डॉ. मेहता आश्रम में ऋषि अग्निहोत्री से विदा हुए, उनका मन ज्ञान और नई ऊर्जा से भरा हुआ था। गुरु ने उन्हें न सिर्फ़ बहुमूल्य मंत्र और ध्यान की विधियाँ सिखाई थीं, बल्कि दुष्ट शक्ति की कमजोरियों और कवच की वास्तविक क्षमता के बारे में भी बताया था। ऋषि अग्निहोत्री ने अपने दो सबसे भरोसेमंद शिष्यों, सूर्य और अवंतिका को डॉ. मेहता के साथ भेजा। सूर्य एक शांत, दृढ़ युवा था जिसकी आँखों में गहरी समझ थी, और अवंतिका एक तेज़-तर्रार, आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी युवती थी। दोनों ही ध्यान और प्राचीन विद्याओं में निपुण थे, और उनकी आभा में एक अलौकिक शांति थी।
"ये दोनों तुम्हारी मदद करेंगे, मेहता," ऋषि अग्निहोत्री ने कहा था। "इनकी उपस्थिति अनुष्ठान को अतिरिक्त शक्ति देगी और तुम्हारे छात्रों को मानसिक रूप से सहारा देगी।" गुरु के शब्दों में अटल विश्वास और दूरदर्शिता थी।
डॉ. मेहता और दोनों शिष्य बिना किसी रुकावट के वापस दिल्ली के लिए निकल पड़े। उनकी यात्रा सहज रही, जिससे डॉ. मेहता को गुरु की शक्ति पर और विश्वास हो गया कि उन्होंने दुष्ट शक्ति को रास्ता रोकने से रोके रखा था। रास्ते भर डॉ. मेहता ने सूर्य और अवंतिका से गुरु के उपदेशों पर चर्चा की, और उन्होंने भी अपने अनुभवों से कई नई बातें बताईं। अमावस्या की रात बस अगले दिन ही थी, और समय तेज़ी से बीता जा रहा था। हर गुजरता पल एक चुनौती था, और उन्हें पता था कि इस बार कोई गलती नहीं हो सकती।
जब वे अपार्टमेंट पहुँचे, तो विवेक, छाया, रिया और अनुराग उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। उनके चेहरों पर राहत के साथ-साथ गहरी चिंता भी थी। अपार्टमेंट की उदास और भयावह चुप्पी इस बात का संकेत थी कि अंदर सब ठीक नहीं था। डॉ. मेहता के साथ दो नए लोगों को देखकर वे अचानक अवाक रह गए। एक पल को तो उनके चेहरों पर असमंजस और थोड़ा डर भी दिखा – उन्हें नहीं पता था कि ये कौन हैं और क्या ये दुष्ट शक्ति के भेजे हुए तो नहीं। रिया ने अपनी माँ से सवाल करने के लिए मुँह खोला ही था कि डॉ. मेहता ने तुरंत स्थिति स्पष्ट की, उनकी आवाज़ में थकान के बावजूद एक दृढ़ता थी।
"ये ऋषि अग्निहोत्री के शिष्य हैं – सूर्य और अवंतिका," डॉ. मेहता ने परिचय दिया। "गुरुदेव ने इन्हें हमारी मदद के लिए भेजा है। ये अनुष्ठान को सफल बनाने में हमारी सहायता करेंगे।"
सूर्य और अवंतिका ने सम्मानपूर्वक सभी का अभिवादन किया। उनकी शांत उपस्थिति और आत्मविश्वास ने ग्रुप को थोड़ी राहत दी। वे उनके आध्यात्मिक आभा से प्रभावित हुए। सूर्य की आँखों में ज्ञान की गहराई थी, जबकि अवंतिका की उपस्थिति एक ऊर्जावान, शांत नदी जैसी थी। उनके आने से माहौल में एक उम्मीद की किरण जगी, जैसे अँधेरे कमरे में अचानक रोशनी का एक पुंज आ गया हो।
