भाग:13
रचना: बाबुल हक़ अंसारी
“हक़ीक़त की दहलीज़”
[हकीकत की दीवार…]
धुंध का रास्ता धीरे-धीरे खुल रहा था।
अयान के कदम उस रोशनी की तरफ बढ़ने ही वाले थे कि रूद्र ने चीखते हुए उसका हाथ पकड़ लिया।
“तुझे लगता है प्यार की रोशनी इस अंधेरे को चीर सकती है?
नहीं, अयान… प्यार से बड़ा भ्रम कोई नहीं!”
अयान की नसों में गुस्से की आग दौड़ गई।
उसने अपनी पूरी ताक़त से रूद्र की पकड़ छुड़ाई और गरजते हुए बोला —
“भ्रम वही होता है जो डर पैदा करे।
और सच्चा इश्क़ डर नहीं देता, हिम्मत देता है।”
[रिया का आगमन…]
जैसे ही अयान ने यह कहा, कमरे में एक तेज़ उजाला फैला।
धुंध के बीच से एक स्त्री आकृति बाहर आई —
आंखों में आंसू, लेकिन चेहरे पर एक अनोखी रूहानी शांति।
वो रिया थी।
उसका चेहरा थका हुआ था, लेकिन उसकी मौजूदगी ने मानो पूरी हवा बदल दी।
“अयान… तू आया… तूने मुझे पुकारा, तभी मैं इन ज़ंजीरों को तोड़ पाई।”
रूद्र हक्का-बक्का रह गया।
उसकी आंखों में पहली बार डर झलकने लगा।
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[रूद्र का अंधकार…]
रूद्र ज़मीन पर गिर पड़ा।
उसकी झुलसी हुई त्वचा से धुआं उठने लगा।
“नहीं… ये कैसे हो सकता है?
मैंने तुझे तेरे ही डर में कैद किया था, रिया!
तू बाहर कैसे निकल आई?”
रिया ने आंखों में सख़्ती भरते हुए कहा —
“तेरा अंधेरा सिर्फ मेरे शरीर को बांध पाया, मेरी रूह को नहीं।Ki
और जब रूह को उसका सच्चा साथी पुकारे… तो सारी बेड़ियाँ टूट जाती हैं।”
[अयान का प्रण…]
अयान ने आगे बढ़कर रिया का हाथ कसकर थाम लिया।
उसने रूद्र की ओर इशारा करके कहा —
“तेरे खून से सनी नफ़रत अब ख़त्म होगी, रूद्र।
प्यार तेरे हर भ्रम पर भारी पड़ेगा।”
इतना कहते ही अचानक पूरा स्टेशन हिल उठा।
ट्रेन की सीटी अब आख़िरी बार गूंजी और फिर जैसे टूटकर बिखर गई।
खिड़कियों में दिख रहे चेहरे — सारे भ्रम — धुएं की तरह गायब हो गए।
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[क्लिफहैंगर…]
रिया अयान की बाहों में सिमट गई, उसकी आंखें बंद थीं।
लेकिन तभी…
रूद्र की जली हुई हथेली ने एक छुपा हुआ स्विच दबा दिया।
ज़मीन में गहराई से टिक-टिक की आवाज़ गूंजी।
आर्यन चिल्लाया —
“अयान! ये आख़िरी बम है… और ये पूरा प्लेटफ़ॉर्म उड़ा देगा!”
अयान के हाथ कांप गए।
एक तरफ़ रिया की धड़कन थी, दूसरी तरफ़ दर्जनों मासूम ज़िंदगियाँ।
समय बस कुछ सेकंड का था।
क्या अयान रिया को बचाएगा?
या फिर खुद को क़ुर्बान करके सबको?
