कबीर ने एक गहरी सांस ली।
उसकी आँखों में थकान थी, जैसे बरसों का बोझ अचानक उस पर आ बैठा हो। एक तरफ़ राहत थी कि शायद अब सच्चाई सामने आ जाएगी, लेकिन दूसरी तरफ़ उसके मन के कोनों में सवाल चुभ रहे थे— “क्या सच में... क्या सच में रिद्धि ने डिप्रेशन में आकर ही ये कदम उठाया था? क्या वाकई उस दिन का हादसा इतना बड़ा था कि उसने ज़िंदगी से ही हार मान ली?”
वो इन्हीं ख्यालों में डूबा था कि तभी प्रकृति ने झकझोरते हुए कहा,
“कबीर! क्या सोच रहे हो? मुझे बताओगे, या फिर ये भी मुझे रिद्धहान से ही पूछना पड़ेगा?”
कबीर चौंककर उसकी ओर देखने लगा। प्रकृति की आँखों में गुस्सा ही नहीं, ठेस भी थी। वो चुप रहा, जैसे अंदर से टूट रहा हो। कुछ पल का मौन रहा, फिर प्रकृति ने तीखे स्वर में कहा,
“ठीक है... अब जवाब सिर्फ़ रिद्धहान ही देगा। और मैं वो जवाब लेकर रहूँगी।”
वो उठकर जाने लगी। उसके कदमों में तेज़ी थी, मानो उसने ठान लिया हो कि अब पीछे नहीं हटेगी। लेकिन तभी कबीर ने हिम्मत जुटाई और धीरे से कहा—
“रुको… मैं बताता हूँ।”
प्रकृति के कदम थम गए। वो धीरे से पलटी, उसकी आँखों में अब भी गुस्से और बेचैनी का मिश्रण था।
कबीर ने नज़रें झुका लीं और भारी आवाज़ में बोला,
“रिद्धहान की माँ के जाने के बाद… रिद्धि ही उसकी पूरी दुनिया बन गई थी। वो उसके लिए सब कुछ करता था। लेकिन अंदर से… अंदर से उसका मन कभी शांत नहीं हुआ। बुरे सपने, अधूरी यादें… सबने उसे तोड़ दिया। उसने बहुत कोशिश की… बहुत लड़ा… लेकिन वो जीत नहीं पाया। इसलिए वो खुद को सँभालने के लिए, सब छोड़कर ऑस्ट्रेलिया चला गया।”
कबीर की आवाज़ भर्रा गई।
“यहाँ… यहाँ रिद्धि बिल्कुल अकेली रह गई। उनके पिता को बच्चों से कोई लेना-देना ही नहीं था। उन्हें बस कंपनी, बिज़नेस और नाम चाहिए था। उस दिन… उस दिन जब रिद्धि तुमसे मिली, उसी दिन उसने…”
कबीर रुका, गहरी सांस लेकर बोला—
“उसने सुसाइड अटेम्प्ट किया। और कोमा में चली गई।”
प्रकृति की आँखें चौड़ी हो गईं। उसने कबीर को टोकना चाहा लेकिन उसके गले से आवाज़ ही नहीं निकली।
कबीर ने उसकी ओर देखा और बोला,
“तब से… रिद्धहान की ज़िंदगी का मकसद सिर्फ़ यही बन गया। रिद्धि के गुनहगारों को सज़ा दिलवाना। पुलिस ने कोशिश की, लेकिन किसी के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला। केस बंद हो गया। लेकिन रिद्धहान रुका नहीं। उसने प्राइवेट डिटेक्टिव हायर किए, कॉलेज में पूछताछ करवाई। और वहीं से तुम्हारा नाम आया…।”
प्रकृति ने हैरानी से उसे देखा,
“मेरा… नाम?”
कबीर ने धीरे से सिर हिलाया,
“हाँ। रिद्धि के दोस्तों ने कहा कि वो तुम्हारी तरह बनना चाहती थी। उनके पास न तुम्हारा पता था, न नंबर। सब कुछ बदल चुका था। लेकिन हमारे पास बस एक ही सुराग बचा—तुम। हमें लगा… कि शायद तुम्हारी वजह से… उसने वो कदम उठाया।”
कबीर की आँखों में दर्द था, लेकिन उसके शब्दों ने प्रकृति के दिल को छलनी कर दिया।
“वाह…” प्रकृति कड़वी हँसी हँस दी, उसकी आँखें भीग चुकी थीं।
“जब कोई असली दोषी न मिले, तो किसी भी अजनबी पर इल्ज़ाम थोप दो। तुम्हारा दोस्त… पागल है, और तुम भी उसी पागलपन में उसका साथ दे रहे हो। मैं इतने समय से उसकी कंपनी में हूँ, हर रोज़ उसके सामने खड़ी हूँ… लेकिन उसे मुझसे पूछने की ज़रूरत ही नहीं समझी। ये पागलपन नहीं तो और क्या है?”
कबीर ने धीरे से कहा,
“मैं जानता हूँ ये सब नॉर्मल नहीं है। पर मेरा दोस्त पहले ऐसा नहीं था। वो बहुत प्यारा था… बहुत मासूम। लेकिन अपनी माँ के जाने के बाद… उसके पास जीने की कोई वजह ही नहीं बची। इसलिए उसने इन वजहों को अपना सहारा बना लिया। पहले वो लड़की… फिर रिद्धि। वो बस ज़िंदा रहने की कोशिश कर रहा है।”
प्रकृति ने चौंककर पूछा,
“लड़की? कौन लड़की?”
कबीर ने एक पल चुप रहकर नज़रें झुका लीं।
“कुछ नहीं…” उसने बात टाल दी, “बस इतना जान लो कि उसके पिता ने कभी भी बच्चों में दिलचस्पी नहीं ली। उन्हें सिर्फ़ कंपनी चाहिए थी… और आज भी रिद्धहान उनके लिए सिर्फ़ वारिस है। बेटे की भावनाओं से उन्हें कोई मतलब नहीं।”
प्रकृति का चेहरा सख़्त हो गया।
“तो जीने का तरीका ये है कि दूसरों की ज़िंदगी नर्क बना दो? अगर उसे सहारा चाहिए था, तो किसी मासूम की ज़िंदगी को क्यों बर्बाद किया? नहीं कबीर… अब रिद्धहान को इसका जवाब देना ही होगा।”
उसने गुस्से से कहा और कमरे से बाहर निकल गई।
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दूसरी तरफ़…
रिद्धहान अपने ऑफिस पहुँचा।
जैसे ही उसने देखा, प्रकृति की टेबल खाली थी। उसके कदम रुक गए, दिल में अजीब-सी बेचैनी हुई। लेकिन उसने खुद को सँभालते हुए अपने केबिन का रुख़ किया।
अंदर पहुँचते ही उसने असिस्टेंट को बुलाया।
“कबीर को भेजो।”
असिस्टेंट ने झिझकते हुए कहा,
“सिर… कबीर सर तो आज ऑफिस आए ही नहीं।”
रिद्धहान की आँखें फैल गईं। उसका चेहरा अचानक सख़्त हो गया।
“क्या?!”
तुरंत उसके ज़ेहन में सुबह का सीन घूम गया—कबीर और प्रकृति को साथ देखना, और अब दोनों का ऑफिस से गायब होना। उसका खून खौलने लगा।
उसने तेज़ आवाज़ में पूछा,
“और… और प्रकृति?”
असिस्टेंट ने झुककर कहा,
“सर, उन्होंने कुछ दिनों की छुट्टी ले ली है।”