"हमें गुरुदेव से दुष्ट शक्ति के बारे में और महत्वपूर्ण जानकारी मिली है," डॉ. मेहता ने आगे बताया, उनकी आवाज़ में नई ऊर्जा थी। "हमें पता चला है कि इसका नाम 'काली छाया' है, और इसकी सबसे बड़ी कमजोरी निराशा है। यह डर पर पलती है, हमारे नकारात्मक विचारों से मज़बूत होती है। इसका मतलब है कि हमें अनुष्ठान के दौरान पूरी तरह से आशावादी और दृढ़ रहना होगा। ज़रा सा भी डर या संशय इसे मजबूत करेगा।" उन्होंने ताम्रपत्र पर लिखा नया, शक्तिशाली मंत्र भी दिखाया। "यह मंत्र 'काली छाया' के वास्तविक नाम का एक हिस्सा है। इसे सही समय पर बोलना होगा, जब अनुष्ठान चरम पर हो।" छात्रों ने एक-दूसरे की ओर देखा, उनके चेहरों पर अब भय की जगह थोड़ी-सी आशा और दृढ़ता उभरने लगी थी। यह जानकारी उन्हें एक दिशा दे रही थी कि उन्हें किस चीज़ से लड़ना है और कैसे। यह कोई अदृश्य, अजेय शक्ति नहीं थी, बल्कि एक ऐसी इकाई थी जिसकी अपनी कमजोरियाँ थीं। यह ज्ञान ही उनकी सबसे बड़ी शक्ति बनने वाला था।
अगले कुछ घंटे अनुष्ठान की अंतिम तैयारियों में बीत गए। सूर्य और अवंतिका ने ग्रुप को कुछ सरल लेकिन प्रभावी ध्यान की विधियाँ सिखाईं। उन्होंने उन्हें बताया कि कैसे अपनी आंतरिक शक्ति को केंद्रित करना है और दुष्ट शक्ति द्वारा पैदा किए गए भ्रम और भय से खुद को बचाना है। अवंतिका ने उन्हें सिखाया कि कैसे अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करके मन को शांत करें, और सूर्य ने उन्हें बताया कि कैसे अपने भीतर एक प्रकाश पुंज की कल्पना करें जो नकारात्मकता को दूर भगाता है। उन्होंने एक-एक करके हर छात्र पर व्यक्तिगत ध्यान दिया, उनकी घबराहट को समझा और उन्हें समझाया कि उनका डर ही दुश्मन का हथियार है।
"आपका मन जितना शांत होगा, उतनी ही आप शक्तिशाली होंगे," अवंतिका ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी शांति थी। "यह दुष्ट शक्ति आपके डर को खाती है।"
अनुराग, छाया और रिया ने ध्यान का अभ्यास किया। उन्हें लगा कि इससे उनके मन को थोड़ी स्थिरता मिल रही थी, और दुष्ट शक्ति का बढ़ता दबाव कुछ हद तक कम हो रहा था। रिया, जिसे अक्सर बेचैनी महसूस होती थी, उसे अपने मन में एक स्पष्टता महसूस हुई। छाया ने महसूस किया कि फुसफुसाहटें अब उतनी तीखी नहीं थीं, और अनुराग को लगा कि अदृश्य स्पर्शों की अनुभूति कम हो गई थी। विवेक ने कवच को धारण करने का अभ्यास किया और डॉ. मेहता से समझा कि अनुष्ठान के दौरान उसे कैसे उपयोग करना है। कवच से निकलने वाली ऊर्जा उसे सुरक्षा और आत्मविश्वास दे रही थी। विवेक ने महसूस किया कि कवच को धारण करने पर एक अदृश्य शक्ति उसके शरीर के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा बना रही थी, जिससे उसे पहले से कहीं अधिक मजबूत और केंद्रित महसूस हुआ।
