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🏙️ भाग 1: दिल्ली की दस्तक
दिल्ली का स्टेशन जैसे एक नई दुनिया का दरवाज़ा था। जान्हवी ने पहली बार जयपुर से बाहर कदम रखा था — और वो भी विराज के साथ। ट्रेन की खिड़की से बाहर झांकते हुए उसने देखा, शहर की रफ्तार उसके दिल की धड़कनों से कहीं तेज़ थी।
विराज ने उसका बैग उठाया और मुस्कराते हुए कहा,
> “तैयार हो? ये शहर तुम्हारे रंगों को देखने के लिए बेताब है।”
जान्हवी ने सिर हिलाया, लेकिन अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी। जयपुर की गलियों में उसने जो पहचान बनाई थी, क्या वो यहाँ टिक पाएगी?
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🎨 भाग 2: आर्ट फेस्टिवल की पहली सुबह
दिल्ली के हौज़ खास में एक पुरानी हवेली को आर्ट गैलरी में बदला गया था। वहाँ देशभर के कलाकार आए थे — कुछ नामचीन, कुछ नए। जान्हवी को एक दीवार दी गई थी — जहाँ उसे लाइव स्केच बनाना था।
वो दीवार पुरानी थी, उस पर दरारें थीं — जैसे किसी अधूरी कहानी की शुरुआत।
जान्हवी ने अपनी पेंसिल उठाई और दीवार पर एक लड़की बनानी शुरू की — जो गुलाबी गलियों से निकलकर एक अनजान शहर की ओर बढ़ रही थी। हर स्ट्रोक में उसका अपना डर, उम्मीद और विराज की मुस्कान छिपी थी।
विराज दूर खड़ा था — कैमरा हाथ में, लेकिन आँखें सिर्फ जान्हवी पर।
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💬 भाग 3: भीड़, पहचान और सवाल
लोग रुकते गए। कुछ तारीफें करते, कुछ तस्वीरें लेते। एक पत्रकार ने पूछा,
> “आपकी स्केच में जो लड़की है, वो कौन है?”
जान्हवी ने जवाब दिया,
> “वो मैं हूँ… और शायद आप भी।”
वो जवाब वायरल हो गया। सोशल मीडिया पर जान्हवी की स्केच ट्रेंड करने लगी। लेकिन उस रात जान्हवी अकेले छत पर बैठी थी — विराज नीचे सो रहा था।
उसने खुद से पूछा,
> “क्या मेरी पहचान सिर्फ मेरी कला है? या विराज के बिना मैं अधूरी हूँ?”
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🌆 भाग 4: इंडिया गेट की रात
अगली शाम विराज उसे इंडिया गेट ले गया। वहाँ हजारों लोग थे — लेकिन जान्हवी को सिर्फ विराज दिख रहा था।
विराज ने कहा,
> “तुम्हारी कला ने दीवारों को बोलना सिखा दिया। लेकिन क्या तुम खुद सुन पा रही हो?”
जान्हवी चुप रही। फिर बोली,
> “मैं डरती हूँ… कि कहीं ये सब खो न जाए।”
विराज ने उसका हाथ थामा,
> “अगर खो भी जाए, तो हम फिर से बनाएँगे। तुम्हारे रंगों से, मेरी तस्वीरों से।”
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🖼️ भाग 5: दीवार पूरी हुई
तीसरे दिन जान्हवी ने स्केच पूरी की — लड़की अब शहर की भीड़ में थी, लेकिन उसकी आँखों में आत्मविश्वास था। दीवार पर आखिरी स्ट्रोक के साथ जान्हवी ने एक छोटा सा दिल बनाया — और उसके अंदर लिखा:
> “V + J”
लोगों ने ताली बजाई। लेकिन जान्हवी ने सिर्फ विराज की आँखों में देखा — वहाँ गर्व था, प्यार था… और एक वादा।
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💌 भाग 6: समापन की चिट्ठी
दिल्ली से लौटते वक्त जान्हवी ने विराज को एक चिट्ठी दी —
> “तुमने मुझे दीवार दी, मैंने उस पर अपना दिल बना दिया।
> अब अगली दीवार कहाँ है?”
विराज ने मुस्कराते हुए जवाब दिया,
> “पेरिस?”
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🖼️ भाग 7: पेरिस का निमंत्रण
दिल्ली आर्ट फेस्टिवल के बाद जान्हवी को एक मेल मिला — पेरिस की प्रतिष्ठित Galerie Lumière से।
उनकी क्यूरेटर ने लिखा था:
> “आपकी दीवार पर बनी स्केच ने हमें छू लिया। हम चाहते हैं कि आप पेरिस में अपनी प्रदर्शनी लगाएँ।”
जान्हवी की आँखें चमक उठीं — लेकिन दिल में एक सवाल था: क्या विराज भी साथ चलेगा?
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📷 भाग 8: विराज की उलझन
विराज को उसी समय एक ऑफर मिला — एक डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट, जो उसे लद्दाख ले जा सकता था।
वो जान्हवी से कुछ नहीं कह पाया।
उसने अपनी डायरी में लिखा:
> “अगर मैं उसके साथ पेरिस जाऊँ… तो क्या मैं खुद को खो दूँगा?”
वो जानता था — जान्हवी की उड़ान शुरू हो चुकी है। लेकिन क्या वो उसके साथ उड़ने के लिए तैयार है?
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🎨 भाग 9: तैयारी और दूरी
जान्हवी पेरिस जाने की तैयारी में जुट गई — पासपोर्ट, स्केच, थीम, सब कुछ।
विराज उसके साथ था — लेकिन अब उसकी आँखों में वो चमक नहीं थी।
जान्हवी ने पूछा:
> “क्या तुम मेरे साथ चलोगे?”
विराज चुप रहा — फिर कहा:
> “शायद नहीं।”
जान्हवी की मुस्कान टूट गई —
> “क्यों?”
> “क्योंकि तुम्हारी उड़ान तुम्हारी है… और मुझे अपनी ज़मीन ढूँढनी है।”
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🌌 भाग 10: दीवार पर आखिरी स्केच
पेरिस जाने से एक दिन पहले जान्हवी स्टेशन की दीवार पर एक आखिरी स्केच बनाती है —
एक लड़की जो उड़ रही है, लेकिन नीचे एक लड़का खड़ा है, उसकी तरफ देखता हुआ।
नीचे लिखती है:
> “अगर तुम ज़मीन बनो… तो मैं हर बार लौटूँगी।”
विराज तस्वीर लेता है — लेकिन इस बार वो तस्वीर नहीं, विदाई थी।
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✈️ भाग 11: हवाई अड्डे की चिट्ठी
जान्हवी एयरपोर्ट पर विराज की दी हुई चिट्ठी खोलती है:
> *“तुम वो शाम हो… जो अब सुबह बन चुकी है।
> मैं तुम्हें रोक नहीं रहा… मैं तुम्हें देख रहा हूँ — उड़ते हुए, मुस्कराते हुए।
> और जब तुम लौटोगी… तो मैं यहीं रहूँगा, तुम्हारी दीवार के नीचे।”*
जान्हवी की आँखें भर आती हैं — लेकिन उसके कदम अब कांपते नहीं।
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✨ एपिसोड का समापन
- जान्हवी की कला अब पेरिस की दीवारों पर
- विराज अपनी पहचान की तलाश में
- और एक रिश्ता — जो अब दूरी में भी गहराई से बंधा है
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Writer : rekha rani