मुझे सच्चाई जाननी है....
अब आगे............
देविका जी वापस अपने घर पहुंचकर बाहर आंगन में खाट पर बैठ जाती है और गांव के कुछ लोग भी वहीं उनके आमने सामने बैठ कर बातें करने लगते हैं , , कांची देविका जी के लिए दूध का गिलास लेकर आती है और वही खड़ी हो जाती है , , देविका जी दूध पीते हुए दरवाजे की तरफ ही देख रही थी तभी रमन से कहती हैं ...." जा देखकर आ वो अभी तक आए या नहीं...." रमन वहां से चला जाता है और देविका सबसे बात करके सबको जाने के लिए कहती हैं,
अब सब धीरे धीरे चले जाते हैं और घर में सिर्फ देविका , कांची और कांची की मां के अलावा कोई नहीं था , , लेकिन देविका अभी भी दरवाजे की तरफ देखकर आंगन में इधर से उधर घूम रही थी , , उनके चेहरे पर परेशानी साफ दिख रही थी , , , आखिर परेशान क्यूं न हो जिसकी बेटी मौत के मुंह में फंसी हो उसे चैन कहां से आ सकता है ....
तो उधर विवेक अदिति के साथ बिताए पलों को याद करते हुए काफी दुखी हो रहा था जिससे ड्राइविंग सीट पर बैठे इशान ने मिरर में देख लिया था , तो वहीं उसकी साइड वाली सिट पर बैठा आदित्य भी बस विंडो से बाहर झांक रहा था ताकि वो अपने आंसूओं को छुपा सके , , दोनों की ऐसी हालत इशान से बर्दाश्त नहीं हो रही थी लेकिन वो कुछ कर भी तो नहीं सकता था फिर भी दोनों का ध्यान भटकाने की कोशिश करते हुए इशान कोई बात छेड़ देता लेकिन दोनों तरफ से ही कोई रिस्पांस नहीं मिलता तो इसलिए चुपचाप कार ड्राइव करने लगता, , , धीरे धीरे अंधेरा हो चुका था और ये तीनों भी पैहरगढ की सीमा पर पहुंच चुके थे , ,
आदित्य पैहरगढ की सीमा को देखकर कहता है...." इशान यही से पैहरगढ़ शुरू होता है , , !
थोड़ी दूर आने पर कार को पार्क करके तीनों काल से बाहर निकलते हैं और देविका जी के घर की तरफ बढ़ते हैं , , अचानक आए तीनों शहरी को देखकर गांव वाले आपस में बातें करने लगते हैं और रमन तुरंत भागकर देविका जी के पास जाता है , ,
" देविका काकी ! आदित्य आ गये लेकिन उनके साथ दो और भी लड़के हैं...."
" ठीक है तू जा और गांव में सबसे कह दियो मैंने इन्हें बुलाया है , , " देविका जी ने कुछ सोच कर ये सब कहा था...
थोड़ी ही देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई , जिसे सुनकर देविका जी कांची को दरवाजा खोलने की कहती..."कांची , देख आदित्य आ गया दरवाजा खोल दे..."
कांची जल्दी से जाकर दरवाजा खोल देती है
" भाई , आप....और ये..." तभी देविका जी की आवाज आती है ..." कौन है कांची...?..."
" मासी , आदित्य भाई और उनके साथ कोई और भी आया है...." देविका जी अनजान बनने की कोशिश करती हुई कहती हैं...." आदित्य , तू अचानक और ये सब , अदिति नहीं आई..."
अदिति का नाम सुनते ही आदित्य के चेहरे पर उमड़ रहा दर्द एक बार फिर से आंसू बनकर बह निकला और झट से देविका जी से लिपट जाता है...
देविका जी सबकुछ जानती थी लेकिन अमोघनाथ जी के कहने पर उन्हें अनजान बनना पड़ रहा है इसलिए अपने आप को नार्मल करते हुए कहती हैं...." आदित्य क्या हुआ इस तरह क्यूं रो रहा है ...?...और ये दोनों कौन है...?.."