डॉ. मेहता ने बताया, "हमें बेसमेंट में अनुष्ठान करना होगा, ठीक उस प्राचीन दरवाज़े के सामने जहाँ दुष्ट शक्ति को बांधा गया था। हमें वहाँ मिट्टी से एक चबूतरा बनाना होगा, उस पर नीला फूल रखना होगा, और लोहे के टुकड़े चारों ओर रखने होंगे।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर चीज़ को बिल्कुल ऋषि अग्निहोत्री के निर्देशों के अनुसार करना होगा, क्योंकि एक भी गलती महंगी पड़ सकती थी।
श्रीमती शर्मा की हालत अभी भी चिंताजनक थी। उनकी फुसफुसाहटें अब तेज़ हो गई थीं और वे कभी-कभी अजीबोगरीब आवाज़ें निकालने लगती थीं। उनके शरीर में ऐंठन होने लगी थी, और उनकी आँखें कभी-कभी पूरी तरह काली हो जाती थीं, जो काली छाया के उन पर बढ़ते प्रभाव का स्पष्ट संकेत था। ग्रुप जानता था कि उनकी भलाई भी इस अनुष्ठान पर निर्भर करती है। उनकी बिगड़ती हालत ने उन्हें और भी दृढ़ संकल्पित कर दिया था।
जैसे-जैसे रात गहराती गई, अपार्टमेंट में अजीबोगरीब घटनाएँ और तेज़ होती गईं। लिफ्ट लगातार चलती रही, बिना किसी के उसे बुलाए, उसके दरवाज़े भूतिया आवाज़ के साथ खुलते और बंद होते रहे। कमरों से ठंडी हवा के झोंके आते रहे, जो हड्डियों तक जम जाते थे, और सड़ी हुई, भयानक गंध पूरे घर में फैल गई थी। रिया के फोन पर अब सीधे हमले नहीं हो रहे थे, लेकिन उसे लगता था कि हर डिजिटल डिवाइस पर कोई उसे देख रहा है, उसकी हर हरकत पर नज़र रख रहा है। स्क्रीन पर अजीबोगरीब आकृतियाँ पल भर के लिए दिखतीं और गायब हो जातीं। छाया को लगातार महसूस होता था कि कोई उसके कानों में भयानक बातें फुसफुसा रहा है, उसे अपनी असफलताओं और डर की याद दिला रहा है, जिससे उसके मन में संदेह पैदा हो। और अनुराग को बार-बार लगता था कि उसके शरीर पर कोई अदृश्य हाथ घूम रहा है, कभी उसकी गर्दन पर, कभी पीठ पर, जिससे उसके रोंगटे खड़े हो जाते थे। यह सब दुष्ट शक्ति की हताशा थी, जो अपनी अंतिम लड़ाई से पहले उन्हें डरा रही थी, उनकी हिम्मत तोड़ने की कोशिश कर रही थी।
अमावस्या की रात आ गई थी। आसमान में चाँद बिल्कुल गायब था, जिससे चारों ओर घना अंधेरा था। एक भी तारा नहीं दिख रहा था, जैसे प्रकृति भी इस भयावह रात से मुँह मोड़ लिया हो। यह रात दुष्ट शक्ति के लिए सबसे शक्तिशाली मानी जाती थी, और इसी रात उसे दोबारा बांधना था। वातावरण में एक अजीब-सी तनावपूर्ण शांति थी, जो किसी बड़े तूफान से पहले की खामोशी जैसी थी।
ग्रुप ने डॉ. मेहता, सूर्य और अवंतिका के साथ मिलकर बेसमेंट की ओर कदम बढ़ाए। उनके पास नीला फूल, लोहे के टुकड़े, और कवच था। उनके दिल ज़ोरों से धड़क रहे थे, लेकिन उनकी आँखों में एक संकल्प था – इस बार, उन्हें जीतना ही होगा। दुष्ट शक्ति के विरुद्ध यह उनका अंतिम युद्ध था, और वे जानते थे कि इसका परिणाम या तो उनकी जीत होगी, या पूरी मानवता का अंत।
बेसमेंट का दरवाज़ा इंतज़ार कर रहा था, और उसके पीछे की अंधेरी ताकत अपनी रिहाई का सपना देख रही थी, लेकिन इस बार उसका सामना करने वाले अकेले नहीं थे।