"वंशी...अरे ओsss वंशी..." माधव ने आवाज लगाई
"हॉं भईया...क्या हुआ" वंशी दौड़ता हुआ आया
"ये लो " माधव ने मुस्कुराते हुए उसे पचास रुपये पकड़ा दिए
"पचास रुपये ..किसलिए भईया?" वंशी ने नोट को उलटते पलटते हुए पूँछा
"खुश होकर इनाम दिया है तुम्हें आज...तुमने मेरे सारे कपड़े धोकर प्रेस जो कर दिए हैं" माधव खुश होकर बोला
"तब तो ये इनाम बीबी जी को मिलना चाहिए"
"क्या..?." माधव चौंक गया
"हाँ ...उन्होंने ही धोए हैं कपड़े भईया..." वंशी ने कहा तो माधव एकदम गंभीर हो गया और बिना कुछ बोले सीढियां उतर गया..नीचे आया तो देखा रमा सुशीला के पास बैठी थी। सुशीला जहाँ दुखी थीं वहीं आने वाले डर की आशंका से रमा के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें खिंची हुयी थी, "डरी हुई भी कितनी मासूम लगती है...जल्दी ही ये डर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा रमा...मेरा वादा है तुमसे" माधव मन ही मन बोला फिर सुशीला के पास जाकर कहा
"बुआ जी बाजार जा रहा हूँ सामान लेने...आप और रमा साथ ही चलिए अपनी पसंद की साड़ी ले लेना"
"साड़ी किसलिए..."
"दीपावाली पर नए कपड़े पहनते हैं ना"
"अरे अभी अभी तो लाये थे साड़ियाँ...और तुम बाजार जा ही क्यों रहे हो माधव...वंशी को भेज दो......"
"वंशी साड़ियां नहीं खरीद सकता बुआ जी"
"अरे भाड़ में गयीं साड़ियां..यहाँ जी हलकान हुआ जा रहा है..और तुम्हें साड़ियों की पड़ी है...अगर तुम्हारे पीछे वो मातादीन..."
"बुआ जी, बस्स दस मिनट दीजिये....अभी आया" बुआ जी की बात खत्म होने से पहले ही माधव दौड़ता हुआ घर के बाहर निकल गया। सुशीला उसके पीछे घर के दरवाजे तक गयी "ये ...माधव भी...ओह्ह..." कहते हुए उन्होंने दरवाजा बंद कर, ताला लगा दिया। वंशी ने उन्हें ताला लगाते देखा तो उनका डर भांपते हुए कुछ नहीं बोला।
और मुश्किल से बारह से पंद्रह मिनट ही बीते होंगें कि माधव तीन लोगों को लेकर बापस लौटा।
"वंशी, ये हमारे मेहमान हैं...बाहर वाले कमरे में ये दोनों लोग रुकेंगे...देखना इनका ख्याल रखने में कोई कमी ना आये"
माधव ने वंशी के दरवाजा खोलते ही कहा...
"माधव... कौन हैं ये लोग?" सुशीला ने घबराते हुए पूँछा
"ये हमारी मदद के लिए हैं बुआ जी" कहकर माधव बाहर जाने के लिए मुड़ा ही था कि सुशीला फिर धीरे से बोलीं
"वो इत्ते सारे लोग...ये बस्स तीन...तुम कहीं मत जाओ माधव?"
