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🗼 भाग 1: पेरिस की वापसी
विराज पेरिस पहुँच चुका था — वही शहर जहाँ जान्हवी ने अपनी कला को उड़ान दी थी, लेकिन विराज की अनुपस्थिति में।
जान्हवी को उसकी वापसी की खबर मिली — लेकिन वो उससे मिलने नहीं गई।
वो चाहती थी कि विराज खुद उस दीवार के सामने आए — जहाँ उनकी कहानी अधूरी रह गई थी।
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🎨 भाग 2: दीवार की खामोशी
वो दीवार अब भी वैसी ही थी — जान्हवी की स्केच, अधूरी पंक्ति, और एक खाली कोना।
विराज वहाँ पहुँचा — और दीवार को देखा जैसे पहली बार देख रहा हो।
उसने अपनी जेब से एक छोटा सा ब्रश निकाला — और उस खाली कोने में एक शब्द लिखा:
> “मैं”
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💬 भाग 3: जान्हवी की प्रतिक्रिया
जान्हवी को किसी ने तस्वीर भेजी — दीवार पर विराज का लिखा “मैं”।
वो मुस्कराई — और बोली:
> “अब दीवार ने जवाब दिया है… अब मुझे वहाँ जाना होगा।”
वो उसी शाम वहाँ पहुँची — विराज वहाँ खड़ा था, बारिश की हल्की बूंदों में भीगता हुआ।
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☕ भाग 4: इज़हार
जान्हवी ने दीवार के नीचे बैठकर एक नई पंक्ति लिखी:
> “मैं… तुम्हारे रंगों में हूँ।”
विराज ने कहा:
> “मैंने तुम्हें खोया नहीं था… मैं खुद को ढूँढ रहा था।”
जान्हवी ने जवाब दिया:
> “और मैंने तुम्हें अपनी दीवार में छुपा लिया था।”
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📷 भाग 5: तस्वीर जो सब कह गई
विराज ने एक तस्वीर ली — लेकिन इस बार दीवार की नहीं, जान्हवी की।
उसने कहा:
> “अब मेरी तस्वीरों में सिर्फ दृश्य नहीं… कहानी भी होगी।”
जान्हवी ने उसकी कैमरा स्ट्रैप पर एक छोटा सा रंगीन धागा बाँधा —
> “ताकि तुम्हारी तस्वीरें अब सिर्फ तुम्हारी न रहें।”
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🌌 भाग 6: समापन की स्केच
जान्हवी ने दीवार पर एक अंतिम स्केच बनाई —
एक लड़की और लड़का, दोनों दीवार के सामने खड़े हैं, और उनके पीछे एक सूरज उग रहा है।
नीचे लिखा:
> “जब दीवार ने जवाब दिया… तो मोहब्बत ने रास्ता बना लिया।”
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🪟 भाग 7: ख्वाबों की खिड़की
जान्हवी और विराज अब साथ हैं — लेकिन साथ रहना सिर्फ एक इज़हार नहीं, एक ज़िम्मेदारी भी है।
विराज ने एक पुराना स्टूडियो देखा — टूटी खिड़कियाँ, धूल भरी दीवारें, लेकिन उसमें एक सपना था।
वो बोला:
> “यहाँ हम दोनों का घर हो सकता है — जहाँ तुम्हारी स्केच और मेरी तस्वीरें एक साथ साँस लें।”
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🧱 भाग 8: दीवारें जो बोलती हैं
जान्हवी ने दीवारों को देखा — और कहा:
> “ये दीवारें खाली हैं… लेकिन इनमें आवाज़ है।”
वो हर दीवार पर एक स्केच बनाने लगी —
एक में विराज की आँखें, दूसरी में उसकी माँ की यादें, तीसरी में एक खुला दरवाज़ा।
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💸 भाग 9: कीमत
स्टूडियो खरीदना आसान नहीं था — विराज की फोटोग्राफी से उतनी कमाई नहीं होती थी।
जान्हवी ने एक आर्ट गैलरी में काम करना शुरू किया — लेकिन वहाँ उसकी कला को “बिकाऊ” बना दिया गया।
वो टूटी — और विराज ने कहा:
> “अगर तुम्हारी कला को समझने के लिए दुनिया बदलनी पड़े… तो हम दुनिया नहीं बदलेंगे, बस अपना रास्ता बदलेंगे।”
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🛠️ भाग 10: निर्माण
दोनों ने मिलकर स्टूडियो को घर बनाया —
पुरानी ईंटों को रंगा, खिड़कियों में काँच लगाया, और एक कोना बनाया जहाँ सिर्फ खामोशी रहती थी।
वो कोना उनका “सुनहरी कोना” बन गया — जहाँ कोई कुछ नहीं कहता, बस महसूस करता।
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🎭 भाग 11: पहला मेहमान
उनका पहला मेहमान था — जान्हवी का छोटा भाई, जो कभी विराज को पसंद नहीं करता था।
लेकिन जब उसने दीवारों को देखा — और जान्हवी की आँखों में सुकून — तो उसने कहा:
> “शायद ये घर नहीं… एक कहानी है।”
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🌠 भाग 12: समापन
रात को जान्हवी ने एक स्केच बनाया —
एक घर, जिसमें दो लोग बैठे हैं, और उनके ऊपर एक आसमान है जिसमें कोई तारा नहीं… सिर्फ एक चाँद।
नीचे लिखा:
> “जब ख्वाबों ने घर माँगा… तो मोहब्बत ने नींव रख दी।”
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✨ Writer: Rekha Rani