भाग 7:
अगली सुबह, रोज़ की तरह अख़बार वाला विशाल के घर के गेट पर अख़बार डाल कर चला गया।
घर के अंदर हल्की-हल्की रौशनी फैल रही थी। विशाल अपने कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ था। कुछ देर बाद उसकी माँ चाय का कप लिए उसके कमरे में आईं। उन्होंने उसके कंधे को धीरे से हिलाया।
माँ: “विशाल बेटा… उठो, 9 बजने वाले हैं।”
विशाल की नींद टूटी। उसने आँखें मलीं, लंबी अंगड़ाई ली, अपनी मां की ओर देखते हुए “हाँ माँ… उठता हूँ। कितना अच्छा सपना देख रहा था… आप ने जगा कर पूरा खराब कर दिया।”
माँ मुस्कुरा पड़ीं, “तो बताओ, कौन थी सपने में? रीना?”
विशाल भी मुस्कुरा कर बोला, “और कौन होगी रीना के अलावा?”
माँ की मुस्कान धीरे-धीरे गंभीरता में बदल गई। उसने कहा,
“विशाल! तुम्हें मालूम है… पापा को तुम दोनों का रिश्ता बिल्कुल मंज़ूर नहीं है। मेरी बात मानो बेटा, अब उससे दूर हो जाओ.”
कमरे में अचानक एक भारी-सी खामोशी छा गई। विशाल आँखें चुरा कर सोच में पड़ गया— उसके लिए रीना सिर्फ एक सपना नहीं थी… उससे कहीं ज्यादा।
विशाल: “माँ, सुबह-सुबह पापा की बात कहाँ से ले आईं? आपको अच्छी तरह मालूम है… चाहे कुछ भी हो जाए, रीना इसी घर की बहू बनकर ही रहेगी।”
उसकी आवाज़ में प्यार भी था और जिद भी। एक पल रुककर वह धीमे स्वर में बोला—
विशाल की मां चिंता करते हुए: “बस… यही डर खाए जा रहा है कि ये सब होगा कैसे?”
चाय खत्म करके उसने कप टेबल पर रखा। फिर खड़े होकर अपनी माँ को गले लगा कर कहता है, “आप बिल्कुल चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा।”
कहते हुए उसने माँ के गाल पर एक प्यारा-सा किस दिया और टेबल से मोबाइल उठा कर कमरे से बाहर निकलकर हॉल की ओर चला गया। विशाल की माँ थोड़ी चिंतित नज़र से उसे देखते हुए किचन की तरफ चली गईं।
विशाल की आदत थी कि सुबह उठते ही सबसे पहले अख़बार पढ़ता था। आज भी उसने अख़बार उठाकर पूरा ध्यान से पलटना शुरू किया। वह अक्षय से संबंधित किसी भी खबर की तलाश में था। पन्ना-पन्ना पढ़ लिया लेकिन कहीं भी अक्षय या उसकी जली हुई कार का कोई ज़िक्र नहीं था।
थोड़ी देर बाद वह उठकर तैयार होने के लिए वॉशरूम की तरफ चला गया।
उधर, रीना भी ऑफिस जाने की तैयारी में थी। कपड़े पहनते-पहनते उसने भी अख़बार को अच्छी तरह पढ़ा।
उसकी आँखों में एक पल के लिए चमक आई— उसे समझ में आ गया कि पेपर छपने तक अक्षय की जली हुई कार पर किसी की नज़र नहीं पड़ी थी।
अक्षय का घर
अक्षय के घर में चिंता का माहौल था। पूरी रात परिवार सो नहीं पाया था, क्योंकि अक्षय कभी भी रात 12 बजे के बाद बाहर कहीं रुकता नहीं, —चाहे पार्टी हो या कोई और काम।वह उसके पहले घर जरूर आ जाता। पर आज रात वह नहीं लौटा, और फोन भी बंद आ रहा था।
सुबह करीब 8 बजे, अक्षय के पिता ने उसके बचपन के सबसे करीबी दोस्त—भावेश—को फोन लगाया।
अक्षय के पिता: “भावेश बेटा… अक्षय तुम्हारे घर पर है क्या?”
भावेश चौंक कर बोला, "नहीं अंकल, मेरे घर तो नहीं आया। हुआ क्या है? क्यों पूछ रहे हैं?”
