भाग:12
रचना: बाबुल हक़ अंसारी
"भ्रम और हक़ीक़त की जंग"
[धुंध का हाथ…]
अयान के हाथ में वो ठंडी सी पकड़ अब और मज़बूत हो गई।
दिल की धड़कनें जैसे ज़मीन फाड़कर बाहर आना चाह रही थीं।
उसने आँखें खोलीं — सामने धुंध में हल्की परछाईं थी।
वो आवाज़… बहुत धीमी, टूटी हुई, मगर अयान के लिए पूरी दुनिया से कीमती —
“अयान… मुझे बचा लो…
अयान का गला सूख गया।
“रिया… सच में तू है? या फिर…”
पर उससे पहले कि वह आगे बढ़ता, रूद्र की चीख गूंजी —
“ये तेरे दिमाग़ का खेल है, अयान! तू जितना इस छाया के पीछे जाएगा, उतना अपने होश खो देगा।”
[रिया का सच…]
धुंध अचानक और गाढ़ी हो गई।
खिड़की से आती ट्रेन की रोशनी अब किसी अजनबी लौ की तरह कांप रही थी।
हर खिड़की में रिया का चेहरा था —
कहीं वह हंस रही थी, कहीं रो रही थी, और कहीं… उसके गले में फांसी का फंदा लटक रहा था।
आर्यन लड़खड़ाते हुए बोला —
“अयान… ये सब साइकोलॉजिकल ट्रैप है। रूद्र हमें हमारे ही डर से तोड़ रहा है।
पर याद रख… असली रिया सिर्फ़ तेरे दिल में है। उस तक पहुंचने के लिए तुझे अपनी आँखों पर नहीं, अपने जज़्बातों पर भरोसा करना होगा।”
अयान ने गहरी सांस ली, मगर दिल अब भी कंपकंपा रहा था।
[रूद्र का हमला…]
रूद्र पागलपन से हंस पड़ा।
उसने रिमोट हवा में लहराया —
“ट्रेन असली है या नकली, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
फ़र्क़ ये पड़ता है कि तू डर में घुटकर मरता है… या मेरे हाथों।”
उसने अचानक अयान पर झपट्टा मारा।
दोनों ज़मीन पर गिरे।
रूद्र की आधी जली हुई त्वचा से बारूद की बू उठ रही थी।
अयान ने पूरी ताक़त लगाकर उसे धक्का दिया, लेकिन रूद्र की आंखें अब पूरी तरह पागलपन से लाल थीं।
“रिया मेरी थी, अयान! वो तुझसे मोहब्बत करके मुझे हर रोज़ मार रही थी… और आज मैं उसे तेरी याद से आज़ाद कर दूंगा।”
[अयान का इम्तिहान…]
अयान ने चीखकर कहा —
“रिया तेरी नहीं थी, रूद्र… वो किसी की मिल्कियत नहीं, वो मेरी रूह है।
तू चाहे जितना भ्रम खड़ा कर ले, सच्चा प्यार कभी हारता नहीं!”
अचानक कमरे में हल्की रोशनी फैली।
धुंध के बीच से वही हाथ फिर बढ़ा।
इस बार उसकी पकड़ और भी साफ़ थी।
अयान के कानों में आवाज़ गूंजी —
“अयान… हक़ीक़त पर भरोसा रखो। मैं यहीं हूं।”
[क्लिफहैंगर…]
अयान ने कांपते हाथों से उस पकड़ को कसकर थाम लिया।
जैसे ही उसने पकड़ मज़बूत की — धुंध का आधा हिस्सा चीरता हुआ एक रास्ता बन गया।
आर्यन ने हैरानी से कहा —
“ये… ये रूद्र का खेल नहीं है। ये असली रिया की पुकार है!”
रूद्र दहाड़ उठा —
“नहीं! ये नामुमकिन है! मैंने उसे हमेशा कैद में रखा… वो बाहर कैसे निकल सकती है?”
कमरा हिलने लगा।
ट्रेन की सीटी और ज़ोर से गूंजने लगी।
दीवारों से प्लास्टर झड़ने लगा, और हवा में एक अजीब-सी धड़कन भर गई।
अब फैसला बस एक था —
क्या अयान उस रास्ते पर कदम बढ़ाए और रिया तक पहुंचे?
या फिर रूद्र के पागलपन से भिड़कर सबकुछ दांव पर लगा दे?
अगले भाग में:
क्या अयान उस भ्रम की दीवार को तोड़ पाएगा?
या फिर रूद्र का अंधकार उसे हमेशा के लिए अपने शिकंजे में ले लेगा?
भाग अगले भाग में पढिये “हक़ीक़त की दहलीज़”
रचना: बाबुल हक़ अंसारी