The Risky Love - 40 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 40

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The Risky Love - 40

अदिति हुई घायल...

तभी कुछ आदिवासी हाथ में तीर कमान लिए उनके सामने आ जाते हैं.....

अब आगे..............
उन्हे अचानक आए देखकर विवेक हैरानी से उन सबको देखकर कहता है....." हट जाओ हमारे रास्ते से..."
उन आदिवासियों का सरदार हाथ में भाला लिए चेताक्क्षी की तरफ करते हुए कहता है....." ये तो बेताल है , , खत्म कर दो इसे..."
विवेक चेताक्क्षी को कवर करते हुए आगे आकर कहता है...." तुम इसे नहीं मार सकते , ...."
आदिवासी का सरदार गुस्से में कहता है...." तुम इसे क्यूं बचाना चाहते हो , ये तुम्हारी तरह इंसान नहीं है , जिंदा खा जाएगी ये तुम्हें...."
विवेक कमर पर हाथ रखते हुए कहता है...." ये इंसान नहीं है तो क्या हुआ, , मैं इसे कुछ नहीं होने दूंगा ....."
आदिवासी का सरदार दूसरे के हाथ से चाकू छिनकर उसकी गर्दन पर रखते हुए कहता है...." अब पहले तुझे मारेंगे फिर अपने दुश्मन इस बेताल जाति की सदस्य को भी मार दूंगा...."
विवेक उसे एक किक मारकर दूर करता है , अपने सरदार को गिरे देखकर दूसरे आदिवासी विवेक को मारने के लिए आगे बढ़ते हैं लेकिन उनका सरदार उन्हें रोकते हुए खुद खड़े होकर , एक जोरदार तमाचा विवेक को मारता है , और तुरंत उसके गर्दन पर चाकू रख देता है , , 
चेताक्क्षी उसे छोड़ने के लिए कहने लगती है लेकिन उसकी कोई बात उनपर असर नहीं कर रही थी , ,वहीं बैठी अदिति विवेक के गर्दन पर चाकू देखकर जल्दी से खड़ी होकर, , विवेक के पास आकर उससे लिपटते हुए कहती हैं..." तुम इसे नहीं मार सकते , , " 
जहां अचानक काले बादल छा गए थे वहीं, , बादल की गर्जन के तेज हवाएं चलने लगती है.....
अचानक बदले मौसम को देखकर आदिवासी का सरदार कहता है...." ये लड़की जरूर कोई तांत्रिक है..... इसके बीच में आते ही , , वातावरण बदल चुका है...."
चेताक्क्षी अदिति के बचाव में कहती हैं...." तांत्रिक वो नहीं मैं हूं और ये उस दिव्य महापुरुष आदिराज की बेटी अदिति है , जो तुम्हें भी खत्म कर सकती हैं...."
चेताक्क्षी की बात सुनकर उनका सरदार अपने हथियार को नीचे रखते हुए कहता है....." आदिराज , वो महान तेजस्वी संत , .."
" हां , वहीं..."
अदिति को चेताक्क्षी की कोई भी बात समझ नहीं आ रही थी फिर भी चुपचाप बस उन्हें ही देखे जा रही थी.....
उनका सरदार कहता है....." ये यहां क्या कर रही है..?... क्या ये भी आदिराज जी जैसी दिव्य आत्मा है..."
चेताक्क्षी उन्हें बताती है...." हां , वनदेवी ...."
वनदेवी का नाम सुनते ही सारे आदिवासी अदिति के चारों तरफ घुटनों के बल‌‌ बैठकर अपना सिर झुकाकर कहते हैं..." वनदेवी की जय हो....इतने अरसो बाद आपको देखने का सौभाग्य मिला है....."
अदिति विवेक से दूर होती हुई चेताक्क्षी से कुछ कहने के लिए जैसे ही बढ़ती है तभी चेताक्क्षी उसे रूकने का इशारा करती है.....
आदिवासी उससे यहां आने का कारण पूछते हैं जिसका जबाव देते हुए चेताक्क्षी कहती हैं....." हम यहां इन्हीं के भाई को बचाने के लिए आए हैं , उस बेताल के राजा ने उसे कैद कर रखा है......"
उनका सरदार कहता है......" तो फिर हम भी आपकी सहायता करेंगे , उस बेताल को खत्म करने में , उससे हमारी भी दुश्मनी है... लेकिन तुम बेताल जाति की होकर उन्हीं के विरोध में हो कुछ समझे नहीं....."
चेताक्क्षी गुस्से में कहती हैं....." मेरी मां उससे नफ़रत करती थी , वो प्रकृति के नियमों के विरुद्ध कार्य करते हैं , उस दुष्ट राजा को खत्म करके मैं इस दुनिया से काले मातम को हमेशा के लिए खत्म कर दूंगी , फिर कभी कोई अमर होने का सपना नहीं देख पाएगा...."
अदिति उन आदिवासियों से पूछती है....." आपकी दुश्मनी उससे क्यूं है...?.."
आदिवासी का सरदार हाथ जोड़कर कहता है...." वनदेवी जी , , उसने बलि के लिए हमारी कई सुकोमल कन्याओं की हत्या कर दी , , इसलिए हम उससे बदला लेना चाहते हैं...."
उसकी बात पर सहमति जताते हुए अदिति कहती हैं...." ठीक है फिर आप भी हमारे साथ चलिए....."
इतना कहकर वो तीनों आगे बढ़ने लगते हैं और पीछे पीछे दस पंद्रह आदिवासियों का समूह भी......
चेताक्क्षी झाड़ियों को हटाते हुए जल्दी जल्दी आगे बढ़ रही थी , कुछ ही देर की चढ़ाई के बाद वो सब उसकी गुफा के बाहर पहुंच चुके थे , .... वहां से जोर जोर से बोलने की आवाज आ रही थी , , 
चेताक्क्षी दबे पांव अंदर पहुंच चुकी थी , तो पीछे पीछे अदिति, विवेक और बाकी आदिवासी भी अंदर आ चुके थे....
उबांक उनके कदमों की आहट सुनकर मुस्कुराते हुए कहता है....." आओ चेताक्क्षी आओ...... मुझे पता था तुम जरूर आओगी......"
चेताक्क्षी सामने बंधे आदित्य को देखकर कहती हैं....." आदित्य को छोड़ दो उसने कुछ नहीं किया है...."
उबांक एक बार उसे और फिर अदिति को देखकर कहता है....." इसे मेरे हवाले करके यहां से चले जाओ , और ये लड़का भी आजाद हो जाएगा...."
आदिवासी का सरदार अदिति का बचाव करते हुए कहता है...." तुम वनदेवी को हमारे होते हुए कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकते...."
उबांक उनकी तरफ देखकर एक शातिराना अंदाज में कहता है....." देखो मैं इसे तुम्हारे सामने ही नुकसान पहुंचाऊगा..."
इतना कहकर उबांक अदिति पर एक वार करता है , , जो अदिति को घायल कर देता है , कमजोर होने की वजह से उस वार को न झेल पाई , अदिति वहीं गिर गई लेकिन उसे विवेक ने संभाल लिया था , 
खा जाने वाली नज़रों से उसे देखते हुए विवेक कहता है...." तुझे भी गामाक्ष की तरह मरना है , ...."
उबांक जोर से हंसते हुए कहता है....." हिम्मत है तो मार दे....."
 
