जब पहली बार तुमने रमा को देखा था और रमा ने तुम्हें... मैं उसी पल समझ गयी थी...कि तुम दोनो को एकदूसरे से प्रेम हो चुका है ...." बुआ के इतने कहते ही रमा और माधव ने एकदूसरे को देखा
"...लेकिन मैं उस वक़्त इतनी डरी हुई थी...कि लगता था कि हरेक लड़का भूरे जैसा ही है...तुम्हें रमा की ओर झुकते देखा तो यही सोचा...कहीं ऐसा तो नहीं कि बस्स कुछ उपकार करके तुम रमा को हथियाना चाहते हों"
"इतना भरोसा भी नहीं था आप को मुझ पर..." माधव शांत आवाज में बोला
" जब किसी इंसान ने हमेशा बुरे लोगों को ही देखा हो तो ..अच्छे इंसान भी उसे बुरे ही दिखते हैं.....इसलिए ....फिर बाद में जब बिना एतराज किये तुम मेरी हर बात मानते रहे...फिर चाहे बात रमा से दूरी की हो...या उसकी शादी की...यकीन हो गया मुझे तुम्हारा प्रेम सच्चा है उसके लिए"

ये सब सुनते हुए माधव जहाँ शांत था वहीं रमा के चेहरे पर तरह-तरह के भाव आ -जा रहे थे।
वंशी भी दवा लेकर लौट आया था..और चुपचाप खड़ा हो गया था

"...तब तक तुम दूरी बना चुके थे उससे..और मुझे लगा तुम्हारा ...रमा के प्रति झुकाव खत्म हो गया है..रहा सहा उसकी शादी से खत्म हो जाएगा..तो मेरा बुढापा तुम्हारे पास कट जाएगा...नहीं तो कहाँ जाती बुढ़ापे में"
"आप को लगा भी कैसे...अगर आप रमा की शादी कहीं और भी करा देतीं.. उस हालात में भी...ना तो मैं आपको कहीं जाने देता...ना ही सम्मान करना बंद करता..."
"हीरा हो तुम ...बेटा...मेरी रमा के भाग्य खुल गए...(फिर रमा की ओर देखकर) तू भी मुझे माफ़ कर दे"
"ऐसा मत कहिए बुआ" रमा भावुक होकर बोली
" अच्छा माधव ..मेरी एक और बात मानोगे बेटा"
"कहिए...बुआ जी" माधव थोड़ा डरते हुए बोला
"मेरी रमा से शादी कर लो बेटा...उसे हमेशा के लिए अपना लो?" सुशीला ने मुस्कुराते हुए कहा तो माधव ने रमा की ओर देखा और मुस्कुराते हुए पूँछा
"रमा, शादी करोगी मुझसे?"
रमा ने शरमाते हुए नजरें झुका लीं।
"वाह! मैं तो कहूँगा भईया..कल ही शादी कर लो" वंशी खुशी से उछलते हुए बोला
"चुप कर पागल कहीं का...अगले महिने की 15 तारीख सुभ है...क्यों ठीक है ना?"..सुशीला बहुत प्यार से बोलीं तो जवाब में सब मुस्कुरा दिए। .......

★★★★★★★★★समाप्त★★★★★★★★


🙏आभार :-सोनल जौहरी
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