Ek Ladki ko Dekha to aisa laga - 20 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 20

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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 20

प्रकृति रेस्टोरेंट के दरवाज़े से अंदर दाख़िल हुई।
हल्की-सी रोशनी, शराब की महक और धीमी-धीमी धुनें…
उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।

उसकी नज़रें एकदम सीधे उस कोने की टेबल पर जाकर ठहर गईं।

वहाँ… रिद्धान बैठा था।
सिर टेबल पर झुका हुआ, हाथ में फ़ोन कसकर पकड़ा हुआ।
चेहरा थकान और शराब दोनों से बोझिल।

वो बड़बड़ा रहा था—
"तुम तो बहुत अच्छी थीं ना…
नहीं… नहीं… तुम अभी भी अच्छी हो!
फिर तुम ऐसा कैसे कर सकती हो…?
तो ये सब किसने… किसने किया…"

प्रकृति धीरे-धीरे क़दम बढ़ाते हुए पास पहुँची।
उसकी आँखें फ़ोन की स्क्रीन पर गईं…
और उसके दिल की धड़कन थम गई।

फ़ोन की स्क्रीन पर वही तस्वीर थी—
वही पेंटिंग, जो उसने रिद्धान के घर में देखी थी।
वो पेंटिंग किसी और की नहीं… खुद उसकी थी।

प्रकृति की साँसें अटक गईं।
उसके मन के सारे सवाल और उलझनें
मानो एक साथ चिल्लाने लगीं।

"ये पेंटिंग… ये मेरे पास कैसे…?
ये आदमी आखिर चाहता क्या है…?"

उसकी आँखों में हैरानी और बेचैनी दोनों साफ़ झलक रहे थे।
वो धीरे से और क़रीब आई।

अचानक…
रिद्धान ने सिर उठाया।
उसकी लाल, भीगी आँखें सीधे प्रकृति पर आकर ठहर गईं।

एक पल को वो ठिठका…
फिर जैसे यक़ीन करने लगा कि ये सपना नहीं है।

वो लड़खड़ाते हुए उठा और बिना कुछ सोचे
प्रकृति को अपनी बाहों में कसकर भर लिया।

"तुम आ गईं…"
उसकी आवाज़ टूटी हुई थी।

उसने और क़रीब खींचते हुए कहा—
"तुमने कुछ नहीं किया ना…?
बस तुम बोल दो…
बस तुम बोल दो कि तुमने कुछ नहीं किया…
मैं मान जाऊँगा… सब मान जाऊँगा…"

रिद्धान की आँखों से आँसू बह निकले।
उसका चेहरा प्रकृति के कंधे से सट गया।
उसके शब्दों में शराब की नमी थी,
लेकिन दिल से उठती हुई एक सच्ची पुकार भी।

प्रकृति पूरी तरह से जड़ हो चुकी थी।
उसकी साँसें तेज़ थीं, आँखों में पानी।
उसका मन मानो चीख रहा था—

"क्यों…?
क्यों बार-बार तुम मेरे दिल को ऐसे बाँध लेते हो…
जबकि मैं खुद को तुमसे दूर रखने की कोशिश करती हूँ…?"

उसने धीरे-से अपने हाथ उठाए,
जैसे चाहती हो उसे अलग करे…
लेकिन अगले ही पल उसकी उँगलियाँ रिद्धान की पीठ पर ठहर गईं।

उस पल में…
ग़ुस्सा, उलझन और दर्द सब गायब हो गए।
सिर्फ़ दिल की धड़कनों का शोर रह गया—
एक ही सवाल के साथ…

"क्या सच में… मेरा हिस्सा है… इस कहानी में…?"


