आदिराज ने अपने खून की आखिरी बूंद तक चढ़ा दी....
अब आगे..............
अचानक तेज हवाएं चलने से सब घबरा जाते हैं , इसलिए आदिराज उनको समझाते हुए कहते हैं....." घबराने की जरूरत नहीं है , अक्सर ऐसी क्रिया करने में मौसम भयावह हो जाता है इसलिए किसी को डरने की जरूरत नहीं , , बस इस क्रिया को पूरा होने दो उसके बाद सब शांत हो जाएगा....अमोघनाथ बैठो ,...!
आदिराज के कहने पर अमोघनाथ उन सभी सामग्री को निकालकर बाहर आदिराज के सामने रखने लगता है...
अमोघनाथ सामान को रखते हुए पूछता है...." आदिराज जी ! हम उस बेताल की आत्मा का पता नहीं लगा पाए....."
आदिराज अमोघनाथ की बात सुनकर कहते हैं......" अमोघनाथ , उसके बारे में बाद में सोचेंगे पहले इस गामाक्ष को रोकना होगा , और हां एक बात ध्यान रखना इस क्रिया में मैं जीवित रहूं या नहीं रहूं तुम मेरे दोनों कार्य को पूरा करोगे , उस खंजर को मैंने माता काली के चरणों के नीचे बने संदूक में रखा है , उस खंजर को केवल अदिति ही छू सकती है , इसलिए तुम्हें मैं अदिति की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपता हूं , , सोलह साल बाद जो नीलमावस आएगी उस दिन अदिति इस नरपिशाच को और उस बेताल की आत्मा को हमेशा के लिए खत्म कर सकती हैं , , तुम समझ रहे हो मैं क्या कहना चाहता हूं, , ...."
अमोघनाथ हां में सिर हिलाते हैं..... इसके बाद आदिराज तामसिक क्रिया की शुरुआत करने लगते हैं ,
उस नवजात शिशु की कंकाली खोपड़ी पर एक पक्षी के अंडे को संतुलित करके रखते हुए कुछ मंत्र बोलने लगते , ...." भो! क्षमस्व च वयं भूतरूपं त्वां दास्यामः...परन्तु पिशाचशक्तिं निवारयितुं अत्यन्तं आवश्यकम्....." आदिराज के इतना कहते ही उस अंडे ने जोर से हिलते हुए अपनी सहमति जताने लगा..…...
अब आदिराज उस क्रिया की शुरुआत करते हैं , जिसमें सबसे पहले वो छोटी छोटी पांच शीशीयो को खोलकर उठाने लगते हैं जिसमें पांच जानवर /पक्षी के खून को इकट्ठा किया हुआ था , जिसमें से पहले चमगादड़ , कौवा , उल्लू , सियार और रिछ के खून को उस खोपड़ी पर डालने लगते हैं.....
धीरे धीरे इस प्रक्रिया को पूरा कर के बाद अब अपने हाथ से उस खोपड़ी के आसपास की जमीन पर तीकोनो से निशान बनाने लगते हैं , ऐसे ही उन्होंने करीब आठ निशान बनाकर कर उन सबके किनारे पर एक एक नींबू रखकर उसे प्रेत बंधन मंत्र से अभिमंत्रित करने लगे , , धीरे धीरे उन नींबूओ में हलचल शुरू होने लगती है और उस खोपड़ी के आंखों के सांचों में से लाल रंग की रोशनी निकलने लगती है , , उस रोशनी के आते ही पूरे आसमान में घोर काले बादल छा जाते हैं और बादलों की गर्जना शुरू हो जाती है , , जिससे देविका और बच्चे डर जाते हैं , देविका दोनों को अपने आंचल में छुपा लेती है लेकिन चेताक्क्षी के चेहरे पर डर नहीं था , वो तो बड़े ध्यान से उस तामसिक क्रिया को देख रही थी और आदिराज की मदद कर रही थी , चेताक्क्षी के चेहरे पर डर न देखकर अमोघनाथ आदिराज से पूछता है....." आदिराज जी..! चेताक्क्षी के चेहरे पर इस भयानक मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा....?...."
