Dil ne jise chaha - 25 in Hindi Love Stories by R B Chavda books and stories PDF | दिल ने जिसे चाहा - 25

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दिल ने जिसे चाहा - 25

“कुछ मुलाक़ातें वक्त नहीं, किस्मत तय करती है…”

“Excuse me, यहाँ कोई बैठा है क्या?”

वो शख्स धीरे-धीरे मुड़ा —

और रुशाली के कदम जैसे ज़मीन पर जम गए।

“डॉ. कुनाल...??”

रुशाली (थोड़े आश्चर्य में):

“आप… डॉ. कुनाल? आप यहाँ?”

वो चेहरे पर वही अपनापन, वही गंभीरता, और वही सौम्यता थी।

वो मयूर सर के बहुत खास दोस्त हुआ करते थे,

और रुशाली के लिए तो मानो पुराने दिनों की एक जीती-जागती याद थे।

डॉ. कुनाल (मुस्कुराते हुए):

“हाँ, शायद तुमने मुझे पहचान लिया… पाँच साल बाद भी।”

रुशाली (थोड़ी भावुक होकर):

“कैसे भूल सकती हूँ?

आप और… मयूर सर हमेशा साथ ही तो दिखते थे।”

डॉ. कुनाल ने हल्की मुस्कान दी,

पर उस मुस्कान में एक अनकही चुप्पी थी,

जो बहुत कुछ कह रही थी।


रुशाली:

“आप यहाँ सगाई में?”


डॉ. कुनाल:

“हाँ, विवान मेरा जूनियर है।

वो बुलाने आया था, तो सोचा चला आऊँ।”


रुशाली चुप हो गई।

उसका दिल जैसे किसी पुराने दरवाज़े तक पहुँच गया था,

जहाँ धूल जमी यादें अब भी ताज़ी थीं।


दोनों टेबल पर बैठे,

वो नाश्ता जो रुशाली ले कर आई थी, अब उसके लिए बेस्वाद हो चुका था।

कभी-कभी सन्नाटा भी बहुत कुछ कह देता है।

वो बस अपनी प्लेट में कांटे से कुछ कुरेद रही थी,

जब डॉ. कुनाल ने धीरे से कहा —


डॉ. कुनाल:

“कैसी हो, रुशाली?”


रुशाली (हल्की हँसी के साथ):

“मैं ठीक हूँ… शायद।”


डॉ. कुनाल:

“‘शायद’? लगता है ये पाँच साल सिर्फ़ वक्त नहीं, कुछ और भी बदल गया है।”


रुशाली (थोड़ा सख़्त होकर, DM वाली ठहराव भरी आवाज़ में):

“ज़िम्मेदारियाँ इंसान को बदल देती हैं, कुनाल सर।

अब मैं वही रुशाली नहीं जो पहले थी।

अब मेरे फैसले दिल से नहीं, दिमाग से होते हैं।”


डॉ. कुनाल ने उसकी आँखों में झाँका —

वो जान गया कि ये वही रुशाली है जो बाहर से मज़बूत है,

पर भीतर कहीं बहुत गहरी टूटन छिपाए हुए है।

डॉ. कुनाल (धीरे से):

“और मयूर?”


रुशाली के हाथ वहीं रुक गए।

वो कुछ पल तक कुछ बोल ही नहीं पाई।


रुशाली (धीरे स्वर में):

“आप तो उनसे मिलते रहते होंगे?”


डॉ. कुनाल (गहरी साँस लेकर):

“हाँ… रोज़ नहीं, पर अक्सर।”


रुशाली ने नज़रें झुका लीं।

डॉ. कुनाल की आवाज़ थोड़ी धीमी पड़ी —


डॉ. कुनाल:

“वो तुम्हें आज भी याद करते हैं, रुशाली।”


रुशाली की साँसें अटक गईं।

उसने पानी का गिलास उठाया, पर हाथ काँप गए।


रुशाली (धीरे से):

“पाँच साल… बहुत लंबा वक्त है कुनाल सर। और शादी करने के बाद तो रूशाली नाम की कोई थी यह भी उनको याद नहीं होगा।

लोग भूल जाते हैं…”


डॉ. कुनाल (थोड़ी दृढ़ता से):

“हर कोई नहीं भूलता।

कुछ रिश्ते वक्त नहीं तोड़ सकता।

मयूर उनमें से एक हैं।”

कुनाल आगे झुककर बोला —


“जानती हो, मयूर ने अब तक शादी नहीं की।”


रुशाली की आँखें बड़ी हो गईं।

“क्या…? उन्होंने…?”


