विवेक अचानक बेहोश कैसे हो गया..?
तभी अमोघनाथ जी हड़बड़ाते हुए उनके पास आते हैं......
अब आगे...............
अमोघनाथ जी हड़बड़ाते हुए उनके पास आकर कहते हैं....." चेताक्क्षी , मुझे गामाक्ष की कमजोरी पता चल गई...."
चेताक्क्षी खुशी जाहिर करते हुए कहती हैं....." आपने उसकी कमजोरी ढूंढ ही ली ....".
" हां चेताक्क्षी , उस दिव्य खंजर से ही गामाक्ष को मारा जा सकता है , लेकिन ध्यान रहे वो खंजर अदिति के हाथों में नहीं जाना चाहिए , उससे उस खंजर की शक्ति खत्म हो जाएगी और वो उस गामाक्ष को कुछ नहीं कर पाएगी...."
आदित्य हैरानी से पूछता है......" लेकिन अदिति के छूने से क्या होगा...?..."
अमोघनाथ जी उसे समझाते हुए कहते हैं....." वो वनदेवी है उसमें एक प्राण ऊर्जा है जो किसी को भी जीवन दे सकती है और वो खंजर दुष्ट आत्माओं को खत्म करने के लिए है , अगर अदिति ने उसे छू लिया तो उसकी शक्ति खत्म हो जाएगी......"
आदित्य उनकी बात पर सहमति जताता है , ,
उधर विवेक उस अदृश्य इंसान की आखिरी पहेली का जबाव देते हुए कहता है......" वादा है , , जिसके टूटने की आवाज नहीं होती...."
दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आती जिससे और वो खंजर भी गायब होने लगा था जिसे देखकर विवेक काफी परेशानी में पड़ जाता है , फिर कुछ ही सेकंड बाद उसके सामने एक सफेद रंग की रोशनी फैलने लगती है....और वो रोशनी धीरे धीरे एक इंसान में बदल चुकी थी , जो पूरी तरह किसी देवता से कम नहीं लग रहा था.....
विवेक उसे हैरानी से देखते हुए पूछता है....." कौन हो तुम...?...और वो खंजर कहां चला गया.....?..."
वो इंसान हंसते हुए कहता है....." घबराओ नहीं , मैं वहीं हूं जो तुमसे सवाल पूछ रहा था , मैं उस खंजर का रक्षक पाखी हूं....ये रहा तुम्हारा खंजर , ...."
पाखी विवेक को वो खंजर सौंपता है , जिसे लेकर विवेक वहां से जाने के लिए सोचता है , उसकी परेशानी समझते हुए पाखी कहता है....." घबराओ नहीं , इस खंजर से को माथे से लगाकर तुम यहां से चले जाओगे....."
पाखी की बात सुनकर विवेक तुरंत उस खंजर को माथे से लगाता है , जिससे तुरंत उसके सामने एक बड़ा सा दरवाजा आ जाता है , जिसमें से काफी रोशनी निकल रही थी....
पाखी उससे कहता है......" जाओ अब ..." विवेक हां मैं सिर हिलाते हुए वहां से सीधा उस दरवाजे में चला जाता है.....
इधर बाकी सब विवेक के न आने पर घबरा रहे थे , आदित्य टेंशन में इधर से उधर घूम रहा था......और चेताक्क्षी ढलते हुए सूरज को देखकर परेशान हो रही थी , .....देविका जी भी मायुस सी चेताक्क्षी के पास ही बैठी थी......
सूरज की लालिमा हल्की होने लगी थी , जिसके साथ ही सभी की बैचेनी बढ़ने लगी थी ,.....तभी उनके सामने उम्मीद की किरण जागने लगती है , सामने से आ रहे विवेक को देखकर चेताक्क्षी जल्दी से खड़ी हो जाती है और सब मंदिर के बाहर जाने लगते हैं , लेकिन चेताक्क्षी उनसे कहती हैं...." आप सब वापस अंदर आइए विवेक अंदर ही आएगा...."
विवेक जल्दी जल्दी उनके पास आता है..... जिसे देखकर आदित्य तुरंत उसे अपने गले से लगाकर कहता है...." विवेक तुम्हारी वजह से ...."
