Bhartiyata ka Punjagran - 10 in Hindi Spiritual Stories by NR Omprakash Saini books and stories PDF | भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 10

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भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 10

अध्याय 10
संस्कृति और नारी शक्ति

भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय पक्ष उसकी नारी के प्रति दृष्टि है। यहाँ नारी को केवल गृहिणी या भोग की वस्तु नहीं माना गया, बल्कि उसे शक्ति, करुणा और सृजन की प्रतीक के रूप में सम्मानित किया गया। यही कारण है कि भारत की आत्मा नारी में ही प्रतिबिंबित होती है। भारतीय जीवन-दर्शन में नारी को “गृहलक्ष्मी”, “जननी” और “शक्ति” कहा गया।

शास्त्रों ने उद्घोष किया— “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्र तैस्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥” अर्थात् जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है, वहाँ देवता वास करते हैं, और जहाँ उनका अपमान होता है, वहाँ सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं। यह उद्घोष केवल श्लोक नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है।

इतिहास गवाह है कि भारतीय नारी ने हर युग में अपनी शक्ति का परिचय दिया है। सीता ने त्याग और मर्यादा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। सावित्री ने अपने पतिव्रत से यमराज तक को झुका दिया। अनसूया ने तप और पतिव्रता का आदर्श स्थापित किया। द्रौपदी ने अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाकर समाज को झकझोर दिया। मीरा ने अपने भक्ति-प्रेम से दिखाया कि नारी का हृदय केवल गृहस्थ तक सीमित नहीं, वह भक्ति के माध्यम से संपूर्ण मानवता को दिशा दे सकता है।

आधुनिक काल में भी नारी शक्ति का प्रभाव उतना ही प्रेरणादायक रहा। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने शस्त्र उठाकर अंग्रेजी सत्ता को चुनौती दी। मातंगिनी हाज़रा और भीकाजी कामा जैसी वीरांगनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना जीवन अर्पित कर दिया। यह बताता है कि भारतीय नारी केवल कोमलता की प्रतिमा नहीं, बल्कि पराक्रम की धारा भी है।

भारतीय संस्कृति ने नारी को केवल शक्ति नहीं, बल्कि जीवन का आधार माना। वह जननी है, वह गुरु है, वह प्रेरणा है। घर में माँ ही बच्चों को पहला संस्कार देती है। वही सत्य, धर्म और मर्यादा की शिक्षा देती है। यदि माँ संस्कारवान है तो संतान स्वतः संस्कारित होगी और यदि संतान संस्कारित होगी तो राष्ट्र स्वतः सशक्त होगा। इसीलिए कहा गया कि “नारी शिक्षित होगी तो सम्पूर्ण परिवार शिक्षित होगा।”

आज आधुनिकता के नाम पर नारी को केवल स्वतंत्रता का आकर्षण दिखाया जा रहा है। लेकिन भारतीय संस्कृति कहती है कि वास्तविक स्वतंत्रता मर्यादा में है। स्त्री तभी सशक्त है जब वह अपने अस्तित्व को पहचानकर परिवार, समाज और राष्ट्र को दिशा देती है। पश्चिम ने नारी को स्वतंत्रता दी किंतु उसके बदले परिवार और संबंध खो दिए। भारत की संस्कृति कहती है कि नारी शक्ति है और उसकी स्वतंत्रता प्रेम, त्याग और मर्यादा में ही पूर्ण है।

आज आवश्यकता है कि युवा पीढ़ी भारतीय नारी की इस शक्ति को पहचाने। उसे केवल फैशन, दिखावा और भोग की दृष्टि से न देखा जाए, बल्कि उसे शक्ति, प्रेरणा और संस्कृति की वाहक के रूप में सम्मान दिया जाए। जब समाज स्त्री को देवी का स्थान देगा, तभी राष्ट्र की आत्मा सुरक्षित होगी।

भारत का भविष्य तभी उज्ज्वल होगा जब उसकी नारी शक्ति जाग्रत होगी। संस्कृति तभी सुरक्षित होगी जब नारी उसमें अपनी भूमिका निभाएगी। और राष्ट्र तभी अमर होगा जब उसकी स्त्रियाँ सीता की मर्यादा, मीरा की भक्ति, सावित्री की दृढ़ता और लक्ष्मीबाई के साहस को आत्मसात करेंगी। यही भारतीय संस्कृति का शाश्वत संदेश है—नारी शक्ति ही राष्ट्र शक्ति है।