माधव ये सुनकर मुस्कुराया और
"बुआ जी मैं यही हूँ ...वंशी जरा चाय लाना" कहकर बाहर वाले कमरे में बैठ कर उन लोगों से बात करने लगा।
मुश्किल से आधा घण्टा ही बीता होगा कि गली से आती कुछ आवाजे माधव के कानों में पड़ी
"वंशी ..कहाँ रहता है यहाँ..." अच्छा वो आगे से तीसरे मकान में" "ठीक है "
माधव ने अपनी खिड़की से झाँक कर देखा तो उसकी नजर भूरे पर पड़ गयी। और माधव की त्योरियां चढ़ गयीं
"जल्दी बुलाइये उन्हें...आ गए वो लोग" माधव ने उन साथ आये लोगों से कहा ...और भीतर जाकर सुशीला और रमा से बोला
"बुआ जी, रमा ...भूरे आ रहा है"
"हे भगवान... हे भगवान...अब क्या होगा" कहती हुई बुआ घबराकर चारपाई पर बैठ गईं
"घबराने की जरूरत नहीं है...मेरा यकीन कीजिये ..वो बस्स आज के बाद कभी आप लोगों को दिखेगा भी नहीं...बस्स हिम्मत रखिये"
माधव कह कर पलटा ही था...कि देखा भूरे दरवाजे पर खड़ा था...साथ में पाँच छै लोग और गुस्से में दहकते मातादीन
"तुम लोग...यहाँ कैसे?" माधव ने गुस्से में पूँछा
"और कहाँ होना चाहिए था...उस दिन तो तू बच गया..आज ना तो तू बचेगा ...और ना हम रमा को लिए बिन जाएंगे" भूरे बहुत जोश में बोला, ये सुनकर रमा डरकर कमरे में छिप गयी
"ख़बर..दा..र...जो किसी ने मेरे घर के अंदर कदम भी रखा" माधव तेज़ आवाज में चीखा तो उसे देख कर मातादीन बोले
"तो ये है...फ़साद की जड़"
और घर के अंदर आ गए । उनके अंदर आते ही साथ आये लोग भी घर में घुस आए।
"क्यों री सुशीला। तू तो कहती थी कोई रिश्तेदार नहीं तेरा
...फिर ये कहाँ से टपक पड़ा..." मातादीन जब सुशीला से बोले तो सुशीला आँखे फाड़े ऐसे जड़ हो गईं जैसे उनके शरीर का खून जम गया हो।
"तमीज से बात करो...बुजुर्ग महिला हैं वो" माधव गुस्से में चीखा
"बुजुर्ग महिला....हा हा हा...तू भी धोखा खा गया बच्चे..(फिर दाँत पीसते हुए) इस बुढ़िया को मैंने शादी के इंतजाम के लिए तीस हजार रुपये दिए थे...और ये चालक बुढ़िया बात पक्की करने के बाद मेरे पैसे और मेरी होने वाली बहू रमा, दोनों को लेकर भाग आई" माधव भी सुनकर थोड़े आश्चर्य में आ गया और उसने सुशीला की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा
"हमने किसी का पैसा नहीं लिया...किसी का नहीं...मेरे भाई का पैसा है वो" फिर सुशीला लगभग भागते हुए माधव के पास आयीं "माधव, मेरा भाई शराब पीता था..लेकिन वो बस्स महीने भर में बीस बीघे जमीन और... और .. हमाये मकान के बराबर पैसों की कैसे पी सकता है...बताओ ... कैसे..नहीं दूँगी मैं पैसे ...वो मेरे भाई के हैं" एक बच्चे की तरह सुशीला ने माधव का हाथ पकड़कर कहा और उसके पीछे दुबक गयीं
"लगता है चार दिन में ही बुढ़िया को शहर की हवा लग गयी...
हिसाब-किताब भी करने लगी" भूरे, सुशीला को घूरते हुए बोला
"आराम से भूरे...तेरी होने वाली सासु माँ है...मत भूल आज व्याह है तेरा (मातादीन भूरे को हाथ के इशारे से रोकते हुए बोले फिर हँसते हुए) हा हा हा तू भी क्या याद रखेगी सुशीला जा दान दिए तुझे वो पैसे...हमें बस्स हमारी होने वाली बहु चाहिए...कहाँ है रमा?"
मातादीन के बोलते ही कमरे में दुबकी रमा ने दोंनो हाथों से अपना मुंह बंद कर लिया।
"रमा की रजामंदी नहीं इस शादी में...वो आपके इस अनपढ़ और आवारा लड़के से शादी नहीं करना चाहती" माधव दाँत भीचते हुए बोला
"रजामंदी ? और रमा की?... वो पिद्दी सी लड़की अपनी रजामंदी बताएगी...सो भी हमें ?...हम किसी की रजामंदी सुनते नहीं...अपनी सुनाते हैं.....सुनो लड़के बहुत हो गए मान मनौने सीधी तरह से बताओ रमा कहाँ है."
