The Risky Love - 41 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 41

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The Risky Love - 41

 

उबांक गायब होकर सबके वार से बच रहा था , लेकिन सभी आदिवासी काफी घायल हो चुके थे , , अपनी पूरी ताकत लगाकर उसपर हमला कर दिया लेकिन उबांक पर उसका कोई असर नहीं हो रहा था.......

अब आगे...........

 

विवेक तुरंत आदित्य को बचाने के लिए उसकी रस्सी खोलने लगा था जिसे देखकर उबांक ने गुस्से में उसे पकड़कर जोर से धक्का दे दिया , , उसके हमले ने विवेक को जख्मी कर दिया था , इतनी जोरदार तरीके से गिरने की वजह से वो हिल भी नहीं पा रहा था....

 

जिसे देखकर उबांक हंसते हुए कहता है...." तू मुझे मारने आया था , अब खुद चींटी की तरह रेंग रहा है...." अदिति ये सब देखकर काफी ज्यादा तड़प रही थी , लेकिन अपनी पूरी कोशिश करने पर भी वो उठ नहीं पाई.....

 

उबांक विवेक को गले से पकड़कर उठाकर पीछे लगे खंभे पर मार देता है , उसके इस वार से विवेक के सिर से खून बहने लगा था , 

 

चेताक्क्षी अदिति को वो औषधि पीलाने के बाद तुरंत विवेक के पास पहुंचकर उसे कवर करते हुए कहती हैं....." बस करो, , अच्छा किया मेरी मां ने जो मुझे तुम जैसे क्रुर के हाथों में नहीं सौंपा , शर्म आती है मुझे अपने आप को बेताल जाति का कहने में , , हमारे पुरखों ने हमें दुनिया पर राज करने के लिए नहीं भेजा है...."

 

उसकी बात सुनकर उबांक गुस्से में उसे घूरते हुए कहता है..." मैं बेताल जाति का सबसे शक्तिशाली राजा हूं , , मुझे केवल शक्तियां चाहिए जिससे मैं सबको अपना गुलाम बना सकूं , लेकिन उससे पहले तूझे खत्म करके अपनी जाति के कलंक को खत्म करूंगा...."

 

इतना कहकर उबांक उसपर जैसे ही वार करने वाला था तभी उसकी एक दर्द भरी चीख पूरी गुफा में फ़ैल जाती है..... उसकी छाती को चीरता हुआ एक तीखा खंजर अपना काम कर चुका था......

 

वो पीछे मुड़कर अदिति को देखते ही आग बबूला हो गया...

 

चिल्लाते हुए कहता है....." कोई मुझे नहीं मार सकता...." 

 

अदिति मुस्कुराते हुए कहती हैं...." ये खंजर तुझे तेरी मौत दिखा चुका है...." अदिति की बात सुनकर उबांक बौखला गया था , , 

 

गुस्से में उसके एक तमाचा जड़ दिया था , , उसके इस वार से अदिति के होंठों के पास से खून निकलने लगा था , , घायल अदिति वहीं गिर चुकी थी , , आधे होश में उबांक को आदित्य की तरफ जाते हुए रही थी.....

 

उबांक लड़खड़ाते हुए एक खंजर को उठाकर आदित्य के पास बढ़ने लगा था , , जिसे देखकर चेताक्क्षी चिल्लाते हुए कहती हैं...." अदिति खत्म कर उसे , , उठो अदिति खत्म कर दो उसे......उठो अदिति नहीं तो आदित्य को कभी नहीं देख पाओगी , उठो अदिति.... "

 

चेताक्क्षी की बात सुनकर और उबांक को उसकी तरफ जाते देखकर अदिति उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन बार बार गिरने लगी थी , , लेकिन अपने भाई को बचाने का जुनून उसके अंदर हौसला जगा रहा था , , लेकिन बार बार कमजोर होने की वजह से उसका उठा नहीं पाया...

 

तभी गुफा में एक सफेद रोशनी फैलती है 

 

...वो रोशनी अदिति की तरफ देखते हुए कहती हैं....." उठो वनदेवी , खत्म कर दो इस दुष्ट पिशाच को , उठो...."

 

हल्की हल्की आंखें खोलकर उसे देखते हुए अदिति पूछती है...." कौन हो तुम...?..."

