पाँच साल का लंबा वक़्त गुजर चुका था।
कभी जिन दिनों में मासूमियत, मोहब्बत और सपने भरे थे, अब उन दिनों की जगह जिम्मेदारियों और तन्हाइयों ने ले ली थी।
सुबह का समय था। खिड़की से आती सुनहरी धूप सीधी रुशाली के चेहरे पर पड़ रही थी।
वो गहरी नींद में थी, लेकिन नींद भी उसकी थकान को मिटा नहीं पाती थी।
उसके चेहरे पर एक अजीब-सी खामोशी और खालीपन था।
रुशाली अब सिर्फ़ वही लड़की नहीं रही जो कॉलेज के दिनों में मासूम और थोड़ी शरारती थी।
अब वो अपने ज़िले की जिला अधिकारी (DM) थी।
ज़िम्मेदारी ने उसे मजबूत बनाया था, उसका व्यक्तित्व grounded था, लेकिन दिल की गहराइयाँ अब भी वहीँ थीं।
सुबह का सूरज खिड़की से अंदर घुसा और उसकी सुनहरी किरणें सीधे उसके चेहरे पर पड़ रही थीं।
रुशाली गहरी नींद में सो रही थी, चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों के कोने में एक अधूरी याद की झलक थी।
अचानक अलार्म बजा।
रुशाली: (आधी नींद में)
“अरे! आज तो गाँव की विज़िट है, देर नहीं करनी...”
वो झट से उठी, सीधे वॉशरूम गई।
Fresh होकर तैयार हुई ऑफिस के लिए.
आज उसने हल्का-सा मेकअप किया, साधारण सा सलवार-सूट पहना, बालों को ठीक किया, और माथे पर छोटी बिंदी लगाई।
आईने में खुद को देखते हुए हल्की मुस्कान दी।
रुशाली (मन ही मन):
“चलो, DM मैडम... आज ज़िम्मेदारी का दिन है। पर दिल की दुनिया भी संभालनी है।”
नाश्ता और माँ से बातें
नीचे टेबल पर नाश्ता रखा था।
माँ पहले से तैयार बैठी थीं।
माँ: “बेटा, इतना जल्दी-जल्दी मत खा। धीरे-धीरे नाश्ता कर।”
रुशाली: “माँ, DM की ज़िंदगी आसान नहीं होती। हर मिनट की अहमियत होती है। अगर मैं ही लेट हो जाऊँ तो पूरा सिस्टम डगमगा सकता है।”
माँ: (हल्की हँसी)
“तू सच में अब बड़ी हो गई है। पर अपने दिल को मत भूलना।”
रुशाली ने सिर हिलाया, कोई जवाब नहीं दिया।
खुद को संभाला और बैग उठाकर ऑफिस के लिए निकल गई।
दफ़्तर का रास्ता
कार की खिड़की से आती ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी।
रुशाली ने बाहर देखा — खेत, सड़क, लोग, बाज़ार — सब वही था, पर उसके अंदर कुछ बदल चुका था।
पाँच साल की मेहनत, जिम्मेदारी और संघर्ष ने उसे मजबूत बनाया था।
रुशाली (मन ही मन):
“अब मैं वही नहीं जो पहले थी... पर दिल की धड़कनें वही हैं।
क्यों अब भी वही यादें बार-बार लौट आती हैं?”
जैसे ही रुशाली ऑफिस पहुँची, स्टाफ खड़े हो गए।
स्टाफ: “नमस्ते मैडम।”
रुशाली: (धीरे से, authority के साथ)
“आज गाँव की विज़िट है। सारी रिपोर्ट्स और फाइलें तैयार हैं न?”
स्टाफ: “जी मैडम, सब तैयार हैं।”
रुशाली ने फाइलें चेक कीं, नोट्स बनाए, और अपने मन में काम की रणनीति तय की।
एकदम grounded और practical, लेकिन आँखों में कहीं-न-कहीं पुरानी यादों का साया था।
काम के बीच मोबाइल बजा। स्क्रीन पर नाम चमका — Prisha
रुशाली: (फोन उठाते हुए हल्की मुस्कान)
“अरे वाह, प्रिशा! कैसे हो?”
प्रिशा: “अरे, बस आज तेरे लिए खुशखबरी है।”
रुशाली: “खुशखबरी? जल्दी बता।”
प्रिशा: (हंसते हुए)
“अगले हफ्ते मेरी सगाई है। और तू आ रही है, बिना तेरे तो खुशी अधूरी है।”
रुशाली: “बहुत बढ़िया! लड़का कौन है? सरकारी अफ़सर होगा न?”
प्रिशा: “नहीं, डॉक्टर है। Oncologist।”
ये सुनते ही रुशाली का दिल कहीं अटक गया।
कुछ पल के लिए उसने फोन पर भी ध्यान नहीं दिया।
प्रिशा: “सुन रही है न?”
