Sunahari Galiyo ka Pyaar - 9 in Hindi Love Stories by Rekha Rani books and stories PDF | सुनहरी गलियों का प्यार - 9

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सुनहरी गलियों का प्यार - 9

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🗺️ भाग 1: फ्लोरेंस की दीवारें

जान्हवी अब फ्लोरेंस में है — एक आर्ट रेजिडेंसी में, जहाँ हर कलाकार अपनी भाषा में रंगों से बात करता है।

वो एक पुरानी दीवार पर काम कर रही थी — लेकिन हर ब्रश स्ट्रोक में उसे जयपुर की गलियाँ याद आती थीं।

> “मैं यहाँ हूँ… लेकिन मेरी परछाई अब भी उस स्टेशन की दीवार पर है।”

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💌 भाग 2: विराज की चिट्ठी

एक दिन उसे एक चिट्ठी मिली — विराज की।

> *“मैंने तुम्हारी दीवार को फिर से रंगा है — लेकिन इस बार तुम्हारे बिना।  
> और हर रंग में तुम्हारी मुस्कान छुपी है।”*

जान्हवी ने चिट्ठी पढ़ी — और उसकी आँखें भर आईं।

वो सोचती रही: क्या मोहब्बत सिर्फ साथ होने से होती है? या फिर महसूस करने से?

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🎨 भाग 3: एक स्केच जो सब कह गया

जान्हवी ने फ्लोरेंस की दीवार पर एक स्केच बनाई —  
एक लड़की जो दो शहरों के बीच खड़ी है, एक तरफ जयपुर की गलियाँ, दूसरी तरफ फ्लोरेंस की गलियाँ।

नीचे लिखा:  
> “मैं जहाँ भी जाऊँ… मेरी परछाई वहीं रहती है जहाँ तुम हो।”

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📷 भाग 4: विराज की तस्वीर

विराज ने जयपुर में एक नई तस्वीर ली —  
वही स्टेशन, वही दीवार, लेकिन इस बार उसमें एक मोर था — जान्हवी का पसंदीदा।

उसने तस्वीर के नीचे लिखा:  
> “तुम लौटो या नहीं… मैं तुम्हें हर रोज़ देखता हूँ।”

जान्हवी ने वो तस्वीर ऑनलाइन देखी — और पहली बार, उसने फ्लोरेंस की प्रदर्शनी छोड़ने का मन बना लिया।

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🛫 भाग 5: वापसी की उड़ान

जान्हवी ने फ्लोरेंस छोड़ने का फैसला किया —  
उसने आयोजकों से कहा:  
> “मेरी कला वहाँ है जहाँ मेरी कहानी है — और मेरी कहानी अब भी अधूरी है।”

वो जयपुर लौट आई — बिना बताए, बिना शोर के।

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🧱 भाग 6: दीवार के सामने

विराज स्टेशन की दीवार के पास खड़ा था — बारिश हो रही थी।

जान्हवी वहाँ पहुँची — और चुपचाप उसके पास खड़ी हो गई।

विराज ने कहा:  
> “तुम लौट आईं?”  
जान्हवी ने जवाब दिया:  
> “नहीं… मेरी परछाई लौट आई थी, मैं बस उसका पीछा कर रही थी।”

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🌌 भाग 7:

दोनों ने दीवार पर एक नई स्केच बनाई —  
एक लड़की और लड़का, दोनों एक ही शहर की दो गलियों से चलकर एक ही मोड़ पर मिलते हैं।

नीचे लिखा:  
> “जब परछाई लौट आई… तो कहानी फिर से शुरू हुई।”

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🏙️ भाग 8: एक नया शहर, एक नया पता

जान्हवी और विराज अब जयपुर लौट चुके हैं — एक छोटा सा स्टूडियो, दो खिड़कियाँ, और एक दीवार जहाँ जान्हवी ने पहली स्केच बनाई थी।

विराज ने कहा:  
> “अब ये दीवार सिर्फ तुम्हारी नहीं… हमारी है।”

जान्हवी मुस्कराई —  
> “और ये शाम अब सिर्फ एक एहसास नहीं… एक घर बन चुकी है।”

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🖼️ भाग 9: दीवारों की भाषा

जान्हवी ने घर की दीवारों पर स्केच बनाना शुरू किया —  
- एक दीवार पर सूरज  
- दूसरी पर एक खुला दरवाज़ा  
- तीसरी पर एक लड़की जो किताब पढ़ रही है

विराज ने कहा:  
> “तुम्हारी दीवारें बोलती हैं… और मैं हर रोज़ उन्हें पढ़ता हूँ।”

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📷 भाग 10: विराज की नई भूमिका

विराज को एक डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट मिला — लेकिन काम ज़्यादा था, और वक्त कम।

वो देर रात लौटता, थका हुआ — और जान्हवी उसे कॉफी देती, मुस्कराहट के साथ।

लेकिन धीरे-धीरे, दीवारों पर रंग फीके पड़ने लगे — और खामोशी बढ़ने लगी।

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💬 भाग 11: वो पुरानी याद

एक दिन जान्हवी को एक मेल मिला — उसकी माँ की पुरानी दोस्त से।

> “तुम्हारी माँ की डायरी मिली है — उसमें तुम्हारे लिए कुछ लिखा है।”

वो डायरी मंगवाई — और उसमें एक पन्ना था:

> “अगर कभी तुम्हें लगे कि मोहब्बत घर बन सकती है… तो उसे दीवारों से नहीं, दिल से सजाना।”

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🕊️ भाग 12: टकराहट

जान्हवी और विराज के बीच अब छोटी-छोटी बातें बड़ी होने लगी थीं।

- विराज की थकान  
- जान्हवी की चुप्पी  
- और वो दीवारें जो अब बोलती नहीं थीं

एक रात विराज ने कहा:  
> “क्या हम सिर्फ एक शाम थे?”  
जान्हवी जवाब नहीं दे पाई — सिर्फ आँसू थे।

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🎨 भाग 13: दीवार पर एक दरार

जान्हवी ने एक नई स्केच बनाई — लेकिन दीवार पर एक दरार थी।

उसने उस दरार को नहीं छुपाया — बल्कि उसमें एक पौधा उगाया।

नीचे लिखा:  
> “अगर दरार में भी कुछ उग सके… तो मोहब्बत ज़िंदा है।”

विराज ने वो देखा — और पहली बार, बिना कहे माफ़ी माँगी।

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🌌 भाग 14: समापन की शाम

एक शाम दोनों छत पर बैठे — चुपचाप।

जान्हवी ने कहा:  
> “मैंने तुम्हें घर नहीं दिया… मैंने तुम्हें दीवारें दीं।”  
विराज बोला:  
> “और मैंने उन्हें समझने में देर कर दी।”

वो दोनों एक-दूसरे की तरफ देखे — और पहली बार, कोई वादा नहीं… सिर्फ एक समझ।

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✨ writer: Rekha Rani