Sunahari Galiyo ka Pyaar - 10 in Hindi Love Stories by Rekha Rani books and stories PDF | सुनहरी गलियों का प्यार - 10

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सुनहरी गलियों का प्यार - 10

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जयपुर की एक हल्की धूप वाली सुबह थी।  
जान्हवी खिड़की के पास बैठी थी, अपनी स्केचबुक में एक अधूरी तस्वीर बना रही थी — एक घर, जिसमें दो खिड़कियाँ थीं लेकिन दरवाज़ा नहीं।

विराज ने उसके पास आकर कहा:  
> “अगर हम इस तस्वीर को पूरा करें… तो क्या तुम मेरे साथ एक नाम बाँटना चाहोगी?”

जान्हवी ने उसकी आँखों में देखा —  
> “तुम शादी की बात कर रहे हो?”  
विराज मुस्कराया:  
> “मैं साथ की बात कर रहा हूँ — नाम तो बस उसका पता है।”

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जान्हवी ने उस दिन दीवार पर एक नई स्केच बनाई —  
एक लड़की और लड़का, एक ही ब्रश से एक ही तस्वीर बना रहे हैं।

नीचे लिखा:  
> “अगर साथ साँस ले सके… तो उसे नाम की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन दुनिया को समझाने के लिए शायद होती है।”

विराज ने तस्वीर देखी — और पहली बार, उसने जान्हवी को एक अंगूठी दिखाई।  
सादी सी, चाँदी की — लेकिन उसमें एक शब्द खुदा था: “साथ”

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रीमा ने जान्हवी से कहा:  
> “नाम से डर मत — वो सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, एक वादा है।  
> लेकिन अगर तुम्हारा रिश्ता पहले से वादा निभा रहा है, तो नाम सिर्फ एक औपचारिकता है।”

जान्हवी चुप रही — लेकिन उसकी आँखों में एक सवाल था:  
"क्या मैं फिर से किसी वादे में बंध सकती हूँ?"

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विराज ने जान्हवी को एक पुरानी तस्वीर दिखाई —  
उसकी माँ की, जो कभी एक वादा निभा नहीं पाई थी।

> “मैंने वादों को टूटते देखा है… इसलिए डरता हूँ।  
> लेकिन तुम्हारे साथ, मैं पहली बार वादा करना चाहता हूँ।”

जान्हवी ने कहा:  
> “तो चलो, एक ऐसा वादा करें जो सिर्फ नाम से नहीं, हर मौसम से बंधा हो।”

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दोनों एक पुराने मंदिर गए — जहाँ जान्हवी ने पहली बार विराज को देखा था।

वहाँ उन्होंने एक छोटी सी रस्म की — कोई पंडित नहीं, कोई शोर नहीं।  
सिर्फ एक स्केचबुक, एक तस्वीर, और एक वादा।

जान्हवी ने कहा:  
> “अब मैं तुम्हारी नहीं… हमारी हूँ।”  
विराज ने जवाब दिया:  
> “और मैं अब सिर्फ तुम्हें नहीं… तुम्हारे हर रंग को अपनाता हूँ।”

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अगले दिन दोनों ने कोर्ट मैरिज की तारीख तय की —  
लेकिन जान्हवी ने एक शर्त रखी:  
> “नाम बदलूँगी नहीं — क्योंकि मेरी पहचान तुम्हारे साथ जुड़कर और गहरी हुई है, मिटकर नहीं।”

विराज ने मुस्कराकर कहा:  
> “तुम्हारा नाम ही मेरी कहानी है — उसे मैं कैसे बदल सकता हूँ?”


जयपुर की एक शांत सुबह थी। जान्हवी खिड़की के पास बैठी थी, हाथ में अपनी स्केचबुक लिए।  
उसने एक नई तस्वीर बनाई — एक लड़की, जिसके पेट में एक छोटा सा दिल बना था।

विराज ने देखा और मुस्कराते हुए पूछा:  
> “ये कौन है?”  
जान्हवी ने उसकी आँखों में देखा और कहा:  
> “शायद हमारी कहानी की अगली पंक्ति।”

विराज चुप हो गया। उसकी आँखों में डर था, लेकिन मुस्कान भी।

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विराज ने कहा:  
> “क्या मैं तैयार हूँ?”  
जान्हवी ने जवाब दिया:  
> “शायद नहीं… लेकिन मोहब्बत ने कभी तैयारी माँगी है क्या?”

विराज ने उसका हाथ थामा — और पहली बार, उसने अपनी खामोशी को शब्दों में बदला।

> “अगर ये मोहब्बत की साँस है… तो मैं उसे अपनी धड़कन बना लूँगा।”

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जान्हवी ने दीवार पर एक नई स्केच बनाई —  
एक घर, जिसमें तीन परछाइयाँ थीं।

नीचे लिखा:  
> “अब मोहब्बत सिर्फ दो लोगों की नहीं रही… वो साँस लेने लगी है।”

विराज ने तस्वीर देखी — और पहली बार, उसने उस दीवार को चूमा।

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रीमा ने जान्हवी से कहा:  
> “एक बच्चा सिर्फ ज़िंदगी नहीं लाता — वो तुम्हारी कहानी को फिर से लिखता है।”

जान्हवी ने मुस्कराकर जवाब दिया:  
> “और मैं चाहती हूँ कि मेरी कहानी उसकी आँखों में झलके।”

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विराज ने जान्हवी की एक तस्वीर ली —  
वो दीवार के सामने खड़ी थी, हाथ में ब्रश, आँखों में उम्मीद।

उसने उस तस्वीर के नीचे लिखा:  
> “अब मेरी तस्वीरों में सिर्फ दृश्य नहीं… भविष्य है।”

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रात को जान्हवी ने अपनी डायरी में लिखा:

> “अब मेरी साँसों में सिर्फ हवा नहीं… एक कहानी है, जो हर धड़कन में ज़िंदा है।”

विराज ने वो पढ़ा — और पहली बार, उसने कहा:

> “अब मैं सिर्फ तुम्हारा नहीं… उसका भी हूँ, जो अभी आया नहीं… लेकिन मेरी साँसों में है।”

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✨ writer : Rekha Rani