part - 1
सुबह के छह बज रहे थे।
शहर अभी पूरी तरह जागा नहीं था, लेकिन अंकित की ज़िंदगी में नींद के लिए जगह कब की खत्म हो चुकी थी।
किराए के छोटे से कमरे में रखे एक पुराने से पलंग पर वह चुपचाप बैठा था। कमरे में ज़्यादा सामान नहीं था—एक लोहे की अलमारी, एक छोटा सा गैस चूल्हा और दीवार पर टंगी माँ की पुरानी तस्वीर। वही तस्वीर जिसे देखे बिना उसका दिन शुरू नहीं होता था।
गाँव छोड़े उसे पूरे छह साल हो चुके थे।
पिता के गुज़र जाने के बाद ज़िंदगी अचानक बदल गई थी। घर की सारी ज़िम्मेदारी एक झटके में उसके कंधों पर आ गिरी थी—माँ, छोटी बहन और एक छोटा भाई।
गाँव में काम नहीं था, इसलिए शहर आना पड़ा। यहाँ की भीड़, शोर और अजनबीपन—तीनों को साथ लेकर जीना पड़ा।
अंकित एक प्राइवेट कंपनी में जूनियर सुपरवाइज़र था। तनख़्वाह बहुत ज़्यादा नहीं थी, लेकिन इतनी थी कि घर का खर्च किसी तरह चल सके। हर महीने पैसे भेजना, माँ की दवाइयाँ, बहन की पढ़ाई—सब कुछ उसके हिसाब-किताब में बंधा हुआ था।
प्यार?
उसके लिए तो प्यार बस एक शब्द था, जिसके लिए उसकी ज़िंदगी में कोई जगह नहीं थी।
वह उठा, नहाया और फॉर्मल कपड़े पहनकर शीशे के सामने खड़ा हो गया। हल्की बढ़ी दाढ़ी, थकी हुई आँखें और चेहरे पर ज़िम्मेदारी की साफ़ लकीरें।
ऑफिस जाते समय वह रोज़ पास के मंदिर के बाहर चाय पीने रुकता था। वहीं उसने पहली बार सृष्टि को देखा था—हालाँकि आज उसे यह अंदाज़ा नहीं था कि वही लड़की उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कहानी बनने वाली है।
सृष्टि रोज़ सुबह मंदिर के बाहर फूलों की छोटी सी दुकान लगाती थी। सादा सा सलवार-सूट, माथे पर कोई सिंदूर नहीं, और गले में एक पतला सा मंगलसूत्र—जो अब सिर्फ़ यादों का बोझ बन चुका था।
उसकी आँखों में न कोई चमक थी, न शिकायत—बस एक गहरा सन्नाटा।
लोग उसे देखकर अपने-आप समझ जाते थे—
“विधवा है।”
लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि उसके पास न माँ-बाप बचे थे, न सास-ससुर। शादी के सिर्फ़ दो साल बाद एक हादसे ने उसकी पूरी दुनिया उजाड़ दी थी। पति के जाते ही रिश्तों ने भी मुँह मोड़ लिया।
आज भी वह बुख़ार में थी, लेकिन काम करना ज़रूरी था।
काम नहीं तो खाना नहीं—यह सच उसने बहुत पहले सीख लिया था।
अंकित ने चाय का कप उठाया और उसकी नज़र अनजाने में सृष्टि पर टिक गई।
न कोई बनावट, न कोई दिखावा—फिर भी कुछ था, जिसने उसे रोक लिया।
सृष्टि ने पल भर के लिए आँखें उठाईं।
दोनों की नज़रें मिलीं।
बस एक पल।
लेकिन कुछ पल पूरी ज़िंदगी बदलने के लिए काफ़ी होते हैं।
अंकित ने जल्दी से नज़र हटा ली, जैसे कुछ गलत हो गया हो। उसके लिए वह बस एक अनजान औरत थी, लेकिन दिल के किसी कोने में हलचल शुरू हो चुकी थी।
सृष्टि ने भी नज़र झुका ली।
उसे आदत थी—लोग या तो तरस से देखते थे, या शक से।
चाय खत्म करके अंकित ऑफिस चला गया।
लेकिन पूरे दिन काम करते हुए भी उसका मन बार-बार उसी चेहरे की तरफ लौटता रहा। वो शांत आँखें, वो थका हुआ चेहरा।
शाम को लौटते वक्त वह फिर मंदिर के पास रुका।
सृष्टि अब भी वहीं थी।
इस बार अंकित ने खुद को समझाया—
“बस फूल ही तो लेने हैं।”
उसने एक माला उठाई।
अंकित ने पूछा।
कितने हुए।
सृष्टि ने पहली बार उसकी आवाज़ सुनी—सीधी, साफ़ और सच्ची।
उसने बिना आँख उठाए कहा।
“दस रुपये,”
अंकित ने पैसे दिए और एक पल के लिए वहीं खड़ा रहा।
कुछ कहना चाहता था, लेकिन शब्द नहीं मिल रहे थे।
सृष्टि ने उसे देखा—और पहली बार उसकी आँखों में सिर्फ़ एक ग्राहक नहीं, बल्कि एक इंसान दिखाई दिया।
अंकित फूलों की माला हाथ में लिए आगे बढ़ ही रहा था कि अचानक सृष्टि की धीमी सी आवाज़ उसके कानों में पड़ी—
“कल…
कल मत आना।”
अंकित रुक गया।
वह मुड़ा।
“क्यों?”
बस यही एक शब्द उसके मुँह से निकल पाया।
सृष्टि ने इस बार नज़रें नहीं झुकाईं। उसकी आँखों में डर था… और कोई ऐसा दर्द, जिसे शब्दों में बाँधना आसान नहीं होता।
उसने कहा ।
“क्योंकि अगर आप रोज़ आने लगे,”
“तो लोगों को सवाल पूछने की आदत हो जाएगी…
और सवालों से मुझे डर लगता है।”
इतना कहकर वह अपने फूल समेटने लगी,
जैसे कुछ भी हुआ ही न हो।
अंकित वहीं खड़ा रह गया।
पहली बार उसे महसूस हुआ—
यह सिर्फ़ एक औरत नहीं थी,
यह एक ऐसी कहानी थी
जिसे छूना भी समाज की नज़रों में गुनाह बन सकता था।
और उसी पल,
उसके दिल ने एक फैसला कर लिया—
कुछ रिश्ते सवालों से शुरू होते हैं…
और जवाब बनकर ज़िंदगी बदल देते हैं।
यहीं से शुरू होती है एक ऐसी कहानी…
जो समाज के बनाए नियमों से टकराएगी,
लेकिन दिल से निकली होगी।
To Be continue..............
part –2 में कहानी उस मोड़ पर पहुँचेगी जहाँ
अंकित पहली बार समझ पाएगा कि
सृष्टि की ख़ामोशी सिर्फ़ शर्म नहीं, बल्कि समाज से मिला डर है।
यह हिस्सा बताएगा—
सृष्टि के विधवा होने के बाद की सच्चाई
वह क्यों लोगों की नज़रों से डरती है
और अंकित के दिल में उठता वह सवाल
क्या ज़िम्मेदारी निभाने वाला लड़का
किसी अकेली औरत का सहारा बन सकता है—
भाग–2 भावनाओं, संघर्ष और एक नए रिश्ते की नींव रखेगा…
जहाँ हर क़दम सोच-समझकर उठाना ज़रूरी होगा।
जानने के लिए हमारे साथ बने रहिए .......
By ............ Vikram kori....