Ek Jindagi - Do chahte - 4 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 4

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 4

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-4

पाँच बरस पहले की वह रात आज भी याद है परम को, बरसात का मौसम था। उस साल आसमान अपनी सारी सीमाएँं तोड़कर बरस रहा था सारी सृष्टि तरबतर थी। रोज बाढ़ की खबरों से टी.वी. न्यूज चैनल भरे पड़े थे। जब भी न्यूज लगाओ पानी की विनाशलीला के अलावा कहीं कोई खबर नहीं। परम की उस समय जहाँ पोस्टिंग थी, पहाड़ों की सीमा पर, वहाँ भी यही हाल था। जल जैसे सभी को अपने अगोश में समेट लेने के लिये बेताब था। रात-दिन की झमाझम से परम त्रस्त हो गया था। आस-पास के पहाड़ी इलाकों में रोज कहीं न कहीं पहाड़ धसने से छोटी-मोटी विपत्तियाँ आती ही रहती थी। कभी रास्ते बंद हो जाते तो कभी पहाड़ी के नीचे दबे मकानों में लोग फंस जाते। सीमाओं की सुरक्षा के साथ ही साथ जवानों को इस प्राकृतिक आपदा के साथ भी जूझना पड़ रहा था। उन पर अभी दोहरी जिम्मेदारी थी। रोज ही सेना की एक छोटी टुकड़ी किसी ना किसी ईलाके में बचाव कार्य के लिये रवाना होती थी।

पाँच बरस पहले-

मेजर परम अपनी पारी की ड्यूटी समाप्त करके कमरे में आया। गीली यूनिफॉर्म बदलकर, लोअर और टीशर्ट पहनकर अपनी स्लीपिंग बैग में घुस गया। रात के ग्यारह बज गये थे। खाना खाने के लिए मेस तक जाने का भी मन नहीं किया। मेस तक जाना मतलब फिर गीला होना। वैसे भी उसके हाथ-पैर दर्द कर रहे थे। सिर में भी हल्का सा दर्द था। इस समय नींद और आराम ज्यादा जरूरी था।

दिन भर के कठिन परिश्रम से अकड़े शरीर में दर्द की चमक-सी उठी। थोड़ी देर में मांसपेशियों और नसों को इस नयी स्थिति की आदत हो जायेगी तो वे अपने आप आराम महसूस करने लगेंगी। रोज का अनुभव था परम का इसलिये वो इस दर्द में निश्चल पड़ा रहा। पाँच मिनट में ही उसे नींद लग गयी। अभी उसे सोए हुए पन्द्रह-बीस मिनट ही हुए होंगे कि फोन की घन्टी घनघना उठी। परम ने हाथ में बंधी घड़ी देखी, साढ़े गयारह बज रहे थे उसने लपककर फोन उठाया।

''सर"

''---"

''सर...।"

''..."

''यस सर"

''..."

''ओ.के. सर, राईट सर।"

''हे बड्डीज जस्ट गेट रेडी विदीन फाईव मिनट्स। कान्फ्रेंस हॉल में अर्जेन्ट मीटिंग है।" परम ने बैरक में सोए अपने साथियों को आवाज लगाई और तेजी से अपनी यूनिफॉर्म पहनी, जूते पहने और तैयार हो गया। उसकी आवाज पर सब उठ गये।

''क्या हुआ मेजर इतनी रात गये?" एक ने आँखें मलते हुए पूछा।

''कौन सा बम फट गया है अभी?"

''ड्यूटी पर रात-दिन नहीं देखा जाता सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया जाता है।" परम ने जबाव दिया।

''राईट सर।" सारे जवान बड़ी मुस्तैदी से तैयार हो गये। पौने बारह बजे परम अपने आठ लोगों के साथ कान्फ्रेंस हॉल में उपस्थित था। अफसर आए और मुद्दे की बात शुरू हो गयी। सीमावर्ती एक पहाड़ी कस्बे में, जो एक तीर्थस्थल भी था, बादल फटने की वजह से बाढ़ आ गयी भूस्खलन होने से हालत और बदतर हो गये। सेना की वहाँ गयी टुकड़ी भी फँसे हुए सभी लोगों को निकाल नहीं पायी थी। इसलिए अब वहाँ स्पेशल टास्क रेस्क्यू फोर्स को भेजा जाना जरूरी हो गया है। प्रोजेक्टर पर आपादग्रस्त ईलाके के फोटोग्राफ्स दिखाए गये। ईलाके की जानकारी दी गयी। बाकी काम फोर्स खुद ही करने में सक्षम थी। परम ने अपनी टीम की तरफ से ऑफीसर को आश्वासन दिया और बैरक वापस लौट आया।

बचाव कार्य के लिए जो भी चीजें जरूरी थी परम ने फटाफट इक_ा की, बैग में अपनी चार-पाँच यूनिफॉर्म रखीं और तैयार हो गया। बाकी लोग भी तैयार थे।

''हे बड्डीज सबसे इंपोर्टेंट चीज तो तुम भूल ही गये थे।" राणा न जाने कब केंटीन जाकर व्हीस्की की दो बोतलें ले आया था।

''साला बेवड़ा कहीं का।" रजनीश ने हँसते हुए उसे गाली दी।

''बिना दारू के तो इसका काम ही नहीं चलता।"

''अबे तू चुप कर! देखियो वहाँ के हालात देखते हुए सबसे पहले तुझे ही इसकी जरूरत पड़ेगी। सबसे पहले मांगने तू ही आयेगा।" राणा ने बोतलें बैग में रखते हुए कहा।

रजनीश ने राणा के लिए एक व्यक्तिगत भद्दी बात बोली पर राणा ने बुरा नहीं माना उल्टे सबके साथ वह भी जोर से हँस दिया। ये हँसी मजाक ही उन्हें विषम परिस्थितियों में अपना संतुलन बनाए रखने में मदद करते थे और विकट परिस्थितियों से जुझने की ताकत देते। मेजर परम की टीम तैयार थी। सब लोग दो गाडिय़ों में सवार होकर रात में ही स्टिंग ऑपरेशन पर निकल पड़े।

***