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🪷 भाग 1: हवेली की पुरानी अलमारी
जान्हवी विराज को अपनी दादी की हवेली में ले जाती है — वहाँ एक पुरानी अलमारी है, जिसमें उसकी माँ की स्केचबुक और एक स्याही की बोतल रखी है।
> “ये स्याही मेरी माँ की आखिरी निशानी है,” जान्हवी कहती है।
> “उन्होंने कहा था — जब दिल टूटे, तो इसे खोलना… शायद कुछ नया बन जाए।”
विराज बोतल को देखता है — और कहता है:
> “शायद आज वो पल आ गया है।”
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🎨 भाग 2: स्याही की पहली बूंद
जान्हवी स्टेशन की दीवार पर जाती है — और पहली बार रंगों की जगह स्याही से स्केच बनाती है।
वो एक लड़की बनाती है — जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं, लेकिन आँखों में एक तूफ़ान है।
विराज तस्वीर लेता है — लेकिन इस बार वो तस्वीर नहीं, कहानी कैद करता है।
> “तुम्हारी माँ की स्याही अब तुम्हारी आवाज़ बन गई है,” वो कहता है।
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📷 भाग 3: विराज की उलझन
विराज अकेले बैठा है — उसके कैमरे में जान्हवी की स्याही वाली स्केच है, लेकिन उसके दिल में एक सवाल।
> “क्या मैं सिर्फ उसकी कहानी का हिस्सा हूँ? या उसकी कहानी अब मेरी भी है?”
वो अपनी डायरी में लिखता है:
> “साँझ की स्याही ने मुझे रंग दिया… लेकिन क्या मैं उस रंग में टिक पाऊँगा?”
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☕ भाग 4: रीमा की सलाह
जान्हवी रीमा से मिलती है — उसे सब बताती है।
रीमा कहती है:
> “तू विराज को अपनी माँ की स्याही दे रही है… लेकिन क्या तू उसे अपना दिल भी दे रही है?”
जान्हवी चुप हो जाती है — उसकी आँखों में एक डर है।
> “मैंने कभी किसी को इतना पास नहीं आने दिया… क्योंकि मैं खुद से भी दूर थी।”
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🌌 भाग 5: साँझ का इज़हार
विराज और जान्हवी फिर हवेली की छत पर मिलते हैं — साँझ उतर रही है, और हवा में स्याही की खुशबू है।
विराज कहता है:
> “तुमने मुझे अपनी माँ की स्याही दी… अब मैं तुम्हें अपना कैमरा देना चाहता हूँ।”
जान्हवी चौंकती है —
> “क्यों?”
> “क्योंकि अब मैं तुम्हारी तस्वीरों में जीना चाहता हूँ… और तुम्हारे रंगों में खो जाना चाहता हूँ।”
वो दोनों एक-दूसरे की तरफ देखते हैं — और पहली बार, कोई वादा नहीं… सिर्फ एक सच्चा इज़हार।
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🌇 भाग 6: हवेली की छत पर एक सपना
जान्हवी और विराज हवेली की छत पर बैठे हैं — सामने गुलाबी शहर की रोशनी, और ऊपर सितारों की चादर।
जान्हवी कहती है:
> “कभी-कभी सोचती हूँ… क्या हम यहाँ से कहीं और जा सकते हैं? जहाँ सिर्फ हम हों, और हमारी कला।”
विराज मुस्कराता है:
> “तुम्हारे रंग और मेरी तस्वीरें — अगर साथ हों, तो कहीं भी घर बन सकता है।”
वो दोनों एक सपना बुनते हैं — एक आर्ट स्टूडियो, जहाँ दीवारें बोलती हों और खिड़कियाँ गुनगुनाती हों।
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🎨 भाग 7: गलियों में स्केच
अगले दिन जान्हवी जयपुर की गलियों में स्केच बनाती है — हर दीवार पर एक नया ख्वाब।
- एक लड़की जो उड़ रही है
- एक मोर जो रंग छोड़ रहा है
- एक दरवाज़ा जो खुला है, लेकिन कोई बाहर नहीं आता
विराज हर स्केच की तस्वीर लेता है — और कहता है:
> “तुम्हारे ख्वाब अब शहर की दीवारों पर बिखर गए हैं।”
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📷 भाग 8: विराज का प्रस्ताव
विराज जान्हवी को एक आर्ट फेस्टिवल का पोस्टर दिखाता है — दिल्ली में, अगले महीने।
> “अगर हम वहाँ जाएँ… तो तुम्हारे रंग और मेरी तस्वीरें एक साथ दुनिया को दिखा सकते हैं।”
जान्हवी चुप हो जाती है —
> “मैंने कभी जयपुर से बाहर नहीं सोचा… ये शहर मेरी माँ की याद है।”
विराज कहता है:
> “और मैं तुम्हारी याद बनना चाहता हूँ — जहाँ भी तुम जाओ।”
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☕ भाग 9: रीमा की सलाह
जान्हवी रीमा से मिलती है — उसे सब बताती है।
रीमा कहती है:
> “तेरे ख्वाब अब दीवारों से बाहर जाना चाहते हैं… तू उन्हें रोक नहीं सकती।”
जान्हवी सोचती है — क्या मैं अपनी माँ की यादों को पीछे छोड़ सकती हूँ? या उन्हें साथ लेकर आगे बढ़ सकती हूँ?
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🌌 भाग 10: फैसला
रात को जान्हवी स्टेशन की दीवार पर एक स्केच बनाती है — एक लड़की जो जयपुर की गलियों से निकल रही है, लेकिन उसकी परछाई वहीं रह जाती है।
विराज वहाँ आता है — और कहता है:
> “तुम्हारी परछाई यहीं रहेगी… लेकिन तुम्हारा सफर अब शुरू होना चाहिए।”
जान्हवी मुस्कराती है —
> “चलो… उस ख्वाब को जीते हैं जो हमने छत पर बुना था।”
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✨ एपिसोड का समापन
- एक सपना जो अब दीवारों से निकल चुका है
- एक प्रस्ताव जो मोहब्बत को नई उड़ान देगा
- और एक स्केच — जहाँ परछाई पीछे रह गई, लेकिन रंग आगे बढ़ गए
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Writer: Rekha Rani