मातादीन की ये बात सुनकर अंदर कमरे में छुपी रमा अपना मुँह बन्द करके रोने लगी।
"मैंने कहा ना .. रमा ये शादी करना नहीं चाहती...कहो तो सामने कहलवा दूँ"
माधव की बात सुनकर मातादीन ये सोचकर मुस्कुराने कि..इसी बहाने रमा सामने आ जायेगी
"ठीक है ...अच्छी बात है...बुलाओ रमा को सामने...हम भी तो सुने रमा का फैसला"
मातादीन की बात सुनकर माधव कमरे में गया जहाँ एक नजर में तो उसे रमा कमरे में दिखी ही नहीं...फिर लकड़ी की आलमारी के पीछे से उसे सिसकने की आवाज आई तो माधव ने देखा रमा की आँखे रो रो कर लाल हो चुकी थीं...दोनों हाथो से मुंह बंद करे उसने गर्दन ना में हिलाकर चलने से मना कर दिया। माधव को उसकी हालत देखकर बहुत बुरा लगा साथ ही मातादीन और भूरे पर गुस्सा और बढ़ गया
"बाहर चलो रमा...डरने की जरूरत नहीं...सबके सामने चलकर मना करो" माधव ने जब कहा तो रमा रोते हुए बोली
"मैं नहीं जाऊँगी बाहर...नहीं जाऊँगी"
"भरोसा रखो मुझ पर...बस्स बाहर चलकर बोल दो एकबार...मेरी खातिर... चलो..." जो रमा की आँखों मे देखते हुए माधव ने विश्वास से कहा तो बिना कुछ बोले वो धीरे से एक कदम आगे बढ़ी...माधव ने उसका हाथ पकड़ा और तेज़ कदमों से उसे बाहर ले आया
" बोल दो रमा ..." माधव ने उसे आंगन में ठीक मातादीन के आगे लाते हुए कहा
"मैं भूरे से शादी करना नहीं चाहती......उस दिन बुआ डर की वजह से नहीं मना कर पायीं थीं..."
भूरे और मातादीन ने चौंक गए जब उन् दोनों ने रमा को इतने सपाट अंदाज में बोलते देखा..भूरे ने खुद के लिए ना सुना तो गुस्से में वो रमा की ओर लपका तभी मातादीन ने उसका हाथ पकड़ लिया। और रमा बिना किसी की ओर देखते हुए अपनी रौ में बोलती रही
"और वैसे भी उनसे पूँछा नहीं गया था बस्स जबर्दस्ती शादी के इंतजाम के लिए पैसे पकड़ा दिए गए थे...बुआ ठीक कहती हैं
मेरे पिता ...इतने कम वक्त में इतने पैसों की शराब नही पी सकते जिसमें बीस बीघे खेत और घर बिक जाये। इसीलिए वो पैसे हमारे ही हैं..." काँपती आवाज में रमा ने अपने मन का ग़ुबार निकाल दिया
"बित्ते भरे की छोकरी और हाथ भर लम्बी जुबान...आज अगर पूरे गाँव में ये बात ना फैली होती कि व्याह है आज भूरे का...तो मार डालता इसे... भूsssरे उठा इसे ....और चल"
मातादीन जब आँखे निकाले गुस्से में चीखे तो रमा माधव के पीछे खड़ी हो गयी..और भूरे रमा को पकड़ने उसकी ओर दौड़ा..वंशी ने उसे बीच में पकड़ने की कोशिश की लेकिन भूरे के साथ आये आदमियों ने वंशी को पकड़ लिया।
"इतनी भी जल्दी क्या है जाने की ...प्रधान जी..." मातादीन के सिर पर पिस्टल रखते हुए जब इंस्पेक्टर पटेल बोले तो मातादीन सहित सब चौंक गए। माधव जिन तीन आदमियों को लेकर आया था उन्हीं में से दो ने भूरे और उसके साथियों की ओर पिस्टल तान दी।
"तेरी इतनी मजाल...कि मातादीन को पिस्टल दिखाए.."