डॉ. कुनाल ने सिर हिलाया।

“हाँ। उसने कहा था —

‘जब दिल में एक ही नाम हो,

तो किसी और का होना बेईमानी होगी।’

और मयूर ने अपने परिवार और उस लड़की के परिवार से माफी मांगी और शादी से इनकार कर दिया...


उसने तुम्हें ढूँढने की बहुत कोशिश की,

हर जगह — तुम्हारे कॉलेज, तुम्हारे पुराने घर,

यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर भी।

पर तुमने खुद को इतना छुपा लिया था,

कि कोई तुम्हें ढूंढ नहीं सका।”


रुशाली की आँखों में आँसू तैर गए।

“मैंने कोशिश की खुद को उनसे दूर रखने की,

सोचा था कि शायद वो आगे बढ़ जाएँगे,

शायद भूल जाएँगे…”


डॉ. कुनाल (मुस्कुराकर):

“और खुद? तुम आगे बढ़ीं?”


रुशाली की चुप्पी उसका जवाब थी।

कभी-कभी कुछ चुप्पियाँ ही सबसे सच्ची होती हैं।


कमरे में शोर था,

पर उनके बीच बस खामोशी की गूँज।


रुशाली की आँखों में पुराने लम्हे उभर आए —

वो साइलेंट नज़रों का मिलना,

वो ‘गुडलक’ कहते वक्त का मुस्कुराना।

और फिर…


धीरे-धीरे हॉस्पिटल की वो यादें भी सामने आने लगीं

जिन्हें उसने पाँच साल से दिल के सबसे गहरे कोने में छुपा कर रखा था।


उसे याद आया —


कैसे हर सुबह राउंड से पहले

वो मयूर सर की फाइलें व्यवस्थित करती थी।

कौन-से मरीज को कौन-सी रिपोर्ट चाहिए,

कौन-सी मीटिंग किस वक्त है,

क्या क्या तैयार करना है —

सब कुछ वही संभालती थी।


उसे वो भी याद आया —


राउंड के दौरान मयूर सर का तेज़ कदमों से चलना

और उसका पीछे-पीछे भागते हुए हाथों में सारी रिपोर्ट्स संभालना।

और बीच में उनका थोड़ा-सा रुककर कहना —

“रुशाली, साँस ले लो… मैं यहीं हूँ, कहीं जा नहीं रहा।”


और वो बस हल्का सा मुस्कुरा देती थी।

क्योंकि वो जानती थी—

मयूर सर का ये एक वाक्य

उसके पूरे दिन को आसान बना देता है।


उसे याद आया—

डॉ मयूर को अकडू नाम देना।

कैफ़ेटेरिया की वो दोपहरें

जहाँ वो हमेशा उसके लिए प्लेन डोसा या सैंडविच मँगवाते थे

क्योंकि उन्हें पता था कि

रुशाली हमेशा काम में इतनी उलझी रहती है

कि खुद के लिए कुछ ढंग से चुन भी नहीं पाती।


और फिर उनका कहना —

“खाना टाइम पर करना चाहिए।

जितना तुम काम करती हो, उससे ज़्यादा अपनी सेहत का ध्यान रखो।”


उसे याद आया—

 मयूर सर का बस एक शांत-सा वाक्य—

“मैं हूँ न… घबराओ मत।”


ये चार शब्द

उसके अंदर की सारी घबराहट पिघला देते थे।


उसे याद आया—


कैसे कभी-कभी

वो कॉरिडोर में चलते हुए

रिपोर्ट्स पकड़ने में उलझ जाती,

और मयूर सर उसे देखकर हँस पड़ते—

“इतना भी क्या जल्दी है?