विवेक अदिति को दिवार से टिकाकर बैठा देता है , , आदिवासी भी गुस्से में उसपर अपने भाले से हमला करता है....चेताक्क्षी अदिति के पास उसे ठीक करने के लिए पोटली में से औषधि को मसलने लगी थी.....
 
 
 
उबांक गायब होकर सबके वार से बच रहा था , लेकिन सभी आदिवासी काफी घायल हो चुके थे , , अपनी पूरी ताकत लगाकर उसपर हमला कर दिया लेकिन उबांक पर उसका कोई असर नहीं हो रहा था.......
 
 
 
विवेक तुरंत आदित्य को बचाने के लिए उसकी रस्सी खोलने लगा था जिसे देखकर उबांक ने गुस्से में उसे पकड़कर जोर से धक्का दे दिया , , उसके हमले ने विवेक को जख्मी कर दिया था , इतनी जोरदार तरीके से गिरने की वजह से वो हिल भी नहीं पा रहा था....
 
 
 
जिसे देखकर उबांक हंसते हुए कहता है...." तू मुझे मारने आया था , अब खुद चींटी की तरह रेंग रहा है...." अदिति ये सब देखकर काफी ज्यादा तड़प रही थी , लेकिन अपनी पूरी कोशिश करने पर भी वो उठ नहीं पाई.....
 
 
 
उबांक विवेक को गले से पकड़कर उठाकर पीछे लगे खंभे पर मार देता है , उसके इस वार से विवेक के सिर से खून बहने लगा था , 
 
 
 
चेताक्क्षी अदिति को वो औषधि पीलाने के बाद तुरंत विवेक के पास पहुंचकर उसे कवर करते हुए कहती हैं....." बस करो, , अच्छा किया मेरी मां ने जो मुझे तुम जैसे क्रुर के हाथों में नहीं सौंपा , शर्म आती है मुझे अपने आप को बेताल जाति का कहने में , , हमारे पुरखों ने हमें दुनिया पर राज करने के लिए नहीं भेजा है...."
...........to be continued..........