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🏡 भाग 1: घर की सुबह
जान्हवी और विराज अब अपने नए स्टूडियो-घर में रह रहे हैं — दीवारों पर स्केच, खिड़कियों पर हल्की धूप, और एक कोना जहाँ दोनों चुपचाप बैठते हैं।
एक सुबह दरवाज़ा खुला रह गया — और एक दस्तक आई।
विराज ने दरवाज़ा खोला — सामने थी अनया, उसकी कॉलेज की दोस्त, जो अब एक प्रसिद्ध फोटोजर्नलिस्ट बन चुकी थी।
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🧳 भाग 2: अनया की वापसी
अनया कुछ दिन के लिए शहर में थी — और विराज से मिलने आई थी।
जान्हवी ने उसे देखा — आत्मविश्वास से भरी, तेज़, और विराज से बेहद सहज।
> “तुम दोनों बहुत पुराने दोस्त लगते हो,” जान्हवी ने कहा।
अनया मुस्कराई:
> “हम सिर्फ दोस्त नहीं थे… हम एक-दूसरे की पहली तस्वीर थे।”
विराज चुप रहा — और जान्हवी की आँखों में हल्की बेचैनी उतर आई।
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🎨 भाग 3: दीवारों की खामोशी
जान्हवी ने उस दिन कोई स्केच नहीं बनाई — उसकी ब्रश सूखी रह गई।
वो सोचती रही:
> क्या विराज की कहानी में कोई ऐसा अध्याय है जो उसने मुझसे छुपाया है?
विराज ने कोशिश की बात करने की — लेकिन शब्द कम पड़ गए।
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📷 भाग 4: विराज की उलझन
विराज ने अनया के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया — एक डॉक्यूमेंट्री जो शहर की पुरानी गलियों पर थी।
जान्हवी ने महसूस किया कि विराज अब ज़्यादा बाहर रहने लगा है — और घर की दीवारें फिर से चुप हो गईं।
रीमा ने कहा:
> “अगर तुम्हारा घर बोलना बंद कर दे… तो समझो कोई बाहर की आवाज़ ज़्यादा तेज़ हो गई है।”
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💌 भाग 5: अनया का खत
एक दिन जान्हवी को एक खत मिला — अनया का।
> *“मैं जानती हूँ कि मेरी मौजूदगी ने कुछ बदल दिया है।
> लेकिन मैं यहाँ कोई कहानी चुराने नहीं आई — मैं बस अपनी अधूरी तस्वीर को पूरा करना चाहती थी।”*
जान्हवी ने खत पढ़ा — और पहली बार, अनया की आँखों में झाँकने की कोशिश की।
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🖼️ भाग 6: जान्हवी की स्केच
जान्हवी ने दीवार पर एक नई स्केच बनाई —
तीन लोग, एक घर, और एक दरवाज़ा जो खुला है।
नीचे लिखा:
> “अगर दरवाज़ा खुला हो… तो हर दस्तक को समझना ज़रूरी है।”
विराज ने वो स्केच देखी — और पहली बार, जान्हवी को गले लगाया।
> “मैंने तुम्हें सब नहीं बताया… लेकिन अब मैं सब तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ।”
रात को तीनों छत पर बैठे — जान्हवी, विराज, और अनया।
कोई शिकायत नहीं, कोई सवाल नहीं — सिर्फ एक समझ।
अनया ने कहा:
> “तुम दोनों की कहानी अब मेरी तस्वीर नहीं… मेरी प्रेरणा है।”
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🏙️ भाग 7: शहर का प्रस्ताव
जान्हवी और विराज को एक आमंत्रण मिला —
“हेरिटेज आर्ट फेस्टिवल” में उनकी कला को प्रदर्शित करने का मौका।
> “आपकी स्केच और डॉक्यूमेंट्री ने शहर की गलियों को फिर से ज़िंदा कर दिया है,” आयोजकों ने कहा।
जान्हवी थोड़ी घबराई —
> “क्या मेरी कला इतनी बड़ी है कि शहर उसे देखे?”