आदित्य अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही विवेक ने उसे रोकते हुए कहा....." भाई , आप कैसी बात कर रहे हैं...अब हमे देर नहीं करनी चाहिए जल्दी चलिए...."
चेताक्क्षी विवेक की बात पर सहमति जताते हुए कहती हैं..." हां आदित्य , चलो अंदर हमें कुछ सामान तैयारी करनी है फिर उस गामाक्ष के किले की तरफ जाएंगे...."
चेताक्क्षी की बात सुनकर सब मंदिर के तहखाने वाले कमरे में आते हैं...
.चेताक्क्षी सबको अपना अपना काम बताते हुए कहती हैं...." आदित्य और मैं उस किले के मैं सामने के दरवाजे से जाएंगे और विवेक तुम और ..." इशान की तरफ देखते हुए कहती हैं..." और तुम विवेक के साथ पीछे वाले दरवाजे से अंदर आना...हम ऐसा इसलिए करेंगे ताकि उसे दिव्य खंजर का एहसास न हो....." चेताक्क्षी चार पुराने रखें भालो को लाकर उसपर कपूर और रोली का लेप लगाती ......
" ये क्यूं कर रही हो चेताक्क्षी , हम चार उस गामाक्ष के लिए काफी होंगे...."
चेताक्क्षी मुस्कुराते हुए कहती हैं....." नहीं आदित्य , तुम्हें क्या लगता है, गामाक्ष के किले में जाना इतना आसान है , नहीं उसने काफी सुरक्षा की होगी , हम ऐसे लापरवाह होकर नहीं जा सकते , ये भाले किसी भी प्रेत शक्ति को खत्म करने के लिए है....हम सबके पास ये भाले होंगे , अगर उसके सिपाहियों ने हमें रोका तो तुम सब इसी भाले से उनपर वार करना , , क्योंकि वो और किसी चीज से खत्म नहीं हो सकते....."
चेताक्क्षी सबको वो कपूर लगा भाला देती हुई विवेक से कहती हैं....." कुछ भी हो जाए , तुम इस खंजर को केवल गामाक्ष पर वार करने के लिए ही निकालोगे , और इस खंजर को छुपा कर रखोगे....."
विवेक चेताक्क्षी की बात पर सहमति जताता है.....
चारों अपने अपने हाथ में भाला लिए जाने के लिए तैयार खड़े थे , , अमोघनाथ जी अपने हाथ में माता काली के सुंदर लाल को लेकर उनके सामने आकर बारी बारी से सबके माथे को लाल सिंदूर से ढकते हुए कहते हैं....." उम्मीद करता हूं तुम सब बुराई पर जीत प्राप्त करो और उस दुष्ट गामाक्ष का नामोनिशान मिटा दो.... भोलेनाथ तुम्हारी रक्षा करें....तुम सब ही अब अपने भविष्य को बचा सकते हो.....अब देर न करो जल्दी उस किले पर पहुंच जाओ नहीं तो वो गामाक्ष अपने किले को अपने मंत्रों से बांध देगा जिसे तुम कभी पार नहीं कर पाओगे...."
अमोघनाथ जी की बात को सुनने के बाद सब जाने के लिए जैसे ही आगे बढ़ते हैं , लेकिन तभी विवेक अचानक बेहोश होकर गिर जाता है...... उसके अचानक इस तरह बेहोश होने से सब घबरा जाते हैं , इशान जल्दी से उसे तख्त पर लेटाता है , आदित्य तुरंत उसके फेस पर पानी की छिंटे मारता है लेकिन उसका कोई फायदा नहीं होता.....
विवेक के अचानक बेहोश होने से सबके चेहरे पर अनहोनी का डर शताने लगा , , आदित्य और इशान हर कोशिश कर रहे थे विवेक को होश में लाने की लेकिन किसी भी चीज़ का कोई फायदा नहीं हुआ......
चेताक्क्षी मायुसी से कहती हैं....." ऐसा नहीं होना चाहिए , अगर विवेक को होश नहीं आया तो , अदिति को कोई नहीं बचा सकता....."
...............to be continued..........