रुशाली: (धीरे से) “हाँ... सुन रही हूँ।”
प्रिशा: “तो पक्की बात, तू आ रही है।”
रुशाली: “हाँ, ज़रूर।”
फोन कट गया।
लेकिन उसके मन में मयूर सर की यादें फिर से ताजा हो गईं।
💔
“वो पल, वो नजरें, वो बातें...
अब सिर्फ यादें ही रह गई हैं,
पर दिल की धड़कनें अब भी वही हैं।”
ऑफिस लौटकर अपनी कुर्सी पर बैठी तो आँखों में आँसू छलक पड़े।
उसे याद आया — वो आखिरी दिन, जब उसने मयूर सर को देखा था।
उसके बाद कभी उनसे बात नहीं की।
ना कॉल, ना मैसेज, ना सोशल मीडिया।
लेकिन रोज़... हाँ, रोज़ गूगल पर उनका नाम ज़रूर सर्च करती थी।
पता था कि अब वो एक बड़े Cardiologist बन चुके हैं।
बस इतना ही।
बाक़ी उनकी ज़िंदगी उसके लिए एक अनसुलझी पहेली ही थी।
"दिल से मिटाना चाहा बहुत बार,
पर हर कोशिश अधूरी रह गई।
वो अब यादों में बसते हैं,
मगर हर साँस में उनकी महक आज भी वही रह गई..."
शाम को जब वो घर लौटी तो माँ को बताया —
“माँ, अगले हफ्ते हमें प्रिशा की सगाई में जाना है।”
माँ ने हल्की आह भरते हुए कहा —
“देख बेटा, अब तो तेरी सहेली की भी सगाई हो रही है... तू कब तक ऐसे ही रहेगी?
मयूर सर की तो शादी हो चुकी है... कब तक इन अधूरी यादों को ढोएगी?”
रुशाली चुप रही।
कहीं अंदर गहराई में अधूरी चाहत और कर्तव्य की लड़ाई चल रही थी।
वो अपने कमरे में चली गई।
खिड़की पर खड़ी होकर चाँद की ठंडी रोशनी को देख रही थी।
रुशाली (मन ही मन):
“शायद वो भी इस चाँद की तरह हैं...
दूर, सुंदर, लेकिन कभी मेरा हिस्सा नहीं बन सकते।”
🌙
“चाँद की रौशनी छूती है दिल को,
पर अपने हाथों से पकड़ना नामुमकिन है।
ऐसी ही मेरी चाहत भी रह गई,
अधूरी, पर कभी खत्म न होने वाली।”
कुछ दिन बाद... Prisha की सगाई का दिन...
अचानक रुशाली के दिल ने कहा —
“आज पाँच साल बाद मयूर सर का favourite colour पहनूँ।”
उसने Navy Blue रंग का एक साधारण सलवार-सूट निकाला।
बड़े झुमके, खुले बाल और माथे पर छोटी-सी बिंदी।
माँ ने देखा तो हैरान रह गईं —
माँ: “इतने साल बाद आज ये रंग क्यों?”
रुशाली: (मुस्कुराकर)
“पता नहीं माँ... बस दिल ने कहा पहन लो, तो पहन लिया।”
सगाई का स्थल फूलों और रोशनी से सजा हुआ था।
चारों ओर खुशियों की खनक, गानों की धुन और मेहमानों की चहल-पहल।
प्रिशा दौड़कर आई और गले लग गई —
प्रिशा: “अरे मेरी DM मैडम! कैसी लग रही हूँ मैं?”
रुशाली: “बहुत खूबसूरत... जैसे असली दुल्हन।”
रुशाली: “लड़के वाले आए?”
प्रिशा: “हाँ, आ चुके हैं। चल तुझे मिलवाती हूँ विवान से।”
रुशाली: (हंसते हुए)
“ओहो... तो डॉक्टर साहब का नाम विवान है।”
दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं।
थोड़ी देर बाद प्रिशा मेहमानों में उलझ गई।
रुशाली ने सोचा — “चलो थोड़ा नाश्ता कर लूँ।”
उसने प्लेट ली और एक टेबल की ओर बढ़ी।
लेकिन वहाँ पहले से कोई बैठा था।
रुशाली: (पीछे से)
“Excuse me... यहाँ बैठ सकती हूँ?”
वो शख्स धीरे-धीरे पीछे मुड़ा...
और जैसे ही उसकी नज़रें उस चेहरे से मिलीं...
दिल धक से रह गया।
आँखें फैल गईं, होंठ काँपने लगे।
क्योंकि...
वो चेहरा जाना-पहचाना था...
कौन था वो?
कोई पुराना दोस्त?
या फिर... खुद किस्मत का कोई और खेल?