"क्या करें। मजबूरी है.. कानून के रखवाले जो ठहरे...क्यों रुस्तम सब रिकॉर्ड कर लिया ना" इंस्पेक्टर पटेल ने सब इंस्पेक्टर रुस्तम से पूँछा
"यस सर, सब अच्छी तरह रिकॉर्ड हो गया है" रुस्तम ने कैमरा संभालते हुए जवाब दिया
" बिना इजाज़त घर में घुसकर किसी को धमकी देना, शादी के लिए जबर्दस्ती करना, मारने की धमकी देना...और अपशब्द बोलना ....धारा 504, 506 और 354 के तहत संगीन अपराध हैं। और कानून के मुताबिक दोषी को 7 साल की सज़ा का प्रावधान है। " माधव जिन तीन लोगों को लेकर आया था । ये उनमें से एक जो वकील था...जब वो बोला तो सब अपनी अपनी जगह जैसे जम गए। जहाँ माधव और वंशी एकदूसरे को देखकर मुस्कुराये वहीं रमा और सुशीला ने राहत की सांस महसूस की।
"जानते हो दरोगा...मैं कौन हूँ?" मातादीन ग़ुस्से में फुफकारते हुए चीखे
"जी पहली बात तो ये...कि मैं इंस्पेक्टर हूँ...और रही बात आप को जानने की...तो 7 साल की सज़ा के दौरान आप को जानने का भरपूर मौका मिलेगा...( हँसते हुए मजाकिया अंदाज में मातादीन को जवाब देकर पटेल गुस्से में सिपाहियों से बोले) ले जाओ इन सबको"
"देख लूँगा तुम सबको..." मातादीन, पटेल को घूरते हुए बोला
"पहले कोर्ट में जज साहब को देखना" पटेल उसे जवाब देते हुए रमा की ओर बढ़े
"तुम्ही रमा हो...?"
"जी..."बोलते हुए रमा ने अपने हाथ पटेल के आगे धन्यवाद व्यक्त करने के लिए जोड़ दिए।
"धन्यवाद मेरा नहीं माधव का कीजिये। आप तो स्नातक की स्टूडेंट हैं..आपको पता होना चाहिए..कानून भी एक लड़की को जिसकी उम्र 18 साल हो , उसके मन के मुताबिक शादी करने की इजाजत देता है...वो जिससे चाहें विवाह करने के लिए आजाद है...और ये अधिकार उससे कोई नहीं छीन सकता...कोई मजबूर कर तो उसके लिए कानून है पुलिस है...तो डरने की क्या आवश्यकता ...क्यों भईं माधव" पटेल अपनी बात कह माधव की ओर पलटा
"जी बिल्कुल सही कहा आपने...कैसे धन्यवाद कहूँ आपका सर, समंझ नहीं आता..."
"भई ये तो फ़र्ज़ है मेरा...लेकिन आप साथ ना देते तो इतने पुख्ता सबूत मिलना संभव ना हो पाता... ये पटेल आपसे दोस्ती करना चाहेगा...लेकिन इंस्पेक्टर के तौर पर नही"
जब पटेल ने कहा तो माधव ने अपना हाथ पटेल से मिलाते हुए कहा "मेरी खुशकिस्मती होगी सर"
" ये बताइए ..जमानत तो नहीं मिलेगी इसे?" माधव ने पूँछा
"मिल सकती थी...लेकिन सुबूत इतने पक्के हैं...कि मैं इसे जमानत मिलने नहीं दूँगा" ये सुनकर माधव ने खुश हो गया और पटेल के जाते ही वकील माधव से बोला
"मुझे भी फिलहाल जाने की इजाजत दीजिये"
"वकील साहब आपका भी बहुत शुक्रिया।
"बुआ क्या आप अपने भाई की जमीन के लिए मुकदमा लड़ना चाहेगी?" माधव ने सुशीला से पूँछा
"नहीं ... मेरे पैर कब्र में लटक रहे हैं...मैं इसका चेहरा भी देखना नही चाहती...बस्स पीछा छुटे इतना बहुत...रमा इतना तो कमाने लगी है...कि हम दोंनो दो वक्त की रोटी चैन से खाएंगे...मुझे बस्स शांति चाहिए" सुशीला बोलीं तो माधव ने रमा से पूँछा
"रमा...क्या तुम लड़ना चाहोगी? "
"बुआ ठीक कहती हैं...हर बार इन सबका चेहरा नहीं देखना चाहती मैं..पिताजी नहीं रहे। हमे अब कोई मतलब नहीं इस सबसे..रहने दीजिए दुख ही होगा बस्स.."
