Ek Ladki ko Dekha to aisa laga - 23 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 23

Featured Books
  • રેડહેટ-સ્ટોરી એક હેકરની - 24

            રેડ હેટ:સ્ટોરી એક હેકરની        પ્રકરણ: 24      એક આ...

  • એકાંત - 25

    છ મહિના રેખાબેન અને નિસર્ગ સિવિલમાં રહીને બહાર નીકળ્યાં ત્યા...

  • મેઘાર્યન - 9

    મેઘાની વાત પૂરી થઈ ત્યાં જ અમારી આસપાસનું દ્રશ્ય બદલાઈ ગયું....

  • The Glory of Life - 4

    પ્રકરણ 4 :મનુષ્ય નું જીવન પૃથ્વી પરના  દરેક જીવો પૈકી નું એક...

  • નિલક્રિષ્ના - ભાગ 26

    અવનિલ : "તારી આવી બધી વાતોથી એક વાત યાદ આવી રહી છે. જો તું ખ...

Categories
Share

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 23

कबीर ने दरवाज़ा बंद किया और प्रकृति को अंदर लाकर सोफ़े पर बैठने का इशारा किया।

उसने जल्दी से पानी का गिलास लाकर उसकी ओर बढ़ाया।


“थोड़ा पानी पी लो… तुम बहुत परेशान लग रही हो।”

प्रकृति ने काँपते हुए हाथों से गिलास लिया, लेकिन उसके होठों तक लाने से पहले ही आँखें भर आईं। उसने गिलास मेज़ पर रख दिया।


उसकी आवाज़ में टूटन थी—

“कबीर… तुम्हारा दोस्त मुझसे चाहता क्या है? वो आखिर मेरे पीछे क्यों पड़ा है? कभी इतनी नरमी से बात करता है जैसे मैं उसकी दुनिया हूँ… और कभी ऐसे बर्ताव करता है जैसे मैंने उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी हो। आखिर कौन-सा सच है?”


कबीर ने नज़रें झुका लीं। उसकी चुप्पी कमरे में और भी भारी हो गई।

कुछ पल बाद उसने धीमे स्वर में कहा,

“ये सवाल… अगर तुम्हें रिद्धान से ही मिलें, तो शायद ज़्यादा सही होगा।”


प्रकृति के होंठ काँप उठे। उसकी आँखें भर आईं।

“मतलब… तुम चाहते हो कि वो मेरे साथ और बुरा करे? मेरे सवालों का बोझ और बढ़ा दे?”

उसके शब्दों में तल्ख़ी और दर्द दोनों थे।


कबीर ने धीरे से सिर हिलाया।

“मैं… आई एम सॉरी। लेकिन मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।”


प्रकृति ने एक गहरी साँस ली, आँसू पोंछे और खड़ी हो गई।

“ठीक है। अब इन सवालों के जवाब रिद्धान खुद मुझे देगा।”


वो मुड़ने लगी। कबीर बस चुपचाप उसे देखता रहा, जैसे कुछ कहने की हिम्मत ही न जुटा पा रहा हो।


दरवाज़े तक पहुँचते-पहुँचते प्रकृति रुकी। उसने पलटकर कबीर की तरफ़ देखा।

उसकी आँखों में अब ग़ुस्से से ज़्यादा सवाल थे।


“अच्छा… इतना तो बता दो। रिद्धि के साथ… क्या हुआ था?”


कबीर के कदम जैसे ज़मीन में जड़ गए।

उसकी साँसें थम गईं।

“र… रिद्धि? तुम… तुम रिद्धि को जानती हो?”


प्रकृति ने भौंहें सिकोड़ लीं।

“तो इसमें इतनी हैरानी की क्या बात है? मैं उसे जान क्यों नहीं सकती?”


कबीर का चेहरा तनाव से लाल हो गया।

उसकी आवाज़ अनजाने में ऊँची हो गई।

“प्रकृति… ये मज़ाक नहीं है! मुझे सच बताओ। तुम रिद्धि को जानती हो या नहीं? इस सवाल से बहुत ज़िंदगियाँ जुड़ी हुई हैं!”