विराज ने उसका हाथ थामा:
> “तुम्हारी कला ने मुझे देखना सिखाया — शहर तो बस अगला दर्शक है।”
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🎨 भाग 8: तैयारी
दोनों ने मिलकर एक प्रदर्शनी तैयार की —
हर स्केच के नीचे एक कविता, हर तस्वीर के पीछे एक कहानी।
अनया ने भी मदद की —
> “तुम दोनों की कहानी अब शहर की दीवारों पर लिखी जाएगी।”
जान्हवी ने एक नई स्केच बनाई —
एक गली, जिसमें हर ईंट पर एक नाम लिखा था।
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🧑🤝🧑 भाग 9: दर्शकों की नज़र
प्रदर्शनी में लोग आने लगे —
कुछ पुराने निवासी, कुछ नए कलाकार, और कुछ ऐसे जो बस गलियों की खुशबू ढूँढ रहे थे।
एक बुज़ुर्ग महिला ने जान्हवी से कहा:
> “तुमने मेरी पुरानी गली को फिर से जिंदा कर दिया — अब वो सिर्फ याद नहीं, एहसास है।”
जान्हवी की आँखें नम हो गईं —
> “शायद मेरी कला सिर्फ रंग नहीं… किसी की याद भी है।”
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📷 भाग 10: विराज की डॉक्यूमेंट्री
विराज की डॉक्यूमेंट्री को खूब सराहना मिली —
शहर की गलियों की धड़कन, लोगों की आवाज़ें, और जान्हवी की स्केच एक साथ।
एक पत्रकार ने पूछा:
> “आप दोनों कलाकार हैं — लेकिन क्या आप एक-दूसरे की प्रेरणा भी हैं?”
विराज ने मुस्कराकर कहा:
> “मैं उसकी आँखों से देखता हूँ — और वो मेरी तस्वीरों में रंग भरती है।”
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🏆 भाग 11: सम्मान
फेस्टिवल के अंत में जान्हवी और विराज को “शहर की आत्मा” पुरस्कार मिला।
जान्हवी ने मंच पर कहा:
> “हमने गलियों को देखा — लेकिन उन्होंने हमें पहचान दी।
> ये प्यार सिर्फ हमारा नहीं… ये हर उस मोड़ का है जहाँ कोई कहानी छुपी है।”
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🌌 भाग 12
रात को दोनों छत पर बैठे —
शहर की रोशनी नीचे चमक रही थी, और ऊपर तारे।
जान्हवी ने कहा:
> “अब मेरी स्केच में सिर्फ गलियाँ नहीं… तुम्हारा नाम भी है।”
विराज ने जवाब दिया:
> “और मेरी तस्वीरों में अब सिर्फ शहर नहीं… तुम्हारा चेहरा भी है।”
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🏙️ भाग 13: प्रस्ताव
जान्हवी को एक अंतरराष्ट्रीय आर्ट रेजिडेंसी का प्रस्ताव मिला — फ्लोरेंस, इटली में।
विराज को भी एक डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट मिला — वाराणसी की गलियों पर।
दोनों एक-दूसरे को देखते हैं —
> “क्या हम फिर से अलग शहरों में होंगे?”
> “या फिर ये हमारी कला की अगली मंज़िल है?”
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🎨 भाग 14: उलझन
जान्हवी स्टेशन की दीवार के सामने बैठी थी — वही दीवार जहाँ उनकी कहानी शुरू हुई थी।
उसने एक स्केच बनाई — एक लड़की जो दो रास्तों पर खड़ी है, एक जयपुर की गलियाँ, दूसरा फ्लोरेंस की गलियाँ।
नीचे लिखा:
> “क्या हर गली में एक घर होता है?”
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📷 भाग 15: विराज की चुप्पी
विराज ने कुछ नहीं कहा — बस अपनी तस्वीरों को पैक करना शुरू कर दिया।
जान्हवी ने पूछा:
> “क्या तुम जयपुर छोड़ सकते हो?”
विराज ने जवाब दिया:
> “मैंने तुम्हें पाया था इन गलियों में… अब अगर तुम कहीं और हो, तो मैं वहीं रहना चाहूँगा।”
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💌 भाग 16: रीमा की सलाह
जान्हवी ने रीमा से बात की —
रीमा ने कहा:
> “गलियाँ छोड़ना मुश्किल है… लेकिन अगर तुम्हारा रिश्ता सिर्फ गलियों तक सीमित है, तो वो मोहब्बत नहीं, आदत है।”
जान्हवी चुप रही — लेकिन उसकी आँखों में एक फैसला बन रहा था।
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🛫 भाग 17: विदाई
दोनों स्टेशन पर खड़े थे — इस बार ट्रेन उन्हें अलग-अलग दिशा में ले जाने वाली थी।
जान्हवी ने कहा:
> “अगर मेरी कला मुझे दूर ले जाए… तो क्या तुम मेरी कहानी में रहोगे?”
विराज ने जवाब दिया:
> “मैं तुम्हारी कहानी नहीं… तुम्हारा विराम बनना चाहता हूँ — जहाँ तुम लौट सको।”
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🌌 भाग 18
फ्लोरेंस में जान्हवी ने एक दीवार पर स्केच बनाई —
एक लड़की जो एक गली छोड़ रही है, लेकिन उसकी परछाई वहीं रह गई है।
नीचे लिखा:
> “मैंने गलियाँ छोड़ीं… लेकिन तुम्हें नहीं।”
विराज ने वाराणसी की एक तस्वीर भेजी —
एक दरवाज़ा, खुला हुआ, और उसके ऊपर लिखा था:
> “तुम लौट सकती हो।”
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✨ Writer: Rekha rani