रमा ने कहा तो माधव ने वकील को जाने का इशारा कर दिया...जैसे ही वकील गया रमा बोली
"आपने जो किया समझ नहीं आता... कैसे कहूँ ...क्या कहूँ."
"धन्यवाद करना चाहती हो...तो वकील साहब की कही बात को गांठ बाँध लो..."माधव ने बस्स मुस्कुरा कर कहा तो बदले में रमा भी मुस्कुरा दी।
"वही तो मैं सोचूँ ...ये सब इतना इतना भला बुरा कह रहे हैं...लेकिन माधव भईया ..कुछ बोलते ही नहीं..जब पुलिस देखी तब समझ आया" वंशी खुश होकर बोला
माधव मुस्कुरा कर बोला "तुमने भी गजब की बहादुरी दिखाई वंशी...एक काम करो..आज से एक किलो दूध और बढ़ा कर लो ताकि तुम पी सको..."
"अरे भईया ...क्या आप भी...ये बताइये ...आज खुशी के मौके पर क्या बनाऊँ" वंशी ने पूँछा तो माधव चौंक कर बोला
"अरे मुझे भी तो बाजार जाना है...बुआ जी आप तो मना कर रहीं हैं....तो अगर इज़ाज़त दें तो रमा को ले जाऊँ? साड़ियां खरीदने में और समान लेने में मदद हो जाएगी मेरी" माधव खुशी की रौ में कह तो गया...लेकिन रमा को साथ ले जाने की बात बोलकर खुद ही शरमा गया।
"अच्छी बात है..माधव तुम्हारे पिताजी जहाँ भी होंगे तुम पर फुले समा रहे होंगे..जुग जुग जियो बेटा....तुमने सब क्लेश खत्म कर दी (फिर रमा से) जा चली जा"
सुशीला की इजाजत मिलते ही रमा मुस्कुराती हुई कुछ मिनटों में चलने को तैयार थी...और माधव तो जैसे खुशी में आसमानों में उड़ रहा था...
"चलिए.." रमा नीले रंग की साड़ी में मुस्कुराती हुई सामने खड़ी थी।
***
दीपावाली की चमक- दमक से पूरा बाजार भरा था...लोगों का हुजूम उमड़ा पड़ा था..जगह जगह खीले और खिलौने के ढेर तो लगभग हर दुकान पर तरह -तरह के दीपक और मोमबत्ती दिख रहे थे। अभी तक चुप रहे माधव ने रमा की ओर देखा जिसके चेहरे पर बच्चों से रौनक और खुशी देखते ही बन रही थी
"रमा, आओ पहले साड़ी ही लेते हैं...?
"ठीक है..."
"तुम सूट नहीं पहनती क्या...?"
"गांव में सूट पहनने का रिवाज नहीं...वैसे मुझे पसंद तो बहुत हैं..."रमा खुश होकर बोली
"तो चलो तुम्हारे लिए सूट ही लेते हैं.."
"जी...?"
"जी...आओ तो " माधव कहने के साथ ही एक दुकान की ओर मुड़ गया...और रमा उसके पीछे...
"कौन सा रंग पसन्द है रमा..."