प्रकृति उसकी उत्तेजना से और भी उलझन में पड़ गई।

“तुम इतना react क्यों कर रहे हो? मैंने कहा न, मैं उसे ठीक से नहीं जानती। बस… एक बार उसने मुझे फ़ोन किया था। वो भी… तीन साल पहले।”


कबीर जैसे जड़ हो गया। उसकी आँखें फैल गईं।

धीरे-धीरे उसने कुर्सी पर बैठते हुए कहा—

“पूरा सच बताओ… उस कॉल में क्या हुआ था?”


प्रकृति ने कुछ पल सोचा। फिर उसने थके हुए स्वर में कहना शुरू किया—

“तीन साल पहले, मुझे एक अनजान नंबर से कॉल आई थी। उस लड़की ने खुद को रिद्धि कहा। उसकी आवाज़ बहुत काँप रही थी… जैसे किसी को अपने मन का बोझ उतारना हो।”


उसने मुझे मिलने के लिए एक कैफे में बुलाया था, उसकी बाते सुनके लगा की वो बहुत परेशान थी इसलिए में खुद को रोक नहीं पाई ,ओर चला गई ।


कबीर ध्यान से उसकी हर बात सुन रहा था। उसकी आँखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी।


प्रकृति ने आगे कहा—

“ कैफे में उसने बताया कि कॉलेज में सब उसे चिढ़ाते हैं… उसके confidence, उसके बोलने के तरीक़े, यहाँ तक कि उसके चेहरे-मोहरे को लेकर भी। वो बहुत टूटी हुई थी। उसने कहा कि वो… मेरी तरह बनना चाहती है। Strong, fearless… जैसा मैं दिखती थी।”


कबीर की साँस भारी हो गई।

“फिर…?” उसने जल्दी से पूछा।


“फिर उसने कहा कि वो मुझे observe करती थी… कॉलेज में मुझे देखती थी। मुझे follow करती थी।

लेकिन जब मेरा कॉलेज ख़त्म हो गया… तो उसका हौसला भी जैसे टूट गया। उसने कहा था कि वो मुझे दोबारा कॉल करेगी, मेरा नंबर भी लिखा था उसके पास। मगर… उसके बाद उसने कभी संपर्क नहीं किया।”


कमरे में गहरी ख़ामोशी छा गई।


कबीर की आँखें कुछ पल के लिए फटी की फटी रह गईं। फिर उसने जैसे किसी भारी बोझ से राहत की साँस ली।

उसके होंठों से अनजाने में निकला—

“इसका मतलब… रिद्धि के केस में तुम्हारी कोई involvement नहीं है।”



---


दूसरी तरफ़ – रिद्धान


वो अपने घर पहुँच चुका था।

जैसे ही कमरे में दाख़िल हुआ, उसने coat उतारकर ज़मीन पर फेंक दिया।

उसका चेहरा ग़ुस्से और उलझन से लाल था।


उसके दिमाग़ में वही दृश्य घूम रहा था—

प्रकृति और कबीर… एक साथ।

दरवाज़े के सामने, पास खड़े।


“कबीर… और प्रकृति…? नहीं, ये मुमकिन नहीं। लेकिन… वो दोनों एक साथ बाहर… और फिर घर के अंदर भी?”


उसके सीने में जलन उठ रही थी।

उसका दिमाग़ जैसे फट रहा था।

वो बिस्तर पर बैठा, माथा पकड़ लिया।


“नहीं… नहीं… पर अगर… अगर सच में…?”


उसकी साँसें तेज़ हो गईं।

दिल मानने को तैयार नहीं था, लेकिन आँखों ने जो देखा था वो भी भुला नहीं पा रहा था।



---


इधर कबीर अब भी प्रकृति को देख रहा था।

उसके मन में हज़ार सवाल उठ रहे थे, लेकिन एक सुकून भी था—

कम से कम… रिद्धि और प्रकृति के बीच कोई सीधा रिश्ता नहीं है।


मगर प्रकृति के मन में

अब और सवाल थे।

उसकी आँखों में वही दृढ़ता लौट आई थी।

“अब… रिद्धान ही मुझे सब बताएगा। चाहे जो भी हो।”