अक्षय के पिता (व्याकुल आवाज़ में): “बेटा, अक्षय कल सुबह 9 बजे ड्यूटी के लिए निकला था। अभी तक घर नहीं आया है। कल रात से उसका फोन भी बंद आ रहा है।
बहुत डर लग रहा है… तुम अपने और दोस्तों से पूछकर जल्दी बताना।”
भावेश तुरंत गंभीर हो गया। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं, उसने कहा, “ठीक है अंकल, आप चिंता न करें। मैं राकेश और बाकी दोस्तों से पता करके आपके घर आता हूँ।”
अक्षय के पिता घबराते हुए: “हाँ बेटा… थोड़ा जल्दी करना। कहीं कोई अनहोनी न हो गई हो…”
भावेश (ढांढस बंधाते हुए): “अरे नहीं अंकल! डरने की बात नहीं है। अक्षय जहां भी होगा ठीक होगा, उसे कहीं से भी ढूँढकर ले आयेंगे"
अक्षय के पापा “ठीक है बेटा” कहकर फोन काट देते हैं।
भावेश को अक्षय की आदतों का अंदाज़ा था। उसने तुरंत राकेश को फोन लगाया। लेकिन राकेश के पास भी कोई जानकारी नहीं थी।
अक्षय अक्सर बहुत सारी बातें दोस्तों से शेयर नहीं करता था, इसलिए किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वह कहाँ हो सकता है।
फोन पर राकेश हल्के गुस्से और मज़ाकिया लहजे में बोला—
“साला… कहीं घूम रहा होगा अपनी किसी गर्ल फ्रेंड के साथ"
भावेश को यह बात ठीक नहीं लगी, क्योंकि उसके मन में पहले से ही बेचैनी बढ़ रही थी। भावेश बोलता है: "अबे, वो कहीं भी घूमे, पर रात को जरूर आ जाता है, तू एक काम कर, जल्दी से तैयार होकर मेरे घर आजा, दोनों चलते हैं, पता लगाते हैं"
तीन घंटे बाद, भावेश और राकेश, अक्षय के घर आ जाते हैं, घर के हॉल में अक्षय के मम्मी पापा और उसकी बहन चिंता में डूबे हुए बातें करते रहते है।
भावेश और राकेश एक हफ्ते पहले ही मुंबई से लौटे थे, अक्षय भी इन्हीं के साथ मुंबई में था पर अक्षय एक महीना पहले आ चुका था। ये तीनों एक साल पहले, एक साथ मुंबई चले गए थे।
अक्षय के पिता : "कुछ पता चला बेटा?
भावेश उदास मन से: "नहीं अंकल, हम लोगों ने सभी दोस्तों के घर और जहां जहां उसके रहने की संभावना हो सकती है, सभी जगह पता लगा लिए, पर अक्षय का कहीं पता नहीं लगा"
अक्षय के पिता का चेहरा उतर जाता है, अक्षय की मां और बहन रोने लगती है । अक्षय के पिता उन्हें चुप कराते हैं।
भावेश कहता है : "अंकल ! मैं ये कह रहा था कि थाने जा कर अक्षय के लापता होने की रिपोर्ट लिखवा देते हैं, अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं है"
अक्षय के पिता के आंखों में भी आंसू थे, आंसू पोंछते हुए : "हां, बेटा मैं भी यही सोच रहा था, तुम लोगों का ही इंतजार कर रहा था, चलो चलते हैं"
तीनों रायगढ़ा के नेहरू नगर थाने में, अक्षय के लापता होने की FIR दर्ज करवा देते है। पुलिस हरकत में आ जाती है।
अक्षय के मरने के तीन दिन बाद पुलिस को एक गाय चराने वाले चरवाहा से जंगल में जली हुई कार के बारे में जानकारी मिलती है ....
शाम के तीन बजे का समय था । पुलिस टीम चरवाहा के साथ घटना स्थल पर पहुंच जाते हैं, कार बुरी तरह जली हुई अवस्था में थी, कार दो भागों में अलग अलग पड़ी हुई थी । कार के सामने वाले भाग में अक्षय की लाश बुरी तरह जल कर काला हो चुकी थी, शरीर का 20 प्रतिशत भाग ही बचा था जो ठीक से जल नही पाया .....
विशाल के पापा रीना और विशाल के रिश्ते के खिलाफ क्यों थे? विशाल की मां को किस बात की चिंता हो रही थी?
क्रमशः ......