सारा हॉस्पिटल भागकर तुम्हें ही तो नहीं पकड़ने वाला।”


वो पल…

वो हँसी…

वो छोटी-छोटी टोकाटाकी—

सब कुछ उसके दिल में फिर से जाग उठा।


उसे वो शामें भी याद आईं—

---


दिल में जैसे कोई टूटा हुआ तार फिर बज उठा।


पाँच साल बीत गए थे।

पद बदल गया था,

जिम्मेदारियाँ बदल गई थीं,

शहर बदल गया था,

पर उसके भीतर—

उन दिनों की चमक आज भी ज़िंदा थी।


मयूर सर सिर्फ़ उसके बॉस नहीं थे।

वो उसके सीखने का रास्ता थे।

उसके मन की शांति थे।

और…

उसके दिल की पहली खामोश धड़कन भी।

डॉ. कुनाल (धीरे से):

“वो आज जानता है कि तुम DM बन चुकी हो और तुम्हारे काम और बहादुरी के किस्से भी सुने है, लेकिन मयूर को ये लगा कि शायद तुम आगे बढ़ चुकी हो इस लिए वो तुम तक पहुंचने से खुद को रोक रहा है।"


रुशाली अब रो पड़ी।

पर आँसू गिरते हुए भी चेहरे पर एक मुस्कान थी,

जैसे वो मान गई हो कि चाहत मिटती नहीं, बस छुप जाती है।

रुशाली (आवाज़ में कंपन):

“कुनाल सर, ज़िंदगी ने मुझे बहुत सिखाया है।

अब मैं किसी की बेटी नहीं, किसी की ज़िम्मेदारी हूँ —

पूरा जिला मेरे फैसलों से चलता है।

लेकिन आज…

आज मैं फिर वही लड़की बन गई हूँ,

जो किसी की एक नज़र में सुकून ढूँढती थी।”


डॉ. कुनाल (धीरे से मुस्कुराकर):

“और शायद वही नज़र फिर तुम्हारे सामने आने वाली है।”


रुशाली ने उसे देखा —

“क्या मतलब?”


डॉ. कुनाल:

“कुछ नहीं…

बस इतना कि वक्त को भी कभी-कभी पुराने पन्ने पलटने का मन करता है।”

तभी प्रिशा की आवाज़ गूंजी —

“रुशाली! फोटो सेशन शुरू हो गया, आओ ना जल्दी!”


रुशाली ने आँखों से आँसू पोंछे,

चेहरे पर मुस्कान सजाई,

और धीरे से बोली —

“आ रही हूँ।”


वो उठकर चली गई,

पर जाते-जाते पीछे मुड़ी तो देखा —

डॉ. कुनाल उसे देख रहा था,

जैसे किसी राज़ को दिल में छिपा रहा हो।

रुशाली के जाते ही कुनाल ने कॉफी का कप उठाया,

गहरी साँस ली,

और मन ही मन कहा —


“कभी-कभी वक्त को ज़्यादा बताना नहीं चाहिए…

कुछ मुलाक़ातें खुदा अपने वक़्त से करवाता है।

शायद अब वो वक़्त आ रहा है।”


उसने अपने फोन की स्क्रीन पर नज़र डाली —

विवान ने एक मैसेज भेजा था:

“सर, अगले महीने मेरी शादी की डेट फिक्स है — आप ज़रूर आइएगा!”


कुनाल मुस्कुरा दिया —

“हाँ विवान, मैं ज़रूर आऊँगा… और किसी को साथ लाऊँगा।”

“कभी कोई नाम यूँ दिल में रह जाता है,

जैसे साँसों में घुल गया हो।

कुछ रिश्ते वक्त के मोहताज नहीं होते,

वो बस मिलन के बहाने ढूँढते रहते हैं।


आज वक्त फिर वही राह बना रहा है,

जहाँ दो अधूरे सफ़र शायद फिर मिलें...

या शायद किस्मत एक आखिरी इम्तिहान ले…”


— To Be Continued... 🌹