"क्या पता..कभी सोचा नहीं इतना" वो मासूमियत से बोली
"क्या...तुम्हे कोई रंग ही पसंद नहीं...(हँसते हुए दुकानदार से) कोई अच्छा सा सूट दिखाओ"
रमा के लिए सूट और सुशीला के लिए साड़ी लेने के बाद और दीपावाली का सामान लेने के बाद रमा बोली "अब चलें"
"रमा, चूड़ियां पहनोगी?" माधव ने एक चूड़ी वाले कि ओर इशारा करके रमा से पूँछा..रमा कुछ नहीं बोली तो माधव दुकान पर जाकर बैठ गया ..रमा भी मुस्कुरा कर बैठ गई
"बोलो बीबी जी, कैसे रंग की चूड़ियां चाहिए?" दुकानदार ने पूँछा, तो जवाब में रमा ने माधव की ओर देखा तो माधव बोला "हरे रंग की" ये सुनते ही रमा नजरें नीचें किये शरमा गयी अभी रमा चूड़ी पहन ही रही थी। कि उसकी नजर सड़क किनारे बैठे दुकानदारों पर चली गयी...जो अचानक अपना सामान समेटने लगे।
"लगता है बारिश आने वाली है" माधव बुदबुदाया और दुकानदार को पैसे देकर माधव और रमा कुछ दूर चले ही होंगे कि बारिश तेज़ी से होने लगी।
"रमा, यहाँ कुछ देर रुक जाते हैं..." कहते हुए माधव सड़क किनारे बने छोटी सी दुकान पर चला गया।
"अचानक ही मौसम खराब हो गया.." रमा साड़ी के पल्लू से मुँह पोछती हुई बोली
"खराब ...या अच्छा....?" माधव ने उसकी ओर देखते हुए मुस्कुरा कर पूँछा फिर उस छोटी सी दुकान पर मौजूद एकमात्र आदमी से पूँछा "भईया...कुछ बैठने के लिए है क्या...?" माधव ने
तो जबाब देने के बदले दुकानदार ने एक लकड़ी की बेंच लाकर डाल दी। रमा को बैठने का इशारा कर माधव ने उस दुकानदार को दो चाय के लिए बोला
बेंच के किनारे सिकुड़कर बैठी रमा चमकती आँखो से आसपास का नजारा देख रही थी..और.जब हल्की हवा चलने से कभी-कभी कुछ बाल उड़कर अगर उसके चेहरे पर आ जाते तो वो फौरन उन्हें कान के पीछे कर देती ...माधव उसे और उसकी गतिविधियों को बड़े गौर से देख रहा था..दोंनो चुप थे।
"रमा, क्या तुम्हें असहज लग रहा है...वो तो वारिश होने लगी इसलिए...."
"नहीं..नहीं ऐसी कोई बात नहीं...बस्स कभी ऐसे घर के बाहर कहीं बैठ कर चाय नहीं पी" माधव की बात पूरी होने से पहले ही वो बोल पड़ी...जवाब में माधव चुप रहा।
'ओह...बेचारी! कितनी मासूम और प्यारी है...क्या इसे अपने मन की बात कह दूँ...नहीं कितने वक़्त बाद तो खुश हुई है...मैं इसे किसी तनाव में डालना नहीं चाहता...बाद में बता दूँगा" माधव ने मन ही मन सोचा...और अपना एक हाथ वारिश में भिगोता हुआ मुस्कुराया
"आपको ठंड लग जायेगी...ऐसे मत भीगिये" रमा के ऐसे बोलते ही माधव और भी मुस्कुरा दिया और मन ही मन बोला
'कोई भला प्रेम में हो और भीगना ना चाहें ऐसा कैसे हो सकता है रमा..मेरा मन तो बारिश में नाचने का हो रहा है ..'
"सच में रमा...तुमने जिन हालातों में अपनी पढ़ाई पूरी की..इस की जितनी तारीफ की जाए कम है" कुछ ना समंझ आया तो ये बोल दिया माधव ने, जिसे सुन रमा ने नजरें फिर नीची कर लीं .. माधव आगे बोला
"तो ...गिरधर की पूजा करने के अलावा और क्या पसंद हैं तुम्हें?"
रमा ये सुनते ही खिलखिलाकर हँस दी। और माधव ने उसका साथ दिया।
"ये आजकल के लड़कों को देखकर जलन होती है...एक हमारा जमाना था...लड़कियों की सूरत देखने तक को तरस जाते थे... हुम्म" दुकानदार उन्हें हँसते देख बुदबुदाया और वहाँ से उठकर एक कोने में बैठ गया
"बारिश बन्द हो गयी...चलिए" रमा सामान का थैला उठाते हुए बोली
'मैं तो चाहता था...वारिश बन्द ही ना हो' माधव मन ही मन बोला और अनमने मन से चलने को उठ गया।
***
.रमा रसोई में खाना बना रही थी...और सुशीला ज्यादा काम होने की वजह से उसकी मदद कर रहीं थीं....माधव घर में मोमबत्ती और दिए रख रहा था
"ये देखो भईया...(उत्साहित वंशी लगभग चीखते हुए घर में घुसा) उसकी आवाज सुनकर रमा और सुशीला रसोई से बाहर निकल आये और माधव भी उसकी ओर भागा आया..वंशी अपने हाथ में एक कंडील पकड़े एक बच्चे की तरह खुश हो रहा था
"वाह। बहुत सुंदर है ये तो...वंशी" हरे और लाल सुंदर से कंडील को देखकर माधव बोला
"और नहीं तो क्या...तुम्हें तो याद रहा नहीं..."