प्रकृति ने गहरी साँस ली और उसके काँपते हुए हाथों को पकड़कर धीरे-धीरे उसे उठाया।
रिद्धान पूरी तरह नशे में था, लड़खड़ाता हुआ… लेकिन उसकी नज़रें लगातार उसी पर टिकी हुई थीं।

"चलो… बाहर चलते हैं,"
प्रकृति ने धीमे से कहा और उसका हाथ पकड़कर पब के शोरगुल से बाहर ले आई।

बाहर की ठंडी हवा उसके चेहरे से टकराई।
रिद्धान पास की बेंच पर गिर-सा पड़ा, सिर झुकाए हुए।
प्रकृति उसके सामने खड़ी थी—दिल में ढेरों सवाल, पर होंठ अब भी खामोश।

“रिद्धान, तुम यहीं बैठो, मैं कैब बुलाती हूँ…”
वो पलटी ही थी कि अचानक रिद्धान ने उसका हाथ कसकर पकड़ा और अपनी तरफ़ खींच लिया।
प्रकृति उसका संतुलन खो बैठी और सीधे उसकी छाती पर गिर पड़ी।

उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
“रिद्धान… हाथ छोड़ो!!”
वो झुंझलाकर बोली।

“नहीं छोड़ूँगा… कभी नहीं छोड़ूँगा… पहले बोलो!”
रिद्धान की आवाज़ काँप रही थी, पर उसमें पागलपन भरा जुनून था।
“तुम अच्छी हो ना…? बोलो! तुमने कुछ नहीं किया ना…? बोलो!!”

प्रकृति उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करती रही।
एक हाथ से उसने सड़क पर टैक्सी रोकने की कोशिश की।
“टैक्सी…! टैक्सी…!”
उसकी आवाज़ रात की ठंडक में गूंज रही थी, मगर कोई रुक नहीं रहा था।

उधर रिद्धान का दर्द हद से ज़्यादा फूट रहा था।
वो बुदबुदाता रहा—
“क्यों… क्यों नहीं सुन रही हो मेरी बात…? बोलो!!”

अचानक उसकी आवाज़ तेज़ हो गई,
“मैंने पूछा था… तुम उससे क्यों मिली थी…? आख़िरी बार!!”

प्रकृति जैसे पत्थर की तरह जम गई।
उसके क़दम ठिठक गए।
धीरे-धीरे पलटकर उसने रिद्धान को घूरा।

“क्या…?!” उसकी आवाज़ काँपी।
“रिद्धान, ये तुमने क्या कहा अभी…? तुम किसकी बात कर रहे हो?”

रिद्धान की आँखें आँसुओं से भीगी हुई थीं।
उसने भर्राए लफ़्ज़ों में कहना शुरू किया—

“तुम्हें पता है… वो कितनी छोटी थी जब माँ ने उसे मेरी गोद में दिया था।
गुड़िया-सी… मासूम… किसी से कुछ नहीं कहती थी।
माँ के जाने के बाद… उसका माँ-बाप… सब मैं था।
मुझे उसका ख्याल रखना था…
मुझे उसका सहारा बनना था…
पर मैं… मैं अपने दर्द में इतना खो गया कि उसे अकेला छोड़ दिया… और आज…”

उसकी आवाज़ टूट गई।
वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा, सिसकियाँ उसकी पूरी देह हिला रही थीं।

प्रकृति का दिल भर आया।
उसने एक पल भी सोचे बिना उसे कसकर अपनी बाँहों में भर लिया।
उसकी हथेली उसके बालों पर थी, जैसे सारा दर्द वहीं दबा देना चाहती हो।

रिद्धान उसके गले से सटकर टूटा पड़ा था।
उसके लफ़्ज़ फिर से फिसले—
“तुमने… तुमने मुझे पहले भी ऐसे ही गले लगाया था… हमारी पहली मुलाक़ात में…”

प्रकृति चौंक उठी।
उसके मन में यादें कौंध गईं।
“पहली मुलाक़ात…? लेकिन… हमारी तो पहली मुलाक़ात बेसमेंट में हुई थी… तब तो…”

वो कुछ और सोचती, इससे पहले ही रिद्धान की पलकों ने जवाब दे दिया।
वो पूरी तरह उसके कंधे पर बेहोश हो गया।

प्रकृति ने उसे थामे रखा।
उसकी आँखों में आँसू थे… और दिमाग़ में सवालों का तूफ़ान।


उसने टैक्सी बुलाई और उसे घर ले जाने लगी ।
तभी उसका फोन बजता है  । ये कबीर है ।।।।