" अमोघनाथ तुम भूल रहे हो की चेताक्क्षी एक पिशाच के अंश से जन्मी है , तो इसको ये भयानक परिस्थिति नहीं डरा सकती....अब तुम जल्दी से भालू के बालों को चेताक्क्षी के हाथ में सौंपकर इस पर रखवा दो...."
" जी आदिराज जी...."
चेताक्क्षी अपने बाबा के कहने पर उस भालू के बाल को उस अंडे के ऊपर रख देती है..... उसके बाद आदिराज अमोघनाथ से कहते हैं....." अमोघनाथ , ये आहूति आखिरी थी , अब तुम यहां से बाहर चले जाओ अब इस घेरे में मेरे अलावा कोई नहीं रहेगा और अब मेरी आखिरी बात बड़े ध्यान से सुनो , , जहां तक मुझे लग रहा है , इस क्रिया में मेरी समस्त ऊर्जा शक्ति खत्म हो सकती है , इसलिए ये पक्का भरोसा हो चुका है , मैं अब जीवित नहीं रह सकता , , इसलिए मेरे बच्चों को मेरे जाने के बाद यहां से दूर भेज देना , , और नीलमावस के कुछ महीने पहले तुम मेरे दोनों बच्चों को सुरक्षा घेरा कवच से बांध देना , जिससे वो नरपिशाच इनके पास नहीं आ सकता और उसका खात्मा सरलता से हो सकता है , ....."
अमोघनाथ के आंखों में आंसू झलक पड़े , लेकिन आदिराज की बात मानकर वो उस घेरे से बाहर आ जाता है....
अब आदिराज अपने माथे को सिंदूर से लबालब कर लेते हैं और जोर से मंत्रों का उच्चारण करने लगते हैं , , जिससे उस अंडे के आकार में वृद्धि होने लगती है ,
जिसे देखकर आदिराज के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे लेकिन अब उनके शरीर में कंपन होने लगी थी जीभ लड़खड़ाने लगी थी और आंखों में के सामने सब कुछ धुंधला होने लगा था लेकिन फिर भी उन्होंने मंत्रों का जप नहीं छोड़ा और अब आखिरी श्रृंखला होने पर वो पूरी तरह निढाल होने लगे थे , उनके मुंह से खून आना शुरू हो गया था आंखें बिल्कुल लाल हो चुकी थी , उनकी तबीयत बिगड़ने लगी थी जिसे देखकर देविका उन्हें ये सब ऱोकने के लिए चिल्लाने लगती है लेकिन , अमोघनाथ उसे समझाते हुए कहता है...." देविका ,आप ऐसा मत करना उस सुरक्षा घेरे से बाहर मत आना नहीं तो , आदिराज जी की सारी मेहनत खराब हो जाएगी फिर आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा न तो आपके बच्चे न आपके पति , इसलिए आप दूर रहिए...."
देविका अमोघनाथ की बात सुनकर रुक तो गई लेकिन वो हाथ जोड़कर आदिराज को ये सब रोकने के लिए कहती रही......
मंत्रों की पद्धति पूरी करने के बाद आदिराज ने अपने पास से एक खंजर को निकालकर जोरदार वार से हाथ पर गहरा घाव बनाकर अपने हाथ के खून को उस अंडे पर डालने लगते हैं , जैसे जैसे खून उस अंडे पर पड़ रहा था वैसे वैसे आदिराज के शरीर में एक बिजली जैसा करंट दौड़ जाता , जिसे वो बड़े ही मुश्किल से सहन कर रहे थे , ,
आखिरी खून की बूंद को डालते आदिराज जमीन पर निढाल होकर गिर जाते हैं लेकिन साथ ही अंडे में ज़ोर से खड़ खड़ की आवाज आने लगती है और वो टूटना शुरू कर देता है .......
..........to be continued.........