"सच में वंशी ...इस घर की रौनक तो तुम्हीं से है" वंशी के कंधे पर एक प्यारभरा धौल जमा कर जब माधव बोला तो वंशी गर्व से फूलकर अपने बाल झटकता...कंडील लगाने सीधा छत की ओर दौड़ गया। उसे ऐसे देख सब एकसाथ हँस दिए।
थोड़ी देर बाद सुशीला ने कहा
"आओ सब पूजा कर लो ...फिर दीपक जलाते हैं"
नए गुलाबी सूट में रमा बहुत सौम्य और सुंदर दिख रही थी ..पूजा के दौरान भी माधव की नजर बार- बार उस पर चली जाती थी...
'बिल्कुल एक फूल सी खूबसूरत और प्यारी' माधव मन ही मन बोला
"चलो पटाखे चलाते हैं...बीवी जी " पूजा करने के बाद वंशी चहकर बोला
"नहीं बाबा...मुझे डर लगता है" रमा डरती हुई बोली
"इसमें डरने की क्या बात है...चलो मैं बताता हूँ कि कैसे चलाते हैं..."माधव ने बोलने के साथ ही रमा का हाथ पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया ही था...कि फौरन दिल में ख्याल आया कि ये ठीक नहीं और हाथ पीछे कर लिया। जिसे सुशीला ने देख लिया
"अरे मैंने कहा ना..."
"आओ तो..." बोलते हुए माधव छत की ओर जाने वाली सीढ़िया चढ़ गया उसके पीछे वंशी..रमा जैसे ही सीढ़ियों की ओर चली सुशीला ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"ये चूड़ियां...?" सुशीला ने रमा की चूड़ियों की ओर इशारा करके पूँछा
"बाजार गयी थी...तब पहनाई" रमा शरमा कर बोली और सीढियों की ओर दौड़ गयी। लेकिन इसे सुनकर सुशीला के माथे पर बल पड़ गए।
"ये देखो ...ऐसे जलाते हैं " माधव ने एक जलती हुई फुलझड़ी अनार में छुलाते हुए कहा...और अनार चलते देख रमा एक बच्चे की तरह उछलने लगी...और माधव उसे खुश देखकर हँसने लगा। सुशीला थोड़ी दूरी पर खड़ी उन दोनों पर अपनी नजर जमाये थीं।
**
"अरे। वाह..छोले पूड़ी, रायता और आलू की कचौरी मजा आ गया.".खाने की थाली देख माधव बहुत खुश होकर बोला
"बीबी जी ने सब आपकी पसंद का बनाया है" वंशी ने खुश होकर बताया
"वाह। तुम्हारे हाथों में बहुत स्वाद है...रमा" माधव ने कचौड़ी का एक टुकड़ा मुँह में रखते हुए कहा...तो रमा मुस्कुरा दी और सुशीला के लिए ये देखना सब असह्य हो गया। उन्होंने अपनी थाली के पैर छुए और उठ गयीं..
"ये क्या बुआ...खाना नहीं खाएंगी"? रमा ने पूँछा और साथ ही वंशी और माधव भी उन्हें बिना खाना खाये उठते देख चौंके
"भूख नहीं है" सुशीला ने खीजते हुए जवाब दिया और वहाँ से चली गयीं
***
आँख बंद करे माधव कुछ कविता की लाइने सोच रहा था।
पास ही मेज पर चाय का कप रखा था...रमा का चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था...और वो मुस्कुरा रहा था।
"माधव.." सुशीला की आवाज सुनी तो माधव ने आँखे खोल दी
"बुआ जी...आइए ना.."
"तुममें और भूरे में कोई फर्क नहीं" गुस्से में फुफकारतीं सुशीला बोलीं तो माधव को ऐसे लगा जैसा किसी ने उसे गहरे समुंद्र में फेंक दिया हो....शर्म और सदमे से वो हड़बड़ा कर अपनी कुर्सी से उठा और धक्का लगने से चाय का कप नीचे गिर गया............................क्रमशः..................
प्रतिक्रियाओं का अनुरोध ....धन्यवाद:-सोनल जौहरी