आदित्य कुछ नहीं कहता बस देविका जी से ही लिपटा रहता है , देविका जी उसे खुद से अलग करके रूडली दोबारा पूछती है..." आदित्य हुआ क्या है ...?..इस तरह क्यूं रो रहा है...?...और पहले अंदर आओ दहली से...."
तीनों अंदर आंगन में आ जाते हैं और कांची दरवाजा बंद कर देती है..... एक बार फिर देविका जी आदित्य को देखकर विवेक और इशान के बारे में पूछती है और फिर अदिति के न आने का कारण पूछती है.... जिससे आदित्य देविका जी के सामने घुटनों के बल बैठ जाता है और उसी रुंधे हुए गले से कहता है...." मां , मैं अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाया , , "
आदित्य की बात सुनकर देविका जी अनजान बनते हुए कहती हैं..." कैसी जिम्मेदारी आदित्य...?..सब साफ़ साफ़ बता..."
" मां , मैं अदि की सुरक्षा नहीं कर पाया , वो उसे अपने साथ यहां ले आया..." देविका जी आदित्य की बात से झिल्लाते हुए कहती हैं...." तू मुझे उलझी उलझी बातें बताना बंद करेगा..."
तब विवेक कहता है...." आंटी जी , अदिति को वो पिशाच यहां ले आया है..."
देविका जी शकी नजरों से विवेक को देखते हुए कहती हैं.." तुम कौन हो जो पिशाच के बारे में बता रहे हो..."
" आंटी मैं उसके बचपन का दोस्त हूं , और ये मेरे बड़े भाई इशान है जोकि आदित्य भाई के बेस्ट फ्रेंड है।।।।"
देविका जी अपनी नजरें उनपर से हटाते हुए वापस आदित्य पर लाती है और उसे उठाकर कहती हैं...." साफ साफ बता क्या बात है..?.."
आदित्य अब बिना रूके पैहरगढ़ से तक्ष को ले जाने की और अदिति के यहां तक पहुंचने की बात बता देता है जिसे सुनकर देविका जी गुस्से में कहती है..." तो तुम उसे अपने साथ ले गए थे , हे मेरे भगवान ! सारी मेहनत कुछ पल में ही बर्बाद कर दी तुमने....जब अदिति ने तुझे सच बता दिया था तो तुझे आकर मुझे नहीं बताना चाहिए था..."
" मां मैं अदिति को गांव वाले कुछ न कहे इसी वजह से मैं चुप रह गया लेकिन मुझे नहीं पता था इतनी बड़ी प्रोब्लम हो जाएगी..."
देविका जी अभी भी गुस्से में ही थी और उसी आवाज में कहती हैं..." तो तुम्हें किसी अजनबी को अपने साथ शहर ले जाने की क्या जरूरत थी और वो सुरक्षा कवच तावीज उसका क्या किया तुमने...?."
आदित्य सिर झुकाते हुए कहता है...." उसे हमने फैंक दिया..."
" तुम दोनों बिल्कुल अपने बाप गये हो किसी चीज को गंभीरता से लेना नहीं आता , जब मैंने मना किया था तो मेरी बातों को तुमने मजाक में उड़ा दिया...."
" मां , आपने भी हमसे बातें छुपाई , क्यूं हमें सच्चाई नहीं बताई ..?.अगर आप उस दिन हमें सब सच बता देती तो शायद ऐसा कुछ नहीं होता..."
देविका जी आदित्य की इस बात को सुनकर चुप हो जाती है फिर थोड़ी देर बाद कहती हैं...." मैं नहीं चाहती थी तुम दोनों पर वहीं मंडराएं जो सोलह साल पहले तुम्हारे पापा पर हुआ था..."
आदित्य हैरानी से पूछता है...." कैसा खतरा मां..?...और ये पिशाच हमारे पीछे क्यूं पड़ा है ..?...आज भी सच्चाई नहीं बताओगी..?.. मुझे सच्चाई जाननी है मां.....
देविका जी आदित्य की बात सुनकर उसके गालों पर हाथ फेरते हुए कहती हैं...." बताऊंगी बेटा , जरूर बताऊंगी..."
.................to be continued........
देविका जी कौन सी सच्चाई नहीं बताई...?
जानने के लिए जुड़े रहिए.....