 

वो रोशनी कहती हैं...." हम आपकी शक्ति है वनदेवी , ..." इतना कहकर वो सफ़ेद रंग की रोशनी अदिति के अंदर समा चुकी थी....

 

उसके समाते ही एक अद्भुत चमत्कार होता है..... अदिति के घाव भरने लगे थे , उसकी ऊर्जा वापस लौटने लगी थी , , अदिति का रुप बदलने लगा था.....

 

उसके सिर पर एक अलौकिक ताज आ चुका था , उसके कपड़े सफेद रंग के रेशमी बन गाउन बन चुका था , उसके सफ़ेद और बड़े पंख उसके रुप को और सुंदर बना रहे थे....

 

उसके बदले रुप को सबने अपनी आंखों से देखा , उबांक उसे देखते हुए गुस्से में कहता है..." वनदेवी तुम मुझे नहीं मार सकती , ... तुमने हमें बचाने का वादा किया है..."

 

अदिति गुस्से में चिल्लाती हुई कहती हैं...." दुष्ट तूने मेरे बनाए नियमों का उल्लघंन किया है , , मैंने तुम्हें शक्तियों को प्राप्त करने के लिए नहीं बोला था , , तुम कमजोर और असहाय होते तो मैं सहायता करती .... तूने अपनी काली शक्तियों से मुझे देहविहीन किया था , , अब तू देहविहीन होगा....."

 

इतना कहकर अदिति उसपर उसी खंजर से कई वार करती है , , जिसकी वजह से उबांक अब अपने अस्तित्व को खो चुका था ,....

 

अदिति के इस रूप को देखकर आदिवासी उसके पैरों में झुककर कहते हैं...." वनदेवी आपकी जय हो , आपने हमें इस दुष्ट से बचा लिया..." 

 

अदिति मुस्कुराते हुए कहती हैं....... "मुझे तो आपसबकी रक्षा के लिये हीं ये जिम्मेदारी सौपी गई है...." इतना कहकर अदिति चैताक्क्षी को कुछ शक्ति देते हुए कहती है.... " अब तुम सब को होश में ला सकती हो... " चैताक्क्षीे मुस्कुराते हुए जैसे ही आगे बढ़ती है वनदेवी उसे रोकते हुए कहती है.... " चैताक्क्षी , एक बात का ध्यान रखना, मेरा अस्तित्व इस शरीर में केवल पांच वर्ष का ही है , उसके बाद मेरी शक्तियां किसी नवीन शरीर में प्रवेश कर जाऐंगी.. इसलिए विवेक को कुछ पता नही चलना चाहिए.... " 

और अदिति वहीं बेहोश हो जाती है......

चेताक्क्षी के अंदर समा जाने से अब वो पहले से ज्यादा ऊर्जावान हो चुकी थी , , पहले विवेक के माथे पर हाथ रखते हुए कुछ मंत्र बोलती है , , उसके इस तरह करने से विवेक बिल्कुल ठीक हो चुका था..... उसके बाद आदित्य को खोलकर उसपर भी वहीं प्रक्रिया दोहराती है.....

आदित्य बिल्कुल होश में आ चुका था , , अपने सामने चेताक्क्षी को देखकर मुस्कुराते हुए  कहता है....." थैंक्स चेताक्क्षी मुझे बचाने के लिए..."

चेताक्क्षी मना करते हुए कहती हैं...." नहीं आदित्य मैंने तुम्हें नहीं बचाया है , अदिति ने तुम्हें बचाया है...." अभी कुछ देर पहले घटी घटना आदित्य को बता देती है..... आदित्य तुरंत अदिति के पास पहुंचता है....

विवेक जोकि अदिति को अपनी गोद में ले चुका उसे आदित्य की तरफ करते हुए कहता है.…" भाई आज अदिति ने हम सबको बचाया है......."

आदित्य चेताक्क्षी की तरफ देखते हुए कहता है...." चेताक्क्षी अदिति को होश में नहीं ला सकती...."

" नहीं आदित्य , ये अपने आप होश में आएगी...." 

चेताक्क्षी की बात पर सहमति जताते हुए आदित्य अदिति को गोद में उठाकर वहां से चलने के लिए कहता है......

