Renaissance of Indianness (Journey from Culture to Modernity) - 4 in Hindi Spiritual Stories by NR Omprakash Saini books and stories PDF | भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 4

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भारतीयता का पुनर्जागरण (संस्कारों से आधुनिकता तक की यात्रा) - 4

अध्याय 4

संस्कृति पर उठते प्रश्न और आधुनिक द्वंद्व

हर युग में प्रश्न उठते रहे हैं। प्रश्न अपने आप में बुरे नहीं होते, क्योंकि प्रश्न ही सत्य की खोज का आधार हैं। किंतु जब प्रश्न तर्क का स्थान उपहास लेने लगते हैं, और श्रद्धा का स्थान संदेह ले लेता है, तब संस्कृति संकट में पड़ जाती है। आज भारत के शास्त्र, ग्रंथ और परंपराएँ केवल आस्था के प्रतीक मात्र नहीं मानी जातीं, बल्कि उन पर आरोप लगाया जाता है कि ये तो केवल कल्पनाएँ हैं और इनका आधुनिक युग में कोई महत्व नहीं। यही आधुनिक द्वंद्व है—परंपरा बनाम प्रगति।

भारतीय शास्त्र सदैव मानवता को दिशा देने वाले रहे हैं, किंतु आज उन पर संदेह की दृष्टि डाली जाती है। रामायण को केवल एक कथा कह दिया जाता है, जबकि वास्तव में वह मर्यादा और धर्म का शाश्वत ग्रंथ है। महाभारत को हिंसा का महाकाव्य कहा जाता है, जबकि उसमें धर्म और अधर्म के संघर्ष का अद्वितीय विवेचन है। गीता को युद्ध का ग्रंथ कहकर नकार दिया जाता है, जबकि वह जीवन का दर्शन है। वेद और उपनिषद, जिनमें विज्ञान और आध्यात्मिकता का अथाह भंडार है, आधुनिक शिक्षा उन्हें अंधविश्वास मानकर दरकिनार कर देती है। यह केवल अज्ञान का परिणाम नहीं, बल्कि पाश्चात्य प्रभाव से उपजी मानसिक गुलामी का द्योतक है।

आज समाज के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या हमें अपनी परंपरा छोड़कर पश्चिम की आधुनिकता अपनानी चाहिए। पश्चिम का तर्क है कि परंपरा प्रगति में बाधा है, जबकि भारत का दृष्टिकोण कहता है कि परंपरा ही प्रगति का मार्गदर्शन करती है। उदाहरण हमारे सामने स्पष्ट हैं। विवाह भारत में एक संस्कार और जिम्मेदारी है, जबकि पश्चिम में वह मात्र एक अनुबंध है। परिवार भारत में सामाजिक शक्ति है, जबकि पश्चिम में एकल परिवार अकेलेपन का प्रतीक बन चुका है। शिक्षा भारत में ज्ञान और चरित्र का संगम है, जबकि पश्चिम में शिक्षा नौकरी और धन कमाने का साधन मात्र है। सच्चाई यही है कि वास्तविक आधुनिकता वही है जो परंपरा की जड़ों को काटे बिना नए फूल खिला सके।

विज्ञान और आस्था का द्वंद्व भी आज गहरा हो चुका है। बहुत से लोग मानते हैं कि भारतीय संस्कृति केवल अंधविश्वास है। किंतु जो लोग गहराई से अध्ययन करते हैं, वे पाते हैं कि भारतीय शास्त्र विज्ञान से भरे हैं। सूर्यसिद्धांत में खगोल विज्ञान है, आयुर्वेद में चिकित्सा है, योगसूत्र में मनोविज्ञान है। लेकिन सतही दृष्टि रखने वाले इन्हें केवल “किवदंती” मानकर नकार देते हैं। समस्या यह है कि हमने अपने ही ज्ञान का प्रचार बंद कर दिया और पश्चिम को ही सत्य मान लिया।

नारी स्वतन्त्रता और मर्यादा का द्वंद्व भी आज गंभीर प्रश्न बनकर सामने खड़ा है। भारतीय संस्कृति ने सदा स्त्री को देवी माना। किंतु आज यह प्रश्न उठता है कि क्या यह सम्मान वास्तव में स्वतन्त्रता है या केवल परंपरा की बेड़ियाँ हैं। पश्चिम कहता है स्त्री को पूर्ण स्वतन्त्रता दो। भारत कहता है—स्त्री को स्वतन्त्रता दो, किंतु मर्यादा और संस्कार के साथ। असली समस्या यही है कि हमने सम्मान और बंधन के बीच का अंतर ही भुला दिया है।

आजकल आधुनिकता का अर्थ बदल गया है। अब आधुनिकता का अर्थ हो गया है पाश्चात्य पहनावा, पॉप संगीत, नाइट पार्टियाँ और अनुशासनहीनता को स्वतन्त्रता कहना। जबकि वास्तविक आधुनिकता का अर्थ है—विज्ञान का उपयोग, समाज में समानता, शिक्षा में प्रगति, और जीवन में अनुशासन तथा मर्यादा। आधुनिकता तभी सार्थक है जब वह परंपरा की आत्मा को बचाए रखे।

स्वामी विवेकानंद से किसी ने पूछा था—“क्या हमें पश्चिम की नकल करनी चाहिए?” उन्होंने उत्तर दिया—“विज्ञान और तकनीक लो, पर आत्मा अपनी संस्कृति से लो। क्योंकि आत्मा पश्चिम से नहीं, केवल भारत से मिल सकती है।” यह वचन ही हमारे आधुनिक द्वंद्व का समाधान है।