भाग:11
रचना:बाबुल हक़ अंसारी
"धमाके के बाद का सच"
[धमाके की राख…]
स्टेशन का पुराना दफ़्तर अब खंडहर बन चुका था।
दीवारों पर दरारें, छत से झूलते लोहे के टुकड़े और ज़मीन पर बिखरा हुआ बारूद — मानो किसी जंग का मंजर हो।
अयान धीरे-धीरे उठा, उसके कान अब भी धमाके की गूंज से बज रहे थे।
उसने कांपते हुए आर्यन को हिलाया।
“आर्यन… आँखें खोल! तु ठीक है ना?”
आर्यन की हल्की कराह सुनकर अयान ने राहत की सांस ली।
लेकिन तभी हवा में एक अजीब सी खामोशी छा गई…
वो खामोशी जो तूफ़ान से पहले आती है।
[परछाई की वापसी…]
अचानक एक टूटी, मगर डरावनी हंसी कमरे में गूंजी।
“सोचा था… खेल यहीं ख़त्म हो जाएगा?”
अयान का दिल धक से रह गया।
धुएं के बीच से कोई आकृति धीरे-धीरे बाहर आ रही थी।
वो रूद्र था —
उसका आधा चेहरा धमाके में झुलस चुका था, लेकिन उसकी आंखें और भी खून पीने को बेचैन लग रही थीं।
चेहरे का जला हिस्सा किसी दानव की तरह भयावह था।
“अयान…” रूद्र ने धीमी, मगर जहरीली आवाज़ में कहा।
“धमाका तुम्हें मिटा नहीं पाया… लेकिन अब मेरी नफ़रत मिटाएगी।”
[अयान का हौसला…]
अयान ने घायल शरीर को संभालते हुए कहा —
“तेरी नफ़रत तेरे पिता को वापस नहीं ला सकती, रूद्र।
प्यार को मिटाकर इंसाफ़ नहीं मिलता, सिर्फ़ और गुनाह जन्म लेते हैं।”
रूद्र की आंखों में एक पागलपन चमक उठा।
उसने जेब से एक और रिमोट निकाला।
“तुम सोच रहे हो असली बम बस यही था? नहीं… असली खेल बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर इंतज़ार कर रहा है।”
अयान की सांस अटक गई।
क्या रिया…? क्या बाहर और लोग…?
[सच का ज़हर…]
रूद्र ने ठहाका लगाया।
“रिया… उसे लगता है मैंने हमेशा उसकी हिफ़ाज़त की।
पर सच्चाई ये है कि मैंने ही उसकी ज़िंदगी को एक क़ैदखाना बना दिया।
वो तुम्हें भूल न पाए, इसके लिए मैंने उसे हर रोज़ डराया… हर रोज़ उसे उसके दर्द की याद दिलाई।”
अयान की मुट्ठियां कस गईं।
उसकी आंखों से गुस्से की लपटें फूटने लगीं।
“रिया को तेरी नफ़रत से आज़ाद करना ही मेरा आख़िरी मक़सद है।”
[जादुई मोड़…]
अचानक बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर सीटी बजी —
एक ट्रेन धीरे-धीरे आ रही थी।
लेकिन अयान को हैरानी हुई… ट्रेन में कोई ड्राइवर नहीं था।
सिर्फ़ हेडलाइट की तेज़ रोशनी और कान फाड़ देने वाली सीटी।
आर्यन, जो मुश्किल से उठ पाया था, हांफते हुए बोला —
“ये… ये ट्रेन असली नहीं है… ये भ्रम है!”
कमरे की टूटी खिड़की से झांकते ही अयान ने देखा —
ट्रेन की हर खिड़की में वही चेहरा दिखाई दे रहा था।
रिया का चेहरा — रोता हुआ, तड़पता हुआ, और हर बार अयान से दूर जाता हुआ।
अयान की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई।
[क्लिफहैंगर…]
रूद्र हंस रहा था —
“देख अयान… ये है मेरी आख़िरी चाल।
या तो तू इस भ्रम में खोकर पागल हो जाएगा…
या फिर अपनी आंखों के सामने रिया को हमेशा के लिए खो देगा।”
कमरा धुंध से भर चुका था।
टाइमर की टिक-टिक की जगह अब ट्रेन की गूंज थी।
अयान ने आंखें बंद कीं और बुदबुदाया —
“रिया… अगर तू सच में कहीं है… तो मुझे एक निशानी दे।”
अगले ही पल धुंध में किसी ने अयान का हाथ पकड़ लिया।
वो हाथ ठंडा था… लेकिन उसमें अयान को वही गर्माहट मिली, जो सिर्फ़ रिया की थी
अब सवाल ये है —
क्या वो सचमुच रिया थी?
या फिर रूद्र का अगला खेल?