“क़ुर्बानी या चमत्कार”
[टिक-टिक की गूंज…]
प्लेटफ़ॉर्म की फ़र्श हिल रही थी।
हर दीवार से टिक-टिक की आवाज़ गूंज रही थी, जैसे मौत ने खुद अपनी घड़ी सेट कर दी हो।
रिया काँपते हुए अयान के सीने से चिपक गई।
उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन होंठ काँपते हुए बोले —
“अयान… अगर तुझे मुझे बचाने और सबको बचाने में से एक चुनना पड़े… तो मुझे छोड़ देना।
मैं तुझे खोकर भी ज़िंदा रह लूंगी, पर मासूम ज़िंदगियाँ तुझ पर क़ुर्बान न हों।”
अयान की आँखें भर आईं।
उसने रिया का चेहरा पकड़कर फुसफुसाया —
“नहीं रिया… तू मेरी रूह है।
अगर तू नहीं रही, तो ये अयान भी सिर्फ़ एक लाश बन जाएगा।
मुझे दोनों को बचाना होगा — तुझे भी और इन जिंदगियों को भी।”
[रूद्र की हंसी…]
ज़मीन पर गिरा रूद्र दर्द में कराहते हुए भी पागलपन से हंस रहा था।
“तू खुद को भगवान समझ रहा है, अयान?
यहाँ या तो प्यार मरेगा, या इंसानियत।
दोनों को बचाना नामुमकिन है!”
उसकी हंसी में एक ऐसा ज़हर था कि हवा और भी भारी लगने लगी।
[अयान का फ़ैसला…]
आर्यन दौड़कर आया और चिल्लाया —
“बम का कनेक्शन कहीं प्लेटफ़ॉर्म के नीचे है! हमें सिर्फ़ 30 सेकंड मिले हैं।”
अयान ने आँखें बंद कर लीं।
दिल की धड़कनें बम की टिक-टिक के साथ मिल गईं।
अचानक उसे वो सारी यादें दिखीं —
रिया की मुस्कान, उनकी पहली मुलाक़ात, उसके लिए लड़ाई, और वो हर वक़्त जब रिया ने उसकी सांसों को अपना सहारा बनाया।
उसने आँखें खोलीं।
उसकी आवाज़ गूंज उठी —
“अगर सच्चा इश्क़ मौत से बड़ा है… तो आज यह इश्क़ चमत्कार करेगा।”
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[चमत्कार या अंत…]
अयान ने रिया का हाथ मजबूती से पकड़ा और प्लेटफ़ॉर्म के बीच में उस चमकते सिग्नल बॉक्स की तरफ छलांग लगा दी।
टिक-टिक की आवाज़ अब और तेज़ थी।
रिया ने घबराकर चीख मारी —
“अयान! ये पागलपन है!”
लेकिन अयान ने मुस्कुराकर कहा —
“पागलपन नहीं… ये मेरा इश्क़ है।”
उसने हाथ बढ़ाकर स्विच पर अपनी हथेली रख दी।
बम अब फटने ही वाला था।
और तभी —
रिया की आँखों से गिरा एक आँसू अयान की हथेली पर गिरा।
अचानक पूरे प्लेटफ़ॉर्म में एक रौशनी फैल गई —
जैसे किसी अदृश्य ताक़त ने टिक-टिक को थाम लिया हो।
[क्लिफहैंगर…]
टिक-टिक की आवाज़ अचानक रुक गई।
कमरा सन्नाटे में डूब गया।
आर्यन अवाक खड़ा था।
रिया की सांसें अटक गईं।
और अयान अब भी उस स्विच पर हाथ रखे खड़ा था… लेकिन उसके होंठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी।
क्या ये अयान की क़ुर्बानी थी?
या फिर उनके इश्क़ ने वाक़ई मौत की घड़ी को रोक दिया था?
अगले भाग में:
क्या अयान बच गया… या उसकी रूह ने सबको बचाकर खुद को कुर्बान कर दिया?
क्या ये चमत्कार था… या इश्क़ की आख़िरी कीमत?
भाग 14: “इश्क़ की अमानत”
रचना:बाबुल हक़ अंसारी