आदिवासी अपने गांव की तरफ चले गए थे और चारों पैहरगढ की ओर........

काफी लंबा रास्ता तय करने के बाद चारों पैहरगढ़ पहुंच चुके थे...... आदित्य अदिति को लेकर घर पहुंचता है और चेताक्क्षी विवेक मंदिर की तरफ जाते हैं.....

चेताक्क्षी और विवेक को आते देख अमोघनाथ जी और देविका जी घबरा गए थे.....

अमोघनाथ जी चेताक्क्षी के पास आकर पूछते हैं...." चेताक्क्षी आदित्य और अदिति कहां है...?..."

चेताक्क्षी मुस्कुराते हुए कहती हैं....." बाबा घबराइए मत , सबकुछ ठीक हो गया.... आदित्य अदिति को लेकर घर पहुंच चुका है....."

चेताक्क्षी गुफा की घटना अमोघनाथ जी और देविका जी को बताती है.....

जिसे सुनकर वो राहत की सांस लेकर घर के तरफ चले जाते हैं........

देविका जी आदित्य को गले से लगाकर अपनी चिंता जाहिर करते हुए रोने लगती है , आदित्य उन्हें समझाते हुए कहता है...." मां घबराने की क्या बात है अब सबकुछ ठीक हो गया...."

तो वहीं अदिति को होश आने लगा था...... जिसे देखकर चेताक्क्षी कहती हैं...." काकी अदिति को होश आने लगा..."

अदिति को होश आ चुका था , , अपने तरफ सबको देखते हुए अदिति हैरानी भरी नजरों से देखते हुए कहती हैं...." क्या हुआ है...?...इस तरह मुझे घेरे हुए क्यूं खड़े हैं...?..." 

चेताक्क्षी अदिति से कहती हैं...." तुम उस बेताल को मारने के बाद बेहोश हो गई थी..."

अदिति सोचते हुए कहती हैं..." हां , याद आया भाई....." अदिति की चिंता भरी आवाज सुनकर आदित्य उसके पास जाकर उसे गले से लगाते हुए कहता है...." मेरी बहादुर बहना..."

अदिति आदित्य की बात को काटते हुए कहती हैं....." नहीं मेरे प्यारे भैया , , मुझे बचाने के लिए आपने बहुत कुछ किया है...." आदित्य अदिति से अलग होकर कहता है..."मैंने अकेले नहीं... विवेक ने भी अपनी जान जोखिम में डालकर तुम्हें बचाया है...."

तभी देविका जी हाथ में मिठाई लिए वहां पहुंचकर कहती हैं...." इसी खुशी में मैंने कुछ निश्चय किया है....."

देविका जी की बात सुनकर सबकी नजरें उनपर टिक चुकी थी....

आदित्य हैरानी से पूछता है...." मां क्या निश्चय किया है...?..."

" मैंने अदिति के लिए एक रिश्ता तय किया है..."

देविका जी की बात सुनकर विवेक और अदिति दोनों ही घबराई हुई नजरों से एक दूसरे को देखने लगे थे....

देविका जी विवेक के पास जाकर अदिति के हाथ को विवेक के हाथ में सौंपते हुए कहती हैं...." इसी तरह हमेशा मेरी अदिति का ध्यान रखना...."

देविका जी की बात सुनकर अदिति और विवेक शर्मा जाते हैं तो सभी के चेहरे पर एक खुशी छा जाती है.....

आदित्य विवेक को गले लगाते हुए कहता है...." अदिति का हमेशा इसी तरह ध्यान रखना...."

विवेक मुस्कुराते हुए सहमति जताता है....तभी देविका कहती है अभी तो एक जोड़ी और बाकि है... सबकी नज़र देविका से जवाब पर थी... देविका चैताक्क्षी का हाथ पकड़ कर आदित्य को थमाते हुए कहती है.... " तुम दोनों भी " चैताक्क्षी काफी खुश थी तो वही आदित्य ने अपनी माँ के फैसले को बिना झिझक है हामी भर दी 

....... तो वही दूर पनपे एक नये खतरे ने उन्हे गुस्से में देखते हुए कहा... " मैं जल्द हीं तुम सबकी खुशियों को ख़तम कर दूंगा... "

 

............ Happy ending......

New season arrival soon

मेरी हो तुम..